हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Essay on Qutub Minar in Hindi पर पुरा आर्टिकल। आज हम आपके सामने कुतुब मीनार के बारे में कुछ जानकारी लाये है जिससे आपको कुतुब मीनार के बारे में बहुत सी बातो के बारे में पता चलेगा। आइये पढ़ते है कुतुब मीनार पर निबंध
Essay on Qutub Minar in Hindi
भूमिका :
भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली का इतिहास उतार-चढ़ावों से भरा हुआ है। इसको अनेक बार उजाड़ा और फिर बसाया गया है। दिल्ली अनेक मुगलसम्राटों की प्रिय जगह रह चुकी है और उन्होंने यहाँ पर शासन किया है। इन्हीं मुगल सम्राटों ने दिल्ली में अनेक ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण भी करवाया है।
इन्हीं इमारतों में लालकिला, जामा मस्जिद, हुमायूँ का मकबरा, कुतुबमीनार आदि बहुत प्रसिद्ध हैं। कुतुबमीनार एक बहुत प्राचीन तथा अनूठी इमारत है, जिसकी अपनी अलग ही लोकप्रियता है।
निर्माण परिचय :
कुतुबमीनार हिन्दुस्तान की उच्चतम मीनार है। इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बारहवीं शताब्दी में बनवाया था। कुछ के अनुसार इसे पृथ्वीराज ने अपनी पुत्री बेला के लिए बनवाया था। वह इसी मीनार की छत पर खड़ी होकर रोज यमुना नदी के दर्शन किया करती थी। इस मीनार को बनवाने का उद्देश्य दिल्ली की रक्षा करना भी था। बनावट तथा स्थिति : कुतुबमीनार दिल्ली रेलवे स्टेशन से लगभग 32 कि.मी. दूर दक्षिण में महरौली के पास स्थित है।
पहले कुतुबमीनार की सात मंजिलें थी, लेकिन अब केवल पाँच मंजिलें शेष हैं। इसके चार छज्जे बाहर की ओर निकले हुए हैं। इसकी ऊँचाई 268 फुट है। इसके ऊपर तक पहुँचने के लिए 378 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। सबसे ऊपर की मंजिल से पूरी दिल्ली के दर्शन किए जा सकते हैं।
पिकनिक का स्थान :
कुतुबमीनार के आस-पास काफी हरी-भरी घास है तथा सुन्दर बगीचा भी है। यहाँ अनगिनत लोग हर रोज पिकनिक मनाने आते हैं। इस मीनार के पास प्राचीन खण्डहर भी है जो बहुत सारी पुरानी यादें समेटे हुए हैं। यहाँ का मुख्य आकर्षण एक विशेष धातु से बनी हुई अशोक की ‘लाट’ है।
इसकी विशेषता यह है कि इस धातु में आज तक जंग नहीं लगा है तथा कोई भी व्यक्ति इसे पीछे की ओर हाथ करके नहीं पकड़ सकता है। इसे भीम की कीली’ भी कहते हैं। ये सारी विशेषताएँ ही दर्शकों को यहाँ आने के लिए लुभाती है।
उपसंहार :
एक समय था जब कोई भी व्यक्ति इसकी पाँचवी मंजिल तक जा सकता था। लेकिन कई दुर्घटनाएँ हो जाने की वजह से अब केवल पहली मंजिल तक ही जाया जा सकता है। ऊपर से नीचे देखना बहुत अच्छा लगता है, क्योंकि सभी चीजें बहुत छोटी-छोटी दिखाई देती हैं। आजकल यह स्थान ऐतिहासिक स्थान के रूप में जाना जाता है।
इसके बाहर कितने ही फेरी वाले अपना सामान बेचते हैं और अपनी आजीविका कमाते हैं। अब तो यह पूर्णतया पिकनिक स्थल बन चुका है।
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Essay on Qutub Minar in Hindi
कुतुबमीनार दिल्ली में स्थित है। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। इसे देखने प्रतिदिन हज़ारों पर्यटक आते हैं। इसे दिल्ली के प्रथम मुस्लिम शासक कुतुब-उद-दीन ऐबक ने सन् 1200 ई० में बनाना प्रारंभ किया था। लेकिन वह उसका आधार ही बना पाया था।
उसकी ऊपर की तीन मंज़िलें कुतुबुद्दीन ऐबक के उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने बनवाई और कुतुबमीनार की आखिरी अथवा पाँचवी मंजिल 1368 ई० में फिरोज़शाह तुगलक ने बनवाई थी। सभी शासकों ने इसका निर्माण मीनार के रूप में ही करवाया था।
कुतुबमीनार एक पाँच मंजिला इमारत है। यह 72.5 मीटर (238 फीट) ऊँची है। इसके नज़दीक ही चंद्रवर्मन द्वारा निर्मित एक लौह स्तंभ है जिसे 1600 वर्षों से जंग नहीं लगा है और न ही यह सड़ा या गला है। कुछ विद्वानों का मत है कि कुतुबमीनार भारत में मुसलमानों के शासन करने की शुरूआत और विजय का प्रतीक है। और कुछ विद्वानों के अनुसार, कुतुबमीनार अजान (अजाँ) देने के लिए बनवाई गई थी।
नि:संदेह, कुतुबमीनार भारत की ही नहीं, विश्व की सबसे उत्कृष्ट और ऊँची मीनार है। इसका आधार (बेसमेंट) 47 फीट है और इसकी शुण्डाकार चोटी 9 फीट है। इसकी चार बालकनी हैं। अन्दर से यह मीनार शिलालेखों से अलंकृत है।
कुतुबमीनार के नज़दीक चौथी शताब्दी में निर्मित लौह स्तंभ को हिन्दुओं के देवता भगवान विष्णु के सम्मान में बनवाया गया था। कुछ विद्वानों के मतानुसार, इसे गुप्त वंश के राजा चंद्रगुप्त की याद में बनवाया गया था, जिसने सन् 375 ई० से 413 ई० तक शासन किया था। दिल्ली के लालकिले की तरह कुतुबमीनार को भी यूनेस्को वर्ल्ड हैरिटेज साइट में स्थान मिला है। इसलिए संपूर्ण संसार में यह सुविख्यात है।
विश्व के कोने-कोने से इसे देखने पर्यटक आते हैं। विश्व की जिन अद्भुत एवं अनुपम इमारतों तथा प्राचीन स्मारकों या रेलगाड़ी आदि को यूनेस्को वर्ल्ड हैरिटेज साइट में स्थान मिला है, वे सभी दुनिया भर की आँखों का तारा बन गए हैं। प्रत्येक व्यक्ति उन्हें देखना चाहता है। क्योंकि यूनेस्को वर्ल्ड हैरिटेज साइट में अद्वितीय स्थानों, स्मारकों आदि को ही स्थान दिया जाता है।
कुतुबमीनार उन्हीं अद्वितीय स्मारकों में से एक है। यह 800 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है, परंतु आज भी यह अत्यंत आकर्षक एवं मनमोहक है। इसे हज़ारों पर्यटक प्रतिदिन देखने आते हैं।
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