दोस्तों आज में आपके लिए और आपके प्यारे बच्चो के लिए हिंदी की छोटी छोटी कहानिया जो आपको कुछ न कुछ जरूर सीखेँगे। ये कहानियाँ सिर्फ और सिर्फ छोटे बच्चो के लिए है। हो सके तो अपने बच्चो को रोज एक नयी कहानी सुनाये जिससे उनके सोचने और कल्पना करने का विकास होगा और अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर लाएगा। चलो पढ़ते है Hindi Short Stories With Moral Value सिर्फ अपनी मातरभाषा में
Hindi Short Stories No. 1 चालाक भेड़िया
किसी वन में वज़दूष्ट्र नामक एक शेर रहता था। चतुरक और क्रव्यमुख नामक सियार और भेड़िया उसके बड़े ही आज्ञाकारी सेवक थे। एक दिन शेर ने ऊंटनी का शिकार किया। दुर्भाग्यवश वह ऊंटनी गर्भवती थी। पेट फटते ही उसका बच्चा बाहर निकल आया। बच्चे को देखकर शेर का दिल भर आया उसके मन में ऊंटनी के बच्चे के प्रति इतना स्नेह उत्पन्न हुआ कि वह उसे अपने घर ले आया और उसका नाम शंकुक रखकर उसका पालन-पोषण करने लगा।
धीरे-धीरे समय बीतता चला गया और गुजरते वक्त के साथ-साथ ऊट का बच्चा है | जवान भी हो गया। संयोगवश एक दिन शेर का एक हाथी से सामना हो गया। हाथी ने अपने दांतों के प्रहार से उसे इतना घायल कर दिया कि वह उठने-बैठने -यहां तक कि चलने-फिरने और शिकार करने में भी असमर्थ हो गया
भूख से व्याकुल शेर ने एक दिन अपने सेवकों से कहा “साथियो! किसी ऐसे पशु को खोजकर लाओ जिसका शिकार में इस असहाय अवस्था में भी कर सकू।” अपने स्वामी के आदेश को शिरोधार्य करके दोनों सेवक वन के एक कोने से दूसरे कोने तक भटकते रहे, परंतु उन्हें ऐसा कोई प्राणी नहीं मिला जिसका सिंह बैठे बैठे ही शिकार निराश सेवकों ने लौटकर अपनी असफलता से अपने कर सक।
स्वामी शेर को अवगत कराया। दूसरे दिन चतुरक ने अपने साथी क्रव्यमुख से कहा”इस प्रकार भूखे रहकर
तो एक दिन हम सब मर जाएंगे। मेरे दिमाग में एक योजना है। अगर सिंह उसे कार्यरूप देने को तैयार हो जाए।”
“कैसी योजना?” क्रव्यमुख ने पूछा।
“यदि शंकुकर्ण का वध कर दिया जाए तो कुछ दिनों के भोजन की व्यवस्था हो सकती है।” चतुरक ने अपनी योजना बताते हुए कहा। तुम ठीक कहते हो चतुरक, इसके सिवा हमारे पास और कोई चारा भी तो नहीं है।”थे
“तब तक शायद हमारा स्वामी स्वस्थ होकर शिकार करने की स्थिति में आ जाएगा।” चतुरक ने अपने साथी की योजना का समर्थन करते हुए कहा।
* लेकिन.” क्रव्यमुख के चेहरे पर अचानक गंभीरता छा गई।
“लेकिन यह क्या मित्र?”
“आपका सुझाव तो उत्तम है और स्थिति को देखते हुए हमारे अनुकूल भी है , मगर हमारे स्वामी का कुकर्ण के प्रति इतना अधिक स्नेह है कि वह उसके वध के लिए तैयार नहीं होगा।” क्रव्यमुख ने निराश स्वर में कहा इस बात को तो मैं भी अच्छी प्रकार समझता हूं, लेकिन भूख व्यक्ति को सबकुछ करने पर विवश कर देती है। किसी को भी अपने प्राणों से अधिक प्रिय और कुछ नहीं होता।
इस प्रकार सोच-विचार करने के बाद दोनों शेर के पास जाकर बोले, “राजन्! यदि आपको अपने प्राणों से मोह है तो शंकुकर्ण के वध का प्रस्ताव स्वीकार कर ।
लीजिएअन्यथा भूख की व्याकुलता के कारण आप और हम यमलोक की ओर प्रस्थान कर जाएग। ‘यदि शंकुकर्ण स्वेच्छा से आत्मसमर्पण करता है तो मैं उसके वध के प्रस्ताव पर विचार कर सकता हूं। अगर वह ऐसा नहीं करता है तो चाहे में भूख से तड़प-तड़पकर मर जाऊं, पर उसका वध नहीं करूगा।” सिंह ने बेहद धीमे स्वर में कहा।
सिंह की अनुमति प्राप्त कर लेने के बाद दोनों शंकुकर्ण के पास चिंतित मुद्रा में आए और कहने लगे, “मित्र! हमारा स्वामी भोजन न मिलने के कारण इतना असमर्थ हो गया है कि वह उठ भी नहीं सकता। उसके घाव भी नहीं भर पा रहे हैं।
मैं स्वामी के हित के लिए ही तुमसे कुछ कह रहा हूं, तुम इसे अन्यथा मत लेना। “बंधुवर! स्वामी के लिए मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूं। शायद मैं उनके किसी काम आकर पुण्य का भागी बन सकू।” शंकुकर्ण ने सहज भाव से कहा इस समय स्वामी के प्राणों पर संकट आ पड़ा है। तुम अपने शरीर को समर्पित करके स्वामी की प्राण-रक्षा के पुण्य भागी बन सकते हो।
मैं हर प्रकार से तैयार हूं।” शंकुकर्ण ने अपनी स्वीकृति दी। उसकी स्वीकृति पाते ही दोनों शंकुकर्ण को शेर के पास ले गए। सिंह के पास पहुंचकर शंकुकर्ण ने निवेदन कियास्वामी! में अपने धर्म का पालन करने के लिए अपना शरीर सहर्ष आपको समर्पित करता हूं।
यह जीवन आप ही का तो दिया हुआ है। अब आप मेरे इस नश्वर शरीर से अपने और अपने सेवकों के प्राणों की रक्षा करें।” सिंह की स्वीकृति मिलते ही दोनों ने उस ऊंट को फाड़ डाला। शंकुकर्ण के वध के बाद सिंह ने चतुरक से कहा”मैं नदी में स्नान करके आता हूं तब तक तुम इस मांस की सावधानी से देखभाल करना।
सिंह के जाते ही चतुरक सोचने लगा कि कोई ऐसी युक्ति निकाली जाए जिससे सारे मांस पर मेरा ही अधिकार हो जाए। कुछ देर सोचने के बाद अपने साथी क्रव्यमुख को बुलाकर वह बोला, मित्र! आप बहुत ही ज्यादा भूख से पीड़ित नजर आते हैं।
इसलिए जब तक सिंह नहीं लौटतातब तक इस बढ़िया मांस को खाने का आनंद प्राप्त कर लें। स्वामी के आने पर मैं उनसे निबट लूगा।
क्रव्यमुख भूख स व्याकुल तो था ही, अत: उसने जैसे ही खाने के लिए मुंह खोला, चतुरक ने उसे स्वामी के आने की सूचना दी और भागकर कहीं छिप जाने के लिए कहा। क्रव्यमुख भयभीत होकर भाग गया और पास ही झाड़ियों में जा छिपा।
सिंह ने वहां आते ही मांस को देखा और घायल होने के बावजूद तेज स्वर में दहाड़ते हुए बोलाकिसने मेरे भोजन को जूठा किया है?”
दहाड़ सुनकर क्रव्यमुख भय से कांपने लगापरंतु चतुक ने कहा, “मित्र! मन पहले ही तुमसे कहा था कि स्वामी स्नान करने गए हैं उनके खाने को जूटा मत , लेकिन तुम अपनी भूख पर संयम नहीं रख सके। अब इसका परिणाम भुगतो।
” चतुक के वचन सुनकर क्रव्यमुख अपने प्राण संकट में देख वहां से भाग खड़ा हुआ। सिंह जैसे ही भोजन करने बैठा कि उसने एक भारी की आवाज सुनी।
घट कुछ ही दूरी पर ऊंटों का एक काफिला गुजर रहा था और आगे वाले ऊंट के गले में घंटा लटक रहा था ताकि उसके चलने से होने वाली आवाज को सुनकर दूसरे ऊंट सही दिशा में चल सकें।
ने चतुरक से तुरंत उस घंटे की आवाज के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए कहा। चतुरक थोड़ी दूर जाकर लौट आया और सिंह से बोला, “महाराज! यहां से तत्काल भाग जाएं।
आप पर भारी संकट आनेवाला है। जल्दी कीजिएसमय बहुत कम है।” “स्पष्ट रूप से बताआ, आने वाला वह संकट कोन-सा है?” सिंह ने भयभीत हाकर पूछा।
“राजन! आपने असमय ऊंट का वध किया है। इसकी शिकायत ऊंटों ने यमराज से की है। वह आप पर क्रद्ध हो गए हैं। वे ऊंटों के सामने आपको दंड देने के लिए ऊंटों के विशाल फ्रेंड के साथ इधर ही आ रहे हैं।
उन्होंने एक ऊंट के गले में घंटा बांध रखा है, ताकि आप यह जान लें कि धर्मराज किसी को भी किसी के प्रति अन्याय की अनुमति नहीं देते।”
चतरक की बात सुनते ही सिंह वहां से भाग गया और उसके बाद चतुरक कई दिनों तक उस शिकार का आनंद लेता रहा।
कथासार ।
धर्त प्राणी अपनी कूटनीतिक चालों से दूसरों को हानि पहुंचाकर भी स्वयं सामने नहीं आताचतुरक सियार अपने नाम के अनुरूप चतुर व धूर्त था, तभी तो उसने अपने स्वामी सिंह व मित्र भेड़िए को छल-कपट द्वारा शिकार से वंचित कर दिया। के
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Hindi Short Stories No. 2 झूठ के पैर नहीं होते
किसी गांव में दीनू नाम का एक लोहार अपने परिवार के साथ रहता था। उसके एक पुत्र था जिसका नाम शामू था। जैसे जैसे शामू बड़ा होता जा रहा था। उसके दिल में अपने पुश्तैनी धंधे के प्रति नफरत बढ़ती जा रही थी।
शामू के व्यक्तित्व की एक विशेषता यह थी कि उसके माथे पर गहरे घाव का निशान था जो दूर से ही दिखाई देता था।
जब शामू युवा हो गया तो एक दिन वह अपने पिता से बोला, “बापू! मैं यह लोहा लूटने और धौंकनी चलाने का काम नहीं कर सकतामैं तो राजा की सेना में जाना चाहता हूं। सुना है कि सैनिकों के ठाट-बाट निराले ही होते हैं।”
दीनू ने अपने पुत्र की बात सुनी तो माथा पीटकर रह गया। वह बोला, “बेटा! यह तो संभव ही नहीं है।
तुम्हें शायद पता नहीं कि हमारे राज्य के कानून ने केवल क्षत्रियों को ही सेना में प्रवेश करने का अधिकार दिया है। फिर तुम सेना में कैसे जा पाओगे?”
“बापू! इसकी चिंता आप न करेंइसका मैंने उपाय खोज लिया है। मैं राजा को अपनी जाति बताऊंगा ही नहीं, बल्कि कह डंगा कि मैं शूरवीरों का वंशज हूं।” शामू पिता को समझाते हुए बोला। दीनू ने उसे बहुत समझाया, झूठ बोलने के दुष्परिणामों का भय दिखाया, लेकिन वह न माना और सेना में प्रवेश पाने के लिए
शहर की ओर चल दिया
उस समय वहा रिपुदमन नामक राजा राज करता था। शामू ने राजा के सम्मुख पहुंचकर अभिवादन किया और अपने आने का मंतव्य बताया। राजा ने जब उसके माथे पर घाव का निशान देखा | । तो सोचा कि युवक तो पराक्रमी लगता है, शायद किसी युद्ध में इसके माथे पर यह घाव लगा होगा।
“नाम क्या है तुम्हारा?” राजा ने पूछा। “ज…जी भयंकर सिंह।” शामू ने जवाब दिया। किस जाति-वंश के हो?”
शशूरवीरों के वंश से हूं।” शामू फिर सफेद झूठ बोल गया। रिपुदमन उसकी बातों से बहुत प्रभावित हुआ और उसे सेना में प्रवेश मिल गया। अब शामू को अच्छा वेतन और सुखसुविधाएं मिलने लगीं।
सब कुछ ठीक-ठाक ही चल रहा था कि एक दिन पड़ोसी देश के राजा ने रिपुदमन के राज्य पर हमला बोल दिया। रिपुदमन की सेना जब मैदान में उतरी तो उसके पांव उखड़ते देर न लगी। सैनिकों की हार की बात सुनकर रिपुदमन के क्रोध की सीमा न रही। उसने तुरंत शामू को, जो भयंकर सिंह के छद्म नाम से सेना में आया था, बुला भेजा।
उसके आते ही रिपुदमन ने कहा, “राज्य पर शत्रु ने आक्रमण कर दिया है। हमारी सेना पीछे हट रही है। तुम जाओ और शत्रुओं का संहार करके अपने नाम को सार्थक करो”
राजा की बात सुनते ही शामू के तो होश ही उड़ गएवह हकलाता-सा बोल I उठा, “म.महाराजमैं कुछ कहना चाहता हूं।”
“जो कुछ कहना है, जल्दी कहो और युद्ध क्षेत्र की ओर प्रस्थान ” राजा करो के स्वर में क्रोध भर आया था।
“महाराज! मैं शूरवीरों के वंश का नहीं हूं। युद्धक्षेत्र में जाने की बात तो दूर, मैं तो युद्ध के नाम से कांप उठता हूं।”
यह सुनकर राजा रिपुदमन का क्रोध भड़क उठा। उसने उसी क्षण उसे मृत्युदंड की सजा सुनाते हुए फौरन तलवार से उसकी गरदन काट दी।
कथा-सार Moral Value
कहावत है कि काठ की हांड़ी एक ही बार आंच पर चढ़ पाती है। शामू सेना में जाना चाहता था, पर उसके अंतर्मन में वीरता नहीं थी। यही कारण था कि उसका झूठ पकड़ा गया। याद रखें! एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं, फिर भी वह पकड़ा जाता है, क्योंकि झूठ के पैर नहीं होते। कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता।
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Hindi Short Stories No. 3: जादुई डंडा
एक खरगोश बेहद आलसी और कामचोर था। एक बार वह पेड़ के नीचे बैठा। था। वहीं एक डंडा भी पड़ा था। खरगोश ने वह डंडा उठा लिया और उसे जमीन पर मारने लगा। जमीन पर डंडा मारते हुए वह सोच रहा था कि काश!
मुझे ढेर सारी गाजरें मिल जातीं। अभी उसने यह बात सोची ही थी कि वहां गाजरों का ढेर लग गयाइतनी सारी गाजरें देखकर खरगोश सोचने लगा’
कहीं यह जादुई डंडा तो न नहीं है। ‘
उसने डडे को पुन: आजमाने के लिए जमीन पर मारा और कहा, मुझे हरीहरी घास खाने को चाहिए” खरगोश के कहने की देर थी कि वहां हरी घास का गट्ठर आ गया। खरगोश को यकीन हो गया कि यह जादुई डंडा ही है।
खरगोश के तो अब दिन ही फिर गएवह सारे दिन खाता और सोता। एक दिन उसके मन में ख्याल आया कि उसके पास खाने की भले ही कोई कमी नहीं है, किंतु वह बड़े जानवरों से असुरक्षित है। वह काफी देर तक सोचता रहा।
फिर उसके दिमाग में एक बात आई। उसने डंडे को जमीन पर मारा और कहा “मुझे शेर बना दो और जगल के राजा शेर को खरगोश।
” पलक झपकते ही खरगोश शेर बन गया। शेर बनते ही वह खरगोश शेर की गुफा में गया और वहां शेर से खरगोश बने शेर को भगा दिया और उसमें स्वयं रहने लगा।
अब वह खरगोश स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहा था। चूंकि वह खरगोश केवल जादू के असर से शेर बना हुआ था, अत: सारे दिन गाजर खाता और सोता।
उधर चापलूस लोमड़ी ने देखा कि शेर तो गुफा से बाहर ही नहीं निकल रहा है तो उसे बड़ी चिंता हुई, क्योंकि वह तो शेर के सहारे ही अपना भोजन जुटाती
थी। शेर जिस भी जानवर का शिकार करता उसका बचा-खुचा हिस्सा लोमड़ी को ही मिलता था।
अंतत: जब लोमड़ी से रहा न गया तो वह शेर से मिलने उसकी गुफा में गई और उसे शिकार पर चलने को कहा, पर वहां असल शेर तो था ही नहीं, अत:
उसने अंदर से ही लोमड़ी को भगा दिया।
लोमड़ी को तो अपनी भूख मिटानी ही थी। वह दूसरे शेर को जंगल में बुला लाई। तब जंगल के सभी जानवर अपने शेर के पास गए।
अब शर बना वह खरगोश डर गया। वह भला असली शर को कस भगाता।
उसने उस वक्त तो सभी जानवरों को आश्वासन देकर वापस भेज दिया। जब सब जानवर चले गए तब खरगोश ने सोचा कि अपने वास्तविक रूप में ही
जीवन व्यतीत करना बेहतर है। जो काम शेर का है वह शेर ही कर सकता है।
उसने जादुई डंडे को जमीन पर मारा और स्वयं को वापस खरगोश और शेर को शेर के रूप में बनाने को कहा खरगोश बनते ही वह शेर की गुफा से तेजी से निकल और अपने साथी भागा खरगोशों के झुंड में ही रहने लगा।
कथा-सार Moral Value
प्रकृति की लीला विचित्र है। उसने हर कार्य के नियमसिद्धांत तय कर रखे हैं। जो भी इसके विरुद्ध काम करता है उसे दंड भोगना ही पड़ता है। खरगोश
ने भी इस नियम को भंग किया और जब इसके कुफल सामने आए तो तौबा कर ली।
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Hindi Short Stories No. 4 नंदीश्वर
एक बार पडित परमसुख को दानस्वरूप एक बछड़ा मिला। उसने बछड़े का नाम ‘नंदीश्वर’ रखा और प्यार से लालन-पोषण करके उसे तंदरुस्त बैल बना दिया। बैल भी
परमसुख का काफी ख्याल रखता था, क्योंकि उसने उसे पिता समान प्यार दिया था।
एक दिन बैल ने परमसुख से कहा कि वह नगर के व्यापारी के पास जाकर कहे कि उसका बैल से लदी पचास गाड़ियां एकसाथ खींच सकता है। यदि माल व्यापारी विश्वास न करे तो दो हजार स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लगा लेना।
परमसुख ने अपने बैल को अविश्वसनीय नजरों से देखा। उसे बैल की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि पचास गाड़ियां एकसाथ खींचना असंभव काम था।
बैल ने फिर कहा”मालिक, आप मेरी बात पर यकीन करेंआप इस तरीके से धनवान बन सकते हैं। सकता परमसुख हैरत में पड़ गया। उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि बैल भी बोल। है। फिर भी उसने बैल से पूछा”तुम्हें विश्वास है कि मैं शर्त जीत जाऊंगा?”
“बेशक! अगर मैं पचास गाड़ियां न खींच सकता होता तो ऐसी सलाह आपको कभी न देता।” बैल ने पूर्ण विश्वास के साथ कहा।
परमसुख एक व्यापारी के पास पहुंचा और उससे बोला, “महाशयबताइए इस नगर में किसका बैल सबसे ज्यादा गाड़ियां खींच सकता है?” बलवान वैसे तो कई बैल बहुत बलवान हैं, किंतु मेरे बैल जैसा पूरे नगर में शायद किसी के पास नहीं है।”
व्यापारी गर्व से बोला। अच्छामेरा बैल तो माल से लदी पचास गाड़ियां एकसाथ खींच सकता है। क्या आपका कर ?” बैल उसका मुकाबला सकता है
व्यापारी ने अट्टहास किया और बोला”क्यों मजाक करते हो भाई?” “मैं मजाक नहीं कर रहा हूं।” परमसुख ने दृढ़ स्वर में कहा
“नहीं हो सकताकोई भी बैल पचास गाड़ियां एक साथ असभव! यह कदाप नहीं खींच सकता।
” व्यापारी ने आश्चर्यपूर्ण स्वर में कहा “एक हजार स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लगाकर देख लो।
अगर मेरे बैल ने पचास गाड़ियां एक साथ खींच दीं तो मैं शर्त जीत जाऊंगा। अगर न खींच पाया तो हार जाऊंगा।”
व्यापारी ने सोचा, ‘परमसुख पागल हो गया है।’
फिर भी उसने शर्त लगा ली। निश्चित समय पर कंकड़पत्थर और बालू से लदी पचास गाड़ियों के साथ कुछ ही देर में एक हजार स्वर्ण मुद्राएं मिल जाएंगी। इनके अलावा मेरे जीवनभर की बचत की एक हजार मुद्राएं मिलाकर मेरे पास दो हजार स्वर्ण मुद्राएं हो जाएंगी।
उन मुद्राओं से मैं और बहुत-से बैल खरीदूगा और शर्ते लगाया करूगा। फिर तो सारे नगर में मैं सबसे धनी आदमी बन जाऊंगा” मन-ही-मन खुश होते हुए उसने नंदीश्वर के गले में माला पहनाकर उसे सबसे आगे वाली गाड़ी में जोत दिया
‘चल, दुष्ट इन गाड़ियों को” हुए जल्दी खींच । बैल की कमर पर चाबुक मारते बोला।
अपने मालिक के ऐसे कड़वे बोल सुनकर बैल के दिल को ठेस पहुंचीउसने मन में सोचा यह मुझे अपशब्द है, ऐसा है तो मैं यहां से हिbगा भी नहीं। ‘कह रहा कुछ ही देर में परमसुख परेशान हो गया, इस नंदीश्वर को क्या हो गया है?
यह आज्ञा क्यों नहीं मान रहा? नतीजा मेरी ” उसने लाख प्रयत्न किए मगर वही ढाक के तीन पात। उधर व्यापारी फूला नहीं समाया, क्योंकि वह शर्त जीत चुका था, “हा..हा.हा!
मैं शर्त जीत गया, निकालो एक हजार स्वर्ण मुद्राएं।”
परमसुख को एक हजार स्वर्ण मुद्राएं उस व्यापारी को देनी पड़ीं। नंदीश्वर को लेकर वह थके कदमों से घर पहुंचा और निराश होकर बिस्तर पर पसर गया। “सो गए मालिक?” नंदीश्वर ने परमसुख से पूछा।
“मैं बरबाद हो गया..सो कैसे सकता हूं। काश! मैंने तुम्हारी बात न मानी होती।” परमसुख परेशान होकर बोला।
“आपने मुझे गाली क्यों दी थी? मैंने कभी कोई बरतन फोड़ा या किसी को सींग मारा या…।
“नहीं बेटा, तुमने ऐसा कभी कुछ नहीं किया। अब तुम यहां से चले जाओ।। परमसुख ने अनमने स्वर में कहा। जाआा नंदीश्वर को परमसुख पर दया आ गई। वह बोला, “कोई बात नहीं, फिर से शर्त लगा लो। इस बार दो हजार स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लगाना। बस, एक बात। का ध्यान रखना कि मुझे अपशब्द न कहना।
परमसुख एक बार फिर शर्त लगाने की इच्छा से व्यापारी के पास पहुंचा और उसने दो हजार स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लगाई।
“लगता है पंडितजी, एक बार शर्त हारने के बाद भी आपकी इच्छा पूरी नहीं हुई।” व्यापारी ने उपहास करते हुए कहा। इस बार मुझे जीत का पूरा विश्वास है, इसलिए मैं दो हजार स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लगाता हूं।’
“दो हजार! ” व्यापारी कुछ देर सोचता रहा। फिर बोला”ठीक है, मुझे आपकी शर्त मंजूर है।” फिर पचास गाड़ियों में माल लादकर नंदीश्वर को जोता गया। परमसुख गाड़ी में बैठ गया और नंदीश्वर से बोला, मित्रचलो, गाड़ियां खींचो।” नंदीश्वर ने गाड़ियों को खींचना शुरू किया तो गाड़ियां खिंचती ही चली गईं
यह देखकर व्यापारी के होश उड़ गएवह बोला, “चमत्कार! सचमुच ही परमसुख का बैल सबसे ज्यादा ताकतवर है। ”
उसके बाद व्यापारी ने शर्त के अनुसार परमसुख को दो हजार स्वर्ण मुद्राएं दे दीं। स्वर्ण मुद्राए लेकर परमसुख प्रसन्न मुद्रा में घर पहुंचा। अब वह और अधिक
धनी हो गया था। वह अपना जीवन सुखपूर्वक बिताने लगा
कथा-सार
यह आपकी जुबान ही है जो किसी को मित्र तो किसी को शत्रु बना देती है। परमसुख ने जब कटु लहजे में बैल को आदेश दिया तो वह टस-सेमस न हुआ और वही बैल प्रेम से पुचकारने पर असंभव कार्य भी कर गया। मधुरभाषी बनकर कट्टर शत्रु पर भी विजय पाई जा सकती है।
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Hindi Short Stories No. 5. सबसे भयंकर
एक बार अकबर अपने कक्ष में बैठे बीरबल को अपना | स्वप्न सुना रहे थे। बीरबल! आज रात के तीसरे पहर मैंने बड़ा भयानक स्वप्न देखा-मैंने देखा कि मैं जहन्नुम (नरक) – में हूँ और वहाँ मुझे तलवार से मारा काटा जा रहा है, साँप, बिच्छु मेरे शरीर से लिपटे डंक मार रहे हैं, मुझे तरह-तरह । की यातनाएँ दी जा रही हैं…।
अकबर ने पूछा-बीरबल अब बताओ, भला उससे भी भयंकर कुछ हो सकता है? बीरबल बोले-जहाँपनाह इससे भयंकर भी संभव है, अकबर ने पूछा, ‘वह कैसे?’ बीरबल ने जवाब दिया ‘महाराज स्वप्न में देखा सच भी हो सकता
Hindi Short Stories No. 6. माधुर्य का रहस्य
पथिक ने सरिता से पूछा, ‘सरिते। तू इतनी छोटी है, किन्तु तेरा जल कितना मधुर तथा तुष्टिकारक है। और वह सागर इतना विशाल है, परन्तु उसका जल खारा है, इसका आखिर क्या रहस्य है? वेगवती सरिता को किसी की बात सुनने की फुरसत ही कहाँ थी। सरपट दौड़ते-हाँफते उसने इतना मात्र कहा, ‘सागर से ही जाकर पूछो।’
क्षितिज तक विस्तृत और गर्जन-तर्जन करने वाले सागर के पास पथिक गया और उससे वही प्रश्न किया। सागर बोला, ‘पथिक, सुनो ध्यान से, सरिता एक हाथ से लेती है, दूसरे हाथ से देती है। वह एक पल के लिए भी कुछ नहीं रखतीं। दूसरों को कुछ देने के लिए ही वह दिन-रात दौड़ती रहती है किन्तु मैं केवल लेता हूँ, देता तनिक भी नहीं। यही कारण है कि मेरा संचित जल खारा है।’
पथिक ने समझ लिया कि जो एक हाथ से लेता है और दूसरे हाथ से बाँट देता है, उसी के जीवन में माधुर्य रहता है। संग्रह करने वाले मनुष्य का जीवन नीरस बन कर रह जाता है।
Hindi Short Stories No. 7. सबसे घिनौना
एक बार राजा हर्षवर्धन ने एक साधु से एक दिन राजमहल में पधारने का आग्रह किया। इस पर साधु ने कहा, ‘तुम्हारे महल में बड़ी बदबू आती है। मैं वहाँ न आ सकूँगा।’ यह सुनकर हर्षवर्धन को बड़ा आश्चर्य हुआ। कुछ समय बीतने पर साधु हर्षवर्धन के साथ घूमते-घूमते एक ऐसी बस्ती में पहुँचे, जहाँ लोग चमड़ा पका, सुखा रहे थे। नन्हें-मुन्हें हँस खेल रहे थे। महिलाएँ खाना पका रही थी।
थोड़ी देर बाद हर्षवर्धन ने कहा, ‘महाराज’! मेरे राजमहल से तो आपको बदबू आती है पर यहाँ तो वास्तव में ही बड़ी सड़ी बदबू आ रही है, फिर भी आप यहाँ प्रसन्न मुद्रा में खड़े हैं। पता नहीं ये लोग कैसे इस बदबू में रह लेते है।
‘राजन’ इससे ज्यादा बदबू तो तुम्हारे राजमहल में आती है। विषय भोगों में लिप्त रहते-रहते राजमहल में जैसे आप अभ्यस्त हो गये हैं, वैसे ही इस बस्ती में रहने वाले चमड़े की बदबू के अभ्यस्त हो गये हैं। सांसारिक विषय इस बदबू से भी ज्यादा घिनौने हुआ करते हैं, इस कारण मैं तुम्हारे राजमहल में नही आता। साधु ने जवाब दिया।
Hindi Short Stories No. 8. स्वाभिमान की रक्षा
एक बार यूनान के अत्याचारी अधिकारियों ने आत्मभिमानी डायोजिनीज को पकड़कर बिक्री के लिए गुलामों के बाजर में बैठा दिया।
बेचने वालों ने उससे पूछा-‘तुम कौन सा काम अच्छी तरह कर सकते हो बता दो, जिससे तुम्हारी विशेषताओं को घोषित करके उपयुक्त ग्राहक खोजा जाए।’
डायोजिनीज ने पूर्ण आत्मविश्वास के साथ घोषणा करने वालों से कहा-‘मैं अच्छा शासन कर सकता हूँ, घोषित करो कि किसी को स्वामी की आवश्यकता हो तो वह मुझे ले जा सकता है।’
Hindi Short Stories No. 9. निन्यानवे का फेर
एक बार एक सेठानी ने मकान की छत से अपने गरीब पड़ोसी लेकिन हृष्ट-पुष्ट शरीर के गठीले आदमी को देखा। आधी रोटी पर अपने परिवार की पेट पूर्ति करने वाले उस आदमी को देखकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ। सेठजी के घर पहुँचने पर उसने पूछा कि आप क्यों दिन प्रतिदिन इतनी धन-सम्पदा के बावजूद दुर्बल रहते हैं? आपका पड़ोसी जो निर्धन एवं अभावग्रस्त है फिर भी शरीर से सबल एवं खुश है।
सेठजी ने बताया कि मुझे कुछ नहीं हैं उसके शरीर की यही अवस्था है। सेठजी की बात सेठानी के गले से नहीं उतरी। सेठजी ने एक महीने का सेठानी से समय लिया और प्रत्यक्ष प्रमाण बताने के लिए निन्यानवे की एक थैली पड़ोसी की झोपड़ी में डाल दी। अकस्मात निन्यानवे रुपये की एक थैली पाकर वह पड़ोसी बहुत प्रसन्न हुआ। अब वह उन्हें पूरे सौ रुपये करने की चिन्ता में डूब गया।
सौ रुपये की थैली पूरी करने के लिए एक महीने तक अपने पेट को काटकर जोड़ता रहा। इस प्रकार उसका शरीर क्षीण होता गया और वह इतना दुर्बल हो गया कि सही रूप से पहचाना भी नहीं जा सका। सेठानी ने पड़ोसी को इतना निर्बल देखकर सेठजी से पछा कि इसे क्या हो गया है? तब सेठजी ने जवाब दिया कि मेरा रोग उसे भी लग गया है। तब सेठानी ने पूछा आपको कौन सा रोग है? सेठजी ने कहा कि मुझे लाख से करोड़ रुपये का रोग है और पड़ोसी को तो निन्यानवे से सौ रुपये पूरे करने का है।
Hindi Short Stories No. 10. अणी माण्डव्य
माण्डव्य सदा मौन रहने वाले एक जितेन्द्रिय तपस्वी थे। एक दिन वृक्ष की छाया में वे योगाभ्यास कर रहे थे कि चोरों का एक गिरोह चोरी के माल के साथ उनके आश्रम में छिप गया। राज कर्मचारी उन चोरों का पीछा कर रहे थे। चोर तो वहाँ से छिपकर निकल भागे परन्तु माल वहीं आश्रम में छोड़ गये।
राज कर्मचारियों ने आश्रम में पहुँचकर तपस्वी से चोरों के बारे में पूछा। तपस्वी, मौन व्रत साधे हुए थे। निरुत्तर तपस्वी को दोषी समझकर सूली पर चढ़ा देने का दंड सुना दिया। राजा की आज्ञा से मण्डव्य को सूली पर चढ़ा दिया गया।
ध्यान मग्न मौनी माण्डव्य शूलबिद्ध होकर भी बहुत दिनों तक जीवित रहे। पता चलने पर राजा स्वयं वहाँ आये और मौनी माण्डव्य को सूली से उतरवा दिया। किन्तु बिंधे हुए शूल की नोक माण्डव्य की देह से न निकल पायी। माण्डव्य उसी हालत में शूलबिद्ध होकर तीर्थों की यात्रा करते रहे। तभी उनका नाम अणी माण्डव्य पड़ा। (अणी का अर्थ होता है-शूल की नोक)।
Hindi Short Stories No. 11. नई दृष्टि
गाँधीजी के साथ काम करने वाला एक कार्यकर्ता कई गलतियाँ करता, किन्तु सदा अपनी गलती पर पर्दा डाल देता था। उसे यह कहते सकुचाहट न होती ‘मुझसे कोई गलती होती ही नहीं।’ गाँधी जी अक्सर हँस देते और कहते–’गलती एक सबक है उसे स्वीकारना एक गुण है। सच्चा मनुष्य वही है, जो अपनी गलती मान ले और अपना सुधार करे।’ वह गाँधी जी के उपदेश को लोगों तक पहुँचाता किन्तु स्वयं उसका पालन नहीं करता।
गाँधीजी ने कहा-‘तुम आज जो गलतियाँ करो उन्हें सभी के सामने स्वीकार करना।’
वह काँप उठा। उसके मन में भय समा गया। वह सोचने लगा कि उसकी इज्जत क्या रह जाएगी। लेकिन बापू की बात टाली नहीं जा सकती थी। शाम को प्रार्थना सभा में जब उसने दिन भर की गलतियों को स्वीकार किया तो उस रात उसे एक नई दृष्टि मिली।
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