Hindi Kahawat पर बनी कहानिया – Story on Proverbs in Hindi

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नमस्कार दोस्तों आज में आपके लिए लाया कुछ अलग तरह की कहानिया जो आपने कभी नहीं पढ़ी होंगी आज हम आपके लिए है कहावतों की 15 श्रेठ कहानियाँ जो आपको रोचक , ज्ञानवर्धक और मनोरंजन से भरवूर है अगर आप Story on Proverbs in Hindi में ढूंढ रहे है तो भी ये आपके लिए बहुत उपयोगी होंगी

 

Hindi Kahawat पर बनी कहानिया - Story on Proverbs in Hindi 7

 

Hindi Kahawat की Story No 1 : जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं

 

कुंभज नामक एक कुम्हार बहुत सुंदर घड़ेसुराही, गमले आदि बनाता था। उसके बनाए सामान की मांग दूरदूर तक थी। वह अपना काम पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करता था। उसके पास एक छोटा-सा कमरा था । और बाहर बहुत बड़ा चौक। वह अपने सभी मिट्टी के बर्तनों को बनाकर उन्हें चौक में सुखाता था। उसके चौक में बहुत अच्छी और गहरी धूप आती कुंभज अपने जीवन में दिनरात परिश्रम कर बेहद खुश रहता था।

 

वह अभी अविवाहित था। उसने सोचा हुआ था कि जब मैं अपनी मेहनत से कुछ रुपये इकट्ठे कर एक बढ़िया-सा घर बना लूगा तभी विवाह कलंगा और फिर विवाह के लिए रुपये भी तो चाहिए।

 

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सुबह उठते ही वह पूरा चौक साफ़ करता। इसके बाद दैनिक दिनचर्या से निवृत्त होकर व्यायाम करता। उसका बदन भी गठीला और रौबदार था। इसके साथ ही वह बच्चों से भी प्रेम करता था। बच्चे जबतब उसके चौक में आकर सुंदर-सुंदर मिट्टी के बर्तनों को निहारते और कुंभज से उन्हें बनाने की प्रक्रिया सीखते। कुंभज को इन सब में एक असीम आनंद व सुख मिलता था।

Story on Proverbs in Hindi

वह बहुत होशियार था। हर बात को गहराई से समझ कर ही किसी काम में हाथ डालता था। भज के बर्तन हमेशा चौक में ही रहते थे इसलिए उसे उस समय खासी दिक्कत का सामना करना पड़ता था जब चौमासे होते थे या बेमौसम बरसात आती थी।

इसके लिए उसने एक बड़ा तिरपाल लाकर रखा हुआ था और जैसे ही मौसम के मिजाज को देखकर उसे लगता कि बारिश होने के टांग देता उसके । इससे आसार हैं तो वह तुरंत अपने तिरपाल को चौक पर बर्तन बच जाते थे।

थी। वह मूसलाधार बना रहा था तो अचानक एक दिन जब वह अपने बर्तनों को आंधी-सी चलने लगी। हवाओं की नमी बा।ि मौसम के तेवर बदल गए। का संकेत देने लगी। बहतीबहती पुरवइया कुंभज को बेहद पैसा
का उठा ही रहा था कि तभी बड़ीबड़ी जोर जोर से अभी पुरवइया आनंद बादल गरजने लगे।

 

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बादलों की गर्जन इतनी भयानक थी कि उनकी गड़गड़ाहट सुनकर कांप उठा। उसे लगा कि आज तो बारिश होगी और तेज हवाओं के झोंके व आंधी उसके तिरपाल को हवन उड़ा देंगे।

यह सोचकर वह चौक के कोनों पर मजबूत कीलें बांधकर उस तिरपाल को बांधने लगा। कुछ ही देर में उसने जल्दी-जल्दी चारों कोनों में।
मजबूत कीलें ठोककर तिरपाल को बांध दिया। लेकिन इतने में ही उसने देखा कि जो बादल जोर-जोर से गरजगरज कर सबको डरा रहे थे।

पानी की एक बूंद तक न थी और उस दिन बारिश की एक बूंद तक टपकी। मौसम का ऐसा मिजाज देखकर कुंभज हैरान होकर मुस्करा उठा और अपने काम में लग गया। इसी प्रकार दिन बीतते रहे।

एक दिन कुंभज के पास उसका दूर का भाइ अंबुज आया। कुंभज चौक में अंबुज के साथ बातें करता हुआ बर्तन बना रहा था तभी एकाएक जोर से हवाएं चलने लगीं और मौसम का रुख बदल कर आसमान में बादलों की गर्जना गूंज उठी। उनकी गूंज से अंबुज भी कांप उठा और बोला“भइयाऐसा लगता है कि आज तो आपके इलाके में मूसलाधार बारिश होगी।

ऐसे में आपके मिट्टी के बनाए सारे बर्तन तो टूटफूट जाएंगे। क्या आपने इनसे निपटने के लिए कोई इंतजाम नहीं किया हुआ है?” अंबुज की बात सुनकर कुंभज बोला, “अरे अंबुज घबराने की कोई बात नहीं है। जो गरजते हैं वो बरसते नहीं।

अभी कुछ देर में मौसम जाएगाजहां तक ही शांत हो । हां, तुम यह पूछ रहे थे कि मैंने बारिश से बचने के लिए इंतजाम किए हैं या नहीं तो मेरे भाई वो मैंने अच्छी तरह से किए हुए हैं।” इसके बाद कुंभज ने बताया कि किस
प्रकार उसने तिरपाल को मजबूती से दीवार के कोनों से बांधकर एक छतसी बनाई हुई है जो न सिर्फ वर्षा में अपितु तेज गर्मी व सर्दी में भी उसका बचाव करती है। कुछ देर बाद ही अंबुज ने बादलों की ओर निहारा।

तो पाया कि सचमुच गजरने वाले बादलों में पानी की एक बूंद नहीं थी और सभी कुछ भी हो था। बादलों को के बाद शांत गया देखने अंबुज कुंभज से बोला , “हां भाई! तुम सही कहते हो-जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं।”
इस प्रकार तभी से यह कहावत चल पड़ी कि ‘जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं।’

Hindi Kahawat की Story No 2 : दिन में तारे

 

स्कूल से घर पहुंचते ही गोलू ने बस्ता सोफे पर पटका और हाथमुंह धोने चला गया, मां ने पुकारा..गोलू । जल्दी से मेज पर आओ, खाना लगा दिया है आओ। साथसाथ खाएंगे। ठीक है..गोलू ने कहा पर देर तक मेज पर नहीं आयामां का मन खटका, कहां है गोलू । वह स्नानघर की तरफ लपकी, पर गोलू वहां नहीं था, वह तो पीछे वाले कमरे का दरवाजा खोलकर झट नौ दो ग्यारह हो गया था।

 

Hindi Kahawat पर बनी कहानिया - Story on Proverbs in Hindi 8

उफ! गोलू फिर भाग निकलाबड़ा मनमौजी हो गया है यह लड़का, इसकी लगाम अब कसनी ही पड़ेगी, बड़बड़ाती हुई मां खाना खाने जा बैठी। दोतीन घंटे बीत गए, गोलू नहीं लौटा तो मां कमरे में जाकर आराम करने लगी। मां की आंख लग गई तब गोलू चुपके से घर में घुसामेज पर खाना लगा था, जल्दीजल्दी सब सफाचट करके फिर खेलने निकल गया।

मां उठी, खाना देखासब खत्म.समझ गई खा-पीकर बच्चू फिर रफूचक्कर हो गए। कितने ही दिनों से गोलू ऐसी हरकतें कर रहा था, मां खीज उठी, मन ही मन बोली-आज आने दो इसके पापा को, खूब नमकमिर्च लगाकर
शिकायत कलंगीडांट पड़ेगी, तो बच्चू की सिट्टीपिट्टी गुम हो जाएगी, हां, यही ठीक रहेगा, सोचती हुई मां रसोई के काम में लग गई।

गोलू महाराज का हाल ये कि भूख लगे तो घर में घुसो वरना खेलते रहो। खेलने से उसका जी नहीं भरता था, सारे बच्चे सांझ होने तक घर लौट आतेपर वह खेलने में मग्न रहता। रात घिरने को आ गईमां गोलू को खोजने मैदान की तरफ निकल गईआज कोई नहीं था गोलू जी थे और उनकी फुटबाल जिसे वहां,  पैरों से उछालते हुए वह अकेले ही मग्न , मां ने तीखे स्वर में कहा-गोलू।

अंधेरा घिर आया है, देखो बत्तियां भी जल गई हैं, आज क्या यहीं रैनबसेरा डालेगा। गोलू ने सुनामुस्कराया और झट फुटबाल उठाकर तेजी से घर की तरफ दौड़ा, मां पीछेपीछे आ रही थी, गोलू ने घर में आते ही फुटबाल एक
ओर रख दी, हाथमुंह धोकर निकला तो मां से बोला, “देखा मां मैं कितनी तेजी से घर आ गया, अब कुछ खाने को दो मां। मेरी अच्छी मां।

पर मां गुस्से से मुंह फुलाए काम पर लगी रही, कुछ न बोली, गोलू समझ गया, आज तो दाल गलने वाली नहीं, फिर भी मां के पास जाकर मक्खनबाजी करने लगा.मां भूख लगी है कुछ खाने को दो ना. ये खा, ले खा, मां ने तड़ातड़ दो तमाचे गोलू को जड़ दिएअब गोलू का पारा सातवें आसमान में चढ़ गया, उसने मेज पर रखी चीजों को पटका और फिर पैर पटकता हुआ खुद भी बाहर निकल गयागली में उसे रामू और श्यामू दोनों मिल गएवे भी गोलू के जैसे ही थे, दिन-रात मटरगश्ती करने वाले, गोलू ने पास जाकर कहा-रामू ! यार कुछ है जेब में।

चार-पांच रुपये और क्या! क्यों?

भूख लग रही है जोर , मां बहुत नाराज है, खाने को चांटे मिले हैं, दे दो यार कुछ उधारीकल ही लौटा देंगा।
चल ठीक है, श्यामू ने जेब से एक दस रुपये का नोट निकाला, ले तू भी क्या याद करेगा कि किस रईस से पाला पड़ा, पर कल लौटा जरूर हां, हां! पक्का, गोलू ने नोट लियाउसकी बांछे खिल गई वह चटपट बाजार की तरफ निकल गया, प्लेट भर चाट पकौड़ी खाई, एक गिलास ठंडा पानी पियाफिर मगन होकर गलियों में घूमने लगा, आज तो मैं भी मां को खूब सताऊंगामुझे मारा है मां ने. .सोचता हुआ गोलू दूर तक निकल गयारास्ते में उसे बीरू मिल गया, वह अपने पापा के साथ था, पापा बोले…इतनी रात गए तक तुम क्या कर रहे हो गोलू । घर जाओ ना, देखो दस बज गए हैं । के थे

 

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दस बज गएअरे बाप रे। पापा तो घर आ चुके होंगे, आज तो खैर नहीं, सोचता हुआ गोलू सरपट भागने लगा।
घर में मां ने गोलू की शिकायत पापा से कर दी थी, पापा गुस्से में भरे बैठे थे। गोलू के आते ही दो थप्पड़ पापा ने भी जमा दिए बेचारा गोलू मार खाकर चुपचाप कमरे में चला गया और “होमवर्क” करने लगा।

गनीमत थी कि गोलू पढ़ने में तेज था। स्कूल जाने में कभी टालमटोल नहीं करता था। इसलिए मां उसकी ज्यादतियां भी सह लेती थी, मां तो चुप थी। पर बड़बड़ाते जा रहे थे, दिव्या! तुम्हारे लाड़प्यार ने इस लड़के का
पापा दिमाग खराब कर दिया है। तुम्हारा उस पर जरा भी अनुशासन नहीं है।

देखना यह किसी दिन ऐसा कुछ करेगा कि हमारी नाक कटवा देगा, अभी से यह ऐसा बंडलबाज हो गया है।
मां चुपचाप सब सुनती रही। पापा खूब देर तक बोलते रहे।

फिर खाना खाकर सोने चले गए। गोलू बाहर नहीं निकला तो मां ने उसका खाना जाकर उसकी मेज में रख दिया।
सुबह समय पर गोलू उठा, नहाधोकर तैयार हुआ, चुपचाप नाश्ता किया और टिफिन उठाकर बस पकड़ने बस स्टैंड पर जा खड़ा हुआ।

श्यामू और रामू दोनों वहां खड़े थे, देखते ही बोले-दस का नोट । अरे! मैं जल्दी में लाना भूल गया। दिन में दे देंगा पक्का. पक्का.बस आ गई तो तीनों बस में जा बैठेश्यामू बोला-दिन में पैसे नहीं लौटाए तो खाल उधेड़ , समझे।
इसकी नौबत ही नहीं आएगी । यार घर आते ही गोलू ने अपनी गुल्लक टटोलीदो रुपये थे।

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चटोरा तो था ही, पैसे जमा क्या करता, अब क्या क। हां! आइडिया..बस गोलू हाथ मुंह धोकर मेज में जा बैठा-मां खाना दे दो।

क्या बात है आज तो बड़ी शराफत से पेश आ रहे हो। कल की मार से होश ठिकाने आ गए क्या? हां मां! गोलू चुपचाप खाने लगा, मां भी रसोई में खटरपटर करने लगी।

मां व्यस्त है देखकर गोलू भगवान जी के मंदिर की ओर बढ़ा झट थाल से एक दस का नोट खिसकाया और चुपचाप वापस मेज में बैठ गया, खा-पीकर वह चुपचाप पीछे के रास्ते से बाहर निकल गया। उसने जल्दी से
श्यामू को नोट पकड़ाया और घर के अंदर दबे पांव लौटा ही था कि.मां की छड़ी पीठ पर पड़ी.चोरी भी करने लगा तू तू क्या सोच रहा था मेरी नजर तुझ पर नहीं थी, मैंने तुझे मेज से उठकर जाते देखादस का नोट जेब में सरकाते देखाउसी समय कान खींचती पर तू चुपचाप खिसक गया.

ले खा मार मां की छड़ी दनादन बरसने लगी.गोलू चिल्लाया…मां! मुझे माफ कर दो, अब ऐसा कभी नहीं करूगा।
चोरी करेगा, दिनभर आवारागर्दी करेगाघर से चुपचाप निकलेगा.
.

..ले..ले.म की छड़ी चल पड़ीसुधर जा गोलू । मुझे तेरे पापा से भी क्या-क्या सुनना पड़ता है।
मां! अब मनमानी भी नहीं करूगा।

न….न. तुझे तो मारना ही पड़ेगा, डाट का कोई असर नहीं होता है ना.कैसा लड़का है ये.इसे तो अपना भलाबुरा भी नजर नहीं आता।
आ रहा है मां! सब नजर आ रहा है, अब तो मुझे दिन में तारे भी नजर आने लगे..गोलू रो पड़ा। चल हट। मां ने छड़ी छोड़ दी। गोलू झटपट अपने कमरे में जा बैठा। तौबा, तौबा, मेरी तौबा, रहा । वह बड़बड़ा था

 

Hindi Kahawat की Story No 3 : नाच न जान आंगन टेढ़ा

 

प्रांजलि की आदत थी कि वह छोटी से छोटी बात को बहुत बढ़ाचढ़ाकर बोलती थी। क्लास में कोई भी ऐसा बच्चा नहीं था, जिसका वह मजाक नहीं उड़ाती थी।

कई बार तो उसके दोस्त नाराज हो जाते थे और कई बार हंसकर टाल देते थे। पर ज्यादा समय तक कोई भी उससे गुस्सा रह भी नहीं पाता था क्योंकि प्रांजलि बहुत ही मिलनसार और हंसमुख थी। उसका सिर्फ एक यही दुर्गुण था कि वह जब देखो सबका मजाक उड़ाया करती थी और खुद को सबसे महत्वपूर्ण बताती थी। धीरे-धीरे उसके दोस्त भी उसकी इस आदत को जान गए थे, इसलिए उन्होंने इस बात पर भी ध्यान देना बंद कर दिया।

थाइबातेन को अनसुना कर देते है तो एक दिन वह अपने दोस्तों से बोली”मैं इस बार स्कूल के किसी भी सांस्कृतिक कायक्रम में जरूर भाग यूंगी।

सोनम ने आश्चर्य से पूछा, “क्या करोगी तुम उसमें ?” “मैं डांस कलंगी ।” प्रांजलि ने गर्व से कहा।
अमित ठहाका मारकर हंसता हुआ बोला, पर तुम्हें डांस कहां आता किसने कहा कि मुझे डांस नहीं आता?” प्रांजलि ने खिसियाते हुए जवाब दिया।

मीना मुस्करा कर बोलीहम तो तुम्हारे साथ इतने सालों से पढ़ रहे हैं। हमने तो कभी नहीं देखा, तुम्हें डांस करते हुए ।” “हां-हां, क्योंकि कभी ऐसा कोई मौका ही नहीं आया तो तुम में से किसी को भी नहीं पता है कि मैं बहुत अच्छा नाचती हूं।” “अरे वाह..” सभी दोस्त खुश होते हुए बोले।

यह देखकर प्रांजलि को बहुत खुशी हुई और वह इतरा उठी। कुछ ही दिनों बाद उसकी सहेली नीलम का जन्मदिन था। नीलन ने अपने संस दोस्तों को बुलाया था।

जब प्रांजलि वहां पहुंची तो उसे सबके साथ गुब्बारे फोड़ने और गे खेलने में बहुत मजा आया। थोड़ी ही देर बाद नीलम ने म्यूजिक चलाया। और सबको डांस करने के लिए कहा। मीना बोली, “नहीं आज हम सबसे पहले प्रांजलि का डांस देखें, प्रांजलि ने आश्चर्य से कहा“मेरा डांस।” अब तक प्रांजलि यह भूल चुकी थी कि वह सभी दोस्तों के सामने अपने डांस करने की डींगें मार चुकी थी। नीलू ने उसे याद दिलाते हुए कहा“तुमने तो उस दिन कहा था कि
तुम अच्छा नाचती हो।” जब प्रांजलि को कुछ नहीं सूझा तो उसने बहाना बनाते हुए कहा “पर इस गाने पर नहींमुझे तो दूसरे गाने पर डांस करना आता है।”

“कोई बात नहीं, हम गाना देते हैं।” नीलम ने उसकी दूसरा चला तरफ देखते हुए पूछा। प्रांजलि ने सोचा, कौनसा इसके पास हर गाना होगा।

पर उस दिन प्रांजलि का पासा उलटा पड़ गया। वह जो भी गाने बता रही थी, नीलम एक के बाद एक गाने चलाती
जा रही थी। प्रांजलि को काटो तो खून नहीं, उसे तो बिलकुल भी नाचना नहीं आता था। सब लोग उसी की तरफ देख रहे थे।

तभी वह बोली, “यहां पर नाचने में मुझे मजा नहीं आएगा। मुझे खुली जगह में नाचने में मजा आता है।” यह सुनकर सभी दोस्त जोरों से हंस पड़े। नीलम बोली ठीक है मैं इसका आवाज बढ़ा देती , जिससे बाहर तक सुनाई पड़ेगा और तुम बाहर आंगन में डांस करो हम लोग वहां देखे लेंगे। अब प्रांजलि का चेहरा उतर
गया।

वह सबसे बता भी नहीं सकती थी कि उसे बिलकुल भी नाचना नहीं आता। उसने फिर एक बहाना सोचा और बोली, “नहींमुझे लग रहा है कि आज कुछ मौसम ठीक नहीं है और शायद यह जमीन भी ऊबड़खाबड़ है।

 

मैं फिर कभी नाचूंगी। यह सुनते ही नीलम की दादी जोरों से हंस पड़ी। वह बहुत देर से प्रांजलि और उसके दोस्तों की बातचीत सुन रही थी।

वह हंसते हुए बोली, “प्रांजलि, बेटानाच न जाने आंगन टेढ़ा।” और यह सुनते ही सभी दोस्त खिलखिलाकर हंस पड़े। पर प्रांजलि को यह समझ में आ गया था कि अब वह कभी भी झूठी डींगें नहीं मारेगी और कभी किसी का मजाक नहीं उड़ाएगी।

 

Hindi Kahawat की Story No 4 :सेर को सवा सेर

शहर गंगापुर में सबसे बड़ी दुकान दमड़ी साह की थी। उनकी दुकान पर जरूरत का हर सामान मिल जाता था। लेकिन दमड़ी साह थे बड़े नफाखोर। से सस्ती और बेकार चीजें उठा लाते और यहां मनमाने दामों में बेचते।
चावल- मिलावट भी खूब करते। पिसी धनिया में लकड़ी का बुरादा, दालों में छोटे पत्थरपिसी मिर्च में ईटों का बुरादा, काली मिर्च में पपीते के बीज।

सब जानते हुए भी लोग कुछ न कह पाते। मजबूरी थी। आस पास कोई ऐसी दुकान भी नहीं थी। जहां जरूरत का हर सामान मौके पर मिल जाए। उसी गांव में सोहन नाम का एक सयाना आदमी रहा करता था।

दमड़ी साह की आदतों से तंग आकर उसने उन्हें सबक सिखाने की सोची। एक दिन वह सुबहसुबह दुकान के आगे जाकर खड़ा हो गया और बोला, “रामरामसाहजी ।”
“हां-हां, ठीक है। क्या चाहिए?” दमड़ी साह ने भौंहें टेढ़ी करके पूछा। “चाहिए तो कुछ नहीं, बस दावत का न्यौता देने आया था?” “दावत.किस खुशी में?” दमड़ी साह को आश्चर्य तो हुआ, पर दावत के नाम पर मन ही मन लड्डू फूटने लगे।

‘अरेगांव के रिश्ते से आप ठहरे चाचा और हम भतीजा। अब आप ही बताइए, अपने चाचा को दावत में बुलाने के लिए कोई कारण ढूंढ़ना पड़ेगा भला?”

दमड़ी साह का मन प्रसन्न हो उठा। मुंह में पानी भर आया। आंखों के सामने पकवानों की थालियां नाचने लगी।
उन्हें ख़्यालों में डूबा देखकर सोहन ने और उकसाया, “देखो चाचा,

कोई जोरजबरदस्ती नहीं है। हमने तो अपना समझकर कहा था। अगर मर्जी न हो, तो रहने दो। हम गरीबों के घर वैसे भी कौन आता है?” सोहन जानता था कि दमड़ी साह मुफ्त की दावत छोड़ने वालों में से नहीं हैं।

शिव! शिव! ऐसी अशुभ बातें मुंह से क्यों निकालते हो? तुम बुलाओ और भला मैं न आऊं। आऊंगा भतीजेअवश्य आऊंगा।” दमड़ी साह मक्खन की तरह मुलायम होकर बोले।

न्यौता देकर सोहन चला गया। दमड़ी साह का वह दिन मुश्किल से कटा । दावत की बात सोच-सोचकर
लार टपकती रही। शाम ढलते ही दुकान बंद की। नहाधोकर धोतीकुर्ता पहना, टोपी लगाई और छड़ी उठाकर चल पड़े।
सोहन ओसारे में बैठा प्रतीक्षा कर रहा था। उसने मुस्कुराते हुए दमड़ी साह का स्वागत किया और बैठक में ले गया। थोड़ी देर की औपचारिक बातचीत के बाद खाने की थालियां सजने लगीं। पकवानों की महक से
दमड़ी साह का मन बेचैन हो उठा।

उन्होंने आव देखा न ताव। उतावले होकर एक कचौड़ी मुंह में डाल ली। लेकिन यह क्या? मुंह चलाते ही दांतों
में जैसे रेत खिसखिसा उठी। दमड़ी साह हक्का-बक्का रह गया। न उगलते बनेन निगलते।

चेहरे की रंगत बदलती देख सोहन बोला, “क्या हुआ चाचा? कचौड़ियां अच्छी नहीं लगीं?” “नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.बहुत बढ़िया हैं, स्वादिष्ट हैं”, दमड़ी साह हड़बड़ाकर बोले। “हां-हां होंगी क्यों नहीं! आपकी दुकान से ही तो आटा मंगवाया था।

” दमड़ी साह पर घड़ों पानी पड़ गया। जान बचाकर वह पुलाव की ओर लपके। पुलाव महक भी खूब रहा था। सोचा कचौड़ी न सहीइसी से पेट भर लेंगे। पर जब पुलाव का एक निवाला मुंह में डाला तो चीख निकल
गई। चावल में बुरी तरह कंकड़ भरे हुए थे। अब तो दमड़ी साह की हालत देखने लायक हो गई।

 

उनकी हालत पर मजा लेते हुए सोहन बोला”लगता है आपको पुलाव भी अच्छा नहीं लगा। मैंने तो बड़ी उम्मीद से आपकी दुकान से बासमती चावल मंगवाए थे। खेर कोई बात नहीं, अब यह खीर खा लीजिए।”

“क्या खीर के लिए शक्कर भी..? ” दमड़ी साह एकदम घबरा गए। “हां-हां, शक्कर भी आपकी दुकान से मंगवाई थी।” सोहन कुटिलता मुस्कुराया। दमड़ी साह को उबकाई आ गई। याद आ गया कि उन्होंने झुनकू को
चूहों की गदंगी से भरी शक्कर बेची थी।

“खीर हो जाए तो एक प्याला चाय.” शुन कहने लगा। “क्या चायपत्ती भी…?”
“हां, चाचाजी, आपको छोड़कर हम भला और किसके पास जा सकते “मेरा पेटभर गया है, भतीजे। में तो चला…. ” और दमड़ी साह भाग “अरेपान तो खाते जाइए।” शुन पीछे से चिल्लाया, “ये आपकी दुकान के नहीं हैं।”
पर दमड़ी साह ऐसा भागे कि पीछे पलटकर नहीं देखा। आज उन्हें सोहन ने अच्छा मजा चखाया था।

 

Hindi Kahawat की Story No 5: नहले पे दहला

किसी गांव में सूरज नाम का एक चालाक व्यक्ति रहता था। वह खयाली पुलाव बनाने में तेज और खूब पेटू था। वैसे तो वह किसान था, पर उसका दूसरा पेशा भोलेभाले लोगों को बेवकूफ बनाना भी था।

एक दिन सूरज गांव के मशहूर हलवाई अमर का दुकान पर गया। मिठाई पर गड़ाते हुए उसने पूछा- इस बर्फ का क्या दाम है?” नजर “पचास रुपए किलो ।” अमर ने कहा।

“ठीक है, एक किलो बर्फ तोल दो।” सूरज ने कहा तो अमर एक लिफाफे में बर्फ तोलने । तोलने के बाद वह जब लिफाफा सूरज को लगा थमाने लगा, सूरज झट से बोला“बर्फ रहने दो। मुझे एक किलो जलेबी दे सूरज के मसखरेपन से अमर वाकिफ़ था। इसलिए बुरा न मानते हुए उसने बर्फ का लिफाफा एक तरफ रखा तथा दूसरे लिफाफे में जलेबियां तोलने लगा।

 

जलेबियां जैसे ही एक किलो होने को हुईसूरज फिर बोल पड़ा–“माफ करना अमर, जलेबी मेरी पत्नी को पसंद नहीं। तुम ऐसा करो कि मुझे एक किलो लड्डू दे दो।”

अमर ने झुंझलाते हुए जलेबियों का लिफाफा भी एक ओर रखा तथा एक लिफाफे में लड्डू डालने लगा। वह सोच रहा था कि अब की बार अगर सूरज ने लड्डू भी न लिएतो वह उसे चलता कर देगा। पर इस बार सूरज
चुप रहा। ।

लड्डुओं का लिफाफा उसके हाथ में देते हुए अमर कहा-“लो ने संभालो लड्डू। इनके चालीस रुपए हुए।”

 

“कैसे रुपए? मैंने तो लड्डू जलेबियों के बदले में लिए हैं।” “तो जलेबियों के पैसे निकालो।”
“जलेबियां तो मैंने बर्फ के बदले ली थी।”

ओफ्फो! तब बर्फ के पैसे ही दे दो ” अमर खींझकर बोला। ‘पर बर्फ तो मैंने ली ही नहीं। फिर पैसे किस बात के? अमर को हक्का-बक्का छोड़कर सूरज चालाकी से मुस्कराते हुए दुकान से बाहर निकल आया। अमर को सूरज पर बहुत गुस्सा आया। उसने भी चतुराई से सूरज को सबक सिखाने का फैसला कर लिया।

अगली सुबह सूरज जब अमर की दुकान के आगे से निकलातब अमर ने उसे अपने पास बुलाकर कहा-“सूरजयदि तुम मुझे एक बार में चार लड्डू खाकर दिखा दो, तो मैं तुम्हें सौ रुपए गा। पर यदि तुम लड्डू न खा सकेतब तुम्हें मुझको सौ रुपए देने होंगे ।”

सूरज ने तिरछी नजरों से दुकान में झांका। उसे एक थाली में संतरे के आकार जैसे लडडू दिखाई दिए। उसने सोचा-“यह अमर मुझे बेवकूफ समझता है। शायद इसे पता नहीं कि मिठाई के मामले में मैं कितना पेटू हूं।

मैं इन लड्डूओं को अभी चट कर जाता, पर नाश्ते के कारण मेरा पेट भरा हुआ है।” फिर वह बोला- “अमर, मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है। पर इस वक्त मैं जल्दी में हूं। मैं शाम को तुम्हारे पास आऊंगा। ”

“जैसी तुम्हारी इच्छा।” सूरज की चालाकी भांपकर अमर मुस्कराते हुए बोला। सूरज के वहां से चले जाने पर वह बुदबुदाया–फंस गया पंछी जाल में।”

लड्डुओं को चखने तथा शर्त जीतने की खातिर सूरज ने दोपहर का खाना नहीं खाया। शाम होते ही वह अमर की दुकान पर पहुंचकर बोला-“लाओ, भाई हमारे चार लड्डू। बहुत भूख लगी है।”

अमर ने उसके सामने कपड़े से ढका एक थाल रख दिया। सूरज ने कपड़ा हटाकर देखा तो चकरा गया। थाल में नारियल जितने बड़े आकार के चार लड्डू पड़े थे। उन्हें देखते ही सूरज की सारी भूख हवा हो गई। वह तो
संतरे के आकार वाले लड्डू खाने की तैयारी में था।

वह समझ गया कि अमर भी उससे कम चालाक नहीं है। अनमने भाव से उसने दोनों हाथों से पकड़कर एक लड्डू उठाया तथा उसे खाने की कोशिश करने लगा।

अभी वह लड्डू का कुछ भाग ही खा पाया था कि उसका पेट भर गया। उसने शेंपते हुए बाकी बचे लड्डू को थाल में रखा तथा सौ का नोट अमर को थमाकर चुपचाप बाहर आ गया। अब वह अपनी चालाकी तथा पेटूपन पर पछता रहा था।

 

Hindi Kahawat की Story No 5 : जैसे को तैसा

 

अतुल और अमित दो सगे भाई थे। अतुल दस वर्ष का था और अमित सात वर्ष का। अतुल पांचवीं कक्षा में पढ़ता था और अमित तीसरी कक्षा में। दोनों एक ही विद्यालय में साथ-साथ जाया करते थे। पापा दफ्तर जाने के पहले रोजाना दोनों को एक-एक रुपया जेब खर्च दिया करते थे।

मम्मी ने दोनों भाइयों की बचत की आदत डालने की गरज से गुल्लक लाकर दे रखी थीं। दोनों भाई अपने जेबखर्च में एक-एक से आठआठ आने बचाकर गुल्लक में डाल दिया करते थे।

पिछले छह महीने से दोनों की गुल्लक में काफी रुपये जमा हो चले थे। लेकिन इधर कुछ दिनों से अतुल में एक भारी बदलाव-सा आने लगा था। वह अपनी गुल्लक में कुछ भी पैसे नहीं डालता और अमित की गुल्लक में से भी प्रतिदिन एक रुपया निकाल लिया करता था।

वह अपने धोखेबाज मित्रों की संगति में पड़कर अपने सारे पैसे बरबाद करने लग गया था। समय बीतता रहा। अगले छह माह बाद अमित का जन्मदिन आने वाला था। मम्मी ने अमित के गुल्लक को देखना चाहा कि उसमें कितनी पूंजी हो चुकी है।

परयह क्या? गुल्लक तो खाली थी। उसके सारे पैसे कहां गए?” मम्मी बुदबुदाई। शाम को यह बात अमित के पापा के सम्मुख रखी गई। तीनों को अतुल पर शक हुआ।

फिर भी किसी ने अतुल पर यह बात जाहिर नहीं होने दी। रात्रि को सोते समय पापा ने मम्मी से मिलकर एक योजना बनाई। सुबह होते ही अतुल की कक्षा के छात्र नितिन को जो उसका पड़ोसी भी था, बुलाकर सारी बातें समझा दीं।

यह सारा काम शनिवार की सुबह निपटा लिया सोमवार को जब अतुल विद्यालय से घर आया तो कुछ गया।

उदास-सा था। मम्मी ने पूछा “बेटा, अतुल: क्या बात है? तू उदास क्यों है?” कुछ नहीं, मम्मी।” अतुल ने संक्षिप्त-सा जवाब दिया। इसी तरह रोज अतुल के बस्ते से एक किताब घटती जा रही थी। वह समझ नहीं पा रहा था कि अब वह क्या करें? मां से कहे या न कहे।

आखिर एक दिन ऐसा आया जब वह खाली बस्ता लेकर घर आया। आते ही पलंग पर लेटकर जोर-जोर से रोनेबिलखने लगा। उसके पापा भी घर पर ही थे।

उन्होंने अतुल को अपने पास बुलाया और प्यार से पूछा “क्या बात है, बेटा? तुम रो क्यों रहे हो?” क्या बताऊं पापा!” कहते-कहते वह फिर रोने लगा। पापा के बार-बार पूछने पर वह बोला।

पापा, पता नहीं कौन मेरे बस्ते में से एक-एक किताब या कापी रोज चुराया करता था। आज तो मैं खाली बस्ता ही लेकर घर आया हूं। मेरी सारी की सारी ही किताबें, कापियां चोरी हो गई ।”

“क्या तुमने भी कभी किसी का कोई सामान चुराया है? घर में या स्कूल में।” पापा ने पूछा।

अब अतुल को समझ में सब कुछ आ गया। शायद पापा ने सबक सिखाने के लिए ही ऐसा किया था। तब तक उसका सहपाठी नितिन भी उसकी चुराई हुई सभी किताब-कापियां लेकर वहां आ चुका था।

अतुल ने क्षमा भरे स्वर में पापा से कहा“पापा, मैं अब कभी भी पैसे नहीं चुराऊंगा। मैंने जान लिया कि जब किसी का कोई सामान चोरी हो जाता है, तब कितना दुःख होता है। मुझे क्षमा कर दें, न।” मम्मी और अमित भी कमरे में आ गए थे। “अतुल की चोरी मुर्दाबाद ।” अतुल.I

घर म खुशी की लहर फिर से छा गई। जैसे को तैसा’ वाली कहावत चरितार्थ हो चली थी।

Hindi Kahawat की Story No 6: खरबूजा और चाकू

 

Hindi Kahawat पर बनी कहानिया - Story on Proverbs in Hindi 9

एक गांव में दो भाई रहते थे। बड़े भाई का नाम था खर और छोटे बूजा दोनों ताकतवर थे। वे किसी भी मुकाबले में कभी नहीं हारे। उनकी शक्ति का एक रहस्य भी था कि दोनों में एकता थी। सभी काम दोनों मिलकर करते थे।

किसी से कुश्ती करनी हो या लड़ना हो, वजन उठाने की प्रतियोगिता हो या दौड़ की, दोनों एक साथ और एक दूसरे की सलाह से करते थे। इससे उनकी ताकत दोगुनी हो जाती।

गांव के लोग उनसे डरने लगे। उन्हें भी अपनी ताकत का घमंड हो गया था। लोग उन्हें हारा हुआ देखना चाहते थे। पर कोई भी उनकी ताकत का सामना नहीं कर सका। कुछ ने मुकाबले की भी कोशिश भी की। जैसे उसी गांव में रहने वाले दो, तर और बूज से मिलकर मुकाबला किया।

पर खर और बूजा उनसे हारे नहीं। उन्होंने कहा भी, “माना कि तरबूज बड़ा है और मजबूत होता है पर खर और बूजा की एकता को तोड़ नहीं सकता।

इसलिए हम किसी से हारेंगे नहीं।” तर और बूज डरकर पीछे हट गए। खर और बूजा से लोग परेशान हो गए। क्योंकि उनकी ताकत का मुकाबला करने वाला कोई नहीं था।

वे लोगों को ज्यादा तंग करने लगे उसी समय गांव में एक यात्री आया। लोगों ने उसे अपनी समस्या बताई। यात्री ने कहा, “तुम जीत सकते हो। यह तभी संभव है जब उनकी एकता टूटे या वे डर जाएं। वैसे उनकी एक कमजोरी तो सामने आ गई है।

वे घमंडी हो गए हैं। कहावत है घमंडी का सिर नीचा। इसलिए उन्हें, हराने के लिए शरीर की ताकत के साथ साथ दिमाग की ताकत का भी इस्तेमाल करना होगा।”

यात्री ने उन्हें एक तरीका भी बताया। खर और बूजा को कुश्ती के लिए ललकारा गया। उन्हें कहा गया कि
अमावस्या के दिन तुम्हारा मुकाबला कुश्ती में होगा।

खर और बूजा ने इस ललकार का मजाक उड़ाया। लोग भी हैरान हुए। मुकाबला तो होगा। पर यह कौन करेगा। किसी को भी मुकाबला करने वालों के नाम का पता नहीं चला।

निश्चित दिन मैदान में लोग इकट्ठे हो गए। खर और बूजा भी आ गए। मुकाबला करने वालों को पुकारने लगे। पहलवानों जैसे दो युवक मैदान में आए। बोले, हम करेंगे मुकाबला हमसे कुश्ती लड़ो।
उनकी चुनौती भरी आवाज और निडरता देखकर खर और बूजा एक बार तो चौंक गए। फिर बोले, कभी लगता है तुम्हें कहीं देखा है, कभी लगता है नहीं।

तुम कौन हो? किस गांव के हो?” हम इसी गांव के हैं। मैं बड़ा हूं मेरा नाम चा यह छोटा, इसका
नाम कु ।”

“लेकिन तुम दोनों को कभी कुश्ती करते या लड़ते नहीं देखा है। हमसे क्या मुकाबला करोगे। तुमने यह कहावत तो सुनी होगी-एकता में बल होता है। हमारी एकता के सामने कोई नहीं टिकता है।”

“मानते हैं कि एकता में बल होता है। पर तुमने एक कहावत और सुनी होगी… ।”
हमने सब कहावतें सुन रखी हैं। तुम किसकी बात करते रहे हो ”

तुम दोनों मिलकर बने हो खरबूजा। हम दोनों मिलकर बने हैं-चाकू।

 

कहावत है कि खरबूजा चाकू पर गिरे या चाकू खरबूजा पर। हर हालत में कटना खरबूजा को ही है। आओ, हम चाकू से भिड़ जाओ।

खर और बूजा दोनों ने एक दूसरे को देखा और सोच में पड़ गए। चा और कू एक साथ बोलने लगा, बताओ, क्या करोगे?

हम चाकू खरबूजा पर गिरे या तुम खरबूजा पर चाकू पर गिराते हो? जल्दी बोलो।

खरबूजे थोड़ा डर गए। कहावत है डर गया सो मर गया। उनको डरते देख चा और कू उनसे भिड़ गए। उन्होंने खरबूजे को गिरा दिया।

उस दिन उन्होंने हार मान ली। खरबूजे का घमंड दूर हो गया। यात्री की तरकीब से गांव वालों ने राहत प्राप्त की।

Hindi Kahawat की Story No 7: टेढ़ी खीर

सवालीराम को समझना भी कठिन और समझाना भी। वैसे उसका नाम सवालीराम नहीं था। नाम तो बड़ा अच्छा रखा था मां-बाप ने गजनंदन और वह था भी। हां, मतलब उसका डीलडौल भारी भरकम बिल्कुल गज जैसा
ही था। कमी थी बस फंड की। उमर तो अभी शायद 12 या 13 ही होती लेकिन कोई पीछे से देख कर कह नहीं सकता था कि कोई बच्चा जा रहा है। बस यूं ही इधरउधर घूमता रहता। कई लोग कहते कि वह मंदबुद्धि है।

लेकिन उसके सवाल ऐसे कि बड़ेबड़ों के कान खड़े हो जाएं। कई तो उसे देखते ही नौ दो ग्यारह हो लेते कि भाग लो भैयेनहीं तो दिमाग का दही कर देगा। वैसे उसके तर्क अनोखे होते। कई बार यह भी लगता कि कोई अच्छा स्कूल उसे मिल जाए तो शायद वह सुधर जाए लेकिन गांव में तो कोई मास्टर उसे पढ़ाने को तैयार ही नहीं था।
सब यही कहते हैं कि ये तो अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरता है।

हां, अक्ल से एक बात याद आई। सवालीराम..हां, हां मतलब गजनंदन को एक बार शहर के अधिकारी मिल गए। वे गांव के पशुगणना के लिए आए थे। अब उन्हें भला क्या पता कि इससे तो डेढ़ हाथ जोड़ने में ही भलाई है। बेचारे आ गए लपेटे में। सवालीराम ने उन्हें पालागन की।

फिर कहा, ताऊ, आपसे एक सवाल पूछं? -हां, हां। पूछो बेटे, पूछो।
-आप भैसों को क्यों गिन रहे हैं?
बेटे । हमें सरकार को बताना है।
ताऊ, सरकार कैसी होती है?

 

-बेटे। तुम बड़े हो जाओगे तब जानोगे।
हम बड़े कब होंगे?
बेचारे अधिकारीउन्हें लगा कि गलत फंसे। बगले झांकी फिर बोले
बेटे.मैं जरा जल्दी में हूं।
अरे! नहीं ताऊ, जरा रुको तो। अच्छा, यह बता दो कि अक्ल बड़ी
ब…बड़ी तो अक्ल होती है।
)
केस….मतलब?
नहीं..मेरा मतलब कि अक्ल तो दिमाग में होती है न और दिमाग तो सिर में होता है और सिर से तो मैंस बहुत बड़ी होती है। त..तो बड़ी तो मैंस ही हुई न?
एक पल को तो अधिकारी महोदय का दिमाग ही चकरा गया। आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास.मतलब आए किस काम से थे ।

..और पशुगणना की जगह इसके सवालों के नाम पर उलझे हैं। उनको चुप देख सवालीराम बोलाताऊ, मैं एक और कारण बताऊं? जिससे आप मान जाओगे कि मैंस ही बड़ी होती है।

बच्चों और बड़ों की भीड़ लग गई थी। सब मजे ले रहे थे-बताओ।

 

सवालीराम बोला-देखो.मैंस दूध देती है। हम दूध पीते हैं तो दिमाग तेज होता है और उसमें अक्ल बढ़ती है। तो अगर भैस न हो तो अक्ल भला कहां से आएगी तो फिर बड़ी तो..मैंस ही हुई।

सवालीराम को देख अधिकारी महोदय भी सोच रहे थे कि इतनी सी जान और गजभर की जबान। अधिकारी महोदय समझ गए कि इससे तो पल्ला झाड़ने में ही भलाई है। चलते हुए बोलेतुम्हें समझाना तो टेढ़ी खीर
उनकी बात पर सब चौंक पड़े।

सवालीराम के गांव में कोई भी नहीं जानता था कि खीर क्या होती है? वहां खीर शब्द का चलन ही नहीं था। वहां तो खीर को लोग पायस कहते थे।

अब क्या था, वहां जो भी खड़ा था, पूछ बैठा-ये खीर कैसी होती है?

वहां एक बूढ़े बाबा भी खड़े थे। बेचारे जन्मांध थे। लाठी टेके चुपचाप सबकी बातें सुन रहे थे।

अधिकारी महोदय ने कहा, इन बाबा से पूछो।

बाबा बोले-साहब बता भी दो । वाकई हम लोग नहीं जानते कि खीर क्या होती है? हम सब तो पहली बार इसका नाम सुन रहे हैं।

अधिकारी महोदय को आश्चर्य हुआ। वे चल पड़े थे लेकिन रुक गए। बोले-खीर खाई जाती है।

अच्छा, तो क्या ये पेड़ पर लगती है? सवालीराम ने सवाल दागा। तो क्या बोई जाती है? नहीं जी।

तो..तो क्या मशीन से बनती है? बाबा ने सवाल किया। अरे! नहीं बाबा। दूध से बनती है। ये सफेद होती है।
अब जन्मांध बाबा भला रंग क्या जानते? उन्होंने पूछा-सफेद।

ये सफेद क्या होता है?
अरे! बगुला नहीं देखा? बगुला सफेद होता है।
बगुला! बगुला कैसा होता है?
अधिकारी महोदय समझ गए कि बाबा को तो समझाना और भी मुश्किल है। आंखें बड़ी की। बाबा के पास गए और अपनी कुहनी को मोड़कर बगुला जैसा बनाया और कहा इसे छूकर देखो।

ऐसा होता है बगुला। बाबा ने टेढ़ी कुहनी को टटोला और फिर उनका चेहरा खिल उठा।

खुश होकर बोले-अब समझा।

क्या?

यही कि खीर टेढ़ी होती है।

सारे बच्चे ताली पीटने लगे-टेढ़ी खीर । टेढ़ी खीर। टेढ़ी खीर।

बेचारे अधिकारी महोदय। उन्होंने माथा पीट लिया। समझ गए कि सवालीराम को ही नहींबाकी सबको भी समझाना कठिन है।

माथे का पसीना पोंछा।

जैसे हार मानते हुए बोले-खीर तो टेढ़ी नहीं होती लेकिन तुम सबको समझाना जरूर टेढ़ी खीर है। गजनंदन हां, हां मतलब सवालीराम बोल उठा-अच्छा ताऊ, य बता… सवाल पूरा होने से पहले ही अधिकारी महोदय सिर पर रखकर पर । भाग लिए। के

 

Hindi Kahawat की Story No 8: घर छोड़कर बुरे फंसे

 

बचपन में मैंने एक बन्दर का बच्चा पाला था। उसको गलीगली नचाने के लिए नहीं, बल्कि शौकिया तौर पर प्यार से मैंने उसका नाम रखा ‘छोटू’। रोज सुबह उसको अपने साथ टहलाने ले जाता, अपने साथ ही उसे नाश्ता करवाता। और जब स्कूल जाने का वक्त होता, तो उसे दरवाजे की कुंडी से बांध देता।

क्योंकि उसे अपने साथ स्कूल तो ले नहीं जा सकता था। वैसे कई बार मेरा मन हुआ कि उसे अपने साथ स्कूल ले जाऊं, लेकिन हमेशा मार के डर से मन पर काबू पा लेता था। क्योंकि मेरी मम्मी मुझे कई बार बता चुकी थीं कि मार के डर से तो भूत भी कांपते हैं, तो फिर मैं तो एक बच्चा था।

वैसे मुझे उससे कोई विशेष शिकायत नहीं थी, लेकिन कभी कभी मुझे उसकी बदौलत डांट खानी पड़ जाती थी। बात दरअसल यह होती थी। कि कभीकभी वह रस्सी तुड़ाकर सीधा रसोई में घुस जाता और जो भी चीज नजरों के सामने पड़ती, सीधी उसके मुंह में प्रवेश कर जाती थी।

डंडा देखकर वह तो भाग जाता था, लेकिन डांट मुझे खानी पड़ती थी, क्योंकि मैंने ही जिद करके उसे पाला था। मम्मी ने तो पहले ‘ना’ ही कर दी थी, लेकिन फिर पापा से कहलवाने पर मान गईं थीं।

डांट खाकर मैं सोचता. “अब इसमें बेचारे छोटू का क्या दोष“बन्दर का घर तो होता ही गाल में है”, लेकिन इतनी छोटी-सी बात इन बड़े लोगों को कौन समझाए?” धीरे धीरे मैंने लकड़ी के बल पर उसे थोड़ा बहुत सिखा लिया था। अब वह इतनी शैतानी नहीं करता था। लेकिन एक दिन तो बेचारे पर आसमान ही टूट पड़ा।

हुआ यूं कि हमारी पड़ोसन की चहेती बिल्ली हमारे घर में घुस आई और पहुंच गई सीधी रसोई में। ऊपर की अलमारी में दूध का भगौना रखा था। उसने उतावलेपन में एक ही छलांग में उस भगौने के पास पहुंचना चाहा।

वह तो भगौने के पास पहुंच नहीं पाई, लेकिन उसका यह उतावलापन बेचारे छोटू के लिएजो रसोई के दरवाजे के पास बैठा था, अभिशाप बन। गया।

बिल्ली की हड़बड़ाहट में जब अलमारी से डिब्बे गिरे तो घर वालों ने सोचा कि छोटू आज फिर कोई हरकत करने रसोई में पहुंच गया है। इससे पहले कि मैं घटनास्थल पर पहुंचता, मम्मी अपना प्यारा डंडा लेकर रसोई की ओर लपकीं। जब उन्होंने छोटू को रसोई के पास ही देखा, तो उनका शक यकीन में बदल गया और उन्होंने एक डंडा उसे भेंट कर दिया।

दूसरा डंडा स्वीकारने से पहले ही उसने बाहर की ओर छलांग लगा दी। तब तक मैं भी वहां पहुंच चुका था। जब मैं और मम्मी रसोई में घुसे तो वह शैतान बिल्ली तेजी से बाहर भागी । बिल्ली को देखकर मम्मी का सारा गुस्सा रफूचक्कर हो गया। उन्हें अपनी करनी पर पछतावा हो रहा था और यह कहावत याद आ रही थी, तबले की बला, बन्दर के सिर ।”

मम्मी तुरंत छोटू से मिलने भागीं। लेकिन छोटू ने सोच लिया था कि अब वह इस घर में एक पल भी नहीं रहेगाचाहे उसे भूखा ही क्यों न मर जाना पड़े। यह सोचकर उसने घर से त्यागपत्र दे दिया।

दोपहर तक वह चलता रहा.चलता रहा। अब उसे भूख भी लगने लगी थी। तभी उसने देखा कि सड़क पर एक लड़का ठेले पर कोई भूरीभूरीसी चीज बेच रहा है। उसने वह चीज पहले कभी नहीं देखी थी। उसने सोचा, “हो न हो, यह होगी कोई मजेदार चीज ।” यह सोचकर उसके मुंह में । के में पानी भर आयावह फौरन ठेले पास आया और दोनों हाथों उस चीज को भरकर एक मकान की छत पर चढ़ गया।

वह बेचारा लड़का रोता कलपता ठेला लेकर भाग खड़ा हुआ। मकान की छत पर पहुंचकर छोटू यू करता ने जैसे ही वह चीज मुंह में रखी, दूसरे ही पल वह सारी छत पर – फिर रहा था। दरअसल वह भूरी चीज और कुछ नहीं, अदरक थी। अब बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद।” छोटूराम भूख से व्याकुल हो रहे थे। उनसे अब आगे चला नहीं जा के रहा था। अचानक उन्होंने देखा कि एक बुढ़िया मैदान में रोटियां पका रही है। बसफिर क्या था।

छोटूजी ने आव देखा न ताव, चल दिए रोटियां उड़ाने। उन्होंने जैसे ही तवे की रोटी पर झपट्टा माराजल्दबाजी में उनका हाथ तवे की रोटी से छू गया। हाथ जलने से बेचारे को दिन में ही तारे नजर आने लगे। तब तक बुढ़िया ने चूल्हे से एक जलती हुई लकड़ी भी उन्हें पुरस्कार स्वरूप देने के लिए निकाल ली। इतना भयंकर पुरस्कार देखकर उनकी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गई। रोटी छोड़, जलन से कराहते हुए बेचारे सिर पर पांव रखकर भागे। घर से बाहर के नजारे देखतेदेखते और भूख की कुलबुलाहट से उनकी बुरी हालत बन गई थी।

अब उन्हें अपनी गलती का अहसास हो रहा था। वह सोच रहे थे कि बेकार ही घर छोड़ा। उन्होंने मन ही मन प्रण किया कि चाहे कितना भी कुछ क्यों न हो जाएआगे से कभी घर नहीं छोड़ेगा। यह सोचकर छोटूराम घर की ओर दौड़ पड़े।

Hindi Kahawat की Story No 8: सौ सोनार की, एक लोहार की

जम्बू भालू के पिता सर्कस में काम करते थे। जब वह सर्कस से सेवानिवृत्त हुए तो उन्हें एक मोटर साइकिल इनाम में मिली। मोटर साइकिल देख जम्बू बहुत खुश हुआ। दो-चार दिन में ही उसने मोटर साइकिल चलानी सीख ली। फिर क्या था, वह सारे जंगल में मोटर साइकिल चलाने लगा। वह उसे बहुत तेज चलाता था। उसके रात-दिन मोटर साइकिल चलाने से जानवरों की नींद हराम हो गई।

एक दिन उसके गुरुजी चंचल बंदर ने उसे समझाते हुए कहा, “तुम मुझ से पढ़ते रहे हो। मेरी बात मानो तो मोटर साइकिल इतनी तेज मत चलाया करो। कभी गिर जाओगे तो चोट लग जाएगी। तुम जरूरत न होने पर भी उसका हॉर्न बजाते रहते हो, इससे सभी जानवरों को परेशानी होती है।” पर जंबू पर इसका कोई असर नहीं हुआ।

उसी जंगल में पूसी बिल्ली का अस्पताल था। वह जम्बू के साथ ही पढ़ी थी। दोनों में शुरू से ही पटती नहीं थी। जम्बू गुस्सैल और लड़ाका था और पूसी सीधी और सादी थी।

एक बार जम्बू ने बिना वजह ही पूसी को पीट दिया था। तब उसने उसकी शिकायत गुरुजी चंचल बंदर से की थी। गुरुजी ने जम्बू को मुर्गा बनने की सजा दी थी। जम्बू जब मुर्गा बना था तो सभी बच्चों को बड़ा मजा आया था। लेकिन जम्बू को बहुत बुरा लगा था।

जम्बू अपनी बुरी हरकतों की वजह से पढ़ नहीं पाता था और अक्सर फेल हो जाता था, जबकि पूसी लगातार पास होती थी। अब वह डॉक्टर बन गई थी। चूंकि जम्बू पूसी से चिढ़ता था इसलिए वह पूसी के अस्पताल के सामने जाकर खूब हॉर्न बजाया करता था। इससे अस्पताल में भर्ती मरीजों को बहुत परेशानी होती थी।

एक दिन पूसी ने जम्बू से कहा, “जम्बू भैया, यहां शोर मत किया करो। मरीजों की नींद टूट जाती है, मुझे भी काम करने में दिक्कत होती तब जम्यू रौब से बोला था, “मुझे किसी से कोई मतलब नहीं है। मेरे मन में जो आएगा, मैं वही करूंगा।” कहकर वह और भी तेज हॉर्न बजाता हुआ आगे चल दिया।

जम्बू की हरकतें बढ़ती जा रही थीं। उसकी मोटर साइकिल से कई जानवरों के हाथ-पैर टूट चुके थे। अब जम्बू की मोटर साइकिल से जंगल के जानवर बेहद डरने लगे। वे उसकी आवाज सुनते ही एक तरफ रास्ता छोड़कर भाग जाते थे। जानवरों को भागता हुआ देखकर जम्बू बेहद खुश होता था।

एक दिन वह तेजी से मोटर साइकिल चलाता हुआ जा रहा था। आगे एक मोड़ था, फिर भी उसने मोटर साइकिल की चाल धीमी नहीं की। मोटर साइकिल तेज तो थी ही इसलिए मोड़ आने पर वह मोटर साइकिल को संभाल नहीं पाया और एक तरफ एक मोटे पेड़ से जा टकराया। मोटर साइकिल के पेड़ से टकराते ही वह गेंद की तरह उछलकर दूर झाड़ियों में जा गिरा। गिरने पर वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “बचाओ ….बचाओ….हाय मैं मर गया….!”

तब आसपास के सारे जानवर दौड़े आए। उन्होंने जम्बू को झाड़ियों में से बाहर निकाला। अब तक वह बेहोश हो चुका था। उसका सारा शरीर खून से लथपथ हो गया था। उसकी एक टांग भी टूट गई थी। फिर उसको पूसी के अस्पताल में लाया गया। पूसी ने जब जम्बू को घायल देखा तो उसे बहुत दुख हुआ। उसने तुरंत जम्बू के कटे-फटे घावों पर टांके लगाए और उसकी एक टांग पर प्लास्टर चढ़ा दिया। थोडी देर बाद जम्बू को होश आया तो उसने खुद को पूसी के अस्पताल में पाया। उसने देखा कि उसके घायल हो जाने से जंगल के जानवर बेहद दुखी हैं। यह सब देखकर जम्बू को बड़ा पश्चाताप हआ।

धीरे-धीरे जम्बू ठीक हो गया। ठीक हो जाने पर उसने पूसी से माफी मांगते हुए कहा, “मुझे माफ कर दो बहन, मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया। फिर भी तुमने मेरी जान बचाई है।”

फिर वह चंचल गुरुजी के घर गया और उनसे आदरपूर्वक बोला, “गुरुजी, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने आपकी बात नहीं मानी तभी मेरा यह हाल हुआ है।”

इसी तरह जंगल के सब जानवरों से जम्बू ने माफी मांगी और भविष्य में ऐसा न करने की प्रतीज्ञा की। यह हुई न-सौ सोनार की, एक लोहार की!

 

 

Written by

Romi Sharma

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