नमस्कार, आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। दोस्तों इस पर्यावरण ने हम इंसानों को तरह तरह की
चीज़ें दी हैं जैसे की पेड़ पौधे, वायु, फल, इत्यादि। अगर हमारे पर्यावरण मै वायु ना हो तो हमारा जीवन
असंभव है। पर्यावरण की सुरक्षा हम लोगों का एक अहम कर्तव्य होना चाहिए। दोस्तों, जैसे की हम
जानते हैं की प्रकृति के बिना हम कुछ भी नहीं हैं। प्रकृति के अंदर बहुत सी खूबसूरत चीजे हैं जिन्हें
देखकर हर कवी के दिमाग मैं कुछ न कुछ कविताएँ आ ही जाता हैं आज हम आपके लिए ऐसी ही कुछ
प्रकृति पर आधारित कविताएँ लेकर आये हैं। तो दोस्तों आज मैं आपको इस आर्टिकल में बताऊंगा poem on
nature अर्थात प्रकृति पर आधारित हिन्दी कवितायेँ। तो आइये जानते है poem on nature in hindi.
1. फूल की कशिश
हमें तो जब कभी भी कोई फूल है नज़र आया
तो उसके रूप की कशिश ने हमें है लुभाया,
जो तारीफ़ ना कर सके कुदरती करिश्मों की
तो फिर क्यों हमने ये मानव का जन्म है पाया
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2. पेड़ की एक आस
पेड़ो से पूछा मैंने यू ही एक रोज़
क्यों नहीं है तुम अंदर अब वो पहले जैसा जोश,
क्यों नहीं तुम्हारे नीचे बैठ कर
आती नहीं वो पहले जैसी बात,
जब शाम ढला करती थी
न जाने कब हो जाती थी रात,
क्यों नहीं कर पाता अब, मै फिर से तुमसे बात
मस्ती भी छूट गयी अब, जब होती है बरसात,
डर लगता है अब चढ़ते हुए ,कोई भी हो शाख
घबरा कर है दिल ये कहता कि हो जाऊंगा मैं राख,
अगर बनना ही था तुम्हे,ऐसा निर्दय कठोर
तो अब चले जाओ तुम इस धरती को छोड़,
तुमसे भी है परेशान यहाँ पर, सारे इंसान
रहने कि जगह है कम, और तुम बन रहे हो भगवान्,
सुनकर मेरी व्यथा को,पेड़ थोडा मुस्कुराया
फिर प्यार से उसने हंसकर हवा का एक झोंका मुझपर लहराया,
बोला मेरे कान में धीमे से सुनो मेरे बदलने का राज़
जिसको सुनकर हंसेगा सारा, निर्दय मानव समाज,
जोश मेरा वो पहले जैसा खोया यंही है देखो
काले धुएँ से प्रदूषण के बिखरे रंग अनेको,
मै क्या करता धीरे-धीरे हो गयी कच्ची मेरी शाख
नाम का पेड़ रह गया बनकर अब ,रखता हूँ संग्रहालय में सजने कि एक आस….
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3. वसंत ऋतु
महका हुआ गुलाब है खिला हुआ है कमल,
हर दिल मे उमंगे हैं हर लब पे है ग़ज़ल,
ठंडी-शीतल बहे ब्यार मौसम गया हैं बदल,
हर डाल ओढ़ा नई चादर हर कली गई है मचल,
प्रकृति भी हर्षित हुई है हुआ बसंत का आगमन,
चूजों ने उड़ान भरी जो गये है पर नये निकल,
है हर गाँव मे उत्सुख्ता हर दिल गया है मचल,
स्वाद चखेंगे अब नये अनाज का पक जो गयी है फसल,
त्यौहारों का मौसम है शादियों का है अब लगन,
पिया मिलन की आस लिए सज रही है दुल्हन,
महका हुआ गुलाब है खिला हुआ है कमल…
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4. प्रकृति
हे भगवन तूने बनाई ये धरती , कितनी है ये सुन्दर
अलग अलग और नए नए तरह के
ना जाने कितने ही हैं अनेक रंग,
कोई कहता है गुलाबी, तो कोई कहे बैंगनी , तो कोई कहे है लाल
तपती गर्मी मैं
भगवन तुम्हारा चन्दन जैसे पेड़ सीतल हवा बहाते
खुशी के त्योहारों पर, पूजा के समय पर
हे भगवन, तुम्हारा पीपल ही तुम्हारा रूप बनता
तुम्हारे ये अलग अलग रंगो के पंछी
नीले आसमान को सुनेहरा बनाते
तेरे चौपाये किसान के साथी बनते
हे ईस्वर तुम्हारी यह धरी बड़ी ही मीठी…
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5. काली घटा है छाई
काली घटा है छाई लेकर अपने साथ यह
बहुत सारी है खुशियां लायी
ठंडी ठंडी सी यह हवा बहती कहती चली है आ रही
काली घटा है छाई
कोई आज खुश हुआ बरसों बाद
तो कोई आज पकवान बना रहा खुसी से
बच्चों की यह टोली
कभी गलियों में तो कभी छत पे किलकारियां सीटी रहे लगा
काली घटा है छाई
जो गिरी पहली बूँद धरती पे
देख ईसको मुस्कराया किसान
संग जग भी रहा झूम जब चली और तेज हवाएँ
आंधी का ले रही यह रूप
लगता ऐसा सुरु हो रही कोई क्रांति अब
छुपा झूट जो अमीरों का
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कहीं गली में गढ़ा तो कहीं बड़ी बड़ी ईमारत ड़ह रही युहीं
पौधे जो भूमि में सोये हुए थे
महसूस करके इस हवा को वो भी अब हैं फूटने लगे
देख यह बगीचे का माली
खुसी से रहा झूम
और कहता काली घटा है छाई
साथ अपने यह ढेर सारी खुशियां है लायी….
6. संभल जाओ दुनिया वालो
संभल जाओ ऐ दुनिया वालो
धरती पे मत करो घातक प्रहार,
रब करता अवगत हर समय
प्रकृति पर मत करो घोर अत्यचार,
लगा कर बारूद पहाड़ और पर्वत उड़ाए
स्थल रमणीय सघन रहा नही,
खोद रहा है इंसान कब्र खुद अपनी
जैसे जीवन की अब परवाह नही,
लुप्त हो गए अब झील और झरने
वन जीवों को नही मिला मुकाम,
मिटा रहा है खुद जीवन का अंस
धरा पर बचा नहीं जीव का आधार,
नष्ट किये हमने हरे भरे वृक्ष
दिखे नही कही हरयाली का अब नाम,
लहलाते थे कभी वृक्ष हर आँगन में
बचा शेष नही उन गलियारों का श्रृंगार,
कहा गए वो हंस और कोयल, गोरैया
गौ माता का घरो में नही रहा स्थान,
जहाँ बहती थी कभी दूध की नदिया
कुंए,नलकूपों में नही जल का नाम,
तबाह हो रहा है सब कुछ निश् दिन
आनंद के आलावा कुछ याद नही,
नित नए साधन की खोज में
पर्यावरण का नही किसी को रहा ध्यान,
विलासिता से शिथिलता खरीदी
करता ईश पर कोई विश्वास नही,
भूल गए पाठ सब रामयण गीता के
कुरान और बाइबल किसी को नही याद,
त्याग रहे नित संस्कार अपने
बुजुर्गो को नही मिलता सम्मान,
देवो की इस पावन धरती पर
बचा नही धर्म -कर्म का अब नाम,
संभल जाओ ऐ दुनिया वालो
धरती पे मत करो घातक प्रहार,
रब करता अवगत हर समय
प्रकृति पर मत करो घोर अत्यचार….
तो दोस्तों आज मैंने आपको इस article मे बताये कुछ दिल को लुभा जाने वाले poem on nature in hindi. उम्मीद करता हूं दोस्तों कि आपको ये article पसंद आया होगा। आपको ये आर्टिकल केसा लगा आप इस बारे में comment ज़रूर करें। ऐसे और रोचक विषय के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमसे जुड़े रहें और हमारे article पढ़ते रहे।
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