गर्मी की छुट्टी पर निबंध Essay on Summer Vacation in Hindi

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हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Essay on Summer Vacation in Hindi पर पुरा आर्टिकल। Summer Vacation का इंतज़ार हर किसी बच्चे को होता है इस आर्टिकल में हम आपको बातयेंगे की आप Summer Vacation पर क्या क्या कर सकते है।

 

 

Essay on Summer Vacation in Hindi

Essay on Summer Vacation in Hindi

गरमियों की छुट्टियों में हमें कालका मेल से शिमला जाना था। अत: हम प्लेटफार्म . आठ पर गए । वहाँ यात्रियों की अपार भीड़ थी। हमारी गाड़ी छूटने का समय दस बजे था। पंद्रह मिनट पहले गाड़ी प्लेटफार्म पर आ गई। हम सब डब्बे में अपना सामान रखकर आराम से बैठ गए। गार्ड के सीटी देते ही गाड़ी चल पड़ी। सायं लगभग छ: बजे गाड़ी कालका स्टेशन पहुँच गई। हम सबने खाना खाया और रात्रि प्रतीक्षालय में बिताई।

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प्रातसाढ़े आठ बजे हम पुन: नैरोगेज गाड़ी पर सवार हुए। जैसे ही सुरंग आती छोटे-बड़े शोर मचाते और प्रसन्नता से झूम उठते। अनेक सुरंगों को पार करते हुए हमारी गाड़ी दोपहर एक बजे शिमला पहुँच गई। शिमला में हम ग्रांड होटल में ठहरे।

शिमला पहुंचकर हमें ऐसा लगा मानो स्वर्ग में आ गए हैं। वहाँ चारों तरफ हरियाली थी। मौसम बड़ा सुहावना था और ठंडी ठंडी हवा हमारे मन को प्रसन्न कर रही थी। शाम को माल रोड पर बड़ी रौनक रहती है । रंग बिरंगी पोशाकें पहने लोग ऐसे घूमते हैं। मानो वे सबकुछ भूलकर मस्ती की दुनिया में जी रहे हों। हम नित्य वहाँ के रमणीक स्थानों को देखने जाते। वहाँ के मस्त मौसम में दिन निकलने और छिपने का पता ही नहीं चलता। इस प्रकार हमने जून का पूरा महीना वहाँ बिताया। ग्रीष्मकालीन छुट्टियाँ समाप्त होने को थीं।

अतहम पहली जुलाई को दिल्ली वापस आ गए। हमारा गरमी का मौसम बड़े अच्छे ढंग से बीत गया। मुझे यह रेलयात्रा हमेशा स्मरणीय रहेगी।

Essay on Summer Vacation in Hindi

 

ग्रीष्मावकाश के कारण प्रत्येक विद्यालय में ग्रीष्म से राहत पाने के लिए कुछ न-कुछ अवकाश अवश्य हुआ करता है। हमारे विद्यालय में भी इस वर्ष 1 मई से 2 माह का अवकाश हुआ था। इन दिनों मेरे कुछ सम्पन्न साथियों ने तो दिल्ली की भीषण गर्मी से राहत पाने के लिए पहाड़ी स्थलों पर भ्रमण के लिए जाने का कार्यक्रम बनाया। परन्तु मैंने अपने मातापिता और भाई-बहनों के साथ दक्षिण भारत का पर्यटन करने जाने की सोची।

15 मई तक तो मैंने अपना गृहकार्य पूरा किया। तत्पश्चात् 15 मई से हम पर्यटन जाने की तैयारी करने लगे। मेरे पिता जी एक सरकारी कर्मचारी हैं, उन्हें सरकार की ओर से पर्यटन के लिए किराया अर्थात् LTc. मिलता है, इसलिए हमने इसका लाभ उठाया।

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हमने तमिलनाडु टूरिज्म की एक बस में जो 18 मई को दक्षिण भारत के लिए जाने वाली थी, पाँच टिकटें बुक करा ल। फिर हमने तैयारी प्रारम्भ कर दी। 18 मई की रात्रि को 10 बजे बस निश्चित स्थान आरकेपुरम) पर तैयार खड़ी थी । हम सभी अपने सामान के साथ वहाँ पहुँच गए तथा बस में नियत स्थान पर बैठ गए। लगभग साढ़े ग्यारह बजे वह बस सभी यात्रियों को लेकर शुभ यात्रा के लिए रवाना हो गईक्योंकि उसे दिल्ली सीमा को 12 बजे के बाद ही पार करना था।

यहाँ से चलकर बस प्रातः लगभग 7 बजे जयपुर पहुँची। सब लोग वहाँ थोड़ा घूमेनाश्ता किया और आगे चल पड़े। रुकतेरुकाते दो दिन पश्चात् हम माउण्ट आबूपहुँचे। वहाँ हमने भव्य जैन मन्दिर, ब्रह्मा कुमारी आश्रम आदि देखे। अगले दिन प्रातः हम आगे बढ़े। मुम्बईगोवा होते हुए हम लगभग एक सप्ताह पश्चात् दक्षिण भारत अर्थात् कन्याकुमारी जा पहुँचे। वहाँ पहुँचकर एक रात्रि विश्राम किया।

अगले दिन प्रातकाल लगभग चार बजे समुद्र के किनारे पहुंचे। वहाँ हमने वह स्थान देखा जहाँ तीन महासागरों का मिलन होता है। एक ओर बंगाल की खाड़ी है, दूसरी ओर अरब सागर है तथा सामने हिन्द महासागर है। तभी हमने समुद्र के मध्य से सूर्य देवता को उदित होते हुए देखा जो बहुत ही रमणीय दृश्य था।

 

फिर हमने वहाँ सायं को सूर्यास्त भी देखा। कन्याकुमारी का यह दृश्य अभी तक नहीं भुलाया जा सका। इसके पश्चात् वहीं समुद्र के मध्य में एक चट्टान पर बने स्वामी विवेकानन्द का स्मारक देखने भी गए। यह भी बहुत अच्छा लगा। वहाँ अनेक मन्दिरों के भी दर्शन किए। तत्पश्चात् हम मण्डयम रेलवे स्टेशन तक अपनी बस में गए तथा वहाँ से रेल द्वारा रामेश्वरम् पहुँचे। रामेश्वरम् में हमने समुद्र में स्नान किया।

वहाँ समुद्र का जल बहुत ही स्वच्छ था। उस जल में छोटी-छोटी मछलियाँ बहुत सुन्दर लग रही थीं। वहाँ हमने रामेश्वर धाम के मन्दिरों में स्नान व पूजा-अर्चना की। वहाँ एक साथ 35-40 कुइयाओं के जल में स्नान करना होता है जिसका बहुत ही महात्य हाता ह तत्पश्चात् वहां से हम 31 मई को वापस चल दिए।

वापसी में हमने शिरडी बाबा के भी दर्शन किए। इस प्रकार घूमते-घुमाते हम 8 जून को सकुशल अपने घर पहुँच गए। घर आकर कुछ आराम किया तथा शेष गृहकार्य किया। कुछ दिन अपने परिचितों को प्रसाद बांटने में भी व्यस्त रहा। इस प्रकार मैंने अपना ग्रीष्मावकाश बहुत अच्छे ढंग से बिताया।

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छुट्टियों में हम वो सब कुछ कर सकते हैं जो हमें अच्छा लगता है। हमारे पास मनोरंजन के लिये व कुछ नया सीखने के लिये बहुत समय होता है। छुट्टियाँ हमें कुछ नया हुनर सीखने का अवसर प्रदान करती हैं।

मनपसन्द कुछ भी करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि हम अपना वक्त बरबाद करें। हमें अपने समय को योजनाबद्ध तरीके से बिताना चाहिए। नया सीखनेखेलने, मनोरंजन में अवकाश के समय का सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिये। मैं अपना सारा समय गपबाजी एवं कॉमिक पढ़ने में नहीं बिताऊँगा। छुट्टियों में मैं प्रतिदिन व्यायाम करुणा एवं दोस्तों के साथ मैच खेजूंगा।

एक सप्ताह के लिये ‘पंचमढ़ी’ जाने का मेरा मन है। वहाँ जाकर मैं पहाड़ों पर चढ़ने का अनुभव प्राप्त कहँगा एवं परिस्थिति विज्ञान’ पढ़ेगा।

आजकल कम्प्यूटर बहुत लोकप्रिय एवं अपरिहार्य हो गये हैं। मैं कम्प्यूटर की प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने का प्रयास करौगा। अवकाश के दिनों में हमारे पास मनोरंजनखेलों एवं अपने शौक को पूरा करने के लिये पर्याप्त समय होता है। मैं तैराकी करके एक तो अपना शौक पूरा कहूंगा, दूसरे गर्मी से बचूंगा। छुट्टियों की अवधि में मेरी गिटार सीखने की योजना भी है। इसके अतिरिक्त मैं अपने बगीचे में बागवानी करके भी कुछ बिताना चाहता हूं। अपने समय टिकट संग्रह एवं सिक्कों के संग्रह को मैं और बढ़ाऊंगा।

अपने सामान्य ज्ञान में वृद्धि के लिये विश्व कोश पढ़ने का भी मेरा विचार है। अवकाश हमें बहुत कुछ नया करने एवं सीखने का अवसर प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त अवकाश हमें समय प्रबन्धन सीखने एवं आत्मावलम्बी बनने का भी अवसर प्रदान करते हैं।

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गर्मी के गर्म दिन उपहार न हो कर दण्ड हैं। यह सहन शक्ति के परे होते हैं और हमें असहज एवं आलसी बना देते हैं। प्रात: सूर्योदय का समय एक सुहावना दृश्य प्रस्तुत करता है। सूर्योदय के पूर्व का दृश्य भी अत्यन्त रोमान्चक होता है। शान्त शीतल वातावरण मोहक दृश्यावली एवं मन्द-मन्द ठण्डी बयार आत्मा को प्रसन्न कर देती है। चिड़ियों की चहचहाट मन को आनदित कर देती है। कुछ समय पश्चात् ही हमें पूर्व दिशा में सुनहले वृत के दर्शन होते हैं। सूर्य की रश्मियाँ इस समय चुभती नहीं है।

किन्तु जैसेजैसे दिन चढ़ता है गर्मी बढ़ती जाती है। घर से बाहर गये लोग तपते सूरज से बचने के लिये वापिस आने लगते हैं। दोपहर तक सूरज | आग के गोले की तरह लाल हो जाता है। इस तपती दोपहरी में किसान भी हल चलाना बन्द कर छांव में बैठ जाते हैं। घरों के खिड़की दरवाजे बन्द कर दिये जाते हैं। लोग पंखेकूलरों एवं | वातानुकूलित ठण्डे कमरों में बैठना पसन्द करते हैं। किन्तु कुछ | को अपने काम पर जाना ही होता है। वह पसीने में भीग जाते । हैं। कपड़ों में पसीने की महक से सभी असहज हो जाते हैं।

 

दोपहर का समय सबसे गर्म होता है। सूरज की तेज किरणें धरती को झुलस डालती है। गर्मी सहनशक्ति के बाहर होती है। एवं तेज रोशनी से आँखें चौंधिया जाती हैं। साय काल जब सूरज ढलने लगता है लोग बाहर निकलना प्रारम्भ करते हैं। बाग-बगीचे, सार्वजनिक स्थलों एवं बाज़ारों में चहल-पहल प्रारम्भ हो जाती है।

लोग आइसक्रीम एवं ठण्डे शब, पेयों का मजा उठाते हैं। आधुनिक विज्ञान ने ग्रीष्म काल को आरामदेह बना दिया है। किन्तु एक धनी व्यक्ति ही ग्रीष्म ऋतु का आनन्द उठा सकता है। एक धनवान के लिये गर्मा गर्म नहीं और शीत ठण्डी नहीं है। यह लोग सभी ऋतुओं का आनन्द लूट सकते हैं।

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जीवन की एकरसता जीवन को नीरस बना देती है। न उसमें आनन्द होता है और न आकर्षण। नित्य प्रति एक से व्यवहार , एक से कार्यक्रमों से वह ऊब जाता है, मन उचटने लगता है। जीवन आकर्षणहीन होकर मशीन की तरह चलता रहता है, उसके रक्त तन्तु शिथिल पड़ जाते है। जीवन और जगत् के प्रति मानसिक उल्लास व उत्साह समाप्त-सा हो जाता है। उसे सुन्दरता में भी कुरूपता दृष्टिगोचर होने लगती है।

दैनिक कार्यों के अतिरिक्त उसकी कार्यक्षमता समाप्त-सी हो जाती है। इसलिए मानव जीवन समय-समय पर विश्राम और विनोद के लिए कुछ अवकाश के क्षण आवश्यक हो जाते है। दैनिक जीवन के वातावरण में परिवर्तन की आवश्यकता होती है क्योंकि संसार में परिवर्तन का दूसरा नाम जीवन है।

संसार में ऐसा कोई व्यवसाय नहीं जिसमें कुछ न कुछ अवकाश न हो, किसी व्यवसाय में अधिक छुट्टियाँ होती हैं और किसी में कमपरन्तु होती अवश्य हैं। रेलवे तथा पोस्ट ऑफिसआदि में कुछ कम अवकाश होते हैं परन्तु स्कूल कॉलिजों में अन्य विभागों की अपेक्षा कुछ अधिक अवकाश होते हैं। इसका मुख्य कारण यही है कि अध्यापक और विद्यार्थी दोनों ही मानसिक श्रम अधिक करते हैं।

शारीरिक श्रम की अपेक्षा मानसिक श्रम मनुष्य को अधिक थका देता है। शारीरिक श्रम से केवल शरीर ही थकता है, परन्तु मानसिक श्रम से शरीर और मस्तिष्क दोनों ही। इसलिए विद्यार्थी तथा अध्यापक को विशेष विश्राम की आवश्यकता होती है। विद्यार्थी बड़ी उत्सुकता से छुट्टियों की प्रतीक्षा करते हैं। चपरासी के हाथ में आर्डर बुक देखते ही क्लास के छत्र अध्यापक से पूछ उठते हैं, “क्या मास्टर साहब कल की छुट्टी है इस प्रकार पूछते हुए उसके मुख पर प्रसन्नता नाच उठती है।

ग्रीष्म की भयंकरता तथा विद्यार्थियों के स्वास्थ्य को दृष्टि में रखकर मई और जून में कॉतिज बन्द हो जाते हैं। इसका कारण यह भी है कि विद्यार्थी पूरे वर्ष पढ़ने में परिश्रम करता हैं। मार्च और अप्रैल के महीनों में वह अपने परिश्रम की परीक्षा देता है। इसके पश्चात् उसे पूर्ण विश्राम के लिये कुछ समय चाहिये। इन्हीं सब कारणों से हमारे

छोटे और बड़े स्कूल 40 दिन के लिये बन्द हो जाते हैं। हमें इन लम्बी छुट्टियों को व्यर्थ में नहीं बिता देना चाहिये। कुछ छात्र इन लम्बी छुट्टियों का समुचित उपयोग नहीं करते वे केवल खेलकूद में सारा समय बिता देते हैं। बहुत थोड़े छात्र ऐसे होते हैं, जो अपना सारा समय सन्तुलित और समान रूप से विभक्त करके उसका सदुपयोग करते हैं।

कुछ दिन भर सोते ही सोते बिता देते हैं, कुछ दिनभर गप्पों मेंकुछ आपस के झगड़ों में और कुछ दुर्व्यसनों में फंसकर अपने अवकाश के अमूल्य क्षणों को नष्ट कर देते हैं। अन्त में माता-पिता कहने लगते हैं कि हे भगवान इनकी छुट्टियाँ कब खत्म होंगी।

अवकाश के क्षणों में विश्राम और विनोद आवश्यक है, परन्तु मनोविनोद भी ऐसे होने चाहिये जिनसे हमारा कुछ लाभ हो, पुस्तकों जैसा साथी संसार में कोई नहीं हो सकता, चाहे धूप हो या वर्षा, ग्रीष्म हो या शीत वे हर समय आपको सहयोग दे सकती हैं, आपका मनोविनोद कर सकती है। यह साथी एक ऐसा साथी है, जो मस्तिष्क के साथ-साथ हदय को भी खाना खिलाता है। यह साथी हमें अतीत की मधुर स्मृतियों की याद दिलाता हुआ, वर्तमान के दर्शन कराता हुआ भविष्य की ओर अग्रसर करता है।

यदि आप चाहें तो घर बैठे ही बैठे देशान्तर के भ्रमण का आनन्द ले सकते हैं। यही आपको ज्ञान की शिक्षा दे सकता है, दु:ख में धैर्य और संयम भी सिखा देता है। परन्तु साथी का चुनना अपनी योग्यता और विचारों के अनुसार होना चाहिये। इतना ध्यान रखना चाहिये कि वह साहित्य सत्य साहित्य हो, ऐसा न हो कि वह आपको पतन की ओर अग्रसर करने में सहायक सिद्ध हो जाये।

यदि हम अपने अवकाश के क्षणों को समाज सेवा में व्यतीत करें तो हमारी भी उन्नति होगी और देश एवं जाति का उत्थान भी। अशिक्षित को भी शिक्षा व शिक्षा का महत्व बतायें, स्वयं भी अपने गांवअपने मुहल्ले, अपने घर की सफाई में अपना समय व्यतीत करें। अपने-अपने गांव तथा मुहल्ले में पुस्तकालय वाचनालयव्यायामशालायें तथा नाट्य परिषदों की स्थापना करके अपने ग्रीष्मावकाश को सफलतापूर्वक व्यतीत कर सकते हैं। कवि गोष्ठी तथा सांस्कृतिक सभायें भी समय के सदुपयोग के लिए उपयुक्त हैं।

 

अधिक परिश्रम करने के कारण विद्यार्थियों का स्वास्थ्य भी खराब हो जाता है, उन्हें ग्रीष्मावकाश में अपने स्वास्थ्य के सुधार के लिये भी आवश्यक प्रयत्न करने चाहिये। इन सबके साथ-साथ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि पिछले वर्ष हमारे कौन-से विषय कमजोर थे, जिनमें हमें दूसरों का मुंह देखना पड़ता था। उन विषयों की कमजोरी को अपने बुद्धिमान मित्रों के सहयोग से या अध्यापकों से मिलकर दूर कर लेना चाहिये या आगामी वर्ष में पढ़ाई जाने वाली पुस्तकों का थोड़ा पूर्व ज्ञान कर लेना चाहियेइससे विद्यार्थी को आगे के अध्ययन में सरलता हो जाती है। अध्यापकों ने जो काम छुट्टी में करने को दिया हो उसे पूरा करना चाहिये।

बुद्धिमान विद्यार्थियों के अवकाश के क्षण भी पुस्तकालय में ही व्यतीत होते हैं। ज्ञान दो प्रकार का होता है- एक स्वावलम्बी और दूसरा परावलम्बी। परावलम्बी ज्ञान हमें गुरूजनों से एवं अच्छी पुस्तकें पढ़ने से प्राप्त होता है।

हम लोग अपने-अपने विद्यालय में उसे प्राप्त करते हैं परन्तु स्वावलम्बी ज्ञान हमें स्वयं अपने द्वारा ही फल प्राप्त होता है और उसके अर्जन के लिए उचित समय विद्यार्थी के अवकाश के क्षण हैं, चाहे वह ग्रीष्मावकाश हो और चाहे वह दशहरावकाश हो। उसमें वह स्वावलम्बी ज्ञान को अधिक मात्रा में प्राप्त करके अपने लम्बे अवकाश को सफल बना सकता है।

 

 

Written by

Romi Sharma

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