भारत में महिला शिक्षा पर निबंध – Essay on Nari Shiksha in Hindi

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हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाया हु Essay on Nari Shiksha in Hindi पर पुरा आर्टिकल। Nari Shiksha नारी शिक्षा उतनी ही जरुरी है जितनी की पुरुष शिक्षा इसलिए अगर आप भी Nari Shiksha के बारे में बहुत कुछ जानना चाहते है तो हमारा आर्टिकल जरूर पढ़े।

आज के essay में आपकोNari Shiksha के बारे में बहुत बातें पता चलेंगे तो अगर आप अपने बच्चे के लिए Essay on Nari Shiksha in Hindi में ढूंढ रहे है तो हम आपके लिए india पर लाये है जो आपको बहुत अच्छा लगेगा। आईये पढ़ते है Essay on Nari Shiksha in Hindi

 

Essay on Nari Shiksha in Hindi

भारत में महिला शिक्षा पर निबंध – Essay on Nari Shiksha in Hindi

जहाँ तक शिक्षा का प्रश्न है यह तो नारी हो या पुरुष दोनों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। शिक्षा का कार्य तो व्यक्ति के विवेक को जगाकर उसे सही दिशा प्रदान करना है। शिक्षा सभी का समान रूप से हित-साधन किया करती है। परन्तु फिर भी भारत जैसे विकासशील देश में नारी की शिक्षा का महत्व इसलिए अधिक है कि वह देश की भावी पीढ़ी को योग्य बनाने के कार्य में उचित मार्गदर्शन कर सकती है। बच्चे सबसे अधिक माताओं के सम्पर्क में रहा करते हैं। माताओं के संस्कारोंव्यवहारों व शिक्षा का प्रभाव बच्चों के मनमस्तिष्क पर सबसे अधिक पड़ा करता है। शिक्षित माता ही बच्चों के कोमल व उर्वर मनमस्तिष्क में उन समस्त संस्कारों के बीज बो सकती है जो आगे चलकर अपने समाजदेश और राष्ट्र के उत्थान के लिए परम आवश्यक हुआ करते हैं।

नारी का कर्तव्य बच्चों के पालनपोषण करने के अतिरिक्त अपने घरपरिवार की व्यवस्था और संचालन करना भी होता है। एक शिक्षित और विकसित मन-मस्तिष्क वाली नारी अपनी आयपरिस्थिति, घर के प्रत्येक सदस्य की आवश्यकता आदि का ध्यान रखकर उचित व्यवस्था एवं संचालन कर सकती है। अशिक्षित पत्नी होने के कारण अधिकांश परिवार आज के युग में नरक के समान बनते जा रहे हैं। अतविद्वानों का कथन है कि गृहस्थी के कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए शिक्षा की अत्यन्त आवश्यकता है।

विश्व की प्रगति शिक्षा के बल पर ही चरम सीमा तक पहुँच सकी है। विश्व। संघर्ष को जीतने के लिए चरित्र-शस्त्र की आवयश्कता पड़ती है। यदि नारी जाति अशिक्षित हो, तो वह अपने जीवन को विश्व की गति के अनुकूल बनाने में सदा असमर्थ रही है। यदि वह शिक्षित हो जाए तो उसका पारिवारिक जीवन स्वर्गमय हो सकता है और उसके बाद देश, समाज और राष्ट्र की प्रगति में वह पुरुषों के साथ कन्धे-से-कन्धा मिलाकर चलने में समर्थ हो सकती है। भारतीय समाज में शिक्षित माता गुरु से भी बढ़ कर मानी जाती है, क्योंकि वह अपने पुत्र को महान से महान् बना सकती है।

आज स्वयं नारी समाज के सामने घरपरिवारपरिवेश-समाजरीति-नीतियों तथा परम्पराओं के नाम पर जो अनेक तरह की समस्याएँ उपस्थित हैं उनका निराकारण नारी-समाज हर प्रकार की शिक्षा के धन से सम्पन्न होकर ही कर सकती है। इन्हीं सब बुराइयों को दूर करने के लिए नारी शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है। सुशिक्षा के द्वारा नारी जाति समाज में फैली कुरीतियों व कुप्रथाओं को मिटाकर अपने ऊपर लगे लांछनों का सहज ही निराकरण कर सकती है।

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प्रस्तावना :

नारी शिक्षा का अर्थ है स्त्रियों को शिक्षा का बराबर अधिकार प्राप्त होना। शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक मानव का जन्मसिद्ध अधिकार है। शिक्षा के बिना मनुष्य का जीवन पशु समान है। ‘बिना पढ़े नर पशु कहलावै’ एकदम सही है। फिर नारी को ही समाज में शिक्षा का पूर्ण अधिकार प्राप्त क्यों न हो? अच्छाई-बुराई का सही निर्णय शिक्षित व्यक्ति ही ले सकता है। अशिक्षित व्यक्ति मेहनत-मजदूरी करके अपना पेट तो भर सकता है, लेकिन उसमें व्यवहारिकता, सामाजिकता तथा दुनियादारी की समझ नहीं होती। फिर नारी तो पूरे परिवार की धुरी होती है। बच्चे भी तो नारी के बलबूते पर ही शिक्षित बनते हैं क्योंकि बच्चों की प्रथम पाठशाला घर ही होती है और घर की शोभा तो नारी ही है, फिर नारी का पढ़ा-लिखा होना तो बहुत आवश्यक है।

नारी का स्थान :

नारी ही तो जन्मदात्री है। माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी सबकी उद्गम मात्र नारी ही है। आज भी कुछ लोग नारी को मात्र सन्तान उत्पन्न करने वाली, पालन-पोषण करने वाली तथा परिवारजनों की सेवा करने वाली त्याग की मूर्ति मात्र मानते हैं। लेकिन नारी का विकास केवल घर की चार दीवारी में रहकर नहीं हो सकता। शिक्षा द्वारा ही उसका सर्वांगीण विकास सम्भव है। नारी के गुण-अवगुण ही तो उसकी भावी संतान में आते हैं।

नारी शिक्षा के अभाव के दुष्परिणाम :

नारी शिक्षा के अभाव के कारण ही उस पर द्वापर युग से ही अत्याचार होता आया है। आज भी कम पढ़ी-लिखी _ महिलाएँ आसानी से अत्याचार सहन कर लेती हैं क्योंकि उनके पास अपने पैरों पर खड़ी होने वाली धरती अर्थात् ‘शिक्षा’ नहीं होती। इसके विपरीत शिक्षित महिलाएँ पुरुषों के अत्याचार सहन नहीं करती और विद्रोह पर उतर आती है।

नारी शिक्षा का प्रारंभ :

वैदिक काल में नारी को शिक्षा का अधिकार प्राप्त था। प्रत्येक धार्मिक ग्रंध में भी पुरुष वर्ग के साथ-साथ नारी वर्ग की शिक्षा व्यवस्था भी दर्शायी गई है। वेदों और पुराणों के अनुसार तो कोई भी धार्मिक कृत्य स्त्री के बिना अधरा है। इसी कारण पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी शिक्षा दी गई। नारी तो प्रत्येक आपत्ति में पुरुष की सहगामिनी रही है। यहाँ तक कि ‘रामचरितमानस’, ‘महाभारत’, ‘श्रीमद्भगवत’ में महिलाओं ने ही विजय प्राप्त करके धर्म-स्थापना करने में सहयोग दिया था। अकेला परुष कुछ नहीं कर सकता।

वर्तमान युग की शिक्षित नारी :

आज की नारी पूर्ण रूप से जाग्रत तथा शिक्षा के प्रति सजग है। नारी जाति में एक क्रान्ति भावना देखकर ही आज पुरुष भी नारी का लोहा मानते हैं। आज हमारी सरकार भी गाँव-गाँव, शहर-शहर में महिला वर्ग के लिए अलग शिक्षा संस्थाओं को मान्यता प्रदान कर रही है। आज का तो नारा भी यही है कि “पढ़ी-लिखी लड़की, रोशनी घर की।”

नारी शिक्षा के कारण ही आज प्रत्येक सरकारी तथा गैर-सरकारी विभाग में नारी उच्च पद पर कार्यरत है। वे अपना कार्य पूरी कुशलता से करती है। नारी ही एक ऐसी जीव है जो घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निभा सकती है।

उपसंहार :

वास्तव में नारी शिक्षा का विशेष महत्व है। महिलाओं को साथ लिए बिना देश का पूर्ण विकास सम्भव नहीं है। आज की नारी पति का आर्थिक सहयोग कर परिवार की उन्नति में सहायक सिद्ध हो रही है। आज नारी में आत्मबल, आत्म-सम्मान तथा विश्वास की कोई कमी नहीं है। आज तो हमारे देश के सर्वोच्च पद ‘राष्ट्रपति पद’ पर भी एक नारी ही सुशोभित है, जिनका नाम महामहिम श्रीमति प्रतिभा देवी पाटिल’ हैं। इससे बड़ा उदाहरण नारी शक्ति तथा शिक्षित नारी का और कोई नहीं हो सकता।

 

 

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Written by

Romi Sharma

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