महात्मा गांधी पर निबंध – Essay on Mahatma Gandhi in Hindi 2018

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हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाया हु Essay on Mahatma Gandhi in Hindi पर पुरा आर्टिकल लेकर आया हु। Gandhiji गांधीजी का हमारे देश को बदलने में बहुत बड़ा योगदान है। आज essay सिर्फ स्कूलों में ही दिए जाते है ताकि बच्चे उस विषय के बारे में जान सके। अगर स्कूल में आपके बच्चो को पर्यावरण पर निबंध या essay लिखने के लिए बोला गया है तो आप नीचे दिए हुवे आर्टिकल को पढ़ सकते है। आईये पढ़ते है Essay on Mahatma Gandhi in Hindi 

Essay on Mahatma Gandhi in Hindi

 Essay on Mahatma Gandhi in Hindi 100 word

 

1915 ई. में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने पर उन्होंने स्वतंत्रता के लिए अनेक कार्यक्रमों में भाग लिया। उन्होंने अंग्रेजों के रोलट एक्ट का विरोध किया। सम्पूर्ण राष्ट्र ने उनका साथ दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए उन्होंने सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाया। वे अनेक बार जेल भी गए। उन्होंने सत्याग्रह भी किएबिहार का नील सत्याग्रह, डाण्डी यात्रा या नमक सत्याग्रह व खेड़ा का किसान सत्याग्रह गांधीजी के जीवन के प्रमुख सत्याग्रह हैं। गांधीजी ने भारतीयों पर स्वदेशी अपनाने के लिए जोर डाला। उन्होंने सन् 1942 में “भारत छोड़ो” आंदोलन चलाया । गांधीजी के अथक प्रयत्नों से 15 अगस्त1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। गांधीजी भारत को एक आदर्श रामराज्य के रूप में देखना चाहते थे। गांधीजी छुआछूत में विश्वास नहीं रखते थे। उनका सारा जीवन अछूतोद्धार ग्राम सुधारनारी शिक्षा और हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए संघर्ष करने में बीता। 30 जनवरी सन् 1948 को दिल्ली की एक प्रार्थनासभा में जाते समय नाथूराम गोडसे ने गांधीजी पर गोलियां चला दीं। उन्होंने वहीं पर ‘हे रामकहते हुए अपने प्राण त्याग दिए। गांधीजी मर कर भी अमर हैं।

Essay On Mahatma Gandhi In Hindi – 200 word

इस नश्वर संसार में कौन नहीं मरता ! जो जन्म लेता है वह अवश्य मरता है, जो इस संसार में आया है उसका जाना भी निश्चित है, परंतु इनमें उसी मनुष्य का जन्म सार्थक है, जिसके द्वारा जाति, समाज और देश की उन्नति हो। महापुरुष वही कहलाते हैं। जिनका देश की प्रगति और नवनिर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। यह बड़े गौरव की बात है कि हमारे देश में समयसमय पर अनेक महापुरुषों का जन्म होता रहा है। युगनिर्माता गांधीजी का जन्म २ अक्तूबर१८६९ को काठियावाड़ के पोरबंदर में हुआ था। संसार के इतिहास में अब तक कोई महान् शक्ति उत्पन्न नहीं हुई है, जिसकी तुलना महात्मा गांधी से की जा सके। गांधीजी की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए प्रसिद्ध विज्ञानी तथा दार्शनिक आइंस्टाइन ने कहा था, “आनेवाली पीढ़ियाँ इस बात पर विश्वास करने से इनकार कर देंगी कि कभी महात्मा गांधी भी मनुष्य रूप में भूतल पर विचरण करते थे।”

गांधीजी के पिता करमचंद काठियावाड़ रियासत के दीवान थे। माता पुतलीबाई धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। तेरह वर्ष की अवस्था में उनका विवाह कस्तूरबा से हो गया था। उन्नीस वर्ष की अवस्था तक स्कूली शिक्षा समाप्त कर वे कानून की शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए और १८९१ में बैरिस्टर बनकर भारत लौट आएस्वदेश आकर गांधीजी ने वकालत आरंभ कर दी, परंतु इस क्षेत्र में उन्हें सफलता नहीं मिली। सौभाग्यवश बंबई के एक फर्म मालिक द्वारा इन्हें एक मुकदमे की पैरवी करने के लिए सन् १८९३ में दक्षिण अफ्रीका भेजा गया। यह उनके जीवन की एक युगांतरकारी घटना सिद्ध हुई। गांधीजी लगभग बीस वर्षों तक दक्षिण अफ्रीका में रहे। वहाँ के हिंदुओं की दुर्दशा को देखकर उन्हें अत्यंत दु:ख हुआ। प्रवासी हिंदुओं का प्रत्येक स्थान पर अनादर होता और उनकी बातों को, उनके दु:खों को वहाँ सुननेवाला कोई नहीं था। स्वयं गांधीजी को वहाँ के आदिवासी ‘कुली बैरिस्टर’ कहते थे। अंत में गांधीजी को वहाँ भारी सफलता मिली। उन्होंने आंदोलन किए और सरकार से माँग की कि हिंदुओं के ऊपर होनेवाले अत्याचारों को बंद किया जाए।

 

सन् १९९४ में गांधीजी स्वदेश लौट आए। दक्षिण अफ्रीका में मिली असाधारण विजय की भावना ने उन्हें देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्रेरित किया। सन् १९२० में असहयोग आंदोलन शुरू करके खादी-प्रचार, सरकारी वस्तुओं का बहिष्कार और विदेशी वस्त्रों की होली आदि का कार्य सम्पन्न हुआ। सन् १९३० में दांडी यात्रा करके गांधीजी ने नमक कानून तोड़ा। सन् १९४२ में’भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पास हुआ। गांधीजी और देश के अनेक नेता जेल भेजे गए। अंत में १५ अगस्त१९४७ को भारत स्वतंत्र हुआ और इनके साथ ही गांधीजी का अपना प्रयास सफल हुआ। महात्मा गांधी अपने देशवासियों को उसी प्रकार प्यार करते थे जैसे एक पिता अपने पुत्र को करता है। इसलिए भारतवासी उन्हें प्यार से ‘बापू’ कहते थे। इस धरा पर जो फूल खिलता है, वह कभीन-कभी अवश्य मुरझा जाता है। प्रकृति का विधान है जो यहाँ आता है, वह इस संसार को छोड़कर अवश्य जाता है। ३० जनवरी१९४८ को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर गांधीजी की हत्या कर दी। उसी समय प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने आकाशवाणी पर बोलते हुए कहा था, हमारे जीवन की ज्योति बुझ गई। अब चारों ओर अंधकार है

 

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अपनी कर्तव्यनिष्ठा एवं सत्यनिष्ठा के कारण जो साधारण मानव से महादेव बन गये, वे हैं मोहनदास करमचंद गाँधी। आधुनिक युग में तुर्की के निर्माण में जो कार्य कमाल पाशा ने किया, रूस के निर्माण में जो भूमिका लेनिन ने निबाही, भारतमाता को परतंत्रता की लौह-शृंखला से मुक्त कराने का वह कठिन कार्य महात्मा गाँधी ने किया।

मोहनदास का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। उस समय उनके पिता पोरबंदर के दीवान थे। अर्थाभाव न रहने के कारण गाँधीजी का लालन-पालन बड़ी शान-शौकत से हुआ। किसे मालूम था कि मखमल के गद्दों पर फिसलनेवाला बालक दुबली-सी लकुटिया लिये, दुष्टदलन तथा लोककल्याण के लिए विश्व के नगर-नगर, डगर-डगर की खाक छानेगा?

न गाँधीजी की शिक्षा का शुभारंभ पोरबंदर की पाठशाला में हुआ। इनका विवाह तेरह वर्ष की है अवस्था में ही हो गया था। इनकी दृष्टि में वे बालक बड़े भाग्यवान हैं, जिनका विवाह इस कच्ची उम्र में नहीं होता। इंट्रेंस करने के बाद ये उच्च शिक्षा के लिए भावनगर के श्यामलदास कॉलेज में भेजे गये, किंतु वहाँ इनका मन रम न सका। बाद में इनके भाई लक्ष्मीदास ने इन्हें बैरिस्टरी की शिक्षा प्राप्त करने के लिए विलायत भेज दिया। 1891 में इंगलैंड से बैरिस्टरी पास कर ये स्वदेश आये। बंबई में इन्होंने बैरिस्टरी आरंभ की।

गाँधीजी के सामाजिक क्रांतिकारी जीवन का श्रीगणेश 1893 की अफ्रीका-यात्रा से होता है। अफ्रीका में गोरे भारतीयों के प्रति सदव्यवहार नहीं करते थे। वे उन्हें पग-पग पर अपमानित करते – थे। गाँधीजी इसे सहन नहीं कर सके। इन्होंने अपना ‘सत्याग्रह’ वहीं से आरंभ किया। गाँधीजी में सेवा-भाव कूट-कूटकर भरा था। ये शत्रुओं की भी सेवा तथा सहायता निस्संकोच 5 करते थे। 1897 से 1899 तक ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध छिड़ जानेवाले बोअर-युद्ध में इन्होंने घायलों और पीड़ितों की सेवा की और अपनी जान हथेली पर लेकर ये इसके लिए लड़ाई के मैदान तक गये। 1897 और 1899 में भारत में जब अकाल पड़ा इन्होंने अकाल-पीड़ितों के सहायतार्थ – अफ्रीका में चंदा इकट्ठा किया। डरबन में प्लेग के मरीजों की सहायता के इनके कार्यों से प्रसन्न होकर अँगरेज सरकार ने इन्हें ‘कैसर-ए-हिंद’ की उपाधि दी।

घोर सत्याग्रह-संग्राम के अनंतर जब गाँधीजी अफ्रीका से भारत लौटे तब राष्ट्र ने अपने इन महान नेता का भव्य स्वागत किया। श्री गोपालकृष्ण गोखले के सुझाव पर इन्होंने संपूर्ण राष्ट्र का पर्यटन किया तथा देश की और देश के लोगों की वास्तविक स्थिति समझी। आगे चलकर इन्होंने भारतवर्ष में भी अंगरेजों का अत्याचार कम नहीं हो रहा था। जनता अपने आराध्यदेव के अहमदाबाद में, जो भारत का मैनचेस्टर कहलाता है, साबरमती नदी के किनारे अपने आश्रम की स्थापना की। साबरमती आश्रम राष्ट्रीयता का भारत कथा, जहाँ से समग्र राष्ट्र प्रेरित होता था। गाँधीजी देशसेवा के व्रत में हर क्षण तल्लीन रहते थे और इन्होंने अपना सर्वस्व देशसेवा के लिए सहर्ष उत्सर्ग कर दिया।

स्वागत के लिए पलक पाँवड़े बिछाये बैठी थी। गांधीजी जिधर चलते थे, इनके पीछे लाखों की भीड़ दौड़ पड़ती थी। कवि पं. सोहनलाल द्विवेदी ने ठीक ही कहा है-

चल पड़े जिधर दो पग डगमग
चल पड़े कोटि पग उसी ओर,
पड़ गयी जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गये कोटि दृग उसी ओर।

भारतवर्ष में गाँधीजी का प्रथम कर्मक्षेत्र था, बिहार का चम्पारण। वहाँ निलहे गोरे (नील की खेती के जमींदार और नील के कारखानेदार) किसानों बहुत जुल्म करते थे। 1917 में गाँधीजी के सत्याग्रह से किसानों का शोषण समाप्त हुआ। फिर जीवन का क्षण-क्षण असंख्य क्रांतिकारी और निर्माणकारी घटनाओं से संकुल रहा। 26 जनवरी 1930 को इन्होंने स्वतंत्रता का मंत्रोच्चार किया। अगस्त 1942 में ‘अँगरेजो! भारत छोड़ो!’ का आह्वान किया और इन संघर्षों का शुभ परिणाम हुआ कि 15 अगस्त 1947 को हमारे देश में स्वतंत्रता-देवी का आगमन हुआ। गाँधीजी के भौतिक जीवन का पटाक्षेप 30 जनवरी 1948 को साम्प्रदायिकता के काले हाथों हत्या के रूप में हुआ।

गाँधीजी का संपूर्ण जीवन ही धर्मक्षेत्र था। ये दुर्नीति के दुर्योधन का सदा दर्पदलन करते रहे। ये आजीवन पूरी पृथ्वी पर प्रेम और शांति की अमिय-वृष्टि के लिए संघर्ष करते रहे। ये सत्य और अहिंसा के महान पुजारी थे। इन्होंने अच्छे साध्य के लिए कभी निकृष्ट साधन नहीं स्वीकार किया।

इनके तीन प्रमुख कार्यसूत्र थे—

(1) गुलामी या अत्याचार के विरुद्ध अहिंसक प्रतिरोध अर्थात सत्याग्रह,

(2) राष्ट्र की आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए ग्रामोद्योग और उसका विस्तार और

(3) शोषितों, अल्पसंख्यकों, हरिजनों और महिलाओं के अधिकारों के विषय में प्राथमिकता।

ये हमारे बापू हैं— राष्ट्रपिता। इनका स्थान भारतीय जनता के हृदय में राम और कृष्ण की तरह परमपूज्य तथा अमिट ये सूर्य-स्तवन-श्लोक की तरह नित्य स्मरणीय हैं। महाकवि दिनकर के शब्दों में-

तू कालोदधि का महास्तंभ, आत्मा के नभ का तुंग केतु,
बापू! तू मर्त्य, अमर्त्य, स्वर्ग, पृथ्वी, भू, नभ का महासेतु।
तेरा विराट यह रूप कल्पना-पट पर नहीं समाता है,
जितना कुछ कहूँ मगर कहने को शेष बहुत रह जाता है।
लज्जित मेरे अंगार, तिलक-माला भी यदि ले आऊँ मैं,
किस भाँति उहूँ इतना ऊपर? मस्तक कैसे छू पाऊँ मैं?
ग्रीवा तक हाथ न जा सकते, उँगलियाँ न छू सकतीं ललाट,
वामन की पूजा किस प्रकार, पहुँचे तुम तक मानव विराट्।

Essay On Mahatma Gandhi In Hindi

 

भारत के राष्ट्रपितानव राष्ट्र के निर्माता एवं भाग्य विधाता महात्मा गांधी एक | ऐसे अनूठे व्यक्ति थे जिनके बारे में नाटककार बर्नार्ड शॉ ने उचित ही कहा था। कि आने वाली पीढ़ियाँ बड़ी मुश्किल से विश्वास कर पाएँगी कि कभी संसार | में ऐसा व्यक्ति भी हुआ होगा ।” वे सत्य, अहिंसा और मानवता के पुजारी थे। वे | उन महान पुरुषों में से थे जो इतिहास का निर्माण किया करते हैं। महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास कर्मचन्द गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर1869 ई. को गुजरातकाठियावाड़ प्रान्त में पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता राजकोट रियासत के दीवान थे। उनकी माता पुतलीबाई धार्मिक विचारों वाली सरल-सीधी महिला थीं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा पोरबन्दर तथा राजकोट में हुई। वे 18 वर्ष की अवस्था में यहाँ से मैट्रिक की परीक्षा पास करके बैरिस्टरी पढ़ने के लिए इंग्लैण्ड गए। उनका विवाह तेरह वर्ष की अवस्था में ही कस्तूरबा से हो गया था। जब वे बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे तो उनकी माता का स्नेहांचल उनके सिर से उठ चुका था।

संयोगवश वकालत करते समय एक गुजराती व्यापारी का मुकदमा निपटाने के लिए गांधीजी को दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ जाकर उन्होंने गोरों द्वारा भारतीयों के साथ किए जा रहे दुव्र्यवहार को देखा। वहाँ पर गोरों ने उनके साथ भी दुर्व्यवहार किया। उन्होंने निडरता के साथ गोरों के इन अत्याचारों का विरोध किया, जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। अन्त में उन्हें इसमें सफलता ही मिली।

1915 ई. में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने पर उन्होंने स्वतंत्रता के लिए अनेकों कार्यक्रमों में भाग लिया। उन्होंने अंग्रेजों के रोलट एक्ट का विरोध किया। सम्पूर्ण राष्ट्र ने उनका साथ दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए उन्होंने सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाया। वे अनेक बार जेल भी गए। उन्होंने सत्याग्रह भी किए। बिहार का नील सत्याग्रहडाण्डी यात्रा या नमक सत्याग्रह व खेड़ा का किसान सत्याग्रह गांधी जी के जीवन के प्रमुख सत्याग्रह हैं। गांधी जी ने भारतीयों पर स्वदेशी अपनाने के लिए जोर डाला। उन्होंने सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया। गांधी जी के अथक प्रयत्नों से 15 अगस्त1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। गांधी जी भारत को राम-राज्य के रूप में देखना चाहते थे।

 

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Essay on Gandhiji in Hindi

गांधीजी इस युग के महानतम व्यक्ति थे। उन्होंने भारत को ही नहीं, अपितु संसार की पीड़ित मानवता को सत्य व अहिंसा का अमोघ शस्त्र देकर विश्व को शांति का पाठ पढ़ाया। काठियावाड़ के अंतर्गत पोरबंदर में करमचंद गांधी पहले पोरबंदर, फिर राजकोट और बीकानेर राज्य में दीवान पद पर रहे। उनकी पत्नी पुतलीबाई बड़ी साधु और धर्मनिष्ठ स्वभाववाली थीं। इसी दंपती के यहाँ २ अक्तूबर१८६९ को बालक मोहनदास गांधी का जन्म हुआ। माता की आस्तिकता तथा सत्यपरायणता की बड़ी गहरी छाप बालक पर पड़ी। बाल्यकाल में साधारण शिक्षा हुई। बुद्धि भी विशेष तीव्र न थी। संकोचशील होने के कारण वे और भी अधिक साधारण श्रेणी के प्रतीत होते थे, किंतु वे सत्यनिष्ठ थे।

गांधीजी बचपन में बड़े शांत और सरल प्रवृत्ति के थे। किसी से बात करना गांधीजी को न सुहाता था। उन्होंने मैट्रिक पास किया और उनके कुटुंबियों ने केवल तेरह वर्ष की आयु में उनका विवाह कर दिया। उनको बैरिस्टरी पास करने के लिए विलायत भेज दिया गया। भारत लौटने पर उन्होंने अपनी वकालत आरंभ की और एक मुकदमे के लिए दक्षिण अफ्रीका को प्रस्थान किया। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की दयनीय दशा देखी। वहाँ भारतीयों के साथ पशुओं जैसा व्यवहार किया जाता था। गोरों और कालों के भेद ने गांधी के हदय में ज्वाला-सी उत्पन्न की। गांधीजी ने वैधानिक ढंग से युद्ध छेड़ दिया और नवीनकिंतु अमोघ सत्याग्रह का शस्त्र अपनाया।

दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी जनप्रिय तो हो ही चुके थेफिर भारतीय राजनीति भी मानो उनका स्वागत करने के लिए तैयार खड़ी थी। लोकमान्य तिलक और गोखले भी मैदान में थे। गांधीजी भारतीय स्वतंत्रता के वीर सेनानी बन गए और शनै-शनैभारतीय राजनीति के अगुआ बन गए।

सन् १९९४ के महायुद्ध में भारत को स्वतंत्रता देने की शर्त पर गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार को सहयोग दियाकिंतु युद्ध के बाद अंग्रेजों ने भारत को रोलेट एक्ट और जलियाँवाला कांड आदि ही पुरस्कार में दिए।

नमक सत्याग्रह के पश्चात् आपको १९३१ में गोलमेज कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित किया गया। १९३७ में आपकी सहमति से कांग्रेस ने विभिन्न प्रांतों में अपने मंत्रिमंडल बनाए और १९३९ के महायुद्ध में भारतीयों की सहमति लिये बिना अंग्रेजों ने भारत को युद्ध में सम्मिलित राष्ट्र घोषित कर दिया। गांधीजी ने इसका विरोध किया। वह सांप्रदायिकता के कट्टर शत्रु थे। उन्होंने प्राणों की बाजी लगाकर सांप्रदायिकता की जड़ को हिला दिया। १९४२ में उन्होंने जो आंदोलन छेड़ा, उससे अंग्रेजों ने मन में समझ लिया कि अब हमें भारत से जाना ही होगा। गांधीजी की नीति की विजय हुई और १९४७ में भारत स्वतंत्र हुआ।

३० जनवरी१९४८ की संध्या को नाथूराम गोडसे ने रिवाल्वर की तीन गोलियों से भारत के महान् संतविश्व की पीड़ित मानवता के एकमात्र सहारे और विश्व के महानतम व्यक्ति को इस संसार से विदा कर दिया। जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, ‘प्रकाश बुझा नहीं, क्योंकि वह तो हजारोंलाखों व्यक्तियों के हृदय को प्रकाशित कर चुका था।”

गांधीजी नेताविचारक और आध्यात्मिक पुरुष थे। वह हमें स्वतंत्र करा गएसंसार को शांति और सत्य का मार्ग बता गए तथा भारत की कीर्ति को विश्व में फैला गए। उनकी मृत्यु से संसार के सभी इंडे झुक गए। सभी ने उनको श्रद्धांजलियाँ दीं। वे अमर हो गए और भारत की कीर्ति को अमर कर गए। वे इस युग के सबसे महान् पुरुष थे, यद्यपि शारीरिक गठन के नाते अत्यंत क्षीण थे तथा उनकी आकृति से कोई भी गुण प्रकट नहीं होता था। उन्होंने शताब्दियों से सोए हुए भारतवर्ष को जाग्रत किया तथा देश में आत्मसम्मान की लहर दौड़ाई। वे सत्य तथा अहिंसा के पक्षपाती थे। उनका चरित्र केवल भारतवासियों के लिए ही नहीं, अपितु विदेशियों के लिए भी अनुकरणीय है। भारत को एक महान् राष्ट्र बनानेवाले वे ही थे। इसीलिए वे राष्ट्रपिता अथवा बापू कहलाए।

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एशिया के चमत्कारी पुरुष महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात में हुआ। वह अहिंसा के समर्थक एव सत्य के प्रचारक थे। उनका जन्म एक धनी मानी परिवार में हुआ। उन्होंने सत्रारह वर्ष की उम्र में अपनी प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की। अपने विद्यालय के दिनों में वह बहुत शर्मीले स्वभाव के थे। वह कानून की पढ़ाई पढ़ने इंग्लैंड गये व बैरिस्टर’ बन कर लौटे। भारत आकर उन्होंने बम्बई हाईकोर्ट में प्रैक्टिसकरनी प्रारम्भ की। किन्तु वह कानून के पेशे में संतुष्ट नहीं थे। अत: वह भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े। वह दक्षिण अफ्रीका भी गये। वहाँ उन्होंने भारतीयों की दशा सुधारने के लिये भ्रसक प्रयत्न किये। वहां उन्हें बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ा किन्तु वह अपने उसूलों पर डटे रहे।

 

भारतीय राजनीति में उनका मार्गदर्शन सदैव स्मरण रहेगा। भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के तुफानी दिनों में गाँधी जी ने बहुत कष्ट उठाये एवं कई बार जेल गये। किन्तु अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिये डटे रहे। उन्होंने कांग्रेस की राजनीति का पथ प्रदर्शन किया एवं ‘भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया और बहुत बार जेल जाना पड़ा। उनका सम्पूर्ण जीवन सेवा, त्याग निष्ठा एवं आस्था को समर्पित था। यह संत पुरुषविचारक लेखक एवं सुवक्ता थे। जो भारत को राजनीति के आकाश में अभी भी एक सितारे की तरह चमकते हैं।

30 जनवरी 1948 को उनकी आकस्मिक हत्या से सारे भारतवासी हिल गये। नाथू राम गोड़से ने गोली मार कर उनकी हत्या की। शान्ति एवं प्रजातन्त्र के लिये उनकी मृत्यु एक जबरदस्त धक्का था। लार्ड माउंटबेटेन ने एक बार कहा था – “भारत, असल में विश्व ऐसे व्यक्ति को युगों तक नहीं देख पायेगा। उनकी मृत्यु से राष्ट्र में एक खालीपन आ गया। सम्पूर्ण विश्व आज भी बीसवीं सदी के इस अनुभवी सिपाही का सम्मान करता है जो वक्त की रेत पर अपने निशां छोड़ गया। भारत उन्हें राष्ट्रपिता बापू के नाम से जानता है।

दक्षिण अफ्रीका से लौटने के पश्चात् गाँधी जी ने राजनीति में प्रवेश किया। वह अंग्रेजों के राज्य में भारतीयों की दयनीय दशा को सहन नहीं कर पाये। भारत भूमि से अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने के लिये उन्होंने सर्वस्व त्याग दिया। उनका पूर्ण जीवन त्याग एवं तपस्या का आख्यान है। स्वतंत्रता गाँधी जी के जीवन का लक्ष्य था। सन् 1919 में उन्होंने अहिंसक एवं शान्ति पूर्ण आन्दोलन प्रारम्भ किया। हिन्दु मुस्लिम एकता, अस्पृश्यता का अन्त एवं स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग जीवन पर्यन्त उनके जीवन लक्ष्य थे। महात्मा गाँधी दृढ़ व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। असल में वह एक उत्तम आत्मा के स्वामी थे।

वह साधारण कपड़े पहनते थे एवं सादा भोजन करते थे। वह केवल शब्दों पर नहीं बल्कि कार्य करने में विश्वास रखते थे। जिसका वह उपदेश देते थे उन बातों का अनुसरण भी करते थे। विभिन्न समस्याओं के संदर्भ में उनका अभिगम अंहिसक था। वह धर्मभीरू थे। वह सभी के आंखों के तारे थे। उन्हें हर प्रकार के जातिवाद से नफरत थी। वह सभी के मित्र थे एवं उनका कोई भी शत्रु नहीं था। सभी उन्हें पसन्द करते थे और प्यार करते थे।

 

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राष्ट्रपिता मोहन दास कर्मचंद गांधी महात्मा गांधी) का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के काठियावाड़ प्रांत में पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। महात्मा गांधी के इस जन्म दिवस को समूचा राष्ट्र एक राष्ट्रीय पर्व के तौर पर मनाता है। इस दिन सरकारी कार्यालयों, संस्थानों व स्कूलों में अवकाश रहता है। 2 अक्टूबर के दिन राजधानी दिल्ली में स्थित राजघाट, जहां पर गांधीजी की समाधि है, पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व अन्य गण्यमान व्यक्ति जाते हैं और वे वहां पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इसी तरह अन्य सरकारी व गैरसरकारी संस्थानों, स्कूलों व शैक्षिक संस्थानों में गांधीजी की राष्ट्र के प्रति की गयी सेवाओं का स्मरण किया जाता है और उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। भारत के राष्ट्रपिता, नव राष्ट्र के निर्माता एवं भाग्य विधाता महात्मा गांधी एक ऐसे अनूठे व्यक्ति थे जिनके बारे में नाटककार बर्नार्ड शॉ ने उचित ही कहा था कि आने वाली पीढियां बड़ी मुश्किल से विश्वास कर पाएंगी कि कभी संसार में ऐसा व्यक्ति भी हुआ। होगा।” वे सत्यअहिंसा और मानवता के पुजारी थे। वे उन महान् पुरुषों में से थे जो इतिहास का निर्माण किया करते हैं।

महात्मा गांधी के पिता राजकोट रियासत के दीवान थे। उनकी माता पुतलीबाई धार्मिक विचारों वाली सरल-सीधी महिला थीं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा पोरबन्दर तथा राजकोट में हुई । वे 18 वर्ष की अवस्था में यहां से मैट्रिक की परीक्षा पास करके बैरिस्टरी पढ़ने के लिए इंग्लैंड गए। उनका विवाह तेरह वर्ष की अवस्था में ही कस्तूरबा से हो गया था। जब वे बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे तो उनकी माता का साया उनके सिर से उठ चुका था। संयोगवश वकालत करते समय एक गुजराती व्यापारी का मुकदमा निपटाने के लिए गांधीजी को दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहां जाकर उन्होंने गोरों द्वारा भारतीयों के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार को देखा। वहां पर गोरों ने उनके साथ भी दुर्यवहार किया। उन्होंने निडरता के साथ गोरों के इन अत्याचारों का विरोध कियाजिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। अन्त में उन्हें इसमें सफलता ही मिली।

 

1915 ई. में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने पर उन्होंने स्वतंत्रता के लिए अनेक कार्यक्रमों में भाग लिया। उन्होंने अंग्रेजों के रोलट एक्ट का विरोध किया। सम्पूर्ण राष्ट्र ने उनका साथ दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए उन्होंने सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाया। वे अनेक बार जेल भी गए। उन्होंने सत्याग्रह भी किए। बिहार का नील सत्याग्रह डाण्डी यात्रा या नमक सत्याग्रह व खेड़ा का किसान सत्याग्रह गांधीजी के जीवन के प्रमुख सत्याग्रह हैं। गांधीजी ने भारतीयों पर स्वदेशी अपनाने के लिए जोर डाला। उन्होंने सन् 1942 में भारत छोड़ो’ आंदोलन चलाया। गांधीजी के अथक प्रयत्नों से 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। गांधीजी भारत को एक आदर्श रामराज्य के रूप में देखना चाहते थे। गांधीजी छूतछात में विश्वास नहीं रखते थे। उनका सारा जीवन अछूतोद्धार ग्राम सुधार, नारी शिक्षा और हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए संघर्ष करने में बीता। 30 जनवरी सन् 1948 को दिल्ली की एक प्रार्थना सभा में जाते समय एक हत्यारे नाथूराम गोडसे ने गांधीजी पर गोलियां चला दीं। उन्होंने वहीं पर ‘हे राम’ कहते हुए अपने प्राण त्याग दिए। गांधीजी मर कर भी अमर हैं।

 

‘आने वाली पीढ़ियाँ शायद मुश्किल से ही यह विश्वास कर सकेंगी कि गांधीजी जैसा हाड़-माँस का पुतला कभी इस धरती पर हुआ होगा। ” अलबर्ट आइन्स्टीन का उपयुक्त कथन आज के इन आतंकवादी, बर्बर और जघन्य अमानवीय कृत्यों को देखकर सचमुच बहुत कुछ सोचने पर विवश कर देता है। गांधी मात्र हाड़ माँस के व्यक्ति ही नहीं थे, बल्कि वे एक सम्पूर्ण विचारात्मक आंदोलन थे, सामयिक दर्शन थे और पूरन्देशी युग पुरुष थे। महात्मा बुद्ध के बाद शांति के वे ऐसे मसीहा थे, जिन्होंने सत्य, अहिंसा के व्यापक महत्व को समझा और अपने में आत्मसात कर क्रियान्वित भी किया। जैसा वे कहते करके भी दिखाते थे। वे समग्र मानवता के कल्याण और सर्वोदय के लिए जीवन भर प्राणपण से जुटे रहे।

काठियावाड़ की रियासत पोरबंदर के दीवान करमचंद गांधी को 2 अक्टूबर, 1869 के दिन पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पारिवारिक प्यार से मोनिया के नाम से पुकारे जाने वाले मोहनदास आने वाले कल के विश्वविख्यात सत्य-अहिंसा-शान्ति के अग्रदूत होंगे। उस समय यह कौन जानता था। ? बचपन में ही भगवद्गीता व धार्मिक वातावरण के साथ ‘श्रवण कुमार की पितृभक्ति’ और सत्यवादी हरिश्चन्द्र नामक पुस्तकों का उनके शिशु मन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। हालांकि बाल्यावस्था की नासमझी में चोरी, झूठधूम्रपान धोखा, अविश्वास जैसे निंदनीय कार्य करने वाले बालक गांधी एक बदनाम मित्र के बहकावे में आकर कोटे की सीढ़ियाँ तक चढ़ गए थे। इन घटनाओं को देखकर स्पष्ट होता है कि एक सामान्य व्यक्ति को असामान्य बनने में कैसे कठिन संघर्ष से गुजरना पड़ा होगा। गांधी की आंतरिक इच्छा डॉक्टर बनने की थी, किन्तु पैतृक पेशा दीवानगीरी के लिए उन्हें बैरिस्टर बनने के लिए प्रेरित किया गया। इंग्लैण्ड प्रवास में वे शिक्षा ग्रहण करते हुए माँस-मदिरा तथा सुंदरियों के मोहपाश से विलग रहे। बैरिस्टर बनने के बाद गांधी में काफी परिवर्तन हुआ था।

इंग्लैण्ड से वापस लौटते समय तक गांधीजी भाषण देना नहीं जानते थे, पर विदाई बेला में कुछ बोलना था ही। गांधी के दिमाग में एडीसन की घटना आई। एडीसन को ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में बोलना था। वे खड़े होकर ‘आई कंसीव, आई कंसीव, आई कंसीव’ तीन बार बोले और बैठ गए। अंग्रेजी में कंसीव का अर्थ ‘मेरी धारणा है’ के अतिरिक्त गर्भ ठहरना भी होता है। बस फिर तो एक सिरफरे ने एडीसन की इस दशा पर छींटाकशी कर ही दी-‘इन सज्जन ने तीन बार गर्भ तो धारण किया, मगर जना कुछ भी नहीं’ हाउस में जोरदार ठहाके लगे। गांधी ने इसी घटना का उल्लेख कर भाषण शुरू करके अपनी कमजोरी छिपाने का मन तो बना लिया पर खड़े होकर बोलने का साहस न जुटा सके। ‘धन्यवाद’ कहकर बैठ गएलेकिन आगे चलकर वही गांधी मानव उत्थान के लिए शांति का संदेश देने में कितने निपुण सिद्ध हुए। इतिहास साक्षी है कि शांति और अहिंसात्मक तरीकों को अपना हक और न्याय प्राप्त करने का सबल अस्त्र मानने वाले गांधी ने इन अमोघ अस्त्रों से उस ब्रिटिश साम्राज्यवादी शक्ति को पस्त कर दियाजिसके साम्राज्य में सूर्य नहीं डूबता था। आज भी विश्व में अन्याय और शोषण के विरूद्ध गांधीवादी दृष्टिकोण अपनाया जाता है। राजनीतिक आंदोलन चलाने वाली सत्ताहीन या सत्ताधारी शक्तियाँ अथवा नैतिक संघर्ष पर आमादा पार्टियाँ सभी अहिंसा की पक्षधर हैं। गांधीवाद की यही प्रासंगिकता है।

 

महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका प्रवास पर यदि हम एक विहंगम दृष्टि डाले तो स्पष्ट होगा कि एक साधारण से व्यक्ति के रूप में पहुँचे गांधी ने 22 वर्ष की लम्बी लड़ाई में अपमान, भूखमानसिक संताप व शारीरिक यातनाएँ झेलते हुए न केवल राजनीतिक, बल्कि नैतिक क्षेत्र में जो उपलब्धियाँ प्राप्त कीं, उसकी मिसाल अन्यत्र मिलना असम्भव है। इसी 22 वर्ष के गहन अनुभवों से भारत की बागडोर अपने हाथ में लेना गांधी की विवशता थी।

गांधीजी की भक्त अंग्रेज महिला मेडेलिन स्लेड जो मीरा बहन के नाम से विख्यात हुईलिखती हैं, ‘मैंने जैसे ही साबरमती आश्रम में प्रवेश किया तो एक गेहूँवण प्रकाश पुंज मेरे समक्ष उभरा और मेरे मनमस्तिष्क पर छा गया।” गांधी के प्रति लोगों में ऐसी ही पावन आस्था थी। डांडी यात्रा में 24 दिनों तक लगातार पैदल चलकर समुद्र के पानी को सुखाकर बनाया हुआ थोड़ा सा नमक उठा लेने की बात, वायसराय को नाटकीय और मूर्खतापूर्ण लगी होगी। पर धोती धारी इस क्षीणकाय महामानव के इस नाटकीय कार्य से पूरे देश में खलबली मच गई। नमक कानून के उल्लंघन की यह प्रतीकात्मक घटना जनस्फूर्ति के लिए रामबाण सिद्ध हुई। 29 जनवरी को गांधी ने अपनी भतीजी पौत्री मनु से कहा था, ‘‘यदि किसी ने मुझ पर गोली चला दी और मैंने उसे अपनी छाती पर खेलते हुए होठों से राम का नाम ले लिया तो मुझे सवा महात्मा कहना।'” और यह कैसा संयोग था कि 30 जनवरी को उस महात्मा को मनोवांछित मृत्यु प्राप्त हो गई। संवेदित स्वरों में लार्ड माउंटबेटन ने ठीक ही कहा था, “सारा संसार उनके जीवित रहने से सम्पन्न था और उनके निधन से वह दरिद्र हो गया है।”

 

रूसी ऋषि टालस्टाय की अनुमति और आशीर्वाद से दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग से 22 मील 1100 एकड़ धरती पर ‘टालस्टाय फार्म’ की स्थापना हुईजिसके सूत्रधार थे-जर्मनी के वास्तुशिल्पी काले नवाब साहब। वे टालस्टाय के भक्त और गांधी के अभिन्न मित्र थे, वहीं सहशिक्षा के दौरान एक छात्र-छात्रा के संसर्ग के मामले से तूफान उठ खड़ा हुआ तो गांधी ने प्रायश्चित बतौर स्वयं सात दिन का उपवास रखकर एक नई दिशा प्रदान की। गांधी के कुल अठारह उपवासों में यह प्रथम उपवास था और इसका अच्छा परिणाम निकला।

गांधीजी की आजीवन यही मान्यता रही कि अपनी तपस्या के बल से ही दूसरों का हदय परिवर्तन किया जा सकता है। गांधी के इस अफ्रीकी सत्याग्रह में कालेनबाक, श्रीमती पोलक एवं कु. श्लेसिन तीन विदेशी मित्रों का भरपूर सहयोग रहा। गांधी की स्पष्ट नीति थी कि वे कभी दूसरे को पराजित करके स्वयं विजयी नहीं बनते थे, बल्कि उसे प्रभावित करके अपना बना लेते थे।

उनके भारत लौटने पर गुरूदेव टैगोर ने कहा था, ‘भिखारी के लिबास में एक महान आत्मा लौटकर आई है।” सोने की खानों के देश से गांधी अनुभव की ऐसी पूंजी लेकर ही महान हुए थे।

सन् 1919 से लेकर 1948 में अपनी मृत्यु तक भारत के स्वाधीनता आंदोलन के महान ऐतिहासिक नाटक में गांधी की भूमिका मुख्य अभिनेता की रही। उनका जीवन उनके शब्दों से भी बड़ा था, चूंकि उनका आचरण विचारों से महान था और उनकी जीवन प्रक्रिया तर्क से अधिक सृजनात्मक थी। अंग्रेजों के विश्वासघात ने गांधी को 1921 में असहयोग आंदोलन छेड़ने को विवश कर दिया। इस आंदोलन से देश की समस्त जनता में अपूर्व जागृति उत्पन्न हुई। चौरी-चौरा आदि स्थानों पर हिंसात्मक घटनाओं को देखकर गांधी ने आंदोलन स्थगित कर दिया। सन 1930 में गांधी ने पुन: सविनय अवज्ञा आन्दोलन का व्यापक प्रदर्शन कर दिखाया।

अंग्रेजी हुकूमत ने सख्ती से दमन चक्र किया। स्वतंत्रता की अग्नि और भड़क उठी। 26 जनवरी, 1930 को हिन्दुस्तान के करोड़ों लोगों ने पूर्ण स्वराज की शपथ ली थी। अत26 जनवरी को ही स्वाधीन भारत का संविधान लागू कर इस दिन को गणतंत्र दिवस की गरिमा प्रदान की गई है।

महात्मा गांधी पर निबंध

भारतवासी महात्मा गाँधी को ‘राष्ट्रपिता’ या ‘बापू’ कहकर पुकारते हैं। वह अहिंसा के अवतार, सत्य के देवता, अछूतों के प्राणाधार एवं राष्ट्र के पिता थे। इस महामानव ने ही दीन-दुर्बल, उत्पीड़ित भारतमाता को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त कराया था। महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को काठियावाड़ के अंतर्गत पोरबंदर नामक स्थान पर एक संभ्रान्त परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनचंद करमचंद गाँधी है। इनके पिता करमचंद गाँध राजकोट में दीवान थे। इनकी माता पुतलीबाई थी जो एक धर्मपरायण और आदर्श महिला थीं। गाँधीजी का विवाह कस्तूरबा के साथ हुआ था। वह शिक्षित नहीं थीं, फिर भी उन्होंने आजीवन गाँधीजी को सहयोग दिया था।

गाँधीजी की प्रारंभिक शिक्षा राजकोट में हुई थी। मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके 1888 में वह कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैण्ड चले गए। 1891 में जब वह बैरिस्टर होकर भारत लौटे, तो उनकी माँ का देहांत हो गया। गाँधीजी ने मुंबई से वकालत आरंभ की। वह गरीबों के मुकद्दमे मुफ्त में लड़ा करते थे। 1893 में उन्हें एक गुजराती व्यापारी के मुकद्दमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ उन्हें अनेकों कष्टों का सामना करना पड़ा। अदालत में उन्हें पगड़ी उतारने के लिए कहा गया और रेलगाड़ी के प्रथम क्लास के डिब्बे से उन्हें धक्का मारकर उतार दिया गया। लेकिन वह टस से मस नहीं हुए और अंत में तत्कालीन प्रधानमंत्री जनरल स्मट्स को झुकना पड़ा। इस तरह गाँधीजी के अथक प्रयासों से वहाँ भारतीयों को सम्मानपूर्ण दर्जा प्राप्त हुआ।

20 वर्ष अफ्रीका में रहकर भारत लौटने पर गाँधीजी का भव्य स्वागत किया गया। भारत लौटने के बाद गाँधीजी ने पराधीन भारतीयों की दुर्दशा देखी, और उन्होंने पराधीन भारत की बेड़ियाँ काटने का निश्चय किया। उन्होंने अहमदाबाद के निकट साबरमती के तट पर एक आश्रम की स्थापना की। यहीं रहकर गाँधीजी ने करोड़ों भारतीयों का मार्गदर्शन किया। 1929 में गाँधीजी ने ‘साइमन कमीशन’ का बहिष्कार किया।

1930 में दाण्डी में नमक सत्याग्रह करके नमक कानून को तोड़ा। 5 मार्च, 1931 को गाँधी-इरविन समझौता हुआ और अंग्रेज़ों को ‘नमक कानून’ वापस लेना पड़ा। सन् 1942 में गाँधीजी ने अंग्रेज़ो भारत छोड़ो’ का नारा लगाया। इसके परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। और इस प्रकार भारत स्वतंत्र हो गया।

30 जनवरी, 1948 को एक युवक नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर गाँधीजी की हत्या कर दी। गाँधीजी ने हरिजनों के उत्थान के लिए हरिजन पत्रिका’ का संपादन किया था। ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ उनका मूल मंत्र था। सत्य और अहिंसा उनके दिव्य अस्त्र थे। ‘सत्याग्रह’ उनका संबल था और ‘रामराज्य’ उनका सपना था, जिसे हम उनके आदर्शों पर चलकर ही पूरा कर सकते हैं।

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Written by

Romi Sharma

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