शिक्षा पर निबंध Essay on Education in Hindi 2018 Latest

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हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाया हु Essay on Education in Hindi पर पुरा आर्टिकल लेकर आया हु। शिक्षा बहुत ही जरुरी है क्योकि शिक्षा ही एकमात्र हथियार है जिससे आप अपने परेशानियों को खत्म कर सकते हो इसलिए हम आपसे अनिरोद करते है की आप शिक्षा पर पूरा ध्यान दे।इस आर्टिकल में हम आपके लिए लाये है Essay on Education in Hindi की पूरी जानकारी जो आपको अपने बच्चे का होमवर्क करवाने में बहुत मदद मिलेगी। 

 

शिक्षा पर निबंध Essay on Education in Hindi

Essay on Education in hindi

शिक्षा ज्ञानवर्धन का साधन है। सांस्कृतिक जीवन का माध्यम है। चरित्र की निर्माता है। जीवनोपार्जन का द्वार है। अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग करते हुए जीवन जीने के कला के साथ-साथ व्यक्तित्व के विकास का पथ-प्रदर्शन भी है। मानव विकास का मापदण्ड ज्ञान है। ज्ञान से बुद्धि प्रशिक्षित होती है तथा मस्तिष्क में विचारों का जन्म होता है। यह विचार विवेक जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता का साधन है। शारीरिक हो या मानसिक, आधि हो या व्याधि, समस्याएँ हों या संकटसभी का समाधान ज्ञान की चाबी से होता है। ज्ञान प्राप्ति के लिए शिक्षा-ज्ञान प्राप्ति शिक्षा का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।

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आधुनिक सभ्यता शिक्षा के माध्यम द्वारा ज्ञान प्राप्त करके विकसित हुई है। न तो ज्ञान अपने आप में सम्पूर्ण शिक्षा है, न ही शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य, यह तो शिक्षा का मात्र एक भाग है और एक साधन है। अतशिक्षा का उद्देश्य सांस्कृतिक ज्ञान की प्राप्ति होना चाहिए ताकि मानव सभ्य शिष्टसंयत बने, साहित्य, संगीत और कला आदि का विकास कर सके।

जीवन को मूल्यवान् बनाकर जीवन स्तर को ऊंचा उठा सके। साथ ही आने वाली पीढ़ी को सांस्कृतिक धरोहर सौंप सके। चरित्र के लिए शिक्षा-चरित्र का अर्थ है, ‘वे सब बाते जो आचरणव्यवहार आदि के रूप में की जायें।’ प्लूटार्क के अनुसार, ‘चरित्र केवल सुदीर्घकालीन आदत है।’ वाल्मीकि का कथन है, ‘मनुष्य के चरित्र से ही ज्ञात होता है कि वह कुलीन है या अकुलीन, वीर है या भी, पवित्र है या अपवित्र।’ चरित्र दो प्रकार का होता है-अच्छा और बुरा सच्चरित्र ही समाज की शोभा है।

इसके निर्माण का दायित्व वहन करती है शिक्षा। गांधीजी के शब्दों में ‘चरित्र शुद्धि ठोस शिक्षा की बुनियाद है।’ इसलिए डॉ. डी. एनखोखला का कहना है, शिक्षा का उद्देश्य सांवेगिक एवं नैतिक विकास होना चाहिए। एक अच्छा इंजीनियर या डॉक्टर बेकार है, यदि उसमें नैतिकता के गुण नहीं। कारण, चरित्र हीन ज्ञानी सिर्फ ज्ञान का भार होता है। वास्तविक शिक्षा मानव में निहित सद्गुण एवं पूर्णत्व का विकास करती है।

 

व्यवसाय के लिए शिक्षा-व्यवसाय का अर्थ है, ‘जीवन निर्वाह का साधन’। इसका अर्थ यह है कि शिक्षा में इतनी शक्ति होनी चाहिए कि वह ‘अर्थकारी हो अर्थात् शिक्षित व्यक्ति की रोजी-रोटी की गारण्टी ले सके। गांधीजी के शब्दों में, ‘सच्ची शिक्षा बेरोजगारी के विरुद्ध बीमे के रूप में होनी चाहिए।’ जीने की कला की शिक्षाशिक्षा के ऊपर लिखे चारों उद्देश्य-ज्ञान प्राप्ति, संस्कृति, चरित्र तथा व्यवसाय के लिए एकांगी हैं, स्वत: सम्पूर्ण नहीं। जीवन के लिए चाहिए, ‘जीने की कला की शिक्षा शिक्षा जीवन की जटिल प्रक्रिया और दु:ख, कष्ट , विपत्ति में जीवन को सुखमय बनाने की क्षमता और योग्यता प्रदान करे । स्पैन्सर शिक्षा में एक व्यापक उद्देश्य अर्थात् सम्पूर्ण जीवन के सभी पक्ष में सम्पूर्ण विकास का समर्थन करता है।

वह पुस्तकालीयता का खंडन करता है तथा परिवार चलाने, सामाजिक, आर्थिक सम्बन्धों को चलाने तथा भावनात्मक विकास करने वाली क्रियाओं का समर्थन करता है। इन क्रियाओं में सफलता के पश्चात् व्यक्ति आगामी जीवन के लिए तैयार हो जाता है। व्यक्तित्व विकास के लिए शिक्षा महादेवी जी की धारणा है कि शिक्षा व्यक्तित्व के विकास के लिए भी है और जीवकोपार्जन के लिए भी।

अत: उसका उद्देश्य दोहरा हो जाता है। स्वतंत्र भारत का उत्तरदायित्वपूर्ण नागरिक होने के लिए विद्यार्थी वर्ग को चरित्र की आवश्यकता थी, जो व्यक्तित्व विकास में ही सम्भव थी, जीवकोपार्जन की क्षमता सबका सामाजिक प्राष्य थी। दोनों अन्तबाह्यय लक्ष्यों की उपेक्षा कर देने से शिक्षा एक प्रकार से समय बिताने का साधन हो गई। यह उपेक्षापूर्ण सत्य तब प्रकट हुआ।

जब विद्यार्थी ने शिक्षा के सब सोपान पार कर लिए। व्यक्तित्व विकास के लक्ष्य के अभाव ने विद्यार्थी के आचरण को प्रभावित किया और आजीविका के अभाव ने उसे परजीवी बनाकर असामाजिक कर दिया।’

 

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शिक्षा पर निबंध Essay on Education in Hindi

वर्तमान में शिक्षा-प्रणाली का अर्थ है शिक्षा देने की पद्धति। वर्तमान शिक्ष6 प्रणाली से अभिप्राय है शिक्षा का वह ढाँचाजो आजकल हमारे स्कूलों और कॉलेजों में प्रचलित है। आज जिस तरह से हमारे विद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षा दी जा रही है, यह भारतीय प्रणाली नहीं है। अंग्रेजों के शासन काल में इस प्रणाली का प्रारंभ हुआ था और देश के स्वतंत्र हो जाने के इतने वर्ष बाद भी हम उसी शिक्षा-प्रणाली को अपनाए हुए हैं।

प्राचीन काल में हमारा देश अपनी विद्या और ज्ञान के लिए प्रसिद्ध था। दूरदूर के देशों से लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए आया करते थे। यहाँ बड़ेबड़े विश्वविद्यालय थे, जिनमें से तक्षशिला और नालंदा का नाम तो प्राय: सभी जानते हैं। अंग्रेजों के आने से पूर्व ही यह शिक्षा प्रणाली प्राय: समाप्त हो चुकी थी। मुसलमानों के लंबे शासन काल में इस शिक्षा-प्रणाली का हास आरंभ हो गया था।

शिक्षा का उद्देश्य क्या है ? यदि इस प्रश्न पर विचार किया जाए तो आधुनिक शिक्षा प्रणाली से इसका कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता। आज के शिक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य बालक के व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास करना है, पर विश्वविद्यालयों और विद्यालयों के शिक्षाक्रम तथा विद्यार्थियों की रुचि देखने से तो प्रतीत होता है कि इसका उद्देश्य नौकरी तक ही सीमित रह गया है। विद्यार्थी परीक्षार्थी बन गए हैंविद्यार्थी तो बहुत कम दिखाई देते हैं।

सभी को यही धुन रहती है कि किस तरह अमुक परीक्षा पास कर ली जाए और उसके बाद अमुक नौकरी मिल जाए तो हमारी मेहनत सफल होगी।
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आए दिन विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता के समाचार पढ़ने को मिलते हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे आज की शिक्षा-प्रणाली के कारण आज का विद्यार्थी आदर्श भ्रष्ट हो गया है । उसे स्वयं पता नहीं कि देश या समाज के प्रति उसका दायित्व क्या है ! देशभक्ति की भावना उसमें बहुत कम दिखाई देती है। नारे लगाने या हड़ताल करने के लिए वह सदा तैयार रहता है ।

प्राचीन विद्या के समान उसमें ज्ञान प्राप्त करने या कुछ सीखने की चाह नहीं हैजितना समय वह विद्यालय में बिताता है, उतने समय तक परीक्षा की पिशाचिनी उसका खून चूसती रहती है। यदि कहीं सौभाग्य से वह इनसे छुटकारा पाने में सफल हो गया तो नौकरी दानवी मुंह खोलकर उसका ग्रास करने के लिए तैयार दिखाई देती है । बड़े दु:ख का विषय है कि आज की शिक्षा हमारे अभावों को दूर करने की बजाय हमारे अभावों का कारण बन रही है।

आज का शिक्षित अपने आपको न जाने क्या समझने लग जाता है। मजदूरी से उसे नफरत है। खेतीबारीदुकानदारी आदि पिता-दादा के धंधे उसे अपने मान के अनुकूल नहीं प्रतीत होते। संक्षेप , आज की शिक्षा-प्रणाली हमारे अच्छे गुणों का विकास न करके, हममें झूठा अभिमान पैदा कर रही है।

विद्या से प्राप्त होनेवाली नम्रता उसमें नहीं है। देश के नेताओंविद्वानों और शिक्षाशास्त्रियों को जितना इस विषय में चिंतन करना चाहिए था, वे उतने चिंतित प्रतीत नहीं होते। आचार्य विनोबा भावे के शब्दों , “सेना पर आठ सौ करोड़ रुपया खर्च होता है, यह भी मुझे उतना खतरनाक नहीं मालूम होता, जितनी खतरनाक आज की शिक्षा-प्रणाली मालूम होती है।”

 

वास्तव में परीक्षाएँ ही शिक्षा का माध्यम बन गई हैं, जो किसी प्रकार से योग्यता और परिश्रम का मापदंड नहीं है। आज जिन लोगों के हाथ में शासन है, यदि ठीक समय पर उन्होंने शिक्षाप्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन न किए तो हमारा लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। लोकतंत्र की सफलता इसी में है कि देश की जनता शिक्षित हो और अपने मत का मूल्य समझे। वर्तमान शिक्षाप्रणाली को सुधारने के लिए निम्नलिखित बातों को अपनाना आवश्यक होगा

(क) विद्यालयों में पढ़ाए जानेवाले विषयों का दैनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान हो। उन विषयों की जीवन में उपयोगिता हो, ताकि शिक्षा समाप्त होने के पश्चात् आजीविका पैदा करने में उन विषयों से कुछ सहायता प्राप्त हो सके।

(ख) शिक्षाक्रम में औद्योगिक तथा शिल्प संबंधी विषयों का स्थान हो, जिनसे शिक्षा और प्रतिदिन के जीवन के कामों में निकटता बनी रहे।

(ग) शिक्षा में शारीरिक परिश्रम संबंधी विषयों को भी उचित स्थान दिया जाए जिससे सभी वर्ग के विद्यार्थी लाभ उठा सकें। कृषि संबंधी तथा इस प्रकार के अन्य विषयों को पढ़कर विद्यार्थी मजदूरी से घृणा नहीं करेंगे और पढ़लिखकर केवल कुरसी की नौकरी के लिए भटकते नहीं रहेंगे। इस दिशा में बहुद्देशीय विद्यालय विशेष रूप से सहायक हो सकते हैं।

(घ) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो। सभी विषयों को आजकल अंग्रेजी भाषा में पढ़ने वाले विद्यार्थी पचास प्रतिशत बातें तो इसलिए नहीं समझ पाते कि विदेशी भाषा में उन्हें अपने विषय पढ़ने ही होते हैं।

 

(ड) शिक्षालयों में व्यक्तिगत चरित्र-निर्माण और सदाचार संबंधी बातों का भी आवश्यक प्रबंध होना चाहिए। अध्यापक लोग केवल पढ़ाने तक ही सीमित न रहें, अपितु वे सच्चे अर्थों में शिक्षक हों।

कोठारी आयोग की सिफारिशों को भारत सरकार ने 1978 में स्वीकार किया था। उसके अनुसार 10 + 223 की प्रणाली पहले दिल्ली राज्य में लागू की गई। इसमें विद्यार्थी के बहुमुखी विकास की व्यवस्था की गई है। इसमें हाथ के कामविज्ञान की शिक्षा आदि पर बल दिया गया है। अब यह प्रणाली सारे देश में लागू की जा रही है। आशा है, इससे हमारी शिक्षा पद्धति समय के अनुकूल सही सिद्ध हो सकेगी।

 

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Written by

Romi Sharma

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