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मेरा भारत महान पर निबन्ध – Essay on Mera Bharat Mahan in Hindi
मेरा देश-भारतवर्ष विश्व में महान है। सम्पूर्ण एशिया महाद्वीप में इसे विशिष्ट स्थान प्राप्त है। इसे हम अनेकों नामों से पुकारते आ रहे हैं। आर्यों का मूल निवास होने के कारण यह पुरातन युग में आर्यावर्तनाम से पुकारा जाता था। विश्व के अन्य देश इसे ‘सोने की चिड़ियानाम से भी जानते थे। हिन्दुओं की भूमि होने के कारण आजकल इसे हिन्दुस्तान’ भी कहा जाता है। राजा दुष्यंत के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा है। मेरा भारत भूत तथा वर्तमान में सदा ही विश्व का मार्गदर्शक रहा है। यहाँ की सभ्यता और संस्कृति विश्व की संस्कृतियों की जननी रही है।
यह नगराज का हिमकिरीट धारण किए हुए है। यह उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक और पूर्व में असम से लेकर पश्चिम में गुजरात तक फैला हुआ है। इसकी धरा को गंगायमुना, सतलुज कृष्णा कावेरी गोदावरी ब्रह्मपुत्र आदि अनेकों नदियाँ अपने अमृत जल से सींच रही हैं। इसकी पवित्र धरा के गर्भ से सोना चांदी, पीतलतांबा, लोहा, कोयलाअभ्रक आदि अनेकों प्रकार के खनिज निकलते हैं । काश्मीर नैनीताल शिमला कुल्लू मनाली व दार्जलिंग आदि प्राकृतिक रमणीय स्थानों ने इसे स्वर्ग से भी सुन्दर बना दिया है। भारतमाता का सौभाग्य रहा है कि इसकी कोख से रामकृष्णबुद्धमहावीर, गुरुनानक, दयानन्द जैसे अवतारी पुरुषों ने जन्म लिया है। इसी देश में जन्में बाल्मीकि, भवभूति, कालीदाससूरदास व तुलसी जैसे महान कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से नाम कमाया। इसे जगत्गुरु होने का गौरव प्राप्त था।
सहस्त्र वषों तक परतन्त्र रहने के उपरान्त अब यह देश 15 अगस्त1947 को स्वतंत्र हो गया है। विदेशियों ने अपने शासन काल में मेरे भारत देश को निर्धन बना दिया था। स्वतंत्र होने के बाद से इसकी चहुँमुखी उन्नति हो रही है। देश का औद्योगिक उत्पादन बढ़ रहा है। कृषि क्षेत्र में भी उन्नति हो रही है। इसने चिकित्सा तथा विज्ञान के क्षेत्र में विशेष प्रगति की है। यह अणुशक्ति में भी सक्षम है। इसकी प्रतिव्यक्ति आय में भी वृद्धि हुई है। भारतवर्ष का क्षेत्रफल 32 लाख 87 हजार 263 वर्ग किमी है। यहाँ की जनसंख्या 121 करोड़ के ऊपर पहुँच चुकी है जो संसार में द्वितीय स्थान पर है। यह जनसंख्या का आधिक्य हमारी अनेक समस्याओं का मूल कारण है। हमारी सरकार गत 64 वर्षों से इन समस्याओं के समाधान में जुटी है। इनमें से बहुतसी समस्याएँ हल हो गई हैं, शेष के लिए हम प्रयत्नशील हैं। यहाँ के लोगों ने विभिन्न धर्म अपनाए हुए हैं, इसीलिए यह धर्मनिरपेक्ष राज्यकहलाता है। इसका भविष्य इक्कीसवीं सदी में और भी उज्ज्वल है। अतमुझे अपने देश भारत पर गई है।
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अभी संसार में सभ्यता का सूर्योदय भी नहीं हुआ था, जब भारत के ऋषि वेदों की रचना कर रहे थे। ऋषिमुनियों ने सर्वप्रथम ज्ञान का प्रकाश देकर विश्व के मनुष्य को जीवन का पथ दिखाया था। उपनिषदों के ज्ञान से मानवता को नया दर्शन मिला था। जिस देश में गंगा बहती है, वही भारतवर्ष मेरा देश है। उत्तर में संसार का सबसे ऊँचा पर्वत हिमालय अपनी रुपहली चोटियों के साथ हीरे और चाँदी के श्वेत मुकुट के समान इसके मस्तक की शोभा बढ़ा रहा है ।
गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्रसिन्धु जैसी नदियाँ इसके गले में मोतियों की माला की तरह शोभा देती हैं। हिन्द महासागर की शीत लहरें प्रतिक्षण इसके चरण कमलों को धोकर प्रशंसा के मधुर गीत गाया करती हैं । बद्रीनाथ, केदारनाथ जगन्नाथ पुरी गया, वाराणसी, प्रयाग, द्वारका, रामेश्वरम जैसे महान और पवित्र तीर्थस्थान इसके अंक में बसे हुए हैं, वही भारत मेरा देश है
प्रकृति का समस्त सौन्दर्य जिस देश की स्थायी सम्पत्ति है, पृथ्वी का स्वर्ग कश्मीर जिसे केसर के फूल भेंट करता है, संसार का आठवाँ आश्चर्य ताजमहल जिसकी कला का विज्ञापन विश्व-भर में किया करता है, अजन्ता और ऐलोरा की विख्यात गुफाएँ जिसके अतीव गौरव को सँजोए हुए हैं, महाराष्ट्र की भूमि, राजस्थान का इतिहास, बंगाल और पंजाब की वीर- गाथाएँ जिसकी स्वतन्त्रता की साक्षी हैं वही मेरा देश है । कुरुक्षेत्र अयोध्या, मथुरानालन्दा, लखनऊ, दिल्ली जैसी नगरियों में जिसकी विविध पुण्यस्मृतियाँ आज भी जीती-जागती हैं, वही रामकृष्ण, बुद्ध और नानक की जन्मभूमि मेरा देश भारतवर्ष को जगद्गुरु की उपाधि मिली थी। इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था।
संसार के कोनेकोने से विद्यार्थी यहाँ विद्या ग्रहण करते थे। अशोक, विक्रमादित्य, हर्ष, स्कंदगुप्त जैसे चक्रवर्ती सम्राट् इसके रक्षक थे। वाल्मीकि, कालिदास तुलसीदास, सूरदास आदि महाकवियों ने इसी का अन्नजल खाकर विश्व के अमर साहित्य की रचना की थी। राणा प्रताप और शिवाजी ने इसकी मानमर्यादा के लिए जीवनभर तपस्या की थी। लक्ष्मीबाई तांत्या टोपे से लेकर तिलक, गांधी, सुभाष और भगत सिंह जैसे वीर सपूतों ने जिसको विदेशी शासन से मुक्त कराने के लिए स्वतन्त्रता संग्राम में अपना तन मन धन न्योछावर कर दिया, मैं उसी देश का वासी हैं। आज मेरा भारतवर्ष विश्व का एक विशाल प्रजातन्त्रात्मक गणराज्य है । यह देश विकास की सीढ़ी पर धीरे धीरे परन्तु दृढ़ता के साथ आगे बढ़ता ही जा रहा है ।
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इतिहास के अनुसार भारत दस हजार वर्ष पुराना देश है। मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा संस्कृति यहां की प्राचीनतम संस्कृति थी। इसके बाद आर्य जाति का आगमन हुआ। आर्य सांस्कृतिक रूप से सभ्य जाति के लोग थे। आर्यों के कारण देश का नाम आर्यावर्त पड़ा। पुरातन युग में यहां प्रतापी राजा दुष्यंत हुए हैं। इनका विवाह कण्व ऋषि की बालिका सुता शकुन्तला के साथ सम्पन्न हुआ था। शकुन्तला ने सिंह के समान शक्तिशाली पुत्र भरत को जन्म दिया था बाद में इसी युवराज भरत के नाम से देश का नाम ‘भारतवर्षरखा गया। तत्पश्चात् अनेक संस्कृतियों, सभ्यताओं के लोग यहां आकर निवास करते रहे। मध्यकाल में उत्तर-पश्चिम से इस्लाम धर्म के लोगों ने हमारे देश पर आक्रमण किए।
वे लोग भी अंत में यहां के निवासी बने। आज से कई शताब्दियों पूर्व सम्पूर्ण विश्व भारतवर्ष का आधिपत्य मानता था। यहां का शासक चक्रवर्ती सम्राट कहलाता था। यहा की सभ्यता संस्कृति की गूंज सब दिशाओं में सुनाई देती थी। इसके उज्जवल मस्तक के रूप में पर्वतराज हिमालय शोभायमान है। इसके मैदान में गंगा, यमुना, सतलुजकृष्णा आदि अनेक नदियां प्रवाहित होती हैं। इसकी पवित्र धरा में सोना, चांदी, तांबा और लोहा आदि अनेक प्रकार की धातुओं की खान है। नैनीताल और कश्मीर सरीखे प्राकृतिक रमणीय स्थलों ने इसको स्वर्ग से भी सुन्दर बना दिया है।
हमारा देश भारतवर्ष लगभग तीन शताब्दियों तक पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा रहा। इसी बीच अंग्रेजों ने इसे बिल्कुल कंगाल कर दिया था। अंत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के प्रयास से इसकी पराधीनता की बेड़ियां कटी। 15 अगस्त 1947 को इसका विभाजन करके अंग्रेजों ने अपना बिस्तर बांध लिया। इसके दूसरे टुकड़े का नाम पाकिस्तान रखा गया। इसके अलावा बंग्लादेश, बर्मा और श्रीलंका भी एक समय भारत के अंग थे। इस देश-विभाजन से हमें बहुत क्षति पहुंची। भयंकर नर संहार हुआ। लाखों बच्चे अनाथ और औरतें विधवा हुई। अनेक समस्याएं विकराल रूप लेकर खड़ी हो गईं, जिसमें से 50 वर्षों में अधिकांश समस्याओं का समाधान हो गया। शेष का भी शीघ्र ही समाधान हो जाएगा।
इस समय हमारे देश की जनसंख्या एक अरब से अधिक हो चुकी है। इसका क्षेत्रफल 32 लाख 68 हजार 90 वर्ग किलोमीटर है। इस आकार के रूप में भारतवर्ष का विश्व में सातवां स्थान है। हमारे देश भारत में सभी धर्मों के लोग रहते हैं। 26 जनवरी 1950 को हमारा देश संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य बना। तब से लेकर अब तक हमारा देश निरन्तर विकास एवं समृद्धि की ओर अग्रसर है। भारत संघ में 28 राज्य और 7 केन्द्र शासित प्रदेश हैं।
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हमारा देश भारत विज्ञान में काफी उन्नति कर चुका है। यह अणुशक्ति में भी किसी बड़े राष्ट्र से पीछे नहीं है। ‘हिन्दी भारत संघ की राष्ट्रभाषा है। राष्ट्र चिहन अशोक स्तम्भ के सिंह’ है। चक्रांकित तिरंगा यहां का राष्ट्रीय ध्वज है। ‘जन मन गण’ हमारा राष्ट्रीय गान तथा ‘वन्देमातरम्’ राष्ट्रीय गीत है। और ‘मोर’ राष्ट्रीय पक्षी तथा बाघ’ राष्ट्रीय पशु है। तुला राष्ट्रपति का चिह्न है।
जलवायु की दृष्टि से भी हमारा देश विश्व में श्रेष्ठ है। यहां प्रकृति ने छ: ऋतुएं दी। हैं। वसंत से प्रारम्भ होने वाला ऋतुओं का यह चक्र ग्रीष्म, वर्षा, शरद तथा हेमंत से होता हुआ शिशिर पर समाप्त होता है। इसीलिए राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है कि घट् ऋतुओं का विविध दृश्य युत अदभुत कम है,
हरियाली का फर्श नहीं मखमल से कम है।
शुचि सुधा सींचता रात में, तुझ पर चंद्र प्रकाश है,
हे मातृभूमि, दिन में तरणि, करता तम का नाश है।”
Essay on Mera Bharat Mahan in Hindi
विश्व का कोई भी ऐसा देश नहीं है जहां हमारे देश की तरह संतुलित जलवायु हो। भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जहां ज्यादा गर्मी भी पड़ती है तो शरद ऋतु में ठंड भी अधिक पड़ती है। वर्षा ऋतु में बारिश भी जमकर होती है। वर्ष भर का वातावरण छ: ऋतुओं में विभक्त है। ज्ञान के भण्डार में भी हमारा देश विश्व में अग्रणी है। विश्व के आदि पुस्तक वे जो कि ज्ञान के भण्डार हैं ऐसे धार्मिक ग्रन्थ विश्व में कहीं नहीं पाये गये। भारत की प्राचीन वास्तुकला अपने आप में एक बेजोड़ नमूना है। भारत का अतीत कितना उन्नत था इस बात का अंदाजा आयुर्वेद, धनुर्वेदज्योतिषगणित राजनीति, चित्रकलावस्त्र निर्माण से लगाया जा सकता है। आज भी विश्व के लोग भारत के अध्यात्म और जीवन मूल्यों के प्रति आकर्षित हैं। यही कारण है कि भौतिक सुखों को त्याग आत्म ज्ञान प्राप्ति के लिए आज भी विदेशियों का भारत आना जारी है। संस्कृति, सभ्यता, जीवन मूल्य, जीवन शैली तथा आत्म विकास का ज्ञान भारत की भूमि के कणकण में व्याप्त है।
हमारे देश की भूमि उपजाऊ है। यहां पर 75 प्रतिशत भारतीय कृषि करते हैं। यहां कुटीर उद्योग उन्नति पर हैं। औद्योगिक उत्पादन प्रगति पर है। इस समय यहां से कपास सनचावल, मसालेतिलहन, चमड़ा, ऊनसिलाई की मशीनें और साइकिलें सूती कपड़ा, सोना, चांदी, तांबा, कांच की वस्तुएंरेशमी वस्त्र, दवाइयां और मशीनें निर्यात की जाती हैं। हमारे देश भारत की सात पंचवर्षीय योजनाएं पूर्ण हो चुकी हैं और आठ पंचवर्षीय योजना चालू है। पंचशील’ और ‘सह-अस्तित्व में हम भारतीयों की पूर्ण आस्था है। हमारे राष्ट्र ने विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग, विज्ञान एवं परमाणु शक्ति आदि क्षेत्रों में आशातीत प्रगति की है। आज हमारे देश की गणना परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों में होती है।
हमारा देश परमाणु शक्ति का प्रयोग मानव जाति के संहार के लिए नहीं बल्कि मानव जाति की भलाई के लिए कर रहा है। भारत हमेशा विश्व में सुख और शांति बनाए। रखने का पक्षधर रहा है। वह विश्व के सभी राष्ट्रों को स्वतंत्र देखना चाहता है। अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत गुटनिरपेक्षता की नीति का सूत्रधार एवं पक्षधर रहा है। हमारे देश की सर्वजन सुखाय व सर्वजन हिताय की भावना में दृढ़ विश्वास है और मानव-मानव । में सद्भाव व प्रेम संचार करने में प्राचीन काल से ही कार्यरत है। परोपकार, त्याग के जितने सुन्दर उदाहरण हमारे महापुरुषों के मिलते हैं शायद ही किसी अन्य राष्ट्र के मिलें। भगवान श्री रामभगवान श्री कृष्णभगवान महावीर, भगवान बुद्धमहर्षि दधीचि आज संपूर्ण मानव जाति के लिए आदरणीय व पूजनीय हैं। इनके अतिरिक्त प्रतापी सम्राट विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, अकबर तथा शिवाजी जैसे सम्राट तथा रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे सरदार भगत सिंह सुखदेव, राजगुरु चन्द्रशेखर आजाद जैसे महान स्वाधीनता स्वतंत्रता सेनानी भी हमारे ही देश में पैदा हुए हैं।
इस पृथ्वी पर किसी विशेष भू-भाग को, जिसका अपना संविधान हो, जिसकी अपनी संस्कृति हो, देश कहा जाता है। प्रत्येक देश अपनी संस्कृति एवं परम्पराओं का अनुसरण करते हुए उन्नति के पथ पर आगे बढ़ता है । किसी भी देश की मूल संस्कृति उस देश के नागरिकों के आचरण, उनके पर्व, त्योहारों में स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। हमारा देश भारत एक प्राचीन देश है और इसकी प्राचीनता यहाँ की संस्कृति, परम्पराओं और यहाँ स्थित प्राचीन मंदिरों मस्जिदों इत्यादि में स्पष्ट दिखाई देती है।
हमारे विशाल देश भारत को प्राचीन होने के साथ-साथ मानव सभ्यता के उद्भव एवं विकास का स्रोत होने का भी गौरव प्राप्त है। हमारे प्राचीन देश भारत में ही मानव सभ्यता का आरम्भ हुआ था। प्राचीन काल से ही यहाँ जन्म लेने वाले ऋषिमुनियों, तपस्वीमहात्माओं ने इस पावन भूमि पर मानव का चरित्र एवं समाज के निर्माण हेतु उचित पथ प्रदर्शन किया है। इसी पावन भूमि पर धर्म एवं संस्कृति का विकास हुआ है।
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