दोस्तों आज हम आपके लिए लाये है Hindi Moral Stories Class 1 के बच्चो के लिए तो अगर आपका बच्चा भी क्लास 1 में पढता है या Class 1 में होने वाला है तो ये कहानियाँ आपके लिए बहुत ही उपयोगी हो सकती है। Hindi Moral Stories for Class 1 अच्छी अच्छी फोटो के साथ जो आपके बच्चो बहुत पसंद आएंगी।
Hindi Moral Stories For Class 1 लड़के का पष्चाताप
एक लड़का लोगों को अक्सर अपशब्द कहता, चिढ़ाता व तंग करता था। उसे यह सब करके बड़ा मजा आता था। इस आदत के चलते कई बार उसे मार भी पड़ी थी। कुछ लोगों ने उसे समझाया भी, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ।
एक बार एक साधु पीपल के पेड़ के नीचे समाधि लगाए बैठा था। तभी वह लडका वहां आया और उसे गाली देकर
1 भाग गया। कुछ दूर जाकर उसने देखा कि साधु पर तो कोई असर ही नहीं हुआ। न तो वह चिढ़ा और न ही मारने दौड़ा। अत: ही उस : वह पुनसाधु क पास गया और जोर-जोर से उसे गालियां देने लगा।
साधु ने उस लड़के की तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। वह अपने में ही मगन रहा। लड़का आश्चर्यचकित था कि साधु कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं व्यक्त कर रहा है।
वहीं खड़ा एक आदमी भी यह सब देख रहा था। जब उससे नहीं गया रहा तो वह उस साधु से बोला”बाबा! वह लड़का आपको गालियां दे रहा है और आप उसे कुछ नहीं कह रहे आखिर क्यों?”
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साधु ने कहा, ” भले ही वह लड़का मुझे गालियां दे रहा है, पर मैं गालियां ले कहां रहा हूं. और जब मैं गालियां ले ही नहीं रहा हूं तो वह गालियां उसी के पास रह जाती हैं। अर्थात् वह स्वयं को ही गालियां दे रहा है। अपशब्द निकालकर अपना ही मुख अपवित्र कर रहा है।”
साधु की यह बात गालियां देने वाला लड़का भी सुन रहा था। वह सोचने लगा, दूसरे लोग मुझे इसलिए मारने दौड़ते थे, क्योंकि वे गालियां लेते थे, पर साधु बाबा ने तो गालियां ली ही नहीं और वे गालियां मेरे पास ही रह गईं ओह कितनी गंदी गालियां दीं मैंने अपने आपको।’
लड़के का मन घृणा से भर आयावह साधु के पास गया और बोला, “बाबा, मुझे माफ कर दो। अब मैं किसी को गाली नहीं ढूंगा।” साधु ने कहा, “बेटातुम्हें अपने किए पर पश्चाताप हो रहा है, इसलिए तुम्हारे अपराध स्वत: ही माफ हो गए हैं।” लड़के ने साधु का आशीर्वाद लिया और उसके बाद उसने किसी को भी गाली नहीं दी।
कथा-सार
जो चीज हमारी नहीं, दूसरा कोई देना चाहे तो भी हम न लें तो वह किसकी हुई? उसी की न, जिसके पास है। साधु ने इस बात का अहसास जब उस लड़के को कराया तो उसे पश्चाताप हुआ। अप शब्द कहने की उसकी आदत मारने-पीटने या गुस्सा करने से तो नहीं छूटी लेकिन प्रेम भरे दो बोल अपना काम कर गए।
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Hindi Moral Stories For Class 1 होनहार पुत्र
एक सुबह रामदीन अपने वृद्ध पिता को कहीं ले जा रहा था कि उसका पुत्र बोला, “बापू आप दादाजी को कहां ले जा रहे हैं?”
“बेटा शहर ले जा रहा हूं।” “मैं भी शहर चलूगा।” लड़का जिद करने लगा नहीं बेटा, तू यहीं ठहर, तुझे तेरी मां अच्छे-अच्छे पकवान देगी।” रामदीन ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा।
* भीतर बापू मिठाई लाए थे वह खाने को देंगी” उसकी मां चल बट, कल तर ने भी प्रलोभन दिया। मगर लड़का नहीं माना और भागकर बैलगाड़ी में अपने दादाजी की गोद में जा बैठा।
“अजीब मुसीबत है। अब इसे भी साथ ले जाना पड़ेगा।” रामदीन ने झुंझलाते* | हुए कहा।
थोड़ी दूर चलने पर रामदीन ने एक कब्रिस्तान के आगे गाड़ी रोक दी और खुद गाड़ी से नीचे उतर गया, “तुम दोनों यहीं रुको, मैं अभी आता हूं।”
फिर वह कब्रिस्तान के एक कोने में जाकर गड्ढ़ा खोदने लगा। थोड़ी देर बाद उसका बेटा भी वहां आ पहुंचा।
तुम यहां क्यों आए? जाओ, अपने दादाजी के पास।” रामदीन ने उसे धमकाते हुए कहा।
“यह तुम क्या कर रहे हो बापू?” लड़के ने मासूमियत से पूछा। “जमीन खोद रहा हूं, दिखाई नहीं देता।”
“क्यों, बापू! यहां कुछ गड़ा है क्या?” लड़के ने पूछा।
रामदीन ने सोचा-लगता है इसे सच बात बतानी ही पड़ेगी। फिर वह बोला, “बेटा मैं तुम्हारे दादाजी के लिए कब्र खोद रहा हूं।”
‘दादाजी के लिए? लेकिन वे तो अभी जिंदा हैं?” लड़के ने आश्चर्य से अपने पिता की ओर देखा। “हां। लेकिन वे इतने बूढ़े हो गए हैं कि बोझ लगने लगे हैं। वैसे भी वे ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहेंगे। इसलिए तुम्हारी मां ने और मैंने सोचा कि उन्हें अभी से दफना देने में हर्ज ही क्या है।”
रामदीन ने उसे समझाया।
“यह तुमने बड़ा अच्छा किया बापू, जो मुझे बता दिया।” लड़के ने कहा “मुझे पूरा विश्वास है कि मेरा राज तुम किसी को नहीं बताओगे” “थोड़ी देर के लिए फावड़ा मुझे दोगे, बापू” लड़का बोला।
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रामदीन ने उसे फावड़ा थमा दिया, “पता नहीं क्या करना चाहता है यह?” फिर उसने अपने लड़के का पीछा किया
लड़का कुछ दूर जाकर फावड़े से जमीन खोदने लगा।
“यह क्या कर रहे हो बेटा?” “जमीन खोद रहा हूं बापू। तुम्हें ज्यादा इंतजार नहीं करवाऊंगा।” लडके ने कहा।
“मैं तुम्हारी बात समझा नहीं बेटे?” रामदीन असमंजस में पड़ गया।
जब तुम बूढ़े हो जाओगे और मैं तुम्हारी कब्र खोढूंगा तो तुम्हें बाहर इंतजार करना पड़ेगा। इसलिए पहले से ही कब्र खोदकर तैयार हूं, ताकि तुम्हें दादाजी की कर रहा तरह इंतजार न करना पड़े। मैं तुम्हें यहां लाकर सीधे इस गड्ढे में धकेल ढूंगा।”
“क्या तुम मुझे जिंदा दफना दोगे?” रामदीन झुझला उठा।
“बाप, तुम भी तो दादाजी के साथ ऐसा ही करने जा रहे हो। मैं भी परिवार की परिपाटी को निभाऊंगा।”
“हे ! मैं कैसा अनर्थ करने जा रहा था। बेटा तुमने मेरी आंखें खोल दी । तुमने मुझे भयानक पाप करने से बचा लिया। चलो, अब वापस अपने घर चलते हैं।”
इतना कहकर रामदीन अपने पिता को घर ले गया और जीवनभर उनकी अच्छी तरह देखभाल और सेवा की।
कथा-सार
बच्चे का मन कोमल जरूर होता है, लेकिन संवेदनशील भी कम नहीं होता। उस पर जैसी छाप छोड़ी जाए वैसा ही बन जाता है। रामदीन अपने पिता के लिए कब्र खोद रहा था तो रामदीन का बेटा उसके लिए। तभी तो कहा गया
है कि दूसरों को गिराने के लिए कुआं खोदोगे तो स्वयं के लिए खाई तैयार मिलेगी
Hindi Moral Stories For Class 1: खरगोश की चतुराई?
एक वन में भासुरक नामक सिंह रहता था। वह अपनी शक्ति के मद में प्रतिदिन वन के अनेक पशुओं का वध कर दिया करता था। कुछ को खाकर वह अपनी भूख शांत करता और कुछ को अपनी शक्ति दर्शाने और वन में दहशत फैलाने के लिए यूं ही मार डालता ऐसे में बचे हुए वन्य जीवों ने सोचा कि इस तरह तो एक दिन ऐसा आ जाएगा
जब हम लोगों की नस्ल ही खत्म हो जाएगी, इसलिए इस शक्तिशाली ढूंखार शेर को रोकना होगा।
यह विचार करके वन में बचे हुए प्राणियों ने एक बैठक बुलाई। सबने अपने-अपने विचार रखेचालाक लोमड़ी ने अपनी राय प्रकट करते हुए कहा”मेरे विचार से हमें अपनी ओर से एक प्रतिनिधि भेजकर शेर के सामने यह प्रस्ताव रखना चाहिए
कि भूख मिटाने के लिए उसे प्रतिदिन एक ही प्राणी की जरूरत होती है तो इतने जीवों की हत्या करने से क्या लाभ है?”
सबको लोमड़ी का विचार ठीक लगा और उसे सभी वन्य जीवों ने स्वीकार कर लिया। उन्होंने गीदड़ को ही सर्वसम्मति से अपना प्रतिनिधि चुना और शेर के पास भेज दिया।
गीदड़ शेर के पास आया और अभिवादन करते हुए बोला, ‘महाराज! में वन के प्राणियों की ओर से उनका दूत बनकर आया हूं।”
“कहो क्या कहना चाहते हो?” शेर ने गुर्राते हुए पूछा। “हमने आपस में मिलजुलकर विचार किया है कि यदि आप इस वन के किसी भी प्राणी का वध न करने का आश्वासन दें तो हम प्रतिदिन एक पशु को आपकी उदरपूर्ति के लिए भेज दिया करेंगे।
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इससे आपको भी शिकार की खोज में भटकना नहीं पड़ेगा और हमारा भी असमय हो रहा विनाश रुक जाएगा।” गीदड़ ने बड़े ही आदर भाव के साथ कहा शेर ने गीदड़ की बातों पर विचार करने के बाद उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और चेतावनी भरे स्वर में बोला, मुझे तुम्हारा और तुम्हारे साथियों का प्रस्ताव
स्वीकार है, लेकिन एक शर्त है।”
कैसी शर्त महाराज?” गीदड़ ने शंकित स्वर में पूछा। जिस किसी दिन भी मेरा शिकार नहीं दिन मैं वन के सारे पशुओं आया, उस को एकसाथ मार डालूगा। ”
हमें आपकी यह शर्त मंजूर है। आपको नियमित रूप से बतौर भोजन एक पशु रोज मिलता रहेगा। इसका वादा में वन के पशुओं के दूत के रूप में आपके सामने करता हूं।
उसके बाद बारीबारी से एक पशु शेर का भोजन बनने के लिए रोज उसके पास जाता रहा जिसे खाकर वह अपनी भूख मिटाता रहे।
कुछ दिनों बाद एक बुद्धिमान खरगोश की बारी आईउसने सोचा कि जब आज मरना ही है तो जल्दी किस बात की है। आराम से जाऊंगा, ताकि कुछ देर और जीवित रहने का अवसर मिल जाए। इसके अलावा वह यह भी सोच रहा था कि इस शेर का विनाश कैसे किया जाए।
सहसा खरगोश ने एक उपाय सोच ही लिया और अपनी योजना के अनुसार सायंकाल होने पर वह शेर के पास पहुंचा।
शेर खरगोश को देखकर आगबबूला होकर बोला, “अरे दुष्ट हूं। एक तो तू इतना छोटा है कि तुझे खाकर मेरी भूख मिटेगी ही नहीं
उस पर भी इतनी देर से आया है? कल प्रातकाल होते ही मैं तेरे सारे जाति बंधुओं का विनाश करक तुझे सबक सिखाऊंगा।”
“महाराज! मैं तो प्रात:काल होते ही अपने घर से चल पड़ा था और ठीक समय पर आपके पास पहुंच भी जाता, लेकिन रास्ते में मुझे दूसरे शेर ने घेर लिया। मैं किसी तरह उससे अपनी जान बचाकर आपके पास आया हूं।”
“दूसरा शेर.! इस वन में मेरे अलावा और कोई शेर है ही नहीं।” भासुरक तुरंत भडक उठा।
“मैंने अपनी आंखों से देखा है महाराज।” “लगता है उस दुष्ट की मौत आ गई है जिसने मेरे रहते इस वन में आने की
हिम्मत की है।” भासुरक दहाड़ते हुए खरगोश से बोला, “! मुझे दिखा, कहां चल है वह दुष्ट?”
खरगोश मन-ही-मन खुश हुआ और बोला, “आइए महाराज।” खरगोश भासुरक को एक सुनसान जगह पर ले गया और इधर-उधर देखने का अभिनय करते हुए बोला, “महाराजलगता है आपके डर से वह इस कुएं में छिप
गया है।”
“ओहडरपोक कहीं का।” यह कहकर शेर ने कुएं में झांका तो पानी में उसे अपना ही प्रतिबिंब नजर आयाभूख और प्यास से व्याकुल भासुरक ने समझा कि यह वही दुष्ट शेर है जो इस वन में मेरा एकछत्र राज छीनने आया है। क्रोधावेश में भासुरक बहुत जोर से दहाड़ा तो उसकी प्रतिध्वनि लौटकर उसके कानों में पड़ी।
भूखप्यास और क्रोध की आग में जलता हुआ वह उस पर झपटा और उसका वध करने के लिए कुएं में छलांग लगा दी। भासुरक कुएं में जा गिरा और मारा गया।
खरगोश ने लौटकर अपने बुद्धिबल से भासुरक के कुएं में गिरकर परलोक सिधारने का समाचार अपने साथी पशुओं को सुनाया तो सभी प्रसन्नता से झूम उठे और उसका काफी आदर-सत्कार किया तथा उसकी बुद्धिमत्ता को सराहा।
कथा-सार
बुद्धिबल से बड़ा दूसरा बल और कोई नहीं। बुद्धिबल से निर्बल प्राणी भी शक्तिशाली को धराशायी करने में समर्थ रहता है। अन्यथा खरगोश की क्या बिसात थी, जो शेर का खात्मा कर पाता। संकट में भी बुद्धि का दामन कभी
नहीं छोड़ना चाहिए
Hindi Moral Stories For Class 1 : परी का पति
किसी गांव में एक बुढ़िया अपने बेटे गुणसुंदर के साथ रहा करती थी। गुणसुंदर गुणवान तो था, लेकिन उसकी शक्ल-सूरत अच्छी नहीं थी।
एक दिन गुणसुंदर भटकता हुआ घने जंगल में जा पहुंचावहां उसने एक सुंदर सरोवर देखा जहां परियां स्नान कर रही थीं। उनके वस्त्र किनारे पर रखे थे। गुणसुंदर वहा गया और एक परी के वस्त्र चुरा लाया। धीरे-धीरे सभी परियां स्नान करके, वस्त्र पहनकर अपने लोक को चली गईं। अंत में एक ही परी बची जिसके वस्त्र गुणसुंदर के पास थे।
परी ने बहुत याचना की, लेकिन गुणसुंदर ने शर्त रखी कि वह उससे विवाह करे तो वह उसे उससे भी अधिक सुंदर वस्त्र पहनने के लिए देगा। परी थक-हारकर उसस विवाह करने के लिए तैयार हो गईतब गुणसुंदर ने उसे गांव से लाकर वस्त्र दिए और परी के वस्त्र अपने घर संदूकची में रख आयाउन वस्त्रों को पहनकर परी सामान्य स्त्री गई। फिर उसने गुणसुंदर से विवाह भी रचाया। कुछ वर्षों तक वह बन उसके साथ रही। उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति भी हुई।
इधर गुणसुंदर की पत्नी बनी वह परी सदैव इस फिराक में रहती थी कि किसी तरह उसके मूल वस्त्र उसके हाथ लग जाएं तो वह गुणसुंदर की कैद से मुक्त हो जाए।
परी से विवाह करने के पश्चात् गुणसुंदर सुख से रहने लगा था। झोंपड़ी के स्थान पर आलीशान भवन बन गया था। नौकर-चाकर, खान-पान आदि का पूर्ण सुख था।
एक दिन गुणसुंदर कहीं गया हुआ था। बुढ़िया पहले ही स्वर्ग सिधार चुकी थी। परी को मौका मिल गया और वह अपने वस्त्र पहनकरअपने पुत्र को गोद में लेकर परी लोक चली गई।
गुणसुदर जब घर लौटा तो वहां उसे न तो परी मिली, न भवन। उस जगह पहले जैसी ही टूटी-फूटी झोंपड़ी थी। यह सब देखकर वह उदास हो गया।
फिर वह उसी सरोवर के समीप जा पहुंचा। तभी आसमान से एक विचित्र वृक्ष नीचे उतराउस पर अनेक परियां बैठी थीं, लेकिन उसकी पत्नी परी नहीं थी।
सभी परियों ने स्नान किया और उस वृक्ष पर बैठकर जाने लगीं। तभी गुणसुंदर लपककर आया और उस पेड़ के तने को पकड़कर लटक गया।
अब वह भी परीलोक जा पहुंचा। परियों के साथ वह भी अंदर गया तो वहां उसे उसकी पत्नी परी और पुत्र दोनों ही मिल गए।
कुछ दिनों तक वह उनके साथ रहकर पुन: पृथ्वी पर आ गया, लेकिन इस बार वह अपने पुत्र को साथ ले आया था, अत: उसकी पत्नी वह परी पुत्रमोह के कारण स्वयं ही गुणसुंदर के पास चली आईपुनउसके वही ठाट-बाट हो गए और वह सुख से रहने लगा।
कथा-सार
मनुष्य में कुछ कर गुजरने की चाह हो तो बड़ी-सेबड़ी बाधाएं भी उसकी राह नहीं रोक सकतीं।
नटखट चुल्लू
नटखट चुन्नू नन्हा-सा चूजा था। वह सारे दिन इधर-उधर फुदकता रहता था। उसकी मां अक्सर उसे समझाती थी कि अकेले इधरउधर मत घूमा करो कभी भी किसी मुसीबत में पड़ सकते हो, पर चुन्नू कहां मानने वाला था।
एक दिन चुन्नू अपनी मां के साथ दाना चुग रहा था। दाना चुगते-चुगते वह अपनी मां से नजर बचाकर थोड़ी दूर निकल गया। वहां उसे मटर के कुछ दाने बिखरे दिखाई दिए।
वह अपनी छोटी-सी चोंच से छीलकर मटर के दाने खाने लगा। तभी मटर का एक दाना अचानक उसके गले में अटक गयाऐसा होने पर चुन्नू बड़ा परेशान हुआ। उसने उस दाने को निगलने या उगलने की बड़ी कोशिश की,
लेकिन सफल न हो सका।
अब चुन्नू रोने । कुछ देर में उसकी मां भी उसे वहां लगा पहुंची। जब उसे पता चला कि चुन्नू के गले में मटर का दाना फस गया है तो वह खोजते-खोजते आ भी बहुत परेशान हुईउसने अपनी चोंच से उस दाने को निकालने की कोशिश भी। की, लेकिन चोंच बडी होने के कारण सफलता नहीं मिली।
तब मुर्गी को अपने मित्र बगुले की याद आईवह दौड़ी-दौड़ी बगुले के पास गई और उसे अपनी विपदा सुनाई।
बगुला तुरंत मुर्गी के साथ आया और उसने अपनी लंबी चोंच से चुन्नू के गले में फंसे मटर के दाने को निकाल दिया।
मटर का दाना निकलने से चुन्नू की जान-में-जान आईउसने अपनी मां से माफी मांगी और कहा”मां, अब मैं कभी भी शरारत नहीं करूगा और आपका कहा मागूंगा।”
मुर्गी उसे प्यार से पुचकारते हुए अपने साथ ले गई। उसे पता था कि अब चुन्नू सचमुच शरारत नहीं करेगा।
कथासार।
यह ठीक है कि बचपन शरारत करने के लिए ही होता है, लेकिन ऐसी भी क्या शरारत कि जान पर आ बने।
माता-पिता तथा बड़ेबुजुर्गों की बातों को सुनकर टालना नहीं चाहिए वे जो कुछ भी कहते हैं वह हमारी भलाई के लिए ही होता है। चूजे को भी यह बात समझ में आ गई थी, परंतु कुछ कष्ट सहने के बाद ही।
श्रेष्ठ कौन
कौशल नरेश मल्लिक न्यायप्रिय और शक्तिशाली राजा था, लेकिन उसे अपनी योग्यता पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं था। वह सोचता‘लोग मुझे अच्छा कहते हैं, लेकिन क्या मैं वास्तव में ही अच्छा हूं?
एक दिन दरबार में उसने अपने मंत्रियों से पूछा, “सच-सच CC बताना, क्या मुझमें कोई दोष है?”
“नहीं महाराज” मंत्रियों के साथ दरबारी भी एक स्वर से कह उठ।
“भाप सज्जन, दयालु और न्यायप्रिय हैं।” एक मंत्री ने कहा। राजा ने अपनी प्रजा से भी पूछा, लेकिन सबका यही उत्तर था कि आप कुशल शासक हैं। हम सब आपके शासन में सुखी संपन्न हैं।
राजा फिर भी संतुष्ट नहीं हुआ। वह सोचने लगा, ‘शायद मेरे मंत्री और प्रजाजन सच नहीं बोल रहे।’
वह भेष बदलकर गांव-गांव घूमा, लेकिन उसे एक भी निंदक नहीं मिला। आम ग्रामीणों की भी यही राय थी कि हमारे राजा जैसा चरित्रवान और कोई दूसरा दयालु राजा नहीं है।
एक दिन राजा का रथ संकरे पुल से होकर गुजर रहा था। वह पुल मात्र इतना चौड़ा था कि उसमें एक ही रथ आ-जा सकता था। यदि सामने से कोई अन्य वाहन आ जाए तो मार्ग अवरुद्ध हो जाता था। अब इसे संयोग ही कहा जाएगा कि सामने से राजा ब्रह्मदत्त भी अपने शाही रथ पर आ रहा था।
दोनों के रथ आमने-सामने रुक गए राजा मल्लिक के सारथी ने कहा, “अपना रथ पीछे हटा। ये राजा मल्लिक हैं।” दूसरी तरफ से राजा ब्रह्मदत्त के सारथी ने कहा, “दोनों में जो श्रेष्ठ होगा वही पहले पुल पार करेगा।”
राजा मल्लिक का सारथी बोला, “तुम्हारे महाराज की आयु क्या है और उनका राज्य कितना बड़ा है? ”
इस तरह से उन दोनों में बहस होने लगी। दोनों राजाओं की आयु और राज्य तकरीबन समान ही निकले।
इसका फैसला न हो पाया तो राजा ब्रह्मदत्त के सारथी ने कहा, तुम्हारे स्वामी में क्या विशेषता है?”
राजा मल्लिक के सारथी ने कहा, “मेरे स्वामी बुराई का बदला बुराई से तथा भलाई का बदला भलाई से देते हैं।”
“यदि यह तुम्हारे स्वामी की विशेषता है तो दोषों की कल्पना से ही मैं सिहर उठता हूं।” राजा ब्रह्मदत्त के सारथी ने कहा।
“आखिरकार कोई तो ऐसा मिला जिसने साफ बात कही है।” राजा मल्लिक सोच में पड गया। ।
“अब बकवास बंद करो और यह बताओ कि तुम्हारे स्वामी में क्या विशेषता राजा मल्लिक भी उतावला-सा राजा ब्रह्मदत्त के सारथी की ओर देखने लगा। मेरे स्वामी बुराई का बदला भी भलाई से देते हैं। यह उनकी विशेषता है।” राजा ब्रह्मदत्त के सारथी ने कहा इतना सुनते ही राजा मल्लिक खड़ा हो गया और बोला, “तब निश्चय ही वे मुझसे श्रेष्ठ शासक हैं।” इतना कहकर वह नीचे उतर गया और राजा ब्रह्मदत्त को प्रणाम किया।
फिर वह अपने सारथी के पास आया और बोला”अब मुझे ज्ञात हुआ कि मुझमें क्या दोष है। मैं आदर्श से अभी कितना दूर हूं। चलो, अपना रथ पीछे कर लो और राजा ब्रह्मदत्त को पहले रास्ता दो ।”
कथा-सार
पहली बात यह कि गुण-दोषों की परख अपने लोग नहीं, दूसरे ही कर सकते हैं। वैसे भी राजा में दोष ढूंढ़ने का साहस कौन करता…दंड का भय जो था। दूसरी बात, भलाई करने वाला व्यक्ति तो बुराई के विषय में जानता ही नहीं। यह बात जब राजा मल्लिक को पता चली तो उसे अपना दोष मालूम पड़ गया।