Essay on Corruption in Hindi – भ्रष्टाचार पर निबंध 5 नए निबंध】

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हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाया हु Essay on Corruption in Hindi पर पुरा आर्टिकल लेकर आया हु। हिंदी में Corruption को अनुशासन कहते है और स्कूल में इस पर बहुत जोर दिया जाता है। अगर आप भ्रष्टाचार पर निबंध लिखना चाहते है तो हमारे दिए हुवे सभी निबंध को पढ़े और हमें बताये आपको कोनसा Essay on Corruption अच्छा लगा ताकी हम आपके लिए और भी ऐसे अच्छे अच्छे निबंध ला सके जो आपको और आपके बच्चो के लिए जरुरी हो।

 

1. भ्रष्टाचार पर निबंध -Essay on Corruption in Hindi

 

Essay on Corruption in Hindi - भ्रष्टाचार पर निबंध 5 नए निबंध】 1

अत्यधिक लालच भ्रष्टाचार की ओर अग्रसर करता है।

अत्यधिक अर्थात् अति से अधिक कोई भी चीज शुभ नहीं होती, फिर चाहे वह चीज अच्छी हो अथवा बुरीऔर जब यह अति शब्द ‘लालच’ के साथ जुड़ जाए तो पाप का कारण बन जाता है।

मनुष्य के हृदय में असंतोष का भाव जाग्रत होना अथवा संतोष की अपरिपक्वता ही लालच का प्रतीक है। असंतोष के कारण उत्पन्न लालच का भाव ही मनुष्य को बुराई के मार्ग पर खींच लाता है और अनवरत् उसे भ्रष्टाचार की ओर खींचता रहता है।

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असंतोष मनुष्य में नित नई आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं को जन्म देता है और उत्पन्न अनन्त आवश्यकताएं एवं आकांक्षाएं उसमें लालच की भावना को जन्म देती हैं जिनकी पूर्ति हेतु मनुष्य नैतिक एवं अनैतिक में अंतर नहीं समझाता तथा अनैतिक कर्मों में संलग्न हो जाता है। मनुष्य की अपूर्ण अथवा दमित आवश्यकताएं उसे भ्रष्टाचार की ओर उन्मुख करती हैं।

भ्रष्टाचार की जड़ लालच है तो लालच का बीज है स्वार्थ की भावना। कथन का तात्पर्य यह है कि स्वार्थ रूपी बीज लालच की जड़ का निर्माण करता है और इस जड़ से भ्रष्टाचार के अनेक तने ऊपर की ओर बढ़कर सम्पूर्ण वातावरण को भ्रष्टाचार, अत्याचार और पापाचार की विफूली छाया में ढक लेता है।

 

मनुष्य के अंतःकरण में लालच विवशताओं का जामा पहनकर बैठ जाता है, जिनकी पूर्ति हेतु मनुष्य समाज की आड़ में बुरे कर्मों में संलिप्त है। आवश्यकताओं की पूर्ति होने पर मनुष्य विलासी होने लगता है, तब स्वार्थ की भावना उसके स्वभाव में उत्पन्न होकर उसे लालची बनाने लगती है और वह भ्रष्टाचार के पायदान पर कदम रख देता है। एक बार यह कदम उठाने पर मनुष्य निरंतर आगे ही बढ़ता जाता हैं, फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता।

 

मनुष्य का भ्रष्टाचारी एवं लालची मस्तिष्क हर समय धर्मयुक्ति, इत्यादि का दुरुपयोग कर रहा है। उसके इस कुकृत्य से सम्पूर्ण समाज एवं भावी पीढ़ी भी भ्रष्टाचार के दावानल में झुलस रही है। केवल अहंकार से विमुक्त मनुष्य ही अच्छे कर्मों से संयुक्त होता है और ऐसा मनुष्य विनम्र और शीलवान होता है। यह विनम्रता मनुष्य को केवल सद्कर्मों से जोड़ती है, जिसमें बुराई, लालच भ्रष्टाचार, आदि के लिए रंचमात्र भी स्थान नहीं होता।

 

2. भ्रष्टाचार पर निबंध -Essay on Corruption in Hindi

 

भ्रष्टाचार का बढ़ता मर्ज

भ्रष्टाचार (Corruption) रूपी बुराई ने कैंसर की बीमारी का रूप अख्तियार कर लिया है। मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की’ वाली कहावत इस बुराई पर भी लागू हो रही है। संसद ने, सरकार ने और प्रबुद्ध लोगों व संगठनों ने इस बुराई को खत्म करने के लिए अब तक के जो प्रयास किए हैं, वे अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं। इस क्रम में सबसे बड़ी विडंबना यह है कि समाज के नीति-निर्धारक राजनेता भी इसकी चपेट में बुरी तरह आ गए हैं।

असल में भ्रष्टाचार का मूल कारण नैतिक मूल्यों (Moral values) का पतन भौतिकता धन व पदार्थों के अधिकाधिक संग्रह और पैसे को ही परमात्मा समझ लेने की प्रवृत्ति) और आधुनिक सभ्यता से उपजी भोगवादी प्रवृत्ति है।

भ्रष्टाचार अनेक प्रकार का होता है तथा इसके करने वाले भी अलग-अलग तरीके से भ्रष्टाचार करते हैं। जैसे आप किसी किराने वाले को लीजिए जो पिसा धनिया या हल्दी बेचता है। वह धनिया में घोड़े की लीद तथा हल्दी में मुल्तानी मिट्टी मिलाकर अपना मुनाफा आजकल यूरिया और डिटर्जेंट पाउडर मिलाने की बात सामने आने लगी है, यह भी भ्रष्टाचार है। बिहार में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए हैं । यूरिया आयात घोटाला भी एक भ्रष्टाचार के रूप में सामने आया है।

केन्द्र के कुछ मंत्रियों के कालेकारनामे चर्चा का विषय बने हुए हैं। सत्ता के मोह ने बेशर्मी ओढ़ रखी है। लोगों ने राजनीति पकड़ कर ऐसे पद हथिया लिए हैं जिन पर कभी इस देश के महान नेता सरदार बल्लभभाई पटेल श्री रफी अहमद किदवई, गोविन्द बल्लभ पंत जैसे लोग सुशोभित हुए थे। आज त्याग, जनसेवा, परोपकार, लोकहित तथा देशभक्ति के नाम पर नहींवरन् लोग आत्महित जातिहित, स्ववर्गहित और सबसे ज्यादा समाज विरोधी तत्वों का हित करके नेतागण अपनी कुर्सी के पाए मजबूत कर रहे हैं।

 

भ्रष्टाचार करने की नौबत तब आती है जब मनुष्य अपनी लालसाएं इतनी ज्यादा बढ़ा लेता है कि उनको पूरा करने की कोशिशों में उसे भ्रष्टाचार की शरण लेनी पड़ती है। -खूसट राजनीतिज्ञ भी यह नहीं सोचते कि उन्होंने तो भरपूर जीवन जी लिया है, कुछ ऐसा काम किया जाए जिससे सारी दुनिया में उनका नाम उनके मरने के बाद भी अमर रहे। रफी साहब की खाद्य नीति को आज भी लोग याद करते हैं।

उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री के रूप में उनका किया गया कार्य इतना लंबा समय बीतने के बाद भी किसान गौरव के साथ याद करते हैं। आज भ्रष्टाचार के मोतियाबिन्द से हमें अच्छाई नजर नहीं आ रही। इसीलिए सोचना जरूरी है कि भ्रष्टाचार को कैसे मिटाया जाए। इसके लिए निम्नलिखित उपाय काफी सहायक सिद्ध हो सकते हैं

 

(1) लोकपालों को प्रत्येक राज्य, केन्द्रशासित प्रदेश तथा केन्द्र में अविलम्ब नियुक्त किया जाए जो सीधे राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी हों। उसके कार्यक्षेत्र में प्रधानमंत्री तक को शामिल किया जाए।

(2) निर्वाचन व्यवस्था को और भी आसान तथा कम खर्चीला बनाया जाए ताकि समाज-सेवा तथा लोककल्याण से जुड़े लोग भी चुनावों में भाग ले सकें।
(3) भ्रष्टाचार का अपराधी चाहे कोई भी व्यक्ति हो, उसे कठोर से कठोर दण्ड दिया जाए।
(4) भ्रष्टाचार के लिए कठोर दण्ड देने का कानून बनाया जाए तथा ऐसे मामलों की सुनवाई ऐसी जगह की जाए जहां भ्रष्टाचारियों के कुत्सित कार्यों की आम जनता को भी जानकारी मिल सके और वह उससे सबक भी ले सके।

(5) हाल ही में बनाए गए सूचना के अधिकार कानून का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जाए तथा सभी संबंधित लोगों द्वारा जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।

सामाजिक बहिष्कार कानून भी ज्यादा प्रभावकारी होता है। ऐसे लोगों के खिलाफ जगह-जगह प्रदर्शन तथा आन्दोलन किए जाने चाहिए ताकि भ्रष्टाचारियों को पता चले कि उनके काले कारनामे दुनिया जान चुकी है और जनता उनसे नफरत करती है।

3. भ्रष्टाचार पर निबंध -Essay on Corruption in Hindi

 

भ्रष्टाचार का रोग

भ्रष्टाचार का अर्थ है भ्रष्ट आचार अर्था बिगड़ा हुआ आचरण या कार्य । नीति, न्याय, सत्य तथा ईमानदारी आदि की उपेक्षा करके स्वार्थवश किए हुए सभी कार्य भ्रष्टाचार में गिने जाते हैं। भ्रष्टाचार के जन्मदाता हैं स्वार्थलिप्सा और भौतिक ऐश्वर्य। अधिक धन की प्राप्ति के उद्देश्य से लोग भ्रष्टाचार का सहारा लेते हैं।

आज लोग इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इन निम्न प्रकार के कार्यों का सहारा ले रहे हैं, जैसे उच्चाधिकारियों का रिश्वत लेकर अनैतिक कार्य करना, करोड़ों रूपए की दलाली खाना, अयोग्य व्यक्तियों को ऊंचे पद प्रदान करना, व्यापारिक क्षेत्र में मिलावट करना, चोरबाजारी करना, निर्माण कार्यों में सीमेंट के स्थान पर रेत का प्रयोग करना आदि। यही कारण है कि आज देश में चारों ओर भ्रष्टाचार का बोलबमला है।

आज कोई भी विभाग चाहे वह सरकारी हो, अर्द्ध सरकारी हो या जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के संस्थान हों, सभी जगह भ्रष्टाचार आराम से लम्बे पांव फैलाए जा रहा है। इनके अनेकों उदाहरण हमारे सम्मुख हैं – भारतीय इंजीनियर बिना नींव खोदे ही कईकई मंजिले मकान खड़े कर देते हैं – वह भी बिना सीमेंट व कंक्रीट के मात्र रेत से ही।

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बिना रिश्वत आपके घर के नल में पाली की गेंद नहीं टपक सकतीघर में रोशनी नहीं आ सकती । यहाँ तक कि सड़कें बनती नहींकुएँ खुदते नहीं, हैण्डपम्प लगते नहीं, कोई उपकरण या मशीनरी तक खरीदी नहीं जाती, पर लाखों -करोड़ों के बिल पास होकर भुगतान हो जाता

आज इस तेजी से फैलते हुए भ्रष्टाचार के मूल कारण हैं – लोगों की आजीविका के साधनों की कमी का होना, जनसंख्या में तीव्रगति से वृद्धि होते रहना भौतिकता एवं स्वार्थपरता की बढ़ोत्तरी होते रहनासरकार की ढीली नीति का होना, शिक्षा का अभाव होना, फैशन का बढ़ना, झूठी शान-शौकतमहँगाई का तेजी से बढ़ना व सामाजिक कुरीतियों का तेजी से फैलना। यदि हम वास्तव में भ्रष्टाचार के कोढ़ से बचना चाहते हैं तो हमें इन कारणों से स्वयं को बचाना होगा।

भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए हमें कृतसंकल्प होना चाहिए। इसके लिए हमें सदाचार को अपनाना होगा। यही एक रामबाण औषधि है। हमें इसके उन्मूलन के बहुमुखी प्रयासों का श्रीगणेश करना होगा। अपने उच्च आदर्शों से जनजन को प्रभावित करना होगा। तभी हम अपने राष्ट्र को भ्रष्टाचार रूपी दानव के विकराल पंजों से मुक्ति दिला सकते हैं।

यदि हम भ्रष्टाचार रूपी दानव को कुचलने में सफल नहीं हो पाए तो परिणाम होगा कि हिंसक, असामाजिक व अराजक तत्व चारों ओर खुलेआम अपनी मनमानी करने लगेंगे तथा स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। अतः हमें इस पर समय रहते ही नियंत्रण करना होगा।

 

4. भ्रष्टाचार पर निबंध -Essay on Corruption in Hindi

 

भ्रष्टाचार की समस्या

मनुष्य एक सामाजिक, सभ्य और बुद्धिमान प्राणी है। उसे अपने समाज में कई प्रकार के लिखितअलिखित नियमोंअनुशासनों और समझौतों का उचित पालन और निर्वाह करना होता है। उससे अपेक्षा होती है कि वह अपने आचरण-व्यवहार को नियंत्रित और संतुलित रखेजिससे किसी अन्य व्यक्ति को उसके व्यवहार अथवा कार्य से दुख न पहुंचेकिसी की भावनाओं को ठेस न लगे। इसके विपरीत कुछ भी करने से मनुष्य भ्रष्ट होने लगता है। और उसके आचरण और व्यवहार को सामान्य अथों में भ्रष्टाचार कहा जाता है।

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जब व्यक्ति के भ्रष्ट आचरण और व्यवहार पर समाज अथवा सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहता, तब यह एक भयानक रोग की भाँति समाज और देश को खोखला बना डालता है। हमारा समाज भी इस बुराई के शिकंजे में बुरी तरह जकड़ा हुआ है और लोगों का नैतिक मूल्यों से मानो कोई संबंध ही नहीं रह गया है।

हमारे समाज में हर स्तर पर फैल रहे भ्रष्टाचार की व्यापकता में निरंतर वृद्धि हो रही है। भ्रष्टाचार के विभिन्न रूपरंग हैं और इसी प्रकार नाम भी अनेक हैं। उदाहरणस्वरूप रिश्वत लेनामिलावट करना, वस्तुएँ ऊंचे दामों पर बेचना, अधिक लाभ के लिए जमाखोरी करना अथवा कालाबाजारी करना और स्मग्लिंग करना आदि विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचारों के अंतर्गत आता है। आज विभिन्न सरकारी कार्यालयों, नगर-निगम या अन्य प्रकार के सरकारी निगमों आदि में किसी को कोई छोटा-सा एक फाइल को दूसरी मेज तक पहुँचाने जैसा काम भी पड़ जाए, तो बिना रिश्वत दिए यह संभव नहीं हो पाता। किसी पीड़ित को थाने में अपनी रिपोर्ट दर्ज करानी हो, कहीं से कोई फॉर्म लेना या जमा कराना हां, लाइसेंस प्राप्त करना हो अथवा कोई नक्शा आदि पास करवाना हो, तो बिना रिश्वत दिए अपना काम कराना संभव नहीं हो पाता।

किसी भी रूप में रिश्वत लेना या देना भ्रष्टाचार के अंतर्गत ही आता है। आज तो नौबत यह है कि भ्रष्टाचार और रिश्वत के अपराध में पकड़ा गया व्यक्ति रिश्वत ही देकर साफ बच निकलता है। इस प्रकार का भ्रष्टाचार रातदिन फल फूल रहा है। भ्रष्टाचार में वृद्धि होने से आज हमारी समाज व्यवस्था के सम्मुख गंभीर चुनौती उत्पन्न हो गई है।

भ्रष्टाचार के बढ़ने की एक बहुत बड़ी वजह हमारी शासन व्यवस्था की संकल्पविहीनता तो रही है ही, परंतु यदि हम इस समस्या का ध्यान से विश्लेषण करें तो इसका मूल कारण कुछ और ही प्रतीत होता है। वास्तव में, मनुष्य के मन में भौतिक सुखसाधनों को पाने की लालसा निरंतर बढ़ती ही जा रही है। इस लालसा में विस्तार होने के कारण मनुष्य में लोक-लाज तथा परलोक का भय कम हुआ है और वह स्वार्थी, अनैतिक और भौतिकवादी हो गया है। आज वह विभिन्न प्रकार के भौतिक और उपभोक्ता पदार्थों को एकत्रित करने की अंधी दौड़ में शामिल हो चुका है। इसका फल यह हुआ है कि उसका उदार मानवीय आचरण-व्यवहार एकदम पीछे छूट गया है। अब मनुष्य लालचपूर्ण विचारों से ग्रस्त है और वह रातदिन भ्रष्टाचार के नितनए तरीके खोज रहा है। खुद को पाक-साफ मानने वाले हम सभी आम जन भी प्राय: भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में सहायक बन जाते हैं।

हम स्वयं भी जब किसी काम के लिए किसी सरकारी कार्यालय में जाते हैं, तो खैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करना हमें कठिनसा लगने लगता है। किसी कार्य में हो रही अनावश्यक देरी का कारण जानने और उसका विरोध करने का साहस हम नहीं जुटा पाते। इसके बजाय कुछ लेदेकर, बल्कि किसी बात की परवाह किए बिना हम सिर्फ अपना काम निकालना चाहते हैं। आम लोगों का ऐसा आचरण भ्रष्टाचार को प्रश्रय और बढ़ावा ही देता है और ऐसे में यदि हम ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध कुछ कहें अथवा उसे समाप्त करने की बातें करें, तो यह किसी विडंबना से कम नहीं है।

 

भ्रष्टाचार के निवारण के लिए सहज मानवीय चेतनाओं को जगाने, नैतिकता और मानवीय मूल्यों की रक्षा करने, आत्मसंयम अपनाकर अपनी भौतिक आवश्यकताओं को रखने तथा अपने साथ-साथ दूसरों का भी ध्यान रखने की भावना का विकास करने की आवश्यकता है। सहनशीलताधैर्य को अपनाना तथा भौतिक और उपभोक्ता वस्तुओं के प्रति उपेक्षा का भाव विकसित करना भी भ्रष्टाचार को रोकने में सहायक सिद्ध हो सकता है। अन्य उपायों के अंतर्गत सक्षम व दृढ़निश्चयी शासनप्रशासन का होना अति आवश्यक है।

शासनप्रशासन की व्यवस्था से जुड़े सभी व्यक्तियों का अपना दामन अनिवार्य रूप से पाक-साफ रखना चाहिए। आज के संदर्यों में अगली बार सत्ता मिले या न मिलेनौकरी रहे या जाएलेकिन प्रशासन और शासन व्यवस्था को पूरी तरह स्वच्छ व पारदर्शी बनाना ही है-इस प्रकार का संकल्प लेना अति आवश्यक हो गया है। इन उपायों से इतर भ्रष्टाचार पर नियंत्रण या उसके। उन्मूलन का कोई और संभव उपाय फिलहाल नजर नहीं आता।

भ्रष्टाचार से व्यक्ति और समाज दोनों की आत्मा मर जाती है। इससे शासन और प्रशासन की नींव कमजोर पड़ जाती है, जिससे व्यक्ति, समाज और देश की प्रगति की सभी आशाएँ व संभावनाएँ धूमिल पड़ने लगती है। अतयदि हम वास्तव में अपने देश, समाज और संपूर्ण मानवता की प्रगति और विकास चाहते हैं, तो इसके लिए हमें हर संभव उपाय करके सर्वप्रथम भ्रष्टाचार का उन्मूलन करना चाहिएकेवल तब ही हम चहुमुखी विकास और प्रगति के अपने स्वप्न को साकार कर सकेंगे

 

4. भ्रष्टाचार पर निबंध -Essay on Corruption in Hindi

 

भ्रष्टाचार : राष्ट्र के विकास में बाधक

अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए अपने पद का दुरुपयोग करना और अनुचित ढंग से धन कमाना ही भ्रष्टाचार है। हमारे देश में विशेषतया सरकारी विभागों में अधिकांश कर्मचारी और अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। चपरासी हो या उच्च अधिकारी सभी अपने पद का दुरुपयोग करके धन-सम्पत्ति बनाने में लगे हुए हैं। सरकारी विभागों में रिश्वत के बिना कोई भी कार्य कराना आम आदमी के लिए सम्भव नहीं रहा है। कानून बनाने वाले और कानून के रक्षक होने का दावा करने वाले भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। आम जनता के विश्वास पर उसके प्रतिनिधि के रूप में राज-काज सम्भालने वाले आज के राजनेता भी बड़े-बड़े घोटालों में लिप्त पाए गए हैं। प्रष्टाचार के मकड़जाल में हमारे देश का प्रत्येक विभाग जकड़ा हुआ है और देश के विकास में बाधक बन रहा है ।

 

किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए उसके नागरिकों का, राजकीय कर्मचारियों और अधिकारियों का निष्ठावान होना अपने कर्तव्य का पालन करना आवश्यक है। परन्तु हमारे देश में लोग अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए अपने कर्तव्यों को भूलते जा रहे हैं। आज किसी भी विभाग में नौकरी के लिए एक उम्मीदवार को हजारों रुपये रिश्वत के रूप में देने पड़ते हैं। रिश्वत देकर प्राप्त किए गए पद का स्पष्टतया दुरुपयोग ही किया जाता है। वास्तव में हमारे देश में प्रष्टाचार एक लाइलाज रोग के रूप में फैला हुआ है और समस्त सरकारी विभागों में यह आम हो गया है। रिश्वत को आज सुविधाशुल्क का नाम दे दिया गया है और आम आदमी भी इस भ्रष्टाचार-संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है। यद्यपि रिश्वत लेना और देना कानून की दृष्टि में अपराध है, परन्तु सरकारी कर्मचारीअधिकारी निर्भय होकर रिश्वत माँग रहे हैं और आम आदमी सुविधाशुल्क को अपने लिए सुविधा मानने लगा है । कोई ईमानदार व्यक्ति भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने का प्रयास करे भी तो उसकी सुनवाई कैसे हो सकती है, जबकि सुनने वाले स्वयं भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।

 

 

हमारे देश में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि उन्हें उखाड़कर फेंकना सरल नहीं रहा है। प्रष्टाचार का दुप्रभाव अवश्य पूरे देश में दिखाई दे रहा है। छोटे बड़े कार्य अथवा नौकरी के लिए रिश्वत देना-लेना तो आम बात हो गयी है। आम जनता की सुविधा के लिए घोषित की गयी विभिन्न परियोजनाओं का लाभ भी भ्रष्टाचार के कारण आम आदमी को नहीं मिल पा रहा है । सरकारी खजाने से परियोजनाओं के लिए जो धन भेजा जाता है, उसका आधे से अधिक हिस्सा सम्बंधित अधिकारियों की जेबों में जाता है। प्रायः परियोजनाओं का आंशिक लाभ ही आम जनता को मिल पाता है। प्रष्टाचार के कारण अनेक परियोजनाएँ तो अधूरी रह जाती हैं और सरकारी खजाने का करोड़ों रुपया व्यर्थ चला जाता है।

 

वास्तव में भ्रष्टाचार का सर्वाधिक दुष्प्रभाव आम जनता पर पड़ रहा है। सरकारी खजाने की वास्तविक अधिकारी आम जनता सदैव उससे वंचित रहती है। विभिन्न परियोजनाओं में खर्च किया जाने वाला जनता का धन बड़ेबड़े अधिकारियों और मंत्रियों को सुखसुविधाएं प्रदान करता है। विभिन्न विभागों के बड़ेबड़े अधिकारी और राज नेता करोड़ों के घोटाले में सम्मिलित रहे हैं। जनता के रक्षक बनने का दावा करने वाले बड़ेबड़े पुलिस अधिकारी और कानून के रखवाले न्यायाधीश भी आज भ्रष्टाचार से अछूते नहीं हैं । कभी कभार किसी घोटाले अथवा रिश्वत कांड का भंडाफोड़ होता है, तो उसके लिए जाँच समिति का गठन कर दिया जाता है। जाँच की रिपोर्ट आने में वर्षों लग जाते हैं। आम जनता न्याय की प्रतीक्षा करती रहती है। और भ्रष्ट अधिकारी अथवा मंत्री पूर्ववत् सुखसुविधाएँ भोगते रहते हैं। भ्रष्टाचार के रहते आज जाँच रिपोर्ट को भी संदेह की दृष्टि से देखा जाता है ।

 

वास्तव में हमारे देश की जो प्रगति होनी चाहिए थी, आम जनता को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए थीं, प्रष्टाचार के कारण न तो वह प्रगति हो सकी है, न ही जनता को उसका हक मिल पा रहा है। भ्रष्टाचार के रोग को समाप्त करने के लिए हमारे देश को योग्य और ईमानदार नेता की आवश्यकता है।

 

5. भ्रष्टाचार पर निबंध -Essay on Corruption in Hindi

 

भ्रष्टाचार

आज के आधुनिक युग में व्यक्ति का जीवन अपने स्वार्थ तक सीमित होकर रह गया है। प्रत्येक कार्य के पीछे स्वार्थ प्रमुख हो गया है। समाज में अनैतिकताअराजकता और स्वार्थ से युक्त भावनाओं का बोलबाला हो गया है। परिणाम स्वरुप भारतीय संस्कृति और उसका पवित्र तथा नैतिक स्वरुप धुंधला-सा हो गया है। इसका एक कारण समाज में फैल रहा भ्रष्टाचार भी है।

भ्रष्टाचार के इस विकराल रुप को धारण करने का सबसे बड़ा कारण यही है कि इस अर्थप्रधान युग में प्रत्येक व्यक्ति धन प्राप्त करने में लगा हुआ है। कमरतोड़ महंगाई भी इसका एक प्रमुख कारण है। मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ जाने के कारण वह उन्हें पूरा करने के लिए मनचाहे तरीकों को अपना रहा है।

भारत के अंदर तो भ्रष्टाचार का फैलाव दिन-भरदिन बढ़ रहा है। किसी भी क्षेत्र में चले जाएं भ्रष्टाचार का फैलाव दिखाई देता है। भारत के सरकारी व गैर-सरकारी विभाग इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण हैं। आप यहाँ से अपना कोई भी काम करवाना चाहते हैं, बिना रिश्वत खिलाए काम करवाना संभव नहीं है। मंत्री से लेकर संतरी तक को आपको अपनी फाइल बढ़वाने के लिए पैसे का उपहार चढाना ही पड़ेगा। स्कूल व कॉलेज भी इस भ्रष्टाचार से अछूते नहीं है। बस इनके तरीके दूसरे हैं। गरीब परीवारों के बच्चों के लिए तो शिक्षा सरकारी स्कूलों व छोटे कॉलेजों तक सीमित होकर रह गई है। नामी स्कूलों में दाखिला कराना हो तो डोनेशन के नाम पर मोटी रकम मांगी जाती है।

बैंक जो की हर देश की अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ है वे भी भ्रष्टाचार के इस रोग से पीडित हैं। आप किसी प्रकार के लोन के लिए आवेदन करें पर बिना किसी परेशानी के फाइल निकल जाए यह तो संभव नहीं हो सकता। देश की आंतरिक सुरक्षा का भार हमारे पुलिस विभाग पर होता परन्तु आए दिन यह समाचार आते-रहते हैं। की आमुक पुलिस अफसर ने रिश्वत लेकर एक गुनाहगार को छोड़ दिया। भारत को यह भ्रष्टाचार खोखला बना रहा है।

 

हमें हमारे समाज में फन फैला रहे इस विकराल नाग को मारना होगा। सबसे पहले आवश्यक है प्रत्येक व्यक्ति के मनोबल को ऊँचा उठाना। प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अपने को इस भ्रष्टाचार से बाहर निकालना होगा। यही नहीं शिक्षा में कुछ ऐसा अनिवार्य अंश जोड़ा जाए। जिससे हमारी नई पीढ़ी प्राचीन संस्कृति तथा नैतिक प्रतिमानों को संस्कार स्वरुप लेकर वकसित हो। न्यायिक व्यवस्था को कठोर करना होगा तथा सामान्य ज्ञान को आवश्यक सुविधाएँ भी सुलभ करनी होगी। इसी आधार पर आगे बढ़ना होगा तभी इस स्थिति में कुछ सुधार की अपेक्षा की जा सकती है।

 

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भ्रष्टाचार : समस्या और समाधान

भ्रष्टाचार की परिभाषा-‘आचार: परमोधर्म’ की उक्ति में जीवन का परम सत्य छिपा है। यहाँ आचार सदाचार’ ही माना गया है, किंतु सदाचार का क्या अर्थ है? और भ्रष्टाचार किसे कहते हैं? ये प्रश्न विचारणीय हैं। धार्मिक ग्रंथों में सदाचार की अनेक गुण-लीलाएँ गाई गई हैं। धार्मिक पुरुष सदाचारी होता है, ऐसा विश्वास किया गया है। सज्जन जैसा आचरण करते हैं, वह सदाचार कहा जाता है। सज्जनों के प्रतिकूल आचरण करनेवाला भ्रष्टाचारी है। यह आचार की धार्मिक परिभाषा है।

भ्रष्टाचार क्या है?

इसका अनुभव सभी को समान नहीं होता। कोई रिश्वत लेनेदेने को भ्रष्टाचार समझता है तो कोई इसे अपना पुरुषार्थ समझकर आत्मा को ग्लानि की अग्नि से बचाए रखता है। कोई एक पैसा रखना भी अपरिग्रह के नियम की अवहेलना मानता है तो कोई किसी भी रीति-नीति से धन-संग्रह को अपना परम-कर्तव्य जानकर अदृश्य आर्थिक मामलों में उलझा रहता है। भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ आचार से भ्रष्ट अथवा गिरा हुआ है।

भ्रष्टाचार के अंग-

आचार के लिखित अथवा अलिखित न्यूनतम नैतिक मूल्यों के स्तर से गिर जाना ही भ्रष्टाचार है। आज के युग में धार्मिक पुरुष भी अपने आचार से गिरते जा रहे हैं। रिश्वत लेना-देना, खाद्य पदार्थों में मिलावटमुनाफाखोरी, अनैतिक ढंग से धन-संग्रह, कानूनों की अवहेलना करके उल्लू सीधा करना, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में पक्षपातपूर्ण व्यवहार, भाई-भतीजावाद, जातिवाद, कथनी और करनी में अंतर, लाल फीताशाही तथा स्वार्थ में पद एवं सत्ता का दुरुपयोग आदि भ्रष्टाचार के अंग ही हैं। असत्य भाषणसभी प्रकार की चोरियाँ, व्यभिचार, अत्याचार और मिथ्या धारणा भी सदैव से भ्रष्टाचार के ही अंतर्गत आते हैं।

 

भ्रष्टाचार के कारण

मनुष्य को भ्रष्टाचार कब अपनाना पड़ता है और वह भ्रष्टाचारी क्यों बन जाता है? इसके अनेक कारण हैं। मनुष्य की आवश्यकताएँ अनंत हैं, जिनकी पूर्ति के लिए वह हमेशा प्रयत्न करता आया है। यदि किसी आवश्यकता को पूरा करने में उचित माध्यम सफल नहीं होता तो वह अनुचित माध्यम से उसकी पूर्ति का सफलअसफल प्रयास करता है। अपने प्रियजनों को लाभ पहुंचाने की इच्छा ने भी व्यक्ति को उचित-अनुचित साधनों का खुलकर प्रयोग करने को विवश कर दिया है। आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भ्रष्टाचार व्याप्त है।

धनलिप्सा-

धन की लिप्सा ने आज आर्थिक क्षेत्र में कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, रिश्वतखोरी आदि को बढ़ावा दिया है। अनुचित तरीकों से धनसंग्रह किया जा रह है। नौकरी-पेशा व्यक्ति अपने सेवाकाल में इतना धन अर्जित करना चाहता है, जिससे अवकाश-प्राप्ति के बाद का जीवन सुख से व्यतीत हो सकेव्यापारी-वर्ग सोचता है कि न जाने कब घाटे की स्थिति आ जाए? सरकार की नीति में कौन-सा परिवर्तन आ जाए? इसलिए वह अपनी तिजोरियों को भरने में लग जाता है। जीवन-यापन के पर्याप्त साधनों के अभाव में मनुष्य विवश होकर अनुचित साधनों का प्रयोग करने लगता है। ‘आपातकाले मर्यादानास्ति’ की सत्यता समाज में देखने को मिलती है। धन और प्रतिष्ठा की प्राप्ति में होड़ लगी हुई है। प्रत्येक अपने को दूसरे से अधिक धनी और प्रतिष्ठित बनाना चाहता है।

 

जीवन का प्रत्येक क्षेत्र भ्रष्टाचार में लिप्त-

आज जीवन का शायद ही कोई क्षेत्र मिले जिसमें भ्रष्टाचार नहीं हो। आजकल सर्वत्र भ्रष्टाचार का उद्घोष सुनाई पड़ रहा है। अनेक देशों में मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करने का उत्तरदायित्व सरकार ने ले लिया है। अनेक देशों में लोक-कल्याणकारी राज्यों की स्थापना की गई है तथा मनुष्य को भ्रष्टाचारी बनाने के सभी कारणों को समूल नष्ट करने का प्रयत्न किया जा रहा है। किंतु वहाँ भी भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो पाया, कहींकहीं तो वह रूप बदलकर मानव के साथ लगा हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भ्रष्टाचार के अनेक उदाहरण मिलते हैं।

 

राजनीतिक भ्रष्टाचार-

गत वर्षों में राजनीतिक भ्रष्टाचार की पोल खुलकर सामने आई है। अनेक आयोग बनाए गए और अनेक लोग दोषी भी पाए गए, किंतु नेताओं की प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आई। नेता सेवा की भावना से कार्य नहीं करते। अपितु सत्ता के लिए देश-सेवा का ढोंग रचते हैं। राजनीतिक विचारधाराओं में सिद्धांतहीनता सर्वत्र व्याप्त है। दल-बदलुओं की बढ़ती हुई प्रकृति भ्रष्टाचार का एक जीता-जागता उदाहरण है। चुनाव में जीतकर नेता अपने चुनाव-व्यय की पूर्ति में लग जाते हैं। वे भावी चुनाव के लिए धन जुटाने में लगे रहते हैं।

राजकार्यों में धोखा, छल झूठ विश्वासघात अविश्वासहत्या, व्यभिचार आदि दुर्गुण अपने अनेक रूपों में विद्यमान हैं। अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को मार्ग से हटाने के लिए हत्या की राजनीति अपनाई जाने लगी है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भुट्टो को फाँसी के तख्ते पर लटकाया गया। ईरान, अफगानिस्तान का आधुनिक इतिहास हत्याओं का इतिहास कहलाएगा। अनेक देशों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से नताओं को मौत के घाट उतार दिया जाता है। अधिनायकवाद एवं साम्राज्यवाद तो भ्रष्टाचार की साक्षात् प्रतिमूर्ति है। आर्थिक भ्रष्टाचार आर्थिक जीवन में भी भ्रष्टाचार अपनी चरमसीमा को प्राप्त हो चुका है। आवश्यक वस्तुओं में मिलावट, बंद पैकिटों में वस्तु की अनुपस्थिति, लेबिल कुछ तो सामान कुछमूल्यों में अनुचित वृद्धि, कृत्रिम अभाव उत्पन्न कर अधिक लाभ कमाना, थोड़े से लाभ या स्वार्थ में झूठ बोल देना आदि आर्थिक भ्रष्टाचार के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। विभिन्न क्षेत्रों में भ्रष्टाचार का नंगा नाच हो रहा है। सरकारी विभाग भ्रष्टाचार के अड्डे बन चुके हैं। कर्मचारीगण मौका पाते ही अनुचित लाभ उठाने से नहीं चूकते हैं।

 

सामाजिक जीवन में भ्रष्टाचार-

सामाजिक जीवन में भी भ्रष्टाचार किसी से पीछे नहीं है। बलात्कार, चोरी, हत्या, धोखा, अपहरण, अवैध संबंधों की चर्चा, नाजायज संतानों का जन्म, विवाह के बंधन एक-एक करके टूटना, अकारण विवाहविच्छेद, नारियों का अपमान, हरिजन-अछूत की समस्या, ठगों-ढोंगीजनों का बढ़ता व्यापार आदि अनेक प्रकार के भ्रष्टाचार सामाजिक जीवन में नित्यप्रति देखने को मिलते हैं। संपूर्ण समाज भ्रष्टाचार की पकड़ में है। धार्मिक संस्थाओं में संपत्ति का उपभोग, चंदे की राशि को डकार जाना, भगवान को भी धोखा देना, अनेक बाढाडंबरों में लिप्त समाज-सुधारकों का लोभी-लपट होना, दान की वस्तु पर अपना एकाधिकार जमाना आदि अनेक ऐसे कृत्य हैं, जिन्हें ‘गाय मारकर जूता दान करने के समान’ कहा जा सकता। है। पैसे के बल पर न्याय-व्यवस्था तक दूषित हो गई है। भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय-अब प्रश्न उठता है कि भ्रष्टाचार का भयंकर भूत किस प्रकार भगाया जा सकता है? यद्यपि भ्रष्टाचार को समूल नष्ट नहीं किया जा सकताकिंतु कम तो किया जा सकता है।

(क) जीवन-मूल्यों की पहचान-

जीवनमूल्यों को पहचानने का प्रयत्न करके उनके यथावत् पालन का दृढ़ संकल्प किया जाए। भ्रष्टाचार को मिटाने में धार्मिक संस्थाओं का सहयोग अवश्य लेना चाहिए। सच्चे धार्मिक पुरुषों का आदर किया जाना चाहिए। समाज-सुधारक इस कार्य में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। नैतिक शिक्षा का, जो धार्मिकशिक्षा का अंग है, विस्तार किया जाना चाहिए।

(ख) योजनाबद्ध अभियान चलाना-

भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए योजनाबद्ध तरीकों से अभियान चलाना चाहिए। धन के प्रति लिप्सा, यश की प्राप्ति का मोह दूर करने के क्रियात्मक उपायों का प्रयोग किया जाना चाहिए। भ्रष्टाचारी को समाज से बहिष्कृत तो नहीं किया जा सकताकिंतु दडित अवश्य किया जा सकता है। मानव-जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति का उत्तरदायित्व समाज का होना चाहिए। गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ापन आदि को दूर किए बिना भ्रष्टाचार को मिटा देना कल्पना मात्र है। पर्याप्त साधनों के साथसाथ मनुष्य के पास संतुलित बुद्धि भी आवश्यक है।

 

(ग) कानूनों की सहायता

कानून भी भ्रष्टाचार को कम करने में सहायक सिद्ध हुए हैं, किंतु कानूनों का यथावत् पालन करना और कराना स्वयं भ्रष्टाचारी लोगों के हाथ में होता है इसलिए कानून और दंड केवल गरीबों के लिए ही होते हैं, धनी इन कानूनों पर राज्य करते हैं, उन्हें कानून के छिद्रों का पता लग जाने से लाभ ही मिलता है। कानून और व्यवस्था इस ढंग से स्थापित की जाए कि लोग उसके शिकंजे से बच न पाएँ। सर्वोत्तम उपाय तो भ्रष्टजनों की मनोवृत्तियों को बदलना है, जिसमें कानून तथा समाज की धार्मिक संस्थाएँ योगदान कर सकती हैं।

भ्रष्टाचार मानव-जीवन के लिए कलंक है। नैतिक मूल्यों के हास और स्वार्थ के उद्गम के साथ ही भ्रष्टाचार का जन्म होता है। इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने सामाजिक जीवन में पनपने वाले क्षुद्र स्वार्थों को त्यागकर राष्ट्र का हित चिंतन करें तभी हम भ्रष्टाचार के दानव से मुक्ति पा सकते हैं।

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Written by

Romi Sharma

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