हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाया हु Essay on Environment in Hindi पर पुरा आर्टिकल लेकर आया हु। पर्यावरण का बचाव आज हम सबके लिए बहुत जरुरी है। आज essay सिर्फ स्कूलों में ही दिए जाते है ताकि बच्चे उस विषय के बारे में जान सके। अगर स्कूल में आपके बच्चो को पर्यावरण पर निबंध या essay लिखने के लिए बोला गया है तो आप नीचे दिए हुवे आर्टिकल को पढ़ सकते है। आईये पढ़ते है Essay on Environment in Hindi
पर्यावरण पर निबंध Essay on Environment in Hindi
व्यक्ति अपने पर्यावरण में निवास करता है। वह अपने पर्यावरण का एक हिस्सा होता है। पर्यावरण में होने वाली विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से वह बहुत प्रभावित होता है। इसलिए जरूरी है कि हमारा पर्यावरण साफ़-सुथरा रहे। पर्यावरण में किसी प्रकार का असंतुलन न उत्पन्न हो जाए। दुर्भाग्यवश कई कारणों से वर्तमान समय में हमारे पर्यावरण में असंतुलन आ गया है। जलवायु, मिट्टी, वन जैसे प्राकृतिक तत्व प्रदूषित हो रहे हैं। इसका परिणाम है – जलवायु में परिवर्तनजैव विविधता के लिए संकटबाढ़, सूखा और स्वास्थ्य संबंधी अनेकानेक समस्याएँ। अत हमें अपनी गतिविधियों को नियंत्रित करना होगा जो पर्यावरण को तरह-तरह से बिगाड़ रहे हैं।
हमें अपने चारों ओर की आबोहवा को शुद्ध रखना होगा। हमें जल और वायु की शुद्धता बनाए रखने के प्रयास करने होंगे। वनों को नष्ट होने से रोकना होगा तथा वन्य जीवन के संरक्षण के प्रयास करने होंगे। अपने पर्यावरण को सही दशा में बनाए रखना प्रत्येक नागरिक का परम कर्तव्य है।
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पर्यावरण पर निबंध
प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक मनुष्य ने अतीव उन्नति की है। प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक वैज्ञानिक सुपरसोनिक युग तक मनुष्य ने सफलता एवं विकास के अनेक पायदान चढ़े हैं। यहां तक कि आज का मनुष्य इस वसुंधरा का त्यागकर चांद और मंगल ग्रह पर जीवन की सम्भावनाएं तलाशकर वहां स्थायी रूप से बस जाने का विचार भी कर रहा है। उसके इस विचार के पीछे प्रमुख कारण है-पृथ्वी पर बढ़ते प्रदूषण की समस्या। वस्तुतः यह समस्या भी स्वयं मनुष्य को ही देन है।
वह अपना विकास करने के स्वार्थ में इतना अंधा हो गया कि उसने प्राकृतिक संसाधनों का यथाशक्ति दोहन कियाजैसे-पेड़पौधों और प्राकृतिक वनस्पति से भरपूर वनों को काटकर वहां कंक्रीट की इमारतें और कलकारखाने बनाए, चट्टानों को खोदकर कोयला और अन्य खनिज पदार्थ निकाले गएजल के भीतर से खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस निकाली गईआदि।
उसने विविध प्रकार के कृत्रिम विपैले रासायनिक कचरे को मिट्टी और पानी में डालकर उन्हें प्रदूषित और विद्युला बनाया तथा उसके द्वारा निर्मित कलकारखानोंफैक्ट्रियों, यातायात के साधनों (बसकार, ट्रक, वायुयानजलयान आदि) से निकलने वाले धुएं ने वायु को प्रदूषित किया।
यह प्रदूषण जब इतना अधिक बढ़ गया कि मनुष्य के स्वास्थ्य को खराब करने लगा तब मनुष्य चेता और उसका ध्यान पर्यावरण संरक्षण की ओर गया। वर्तमान संदर्भ में यदि देखा जाए तो पर्यावरण संरक्षण आज विश्व के सम्मुख विद्यमान सर्वाधिक ज्वलंत और जटिल समस्याओं में अग्रणी है।
वस्तुत: पर्यावरण के संरक्षण का प्रश्न तभी से उठने लगा था जब मनुष्य ने प्रकृति का दोहन उसकी वहन क्षमता से अधिक करना शुरू किया और इसकी शुरूआत औद्योगिक क्रांति के साथ ही हो गई थी। प्रकृति से करोड़ों वर्षों में निर्मित सौगातें मनुष्य ने कुछ ही वर्षों में निर्ममता से निकालकर उसकी छाती को छतविछत कर दिया है। वर्तमान में मनुष्य के समक्ष अस्तित्व का प्रश्न मुंह बाए खड़ा है।
पृथ्वी के कवच ओजोन गैस से लेकर पेड़पौधेपशुपक्षी आदि सभी मनुष्य की उपभोक्तावादी संस्कृति का शिकार हो रहे हैं। प्रकृति ईश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदत्त एक अमूल्य उपहार और उसकी अनमोल धरोहर है। किंतुदुर्भाग्य से मनुष्य यह नहीं समझ पा रहा है कि प्रकृति की कीमत पर प्राप्त प्रत्येक वस्तु के लिए उसे अंत में पछताना पड़ेगा। मनुष्य द्वारा प्रकृति के विनाश के आंकड़ों को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि मनुष्य द्वारा 1950 तक लगभग आधे प्राकृतिक वन साफ किए जा चुके थे। विगत मात्र 1990-2000 के एक दशक में ही पृथ्वी से लगभग 940 लाख हेक्टेयर हरेभरे वृक्ष काटे गए।
इसके परिणामस्वरूप पेड़पौधों एवं जीवजंतुओं की कुल ज्ञात प्रजातियों में से 11000 प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं और 800 प्रजातियां तो विलुप्त हो चुकी हैं। विकासशील देशों में प्रत्येक वर्ष 5060 लाख मनुष्य प्रदूषित जल अथवा प्रदूषित वायु के कारण हुई बीमारियों से कालकवलित हो जाते हैं।
एशियन ब्राउन हेजसमुद्रों में तेल के टैंकरों का रिसावउत्तरी ध्रुव में बर्फ की चट्टानों की मोटाई का कम होना, हिमालय के ग्लेशियरों का पीछे सरकनाउत्तरी अमेरिका में ठंड के दिनों में औसत तापमान में वृद्धि, आदि सभी संकेतक इस ओर पुरजोर इशारा कर रहे हैं कि सबकुछ ठीक और अनुकूल नहीं चल रहा है, कहीं कुछ गड़बड़ अवश्य है।
प्राकृतिक स्थलों का पर्यावरण पर्यटन की दृष्टि से अधिकाधिक दोहन किया जा रहा है। ऐसे स्थलों में प्राकृतिक रूप से निवास करने वाले पशुपक्षी एवं पेड़ पेड़पौधे ज्ञात-अज्ञात स्तर पर गम्भीर विस्थापन एक गम्भीर खामोशी के साथ मानो मानव मात्र को अंतिम चेतावनी देते प्रतीत होते हैं कि यदि अब भी नहीं चेते तो बहुत देर हो जाएगी। इस चेतावनी के पश्चात् भी यदि मनुष्य न चेता तो वैश्विक तापन (Global warmingके कारण ध्रुवों की बर्फ पिघलेगी और अधिकांश समुद्र तट पर बसे मुम्बई एवं लंदन जैसे शहर जलमग्न हो जाएंगे जीवजंतुओं और प्राकृतिक वनस्पति की अनेक प्रजातियां नष्ट हो जाएंगी, जलवायु में परिवर्तन होगा, ओजोन परत का क्षय होगा, इन सबका खामियाजा मनुष्य सहित सम्पूर्ण सजीव जगत को भरना होगा। सम्भव है कि एक दिन पृथ्वी पर से जीवन का लोप ही हो जाए और यदि जीवन विलुप्त नहीं भी होता तो वो इतना दयनीय | अवश्य हो जाएगा कि हमारी आने वाली पीढ़ियां हमसे ये प्रश्न करेंगीं कि आपने जानबूझकर अपने पांवों पर कुल्हाड़ी क्यों मारी और हमारी हरीभरी वसुंधरा की अनमोल धरोहर को नष्ट क्यों किया?
रेड डाटा बुक में दर्ज संरक्षित प्रजातियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। जैवविविधता के संरक्षण हेतु बचे हुए सबूतों को खोजखोजकर प्रयोगशालाओं के शीतगृहों में संरक्षित किया जा रहा है। एक ओर जहां ये प्रयास किए जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर यह भी कटु सत्य है कि विश्व में आर्थिक विकास एवं समृद्धि के सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने की अंधी दौड़ अभी भी जारी है। इसी के परिणामस्वरूप जारी है, प्राकृतिक वनों का विनाश और कंक्रीट के जंगलों का निर्माणदिनरात विपैला धुआं छोड़ने वाले उद्योगों का निर्माण आदि।
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पर्यावरण संरक्षण की गतिविधियों को मनुष्य की दिनचर्या का अंग बनाने हेतु आवश्यक है कि इस संदर्भ में व्यापक जनजागरूकता कार्यक्रम बनाया और अंगीकार किया जाए। भारत सहित विश्व के समस्त पर्यावरणविदों द्वारा एकजुट होकर यह प्रयास करना चाहिए कि प्रदूषण के स्तर में संतुलन बना रहे। विभिन्न राष्ट्रीयअंतरराष्ट्रीय एवं गैरसरकारी स्वयंसेवी संस्थाओं (ग्रीन पीस, डब्ल्यूडब्ल्यू. एफ., आदिको इस संदर्भ में और अधिक ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
अंततः यह कहा जा सकता है कि प्रकृति का संरक्षण ही मानव के दीर्घजीवी होने की गारण्टी है। अतः प्रकृति के संरक्षण को प्राथमिक लक्ष्य बनाकर किया गया विकास ही दीर्घावधि तक बना रह सकता है। यह सत्य है कि पर्यावरण संरक्षण आज एक उभरती हुई ज्वलंत समस्या है किंतु इसमें सम्भावनाएं भी अनंत हैं। मनुष्य प्रकृति के और अधिक निकट आ रहा है साथ ही समस्त वर्जनाएं और भ्रम भी टूट रहे हैं, जो कभी विज्ञान के समक्ष एक प्रश्नचिन्ह बने हुए थे।
आवश्यकता केवल इस बात की है कि मनुष्य जाने-अंजाने प्रकृति के लिए विनाशकारी सिद्ध हो चुकी गतिविधियों का ईमानदारीपूर्वक परित्याग करे और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य करे।
पर्यावरण पर निबंध
इस पृथ्वी पर प्राकृतिक अवस्था में विभिन्न जीव-जन्तुओं वनस्पतियों, मानव-जाति के आसपास विद्यमान समस्त रचना-संसार को पर्यावरण कहा जाता है। प्रकृति का रचना-संसार अपने मूल रूप में ही शुद्धस्वच्छ एवं स्वस्थ रहता है। विभिन्न जीवजन्तुपेड़-पौधे, पर्वतमालाएँझरने, नदियाँ इत्यादि प्राकृतिक अवस्था में फलतेफूलते हैं और इन पर किसी भी प्रकार के बाहरी प्रहार इनके संतुलन के लिए खतरे का कार्य करते हैं। पर्यावरण का संतुलन बने रहना प्रकृति के समस्त रचना-संसार के लिए हितकर है। मानवजाति के हित के लिए भी पर्यावरण संतुलन अनिवार्य है। पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने से समस्त रचनासंसार के साथ मानव-जाति को भी हानि ही होती है। अतः पर्यावरण सुरक्षा बहुत आवश्यक है।
मनुष्य ने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए बारम्बार पर्यावरण से खिलवाड़ किया है। उसने वनों को काट-काटकर सूखे मैदान बना दिए। यातायात के मार्ग बनाने के लिए मनुष्य ने पर्वतों को भी उजाड़ दिया। आज अधिकांश कृषि योग्य भूमि पर कंकरीट के जंगल खड़े हुए हैं। फलतः जीव-जन्तुओंपक्षियों की अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी , अनेक विलुप्त होने के कगार पर हैं । वनों, पर्वतों से उपलब्ध होने वाली अधिकांश उपयोगी वनस्पति, औषधियाँ समाप्त हो गयी हैं। पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने से ऋतुओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अब वषा अपने पूर्ण यौवन से नहीं आती। वनों, पेड़-पौधों के अभाव में मिट्टी का कटाव भी बढ़ गया है। नदियों की गहराई कम हो गयी है। कलकारखानों से निकलने वाली विशैली गैस के कारण वायु दूषित हो गयी है । मिल-कारखानों से निकलने वाले दूषित जल के अतिरिक्त मनुष्य ने कूड़ाकचरा बहाकर नदियों के जल को भी विद्युला बना दिया है। आज सम्पूर्ण वातावरण दूषित हो गया
है। इसका मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। और अनेक रोग जन्म ले रहे हैं। पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करके मनुष्य ने स्वयं मानव-जाति के लिए अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न कर दी हैं। आज पृथ्वी पर साँस लेना मनुष्य के लिए दूभर हो गया है। प्राचीन काल में वनों पेड़-पौधों के सरंक्षण पर बल दिया जाता था। मनुष्य अपनी आवश्यकता के लिए वृक्षों को काटता अवश्य था, परन्तु वह नये वृक्ष भी उगाता था। वनोंवनस्पतियों की उपस्थिति में वातावरण भी शुद्ध रहता था। विभिन्न जीव-जन्तुपशु-पक्षी प्रकृति की गोद में स्वच्छंद विचरण किया करते थे। आज प्रकृति का वह सौंदर्य मात्र कल्पनाओं में रह गया है। वास्तव में नगरोंमहानगरों के विकास ने पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचाई है। वातावरण में फैली विक्षैली गैस पर्यावरण पर निरन्तर प्रहार कर रही है। असंतुलित पर्यावरण के दुष्परिणाम सम्पूर्ण मानव-जाति को भोगने पड़ रहे हैं । यही कारण है कि आज विश्व के समस्त देश पर्यावरण-सुरक्षा पर विचार करने लगे हैं।
मनुष्य पर्यावरण को जो हानि पहुंचा चुका है, उसकी भरपाई आसान नहीं है। परन्तु आज पर्यावरण-सुरक्षा के प्रति मनुष्य का सजग बने रहना बहुत आवश्यक है। अनेक जीव-जन्तुओं वनस्पतियों के साथ मानव-जाति के निरन्तर हो रहे विनाश को रोकने के लिए आज पर्यावरण-सुरक्षा अनिवार्य हो गयी है। इसके लिए हमें सामूहिक रूप से प्रयास करने की आवश्यकता
पर्यावरण पर निबंध
पर्यावरण प्रदूषण के कारण ही पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। इस ताप का प्रभाव ध्वनि की गति पर भी पड़ता है। तापमान में एक डिग्री सेल्सियस ताप बढ़ने पर ध्वनि की गति लगभग साठ सेंटीमीटर प्रति सेकेण्ड बढ़ जाती है। आज हर ध्वनि की गति तीव्र है और श्रवण शक्ति का ह्रास हो रहा है। यही कारण है कि आज बहुत दूर से घोड़ों के टापों की आवाज जमीन पर कान लगाकर नहीं सुनी जा सकती। जबकि प्राचीन काल में राजाओं की सेना इस तकनीक का प्रयोग करती थी। बढ़ते उद्योगों, महानगरों के विस्तार तथा सड़कों पर बढ़ते वाहनों के बोझ ने हमारे समक्ष कई तरह की समस्या खड़ी कर दी हैं। इनमें सबसे भयंकर समस्या है प्रदूषण। इससे हमारा पर्यावरण संतुलन तो बिगड़ ही रहा है साथ ही यह प्रकृति प्रदत्त वायु व जल को भी दूषित कर रहा है। पर्यावरण में प्रदूषण कई प्रकार के हैं। इनमें मुख्य रूप से ध्वनि प्रदूषणवायु प्रदूषण और जल प्रदूषण शामिल हैं। इनसे हमारा सामाजिक जीवन प्रभावित होने लगा है। तरह-तरह के रोग उत्पन्न होने लगे हैं।
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औद्योगिक संस्थाओं को -करकट रासायनिक द्रव्य व इनसे निकलने वाला अवजल नाली-नालों से होते हुए नदियों में गिर रहे हैं। इसके अतिरिक्त अंत्येष्टि के अवशेष तथा छोटे बच्चों के शवों को नदी में बहाने की प्रथा है। इनके परिणामस्वरूप नदी का पानी दूषित हो जाता है। हालांकि नदी के इस जल को वैज्ञानिक तरीके से शोधित कर पेय जल बनाया जाता है। लेकिन इस कथित शुद्ध जल के उपयोग से कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो रहे हैं। इनमें खाद्य विषाक्तता तथा चर्म रोग प्रमुख है। प्रदूषित जल मानव जीवन को ही नहीं कई अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है। इससे कृषि क्षेत्र भी अछूता नहीं है। प्रदूषित जल से खेतों सिंचाई करने के कारण उनमें उत्पन्न होने वाले खाद्य पदार्थों की शुद्धता व उसके अन्य पक्षों पर भी उसका दुष्प्रभाव पड़ता है।
शुद्ध वायु जीवित रहने के साथ-साथ हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। शुद्ध वायु का स्रोत वनहरेभरे बाग व लहलहाते पेड़पौधे हैं। क्योंकि यह जहां प्रदूषण के भक्षक हैं वहीं यह हमें आक्सीजन प्रदान करते हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण आवास की समस्या उत्पन्न होने लग रही है। मानव ने अपनी आवासीय पूर्ति के लिए वन क्षेत्रों और वृक्षों का भारी मात्रा में दोहन किया। इसके अलावा हरित पट्टियों पर कंकरीट के जाल रूपी सड़कें बिछा दी हैंइस कारण हमें शुद्ध वायु नहीं मिल पा रही। इसके अतिरिक्त कारखानों से निकलने वाली विषैली गैसेंधुंआ,-कचरों से उत्पन्न गैस वायु को प्रदूषित कर रही है। रही सही कसर पेट्रोलियम पदार्थ से चलने वाले वाहनों ने पूरी कर दी है।
स्कूटर, मोटरसाइकिलकारबसट्रक आदि वाहन दिन रात सड़कों पर दौड़ रहे हैं। इनसे जो धुंआ निकलता है उसमें कार्बनडाय आक्साइड, सल्फ्यूरिक एसिड और शीशे के तत्व शामिल होते हैं। जो हमारे वायुमंडल में घुलकर उसे प्रदूषित करते हैं। दिल्ली जैसे महानगर में वायु को प्रदूषित करने में वाहनों की अहम् भूमिका है। वायु को प्रदूषित करने में इनका हिस्सा साठ प्रतिशत तथा शेष कारखानों व अन्य स्रोतों के जरिये होता है।
वायु प्रदूषण से श्वास सम्बन्धी रोग उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा यह हमारे नेत्रों व त्वचा को भी प्रभावित करती है।
हमारे वातावरण में मनुष्य की ध्वनि के अतिरिक्त प्रकृति और प्राकृतिक वातावरण से सुनाई देने वाली भी कुछ ध्वनियां हैं। पक्षियों के चहचहाने, पत्तों का टकरानेबादलों और समुद्र की हल्की गर्जना आदि से भी ध्वनि उत्पन्न होती है। इन ध्वनियों को प्रकृति का संगीत मानकर उनका आनन्द लिया जाता है। लेकिन यही ध्वनियां जब तेज हो उठती हैं तो कानों को चुभने लगती हैं। तेज ध्वनि से कानों के पर्दे फट जाने और व्यक्ति के बहरा हो जाने का भय होता है। इस भयप्रद ध्वनियों के प्रभाव को वास्तव में ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है।
प्रात: से ही हम ध्वनि प्रदूषण का शिकार होने लगते हैं। इस समय मन्दिरोंमस्जिदों, गुरुद्वारों में कीर्तन मण्डलियों द्वारा लाउडस्पीकर चलाकर भजन गाये जाते हैं। यह भी ध्वनि प्रदूषण का एक बहुत बड़ा हानिप्रद कारण है। इम पर अंकुश लगाने में हमारा धर्म आड़े आ जाता है। यही कारण है कि इस पर कानूनी अंकुश लगाने में सफलता नहीं मिल पा रही है। इसके अतिरिक्त मोटरोंकारोंट्रकों, बसोंस्कूटरों आदि के तेज आवाज वाले हार्नतेज गति व आवाज से दौड़ती , कल- कारखानों के बजते भोंपू व मशीनों की आवाज भी ध्वनि प्रदूषण फैलाती है। संगीत की कोकिल ध्वनि चित्त को जहां शांति व खुशी प्रदान करती है वहीं दूसरी ओर वाहनों का शोर हमें कान की व्याधि का शिकार बना रहा है। ध्वनि व शोर में कोई अधिक अंतर नहीं है। शोर वह ध्वनि है जिसे हम नहीं चाहते। अधिक तीव्रता एवं प्रबलता की ध्वनि ही शोर कहलाती है।
बड़े शहरों के खुले वातावरण में तीस डेसीबल का शोर हर समय रहता है। कभीकभी यह पचास से डेढ़ सौ डेसीबल तक बढ़ जाता है। उल्लेखनीय है कि किसी सोये हुए व्यक्ति की निद्रा चालीस डेसीबल के शोर से खुल जाती है। पहले प्रात: चिड़ियों की चहचहाट से नींद खुलती थी लेकिन अब मोटर वाहनों की शोरगुल से नींद खुलती है। अकेले दिल्ली में सड़कों पर दौड़ते वाहनों एवं कर्कश कोलाहल से करीब सवा करोड़ की आबादी में से अधिकतर लोग शोर जनित बहरेपन के शिकार हैं। ऐसे लोगों को फ्रस्फुसाहट सुनाई नहीं देती। पचास डेसीबल का शोर हमारे श्रवण शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। दीवाली पर चलाये जाने वाले पटाखों का शोर दौ सौ डेसीबल से भी अधिक होता है।
ध्वनि प्रदूषण कानों की श्रवण शक्ति के लिए तो हानिकारक है ही, साथ ही यह तन मन की शान्ति को भी प्रभावित करता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण मानव चिड़चिड़ा और असहिष्णु हो जाता है। इसके अलावा अन्य कई विकार पैदा होने लगते हैं। हमें प्रदूषण से बचने के लिए हरित क्षेत्र विकसित करना होगा। इसके अतिरिक्त आवासीय क्षेत्रों में चल रही औद्योगिक इकाइयों को वहां से स्थानांतरित कर इन इकाइयों से निकलने वाले कचरे को जलाकर नष्ट करने जैसे कुछ उपाय अपनाकर प्रदूषण पर कुछ हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।
पर्यावरण पर निबंध
आज सबसे बड़ी समस्या है प्रदूषणइस समस्या की ओर आजकल सभी देशों का ध्यान केन्द्रित है। जनसंख्या की असाधारण वृद्धि ने प्रदूषण की समस्या को जन्म दिया है। औद्योगिक तथा रासायनिक कूड़ेकचरे के ढेर से पृथ्वी, हवा, पानी-सभी प्रदूषित हो रहे हैं। आज के वातावरण में कई प्रकार का प्रदूषण है, जैसे-जल प्रदूषणध्वनि प्रदूषणरेडियोधर्मी प्रदूषणरासायनिक प्रदूषण आदि आज वृक्षों का अत्यधिक कटाव हो रहा है। इससे ऑक्सीजन गैस का संतुलन बिगड़ गया है और वायु अनेक हानिकारक गैसों से प्रदूषित हो गई है। जो मनुष्य के फेफड़ों के लिए अत्यंत घातक है।
इसी प्रकार जीवन का मुख्य आधार जल भी प्रदूषित हो गया है। बड़ेबड़े नगरों के गंदे नाले नदियों में डाल दिए जाते हैं। सीवरों को नदी से जोड़ दिया जाता है। इससे जल प्रदूषित हो जाता है और उससे पीलियापेचिसहैज़ा आदि अनेक प्रकार की भयानक बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इससे लोगों का जीवन ही खतरे में पड़ गया है।
आज के युग में ध्वनि प्रदूषण की भी एक समस्या है। इसे वैज्ञानिक प्रगति ने पैदा किया है। मोटर, कार, ट्रैक्टर, जेट विमान, कारखानों के साइरन, मशीनेंलाऊडस्पीकर आदि ध्वनि-प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से श्रवण-शक्ति पर बुरे प्रभाव पड़ने के साथ ही मानसिक विकृति तक हो सकती है। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिक परीक्षणों के कारण रेडियोधर्मी पदार्थ संपूर्ण वायुमंडल में फैलकर उसे प्रदूषित कर रहे हैं जो जीवन को अत्यंत क्षति पहुँचा रहे हैं।
इसके अलावा कारखानों से बहते हुए अवशिष्ट पदार्थोंरोगनाशक तथा कीटनाशक दवाइयों और रासायनिक खादों से भी प्रदूषण फैल रहा है, जो मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। यही नहीं कारखानों के धुएँविपैले कचरे के बहाव तथा ज़हरीली गैसों के रिसाव से आज मानव जीवन का वायुमंडल अत्यंत प्रदूषित हो गया है।
अत: वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए वृक्षारोपण सर्वश्रेष्ठ साधन है। इसी प्रकार वृक्षों के अधिक कटाव पर भी रोक लगाई जानी चाहिए कारखाने और मशीनें लगाने की अनुमति तभी दी जानी चाहिए जब उनके धुएँ निकालने की समुचित व्यवस्था हो। इसी प्रकार नालों को नदी में न डालकर उनकी अन्य व्यवस्था करनी चाहिए तभी प्रदूषण की समस्या का समाधान संभव हो सकता है।
Hello Romi Sharma
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