Essay on River in Hindi – नदी पर निबंध @ 2019

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हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Essay on River जिससे हम हिंदी में नदी पर निबंध कहते है। इस आर्टिकल में आप नदी के बारे में बहुत कुछ ऐसी बातो को जानेंगे जो बहुत ही काम लोगो को पता है। आज हम आपको Essay on River in Hindi यानि नदी पर निबंध के बारे में बताएँगे तो अगर आप अपने बच्चे के लिए इस टॉपिक पर निबंध ढूंढ रहे है तो यह आपके बच्चे के होमवर्क में बहुत मदद करेगा।

Essay on River in Hindi – नदी पर निबंध @ 2019

Essay on River in Hindi

भूमिका :

मेरा नाम नदी है, मैं जहाँ से भी गुजर जाती हैं, वहाँ की धरती, पशु-पक्षी, खेल-खलिहानों आदि सब की प्यास-बुझा देती हूँ। मेरे आगमन से उनकी प्यास बुझ जाती है और वे फिर से हरे-भरे हो जाते हैं। समय-समय पर मेरे अनेक नाम पड़ गए हैं। नदी, नहर, तटिनी, सरिता, क्षिप्रा आदि मेरे ही नाम हैं। मैं तेज प्रवाह से बहती हैं, इसीलिए लोग मुझे प्रवाहिनी कहते हैं और बहते समय मैं ‘सर-सर’ की ध्वनि करती हैं, इसलिए लोग मुझे सरिता कहते हैं।

उद्गम तथा विकास :

मेरा जन्म पर्वतमालाओं की गोद से हुआ है। बचपन से ही मैं चंचल प्रवृत्ति की थी, तभी तो मैं एक स्थान पर टिक ही नहीं सकती तथा मैं बहती ही रहती हैं। जब मैं गति से आगे बढ़ती हैं तो रास्ते में पड़े पत्थर, पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ इत्यादि भी मुझे नहीं रोक पाते। अनेक बार तो बड़े-बड़े शिलाखण्ड आकर मेरा रास्ता रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन मैं पूरी शक्ति लगाकर उन्हें पार करती हुई आगे बढ़ जाती हैं। जहाँ-जहाँ से मैं गुजरी मेरे किनारों को तट का नाम दे दिया गया। मैदानी इलाकों में मेरे तटों में आस-पास छोटी-बड़ी अनेक बस्तियाँ स्थापित होती गई। मेरे जल से सिंचाई कार्य होने लगा तथा प्यासे जीव-जन्तुओं की प्यास बुझने लगी। लोगों ने अपनी आवश्यकतानुसार मेरे ऊपर पुल भी बना लि

खुशहाली का कारण :

मैं देश की खुशहाली के लिए सदैव अप सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार रहती हूँ। मेरे पानी को बिजली पैदा करने के लिए काम में लाया गया और बिजली से अनेक उपकरण चलाए जाते हैं। मैं सभी के इतने काम आती हैं लेकिन अहंकार मुझे छू तक भी नहीं गया है। मैं तो प्रसन्नता का अनुभव करती हूँ जब मेरा अंग-अंग समाज के हित में लगता है। पूरी धरती ही मेरा परिवार है, मैं तो ऐसा ही हैं।

सागर से मिलन :

लेकिन मैं भी तो थक जाती हैं। इसलिए अब मैं अपने प्रिय सागर से मिलकर उसमें अपने आप को समाने जा रही हूँ। मैंने इस लम्बी यात्रा के बीच में अनेक घटनाएँ घटती देखती हैं। मेरे ऊपर बने पुलों में से सैनिकों की टोलियाँ, राजनेताओं, डाकुओं, साधु-महात्माओं, राजा-महाराजाओं आदि को गुजरते हुए देखा है। मैंने तो कितनी ही बस्तियाँ बसते और उजड़ते हुए देखी है। यही तो है मेरी सुख-दुख से भरी आत्मकथा। ।

उपसंहार :

मैं तो अपना पूरा जीवन मानव-सेवा के लिए अर्पित कर चुकी हैं, लेकिन मुझे दुखै तब होता है, जब लोग मुझे प्रदूषित कर देते हैं। कूड़ा-कचरा मेरे अन्दर डालकर लोग मुझे गंदा करते हैं। फिर भी मैं अपने लक्ष्य से कभी नहीं भटकेंगी और सदा मानव सेवा में बहती रहूँगी।

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Essay on River in Hindi

नदी की आत्मकथा मैं नदी हूं। मेरे कितने ही नाम हैं जैसे नदी, नहर, सरिता, प्रवाहिनी, तटिनी, क्षिप्रा आदि। ये सभी नाम मेरी गति के आधार पर रखे गए हैं। सर-सर कर चलती रहने के कारण मुझे सरिता कहा जाता है। सतत् प्रवाहमयी होने के कारण मुझे प्रवाहिनी कहा गया है। इसी प्रकार दो तटों के बीच में बहने के कारण तटिनी तथा तेज गति से बहने के कारण क्षिप्रा कहलाती हूं।

साधारण रूप में मैं नहर या नदी हूं। मेरा नित्यप्रति का काम है कि मैं जहां भी जाती हूं वहां की धरती, पशु-पक्षी, मनुष्यों व खेत-खलिहानों आदि की प्यास बुझा कर उनका ताप हरती हूं तथा उन्हें हरा-भरा करती रहती हूं। इसी में मेरे जीवन की सार्थकता तथा सफलता है।

आज मैं जिस रूप में मैदानी भाग में दिखाई देती हूं वैसी मैं सदैव से नहीं हूं। प्रारम्भ में तो मैं बर्फानी पर्वत शिला की कोख में चुपचाप, अनजान और निर्जीव-सी पड़ी रहती थी। कुछ समय पश्चात् मैं एक शिलाखण्ड के अन्तराल से उत्पन्न होकर मधुर संगीत की स्वर लहरी पर थिरकती हुई आगे बढ़ती गई। जब मैं तेजी से आगे बढ़ने पर आई तो रास्ते में मुझे इधर-उधर बिखरे पत्थरों ने, वनस्पतियों ने, पेड़-पौधों ने रोकना चाहा तो भी मैं न रूकी। कई बार तो मेरी राह में अनेक बड़े-बड़े शिलाखण्ड आ जाते और मेरा पथ रोकने की कोशिश करते परन्तु मैं अपनी पूरी शक्ति को संचित करके उन्हें पार कर आगे बढ़ जाती।।

इस प्रकार पहाड़ों, जंगलों को पार करती हुई मैदानी इलाके में आ पहुंची। जहां-जहां से मैं गुजरती मेरे आस-पास तट बना दिए गए, क्योंकि मेरा विस्तार होता जा रहा था। मैदानी इलाके में मेरे तटों के आस-पास छोटी-बड़ी बस्तियां स्थापित होती गई। वहीं अनेक गांव बसते गए। मेरे पानी की सहायता से खेती-बाड़ी की जाने लगी। लोगों ने अपनी सुविधा के लिए मुझ पर छोटे-बड़े पुल बना लिए। वर्षा के दिनों में तो मेरा रूप बड़ा विकराल हो जाता है।

डलनी सब बाधाओं को पार करते हुए चलते रहने से अब मैं थक गई है तथा अपने प्रियतम सागर से मिलकर उसमें समाने जा रही हूं। मैंने अपने इस जीवन काल में अनेक घटनाएं घटते हुए देखी हैं। सैनिकों की टोलियां, सेनापतियों, राजा-महाराजाओं, राजनेताओं, डाकुओं, साधु-महात्माओं को इन पुलों से गुजरते हुए देखा है। पुरानी बस्तियां ढहती हुई तथा नई बस्तियां बनती हुई देखी हैं। यही है मेरी आत्मकथा।।

मैंने सभी कुछ धीरज से सुना और सहा है। मैं आप सभी से यह कहना चाहती हूं कि आप भी हर कदम पर आने वाली विघ्न-बाधाओं को पार करते हुए मेरी तरह आगे बढ़ते जाओ जब तक अपना लक्ष्य न पा लो।।

Essay on River in Hindi

नदियाँ जीवित प्राणियों को प्रकृति के द्वारा दिए गए उपहारों में से एक हैं। नदियों  का धरती पर वही स्थान है जो मानव शरीर में धमनियों का है। धमनियाँ खून को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचाती हैं तो नदियाँ जल को सभी जीवों के लिए सुलभ बनाती हैं। कल-कल करती नदी की धारा का दृश्य हमें सुख और संतोष प्रदान करता है। जीव-समुदाय इसके जल को पीकर अपनी प्यास बुझाता है। इससे फ़सल सींचे जाते हैं।

मनुष्य इस जल से नहाने-धोने का कार्य करते हैं। आधुनिक युग में नदी जल को रोककर बाँधों का निर्माण किया गया है जो जल की आवश्यकता पूर्ति के साथ-साथ विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता को भी पूर्ण करता है। इन सब बातों को देखते हुए नदियों की सुरक्षा पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। नदी जल की निर्मलता को बनाए रखने की चेष्टा की जानी चाहिए। नदियों में प्रदूषण को कम करने के लिए चहुंमुखी प्रयास करने चाहिए।

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Essay on River in Hindi

गंगा भारत की नदी है। यह हिमालय से निकलती है और बंगाल की घाटी में विसर्जित होती है। यह निरंतर प्रवाहमयी नदी है। यह पापियों का उद्धार करने वाली नदी है। भारतीय धर्मग्रंथों में इसे पवित्र नदी माना गया है और इसे माता का दर्जा दिया गया। है। गंगा केवल नदी ही नहीं, एक संस्कृति है। गंगा नदी के तट पर अनेक पवित्र तीर्थों का निवास है।

गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है। गंगा का यह नाम राजा भगीरथ के नाम पर पड़ा। कहा जाता है कि राजा भगीरथ के साठ हजार पुत्र थे। शापवश उनके सभी पुत्र भस्म हो गए थे। तब राजा ने कठोर तपस्या की। इसके फलस्वरूप गंगा शिवजी की। जटा से निकलकर देवभूमि भारत पर अवतरित हुई। इससे भगीरथ के साठ हजार पुत्रों का उद्धार हुआ। तब से लेकर गंगा अब तक न जाने कितने पापियों का उद्धार कर चुकी है। लोग यहाँ स्नान करने आते हैं। इसमें मृतकों के शव बहाए जाते हैं। इसके तट पर शवदाह के कार्यक्रम होते हैं। गंगा तट पर पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन आदि के कार्यक्रम चलते ही रहते हैं।

गंगा हिमालय में स्थित गंगोत्री नामक स्थान से निकलती है। हिमालय की बर्फ । पिघलकर इसमें आती रहती है। अत: इस नदी में पूरे वर्ष जल रहता है। इस सदानीरा नदी का जल करोड़ों लोगों की प्यास बुझाता है। करोड़ों पशु-पक्षी इसके जल पर निर्भर हैं। लाखों एकड़ जमीन इस जल से सिंचित होती है। गंगा नदी पर फरक्का आदि कई | बाँध बनाकर बहुउद्देशीय परियोजना लागू की गई है।

अपने उद्गम स्थान से चलते हुए गंगा का जल बहुत पवित्र एवं स्वच्छ होता है। हरिद्वार तक इसका जल निर्मल बना रहता है। फिर धीरे-धीरे इसमें शहरों के गंदे नाले का जल और कूड़ा-करकट मिलता जाता है। इसका पवित्र जल मलिन हो जाता है। इसकी मलिनता मानवीय गतिविधियों की उपज है। लोग इसमें गंदा पानी छोड़ते हैं। इसमें सड़ी-गली पूजन सामग्रियाँ डाली जाती हैं। इसमें पशुओं को नहलाया जाता है। और मल-मूत्र छोड़ा जाता है।

इस तरह गंगा प्रदूषित होती जाती है। वह नदी जो हमारी पहचान है, हमारी प्राचीन सभ्यता की प्रतीक है, वह अपनी अस्मिता खो रही है। गंगा जल में अनेक विशेषताएँ हैं। इसका जल कभी भी खराब नहीं होता है। बोतल में वर्षों तक रखने पर भी इसमें कीटाणु नहीं पनपते। हिन्दू लोग गंगा जल से पूजा-पाठ करते हैं। गंगा तट पर बिखरी चिकनी मिट्टी ‘मृतिका’ से दंतमंजन बनाए जाते हैं। लोग इससे तिलक करते हैं।

गंगा तट पर अनेक तीर्थ हैं। बनारस, काशी, प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार आदि इनमें प्रमुख हैं। प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। यहाँ प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ का विशाल मेला लगता है। लोग बड़ी संख्या में यहाँ आकर संगम स्नान करते हैं। बनारस और काशी में तो पूरे वर्ष ही भक्तों का समागम होता है। पवित्र तिथियों पर लोग निकटतम गंगा घाट पर जाकर स्नान करते हैं और पण्य लाभ अर्जित करते हैं। विभिन्न अवसरों पर यहाँ मेले लगा करते हैं।

गंगा अपना रूप बदलती रहती है। आरंभ में यह सिकुड़ी सी होती है पर मैदानी भागों में इसका तट चौड़ा हो जाता है। चौडे तटों के इस पार से उस पार जाने के लिए नौकाएँ एवं स्टीमर चलती हैं। गंगा नदी पर अनेक स्थानों पर लंबे पुल भी बनाए गए हैं। इससे परिवहन सरल हो गया है।

गंगा नदी अपने तटवर्ती क्षेत्रों की भूमि को उपजाऊ बनाकर चलती है। भूमि को यह सींचती भी है। अत: कृषि की समृद्धि में इसका बहुत योगदान है। जैसे-जैसे गंगा नदी आगे बढ़ती है, उसमें कई नदियाँ मिलती जाती हैं। इसकी धारा वेगवती होती जाती है। वर्षा ऋतु में तो इसमें कई स्थानों पर बाढ़ आ जाती है। बाढ़ से फ़सलों और संपत्ति की भारी हानि होती है। अंत में यह बंगाल में घसती है। यहाँ इसकी धारा सस्त पड जाती है जिससे बेसिन का निर्माण होता है। फिर यह बंगाल की खाड़ी (समुद्र) में समा जाती है। इस प्रकार गंगा नदी की यात्रा समाप्त हो जाती है।

गंगा नदी का भारतीय संस्कृति में अन्यतम स्थान है। इसलिए इसे राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया गया है। गंगा की सफ़ाई के लिए कुछ कार्ययोजनाएँ भी बनाई गई हैं। लोगों को इसमें सहभागिता करनी चाहिए। गंगा जल को प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए उपयुक्त प्रयास करने चाहिए।

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Essay on River in Hindi

नदियाँ संसार की महान सभ्यताओं और संस्कृतियों की जननी है। संसार की सभी सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है। प्रागैतिहासिक काल से ही नदियाँ मानव को अनेक रूपों से उपकृत करती आयी है। यदि नदियाँ न होती तो कदाचित् मानव सभ्यता और संस्कृति का विकास भी नहीं होता।

यूरोपीय सभ्यता और संस्कृति के विकास में पो, राइन,सीन और एड्रियेटिक सागर का महत्वपूर्ण योगदान है। इजीप्ट की सभ्यता और संस्कृति का विकास नील नदी के किनारे ही हुआ। भारतवर्ष में सिंधु घाटी की सभ्यता का विकास भी नदी के किनारे ही हुआ था। आज भी बड़े-बड़े  औद्योगिक नगर नदियों के किनारे ही अवस्थित हैं।

प्राचीन काल में यातायात के साधनों का अभाव था। उस समय | नदियों के रास्ते ही आवागमन होता था। वाणिज्य-व्यापार, संस्कृति, कला | के साथ-साथ नदियाँ बड़े-बड़े आक्रमणों का भी श्रोत बनी। आज भी बड़े-बड़े मालवाहक जहाज नदियों के रास्ते ही आयात-निर्यात के सस्ते और सुलभ साधन बने हुए हैं। नदियों का व्यावसायिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण उपयोग है।

बड़े-बड़े औद्योगिक शहरों का विकास नदी किनारे अवस्थित होने के कारण ही हुआ। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, वाराणसी, कानपुर, चेन्नई, पटना आदि शहर नदी के किनारे ही अवस्थित हैं। इसका कारण यह है कि नदियों में दूषित जल का आसानी से उत्सर्जन किया जा सकता है और पानी के नियमित बहाव के कारण कृडे-कचरे इकट्टे नहीं हो पाते। साथ ही नदियों के जल को स्वच्छ बनाकर पेय जल के रूप में आसानी से परिणत किया जाता है। फलतः पेय जल का संकट उतना नहीं रह जाता। बड़े-बड़े उद्योगों जैसे चमड़ा, जूट आदि के लिए पानी की।

अधिक आवश्यकता होती है। जो नदियों से आसानी से उपलब्ध होता है। फलतः इन उद्योगों के विकास में नदिया प्रमुख कारक तत्व है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए नदियों का महत्व अविस्मरणीय और अवर्णनीय हैं। भारत की कृषि व्यवस्था में सिंचाई का मुख्य आधार नदियों द्वारा प्राप्त जल है। यदि नदियों के जल के रख रखाव की समुचित व्यवस्था की जाय तो इससे न केवल सिंचाई की समस्या हल होगी अपितु धरती की निचली  सतह में व्याप्त जल स्तर को भी बढ़ाया जा सकता है।

आधुनिक समय में नदियों की जल धारा से विद्युत पैदा किया जाता है जो आज ऊर्जा का प्रधान साधन है। साथ ही आर्थिक प्रगति में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान है।

इसके अतिरिक्त नदियों में जलक्रीड़ा के आयोजन भी किए जाते हैं। नदी के किनारे प्राकृतिक सौंदर्य की भव्य छटा के मध्य उद्यानों का निर्माण भी किया गया है जो हमें कई प्रकार से आह्लादित करते है।  आधुनिक समय में बड़े शहरों में सड़क यातायात वाहनों की बहुलता के कारण व्यस्त और दुरूह होते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में नदियों के रास्ते आसानी से यात्रा का आनन्द लिया जाता है। इस प्रकार आर्थिक, व्यवसायिक, सांस्कृतिक आदि सभी दृष्टियों से नदियाँ मानव समाज को निर्मित और विकसित करती आयी है। सभ्यता, संस्कृति आदि की प्रगति के लिए मानवीय समाज नदियों का ऋणी है।

Essay on River in Hindi

मैं नदी हूँ। मेरे कितने ही नाम हैं जैसे नदी, नहर, सरिता, प्रवाहिनी, तटिनी क्षिप्रा आदि। ये सभी नाम मेरी गति के आधार पर रखे गए हैं। सर-सर कर चलती रहने के कारण मुझे सरिता कहा जाता है। सतत् प्रवाहमयी होने के कारण मुझे  प्रवाहिनी कहा गया है। इसी प्रकार दो तटों के बीच में बहने के कारणं तटिनी  तथा तेज गति से बहने के कारण क्षिप्रा कहलाती हूँ। साधारण रूप में मैं नहर  या नदी हूँ।

मेरा नित्यप्रति का काम है कि मैं जहाँ भी जाती हूँ वहाँ की धरती, पशु-पक्षी, मनुष्यों व खेत-खलिहानों आदि की प्यास बुझा कर उनका ताप हरती हैं तथा उन्हें हरा-भरा करती रहती हैं। इसी में मेरे जीवन की सार्थकता तथा सफलता है।

आज मैं जिस रूप में मैदानी भाग में दिखाई देती हैं वैसी मैं सदैव से नहीं हैं। प्रारम्भ में तो मैं बर्फानी पर्वत शिला की कोख में चुपचाप, अनजान और निर्जीव सी पड़ी रहती थी। कुछ समय पश्चात् मैं एक शिलाखण्ड के अन्तराल से उत्पन्न होकर मधुर संगीत की स्वर लहरी पर थिरकती हुई आगे बढ़ती गई। जब मैं तेजी. से आगे बढ़ने पर आई तो रास्ते में मुझे इधर-उधर बिखरे पत्थरों ने, वनस्पतियों, पेड़-पौधों ने रोकना चाहा तो भी मैं न रुकी। कई बार तो मेरी राह में अनेक बड़े-बड़े शिलाखण्ड आ जाते और मेरा पथ रोकने की कोशिश करते परन्तु मैं अपनी पूरी शक्ति को संचित करके उन्हें पार कर आगे बढ़ जाती।

इस प्रकार पहाड़ों, जंगलों को पार करती हुई मैदानी इलाके में आ पहुँची। जहाँ-जहाँ से मैं गुजरती मेरे आस-पास तट बना दिए गए, क्योंकि मेरा विस्तार | होता जा रहा था। मैदानी इलाके में मेरे तटों के आस-पास छोटी-बड़ी बस्तियाँ स्थापित होती गई। वहीं अनेकों गाँव बसते गए। मेरे पानी की सहायता से खेती बाड़ी की जाने लगी। लोगों ने अपनी सुविधा के लिए मुझ पर छोटे-बड़े पुल बना लिए। वर्षा के दिनों में तो मेरा रूप बड़ा विकराल हो जाता है।

इतनी सब बाधाओं को पार करते हुए चलते रहने से अब मैं थक गई हूँ तथा | अपने प्रियतम सागर से मिलकर उसमें समाने जा रही हैं। मैंने अपने इस जीवन काल में अनेक घटनाएँ घटते हुए देखी हैं। सैनिकों की टोलियाँ, सेनापतियों, राजा-महाराजाओं, राजनेताओं, डाकुओं, साधु-महात्माओं को इन पुलों से गुजरते हुए देखा है। पुरानी बस्तियाँ ढहती हुई तथा नई बस्तियाँ बनती हुई देखी हैं। यही है मेरी आत्मकथा।।

मैंने सभी कुछ धीरज से सुना और सही है। मैं आप सभी से यह कहना चाहती हैं कि आप भी हर कदम पर आने वाली विघ्न-बाधाओं को पार करते हुए मेरी तरह आगे बढ़ते जाओ जब तक अपना लक्ष्य न पा लो।

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Written by

Romi Sharma

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