Essay on Gautam Buddha in Hindi महात्मा गौतम बुद्ध पर निबंध

1 MIN READ

हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Essay on Gautam Buddha in Hindi पर पुरा आर्टिकल। आज हम आपके सामने Gautam Buddha के बारे में कुछ जानकारी लाये है जो आपको हिंदी essay के दवारा दी जाएगी। आईये शुरू करते है Essay on Gautam Buddha in Hindi

Essay on Gautam Buddha in Hindi

essay on Gautam Buddha in hindi

प्रस्तावना :

जब कभी समाज के अनाचार, अशान्ति, अत्याचार, अज्ञान, | कुरीतियाँ अपनी जड़ जमा लेती है, तब-तब कोई-न-कोई महापुरुष इस धरती पर जन्म लेता है और संसार को विपदाओं से उबारता है। महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म भी ऐसे ही समय में हुआ था जब समाज में अनेक कुरीतियाँ अपना दुष्प्रभाव दिखाकर मनुष्य को पतन की ओर ले जा रही थी। ऐसे समय में गौतम बुद्ध ने अहिंसा, प्रेम, सत्य, त्याग, शान्ति का पाठ पढ़ाकर इन कुरीतियों से मुक्ति पाने का बीड़ा उठाया था।

 जन्म परिचय :

गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई. पूर्व में कपिलवस्तु के महाराजा शुद्धोधन तथा महारानी माया के गर्भ से लम्बनी नामक स्थान में वैशाख माह की पूर्णिमा को हुआ था। जन्म के समय ही इनकी माता के देहावसान हो गया था। इसलिए बुद्ध का पालन-पोषण विमाता प्रद्मावती ने किया था। इनके जन्म के समय ही ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह बालक मानव-जाति का सांसारिक या आध्यात्मिक सम्राट बनेगा।

विवाह :

धीरे-धीरे बुद्ध के स्वभाव में परिवर्तन आने लगा। उन्हें सांसारिक सुखों में कोई रुचि नहीं थी। वे तो वैरागी का सा जीवन जीते थे। यह सब देखकर उनके पिता को चिन्ता होने लगी। अपने पुत्र को प्रसन्न रखने के लिए महाराजा शुद्धोदन ने अनेक उपाय किए तथा उनका विवाह अति सुन्दर कन्या यशोधरा के साथ करवा दिया। कुछ समय पश्चात् उनके एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम ‘राहुल’ रखा गया।

मन परिवर्तन :

एक दिन सिद्धार्थ ने रथ पर सवार होकर बाहर भ्रमण करते हुए एक वृद्ध व्यक्ति को देखा। उसे देखते ही उन्होंने सारथी से पूछा, कि यह कौन है? इस प्रकार सारथी ने कहा कि बुढ़ापे में हर व्यक्ति की दशा दयनीय ही हो जाती है। आगे जाकर उन्हें एक अस्वस्थ व्यक्ति दिख। वह भी बहुत परेशान लग रहा था।

बुद्ध ने सारथी से उस रोगी व्यक्ति के बारे में भी पूछा। जब सारथी ने बताया कि रोग में इन्सान की हालत ऐसी ही हो जाती है, तो उन्हें संसार से वैराग्य सा होने लगा। उन्हें लगा कि यह संसार तो नश्वर है, हर व्यक्ति का अन्त दुखदायी ही होता है।

उन्होंने सांसारिक रहस्यों को जानने के लिए संसार को छोड़ने को निश्चय किया। उन्होंने मन में ठान लिया कि अप्राकृतिक सुख साधनों को त्यागकर वास्तविक सुख की खोज करना ही जीना है।

 गृह त्याग :

वे रात में अचानक उठे। अपनी पत्नी व बेटे को ध्यानपूर्वक देखा और उन्हें गहरी नींद में छोड़कर चुपचाप घर से निकल गए। नदी किनारे पहुँचकर उन्होंने अपने बालों को काट दिया तथा अपने राजसी ठाट-बाट सारथी को सौंप दिए। इसके पश्चात् वे सत्य की खोज में निकल पड़े। सिद्धार्थ ने वनों में घूम-घूमकर तपस्या करनी आरम्भ कर दी। इससे उनका शरीर बेहद दुर्बल हो गया।

अन्त में वे ‘गया’ (बिहार) पहुँचे। वहाँ पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर उन्होंने कई दिन तक तपस्या की। वहां उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया। इसके पश्चात् वे ‘सारनाथ आए तथा वहाँ उन्होंने पाँच साधुओं को उपदेश दिया।

वे घूमते-घूमते कपिलवस्तु भी आए। वहाँ उन्होंने अपने माता-पिता, पत्नी, पुत्र सभी को उपदेश दिए। वे लोग भी बुद्ध के उपदेशों दो नकर बौद्ध बन गए।

बुद्ध की शिक्षाएँ :

महात्मा बुद्ध ने मानव को अहिंसा का पाठ पढ़ाया। उन्होंने दया, प्रेम, सहानुभूति, शान्ति, कर्तव्य निष्ठा जैसी भावनाओं का प्रचार-प्रसार किया तथा उनकी इन शिक्षाओं का मानव जाति पर गहरा प्रभाव पड़ा। चीन, जापान, श्रीलंका, तिब्बत, नेपाल आदि देशों में आज भी बौद्ध | धर्म का प्रभाव देखा जा सकता है।

उपसंहार :

भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ प्रायदायिनी थी। उनकी शिक्षाएँ मात्र उपदेश नहीं, अपितु वे तो अनुभव पर आधारित थी। उनकी शिक्षाओं ने हर रुढ़ि तथा आडम्बर का परित्याग कर वास्तविक आध्यात्मिक जीवन अपनाने की शिक्षा दी।

Also Read:

 

महात्मा बुद्ध पर निबंध

563 ई. पूर्व शाक्य जनपद में कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी ग्राम में भगवान गौतम बुद्ध का जन्म महाराज शुद्धोदन की महारानी महामाया के गर्भ से हुआ था।

माता महामाया पुत्ररत्न की प्राप्ति के बाद अधिक दिनों तक संसार में नहीं रहीं। सप्ताहान्त होते-होते वे कालकवलित हो गई और बालक सिद्धार्थ का लालन-पालन उनकी मौसी को सौंपा गया। युवा होने पर कोलिय राजकुमारी यशोधरा के साथ उनका विवाह हो गया। कुछ समय उपरान्त उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। जिसका नाम राहुल रखा गया।

राजकुमार सिद्धार्थ ने एक दिन रोगी को तथा एक दिन किसी शव को ले जाते हुए लोगों को देखा। इन सब घटनाओं की वजह से उन्हें वैराग्य हो गया। एक दिन रात में पिता और माता गौतमी का वात्सल्य, सुन्दर पत्नी का प्रेम तथा शिशु राहुल के अनुराग को छोड़कर वे कपिलवस्तु छोड़कर अपने सारथी छन्नक को साथ लेकर राजगृह पहुंच गए। वहां के राजा बिम्बसार ने उनका भरपूर स्वागत किया तथा अनुरोध किया कि वे राज-प्रासाद में ही निवास करें किन्तु सिद्धार्थ इस प्रलोभन में आने वाले नहीं थे। वे राजगृह से गया के पहाड़ी जंगलों की ओर बढ़ते गए, वहीं नेरंजटा नदी के तट पर बैठकर उन्होंने लगातार छह वर्षों तक घोर तपस्या की, अन्ततः वैशाख शुक्ल पूर्णिमा के दिन उन्हें बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई और उनके काफी समय से चले आ रहे अस्थिर मन को परम शान्तिदायक ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि- “मैं वर्षों से इस जन्म-मरण के कारण को खोजता रहा। अब मैंने जन्म-मरण के कारण को, तृष्णा को पहचान लिया है। यही तृष्णा अज्ञान है। अब मेरे चित्त से तृष्णा का क्षय हो गया है।”

ज्ञान प्राप्त कर भगवान गौतम बुद्ध सबसे पहले सारनाथ पहुंचे, यह स्थान वाराणसी के समीप है। भगवान गौतम ने सर्वप्रथम यहीं पर बौद्ध भिक्षुओं को उपदेश दिया था।

“भिक्षुओं को दो सिरे की बातों से बचना चाहिए। किन दो सिरे की बातों से? एक तो व्यर्थ में कायक्लेश से शरीर को बेकार तकलीफ देने से । दूसरे काम-भोगों में ही लिप्त रहने से। इन बातों से बचकर आदमी को कल्याण पथ का पथिक बनना चाहिए। वह कल्याण पथ कौन-सा है- ठीक से विचार करना, ठीक संकल्प करना, ठीक बोलना, ठीक कर्म करना, ठीक आजीविका, ठीक उद्योग, ठीक स्मृति और ठीक समाधि।” इन्हें अष्टांगिक मार्ग कहा जाता है।

कालान्तर में बौद्ध भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी थी और वे भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार करने में जुट गए थे। भगवान गौतम बुद्ध की शिक्षाएं विस्तार से धम्मपद में संकलित हैं। भगवान गौतम बुद्ध विचारों का एशिया महाद्वीप में काफी प्रचार हुआ था। काबुल, कन्दहार से लेकर तिब्बत, चीन, जापान, कोरिया, बर्मा (म्यांमार), जावा, सुमात्रा, श्रीलंका, इंडोनेशिया आदि देशों में भगवान गौतम बुद्ध के अनुयायी आज भी पाए जाते हैं। कालान्तर में सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का काफी प्रचार किया था।

उन्होंने बड़े-बड़े शिलाखण्डों में, स्तूपों में भगवान बुद्ध की शिक्षाएं, पाली भाषा और ब्राह्मी लिपि में अंकित कराई थीं। भगवान गौतम ने 29 वर्ष की आयु में गृहत्याग किया और छह वर्षों तक निरंतर साधना की तथा 35 वर्ष की आयु से लेकर 80 वर्ष की आयु पर्यन्त वे लोक-कल्याण के कार्यों में लगे रहे।

महात्मा गौतम बुद्ध पर निबंध

महात्मा गौतम बुद्ध को लोग भगवान बुद्ध कहकर पुकारते हैं। महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 623 वर्ष पूर्व हुआ था। शैशव काल में आपका नाम सिद्धार्थ था। आपके पिता शुद्धोधन शाक्य वंश के राजा थे। आपके जन्म के सात दिन बाद ही आपकी माता महामाया का देहांत हो गया था। आपका लालन-पालन आपकी मौसी ने किया था। आपके जन्म के संबंध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। सुना जाता है कि आपके जन्म से पूर्व माता माया देवी ने यह स्वप्न देखा था कि एक अपूर्व ज्योति उनकी देह में प्रविष्ट हो रही है। महापुरुषों की लीलाएँ वैसे भी विचित्र होती हैं। शैशवकाल से ही सिद्धार्थ एकांत प्रेमी थे। आपकी एकांतप्रिय प्रवृत्ति आपके पिता के लिए चिंता का विषय थी। सिद्धार्थ एकांत में बैठकर बस चिंतन किया करते थे। आपका विवाह अद्वितीय सुंदरी राजकुमारी यशोधरा से हुआ था।

पिता शुद्धोधन और अन्य अनुभवी लोगों की सम्मति से राजकुमार सिद्धार्थ का विवाह करके उन्हें गृहस्थ जीवन के बंधन में बाँध दिया गया ताकि वह अपने एकांत से बाहर आ सकें। परंतु ऐसा नहीं हुआ। शान-शौकत के चमक-दमक वाले राजशाही जीवन से तो वह पहले ही विरक्त थे, परंतु गृहस्थ आश्रम भी उन्हें अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सका। उन्हें तो केवल एकांत में साधना करना ही प्रिय था।

सिद्धार्थ का जिज्ञासु हृदय गृहस्थ आश्रम के वैभव में संतुष्ट न रह सका। अपने चारों ओर दुख, निराशा, रोग, शोक, संताप और जगत के अनन्य कष्टों को देखकर वह विचलित हो उठे थे। चिन्मय शांति की खोज में एक दिन अर्धरात्रि को वह वन की ओर चल पड़े। अपने पुत्र राहुल और पत्नी यशोधरा का मोह भी उन्हें रोक नहीं सका। एक ही पल में उन्होंने संसार के सभी सुखों को त्याग दिया और वैरागी हो गए। ऐसा वैराग्य भाव करोड़ों में से किसी एक के मन में पैदा होता है। कहने को तो सिर मुंडवाकर और गेहुँआ कपड़े पहनकर लोग शीघ्रता से संत अथवा वैरागी बन जाते हैं, परंतु वे अपने मन से सांसारिक सुखों का त्याग नहीं कर पाते और आजीवन माया-जाल में फँसे रहते हैं।

परंतु भगवान बुद्ध ने तो एक ही पल में सारा सुख और वैभव त्याग दिया था। अंत में उन्होंने वह मार्ग खोज ही लिया जो मनुष्य के मन को शांति की ओर ले जाता है। 49 दिनों तक ध्यानस्थ रहने के बाद इन्हें बुधत्व की प्राप्ति हुई। तब से ये गौतम बुद्ध कहलाने लगे। 80 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध ने अपने शरीर का परित्याग कर निर्वाण को प्राप्त किया। निर्वाण की प्राप्ति के लिए उन्होंने संसार को सद्धर्म का उपदेश दिया। वह धर्म विश्व में बौद्ध धर्म के नाम से प्रचलित हुआ। आज भी बौद्ध विचारों में शांतिदायितनी स्तवन उठता है और दिशाओं को गुंजायमान करता है-

बुद्धं शरणं गच्छामि
संघं शरणं गच्छामि
धम्मं शरणं गच्छामि।

Essay on Gautam Buddha in Hindi

 

महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उन्हें गौतम बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म लगभग ढाई हजार वर्ष पहले कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के घर में हुआ था। उनकी माता का नाम महामाया था। महारानी महामाया पुत्र-जन्म के सात दिन बाद स्वर्ग सिधार गईं। माता की बहन गौतमी ने बालक का लालन-पालन  किया।

इस बालक के जन्म से महाराज शुद्धोदन की पुत्र प्राप्ति की इच्छा पूर्ण हुई थी, इसलिए बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया। गौतम नाम इनके गोत्र के कारण पड़ा।

सिद्धार्थ की जन्मपत्री देखकर राज ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि बालक बड़ा होकर या तो चक्रवर्ती राजा बनेगा या तपस्या के उपरांत महान संत बनेगा। संत बनने की बात सुनकर पिता को चिंता हुई। उन्होंने महल में बालक के आमोद-प्रमोद के लिए सभी इंतजाम कर दिए।

सिद्धार्थ बचपन से ही करुणायुक्त और गंभीर स्वभाव के थे। बड़े होने पर भी उनकी प्रवृत्ति नहीं बदली। तब पिता ने यशोधरा नामक एक सुंदर कन्या के साथ उनका विवाह करा दिया। यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल रखा गया। परंतु सिद्धार्थ का मन गृहस्थी में नहीं रमा। एक दिन वे भ्रमण के लिए निकले। रास्ते में रोगी, वृद्ध और मृतक को देखा तो जीवन की सच्चाई का पता चला। क्या मनुष्य की यही गति है, यह सोचकर वे बेचैन हो उठे।

फिर एक रात्रिकाल में जब महल में सभी सो रहे थे, सिद्धार्थ चुपके से उठे और पत्नी एवं बच्चों को सोता छोड़ वन को चल दिए। उन्होंने वन में कठोर तपस्या आरंभ की। तपस्या से उनका शरीर दुर्बल हो गय परंतु मन को शांति नहीं मिली। तब उन्होंने कठोर तपस्या छोड़कर मध्यम मार्ग चुना।

अंत में वे बिहार के गया नामक स्थान पर पहुँचे और एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गए। एक दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। वे सिद्धार्थ से ‘बुद्ध’ बन गए। वह पेड़ * बोधिवृक्ष’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध सारनाथ पहुँचे। सारनाथ में उन्होंने शिष्यों को पहला उपदेश दिया। उपदेश देने का यह क्रम आजीवन जारी रहा। इसके लिए उन्होंने देश का भ्रमण किया। एक बार वे कपिलवस्तु भी गए जहाँ पत्नी यशोधरा ने उन्हें पुत्र राहुल को भिक्षा के रूप में दे दिया। अस्सी वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध निर्वाण को प्राप्त हुए।

बुद्ध के उपदेशों का लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। अनेक राजा और आम नागरिक बुद्ध के अनुयायी बन गए। उनके अनुयायी बौद्ध कहलाए। बौद्ध धर्म को अशोक. कनिष्क तथा हर्ष जैसे राजाओं का आश्रय प्राप्त हुआ। इन राजाओं ने बौद्ध धर्म को । श्रीलंका, बर्मा, सुमात्रा, जावा, चीन, जापान, तिब्बत आदि देशों में फैलाया। महात्मा बुद्ध के उपदेश सीधे-सादे थे। उन्होंने कहा कि संसार दु:खों से भरा हुआ है।

दु:ख का कारण इच्छा या तृष्णा है। इच्छाओं का त्याग कर देने से मनुष्य दु:खों से छूट जाता है। उन्होंने लोगों को बताया कि सम्यक-दृष्टि, सम्यक-भाव, सम्यक-भाषण, सम्यक-व्यवहार, सम्यक निर्वाह, सत्य-पालन, सत्य-विचार और सत्य ध्यान से मनुष्य की तृष्णा मिट जाती है और वह सुखी रहता है। भगवान बुद्ध के उपदेश आज के समय में भी बहुत प्रासंगिक हैं।

 

Essay on Gautam Buddha in Hindi

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक सिद्धार्थ का जन्म ई० पू० 563 में लुम्बिनी नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता शुद्धोदन कपिल- वस्तु के राजा थे। वे शाक्यवंश के क्षत्रिय थे। शिशु का नाम सिद्धार्थं रखा गया। कुछ ही दिनों पश्चात् सिद्धार्थ की माता का देहान्त हो गया। विमाता महामाया ने ही उनका पालन- पोषण किया। सिद्धार्थ की प्रवृत्ति बचपन से ही वैराग्य की ओर थी।

शुद्धोदन चिन्तित रहते थे। उन्होंने सोलह वर्ष की आयु में सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा से कर दिया। विवाह के उपरान्त यशोधरा से पुत्ररत्न पैदा हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया।

एक वृद्ध, एक रोगी तथा एक शव को देखकर सिद्धार्थ को “पूरी तरह वैराग्य हो गया। । 30 वर्ष की आयु में घर-बार छोड़कर वे संन्यासी बन गए। उन्होंने शास्त्रों तथा दर्शनों का अध्ययन किया, किन्तु उन्हें शान्ति न मिली; तब गया जाकर उन्होंने कठोर तपस्या की। अनशन तथा अन्य क्रिया द्वारा शरीर को कष्ट दिया। छः वर्ष | में उनका शरीर दुर्बल हो गया, किन्तु सत्य की ज्योति न दिखाई दी।

अन्त में उन्होंने मध्यम मार्ग अपनाया। अब वे गया में एक पीपल के वृक्ष के नीचे समाधि लगाकर बैठ गए। जहाँ उन्हें | सत्य का प्रकाश दिखाई दिया। अब वे बुद्ध कहलाए।

उन्होंने प्रथम उपदेश वाराणसी के समीप सारनाथ में दिया। जहाँ पाँच साधु उनके शिष्य बन गए। धीरे-धीरे उनके बहुत से अनुयायी होने लगे। संघ की स्थापना हुई। पैंतालीस वर्ष तक महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म का प्रचार किया। अस्सी वर्ष की आयु में गोरखपुर जिले में कुशीनगर में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।

महात्मा बुद्ध अहिंसा पर बहुत बल देते थे। यज्ञों में पशुबलिका उन्होंने विरोध किया। महात्मा बुद्ध का कहना था किमनुष्य अपने सदाचार द्वारा उन्नत होता जाए तो कुछ जन्मोंके पश्चात् उसे मोक्ष प्राप्त हो सकेगा। उनकी शिक्षा के निम्नपाँच आदेश कितने सरल और सुन्दर हैं-

(क) तू किसी प्राणी की हत्या न कर।
(ख) तू पराई वस्तु को मत ग्रहण कर।
(ग) तू झूठ मत बोल।
(घ) तू सुरापान मत कर।
(ङ) तु अपवित्र जीवन मत व्यतीत कर।

बौद्ध धर्म शीघ्र ही देश-विदेश में फैल गया। राजा-रंकसभी ने इसका स्वागत किया। संसार की जनसंख्या का एकतिहाई भाग आज भी बौद्ध धर्म का अनुयायी है

Also Read:

 

Essay on Gautam Buddha in Hindi

 

महात्मा गौतम बुद्ध का बाल्यकाल का नाम सिद्धार्थ गौतम था। गौतम उनका कुलगोत्र था। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे। उनकी रानी का नाम महामाया था। एक दिन मायके जाते हुए, मार्ग में लुंबिनी ग्राम के समीप महामाया ने एक बालक को जन्म दिया। बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया। सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही महामाया परलोक सिधार गईं। इसके बाद शिशु का पालन-पोषण उसकी विमाता प्रजावती ने किया, जो शिशु की मौसी भी थी।

एक दिन सिद्धार्थ के चचेरे भाई देवदत्त ने बाण से एक हंस का शिकार करने का प्रयत्न किया। हंस घायल होकर सिद्धार्थ के समीप आ गिरा। दयाभावी सिद्धार्थ ने उसे गोद में लिया और उसका उपचार किया। अपने शिकार को खोजता हुआ देवदत्त भी वहाँ आ निकला। उसने अपना पक्षी माँगा। परंतु सिद्धार्थ ने पक्षी उसे न दिया और कहा, “प्रेम और क्षमा के अधिकार से, जो समस्त अधिकारों से श्रेष्ठ है, यह मेरा है।” राजा शुद्धोदन तक दोनों का विवाद पहुँचा। न्याय ने सिद्धार्थ के ही पक्ष को उचित बताया।

शुद्धोदन ने राजभवन में पुत्र के मनोरंजन के लिए अनेक साधन प्रस्तुत कर रखे थे, परंतु सिद्धार्थ का उन सबमें मन नहीं लगता था। अठारह वर्ष की आयु में पिता ने उसका विवाह कर दिया। यशोधरा जैसी सुंदरी तथा गुणवती पत्नी को पाकर सिद्धार्थ में कुछ परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगा।

एक दिन सिद्धार्थ की नगर भ्रमण की इच्छा हुई। उसका रथ कुछ दूर ही गया होगा कि उसे एक बुढा मनुष्य दिखाई दिया। उसकी कमर झुकी हुई थी तथा वह लाठी के सहारे चल रहा था। सिद्धार्थ ने इस प्रकार का मनुष्य पहली ही बार देखा था। उसने सारथि से प्रश्न किया कि वह कैसा विचित्र प्राणी है?

सारथि ने उत्तर दिया, “यह वृद्ध है, राजकुमार । प्रत्येक प्राणी को जरा (वृद्धावस्था) के बंधन में पड़ना पड़ता है। इससे कोई बच नहीं सकता, चाहे कोई राजा हो या रंक।” इतना सुनकर सिद्धार्थ गहरी चिंता में डूब गया। वह सोचने लगा कि क्या उसकी प्यारी पत्नी यशोधरा की देह भी एक दिन ऐसी ही हो जाएगी ?

सिद्धार्थ जब दूसरे दिन भ्रमण करने गया तो उसने एक रोगी को देखा और तीसरे दिन एक मृत व्यक्ति के शव को ले जाते देखा। पूछने पर सारथि ने सिद्धार्थ को बताया, “यही संसार की गति है, जो यहाँ आता है, उसे एक दिन मृत्यु का ग्रास बनना पड़ता है।” | सिद्धार्थ सोचने लगा, “क्या मृत्यु ही जीवन का सत्य है? यदि ऐसा ही है तो जीवन के लिए यह धूमधाम क्यों ? क्या मृत्यु से बचने का उपाय मनुष्य के पास नहीं है?” यशोधरा ने विवाह के दस वर्ष बाद एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम राहुल रखा गया, परंतु पुत्र भी सिद्धार्थ को सांसारिक बंधन में आबद्ध न कर सका। बल्कि वह और अधिक चिंतन-लीन रहने लगा।

एक दिन उसने सांसारिक दुःखों से मुक्ति का उपाय–निर्वाण की खोज करने के लिए गृहत्याग कर वैराग्य का आश्रय लिया । प्रिय पत्नी, एकमात्र पुत्र तथा राजसी ऐश्वर्य का परित्याग करके, पीले वस्त्र धारण करके वह सत्य की खोज के लिए वन में चला गया। वैशाख पूर्णिमा के दिन उनका अंत:करण दिव्य आलोक से जगमगा उठा। इस बोध प्राप्ति के कारण ही वे ‘बुद्ध’ कहलाए। इसके बाद उन्होंने अपने विचारों का प्रचार करना आरंभ किया तथा उनका मत बौद्धमत कहलाया।

बोध प्राप्ति के उपरांत बुद्ध वाराणसी पहुँचे। वहाँ उन्होंने अपने पाँच साथियों को अपने मत का उपदेश दिया, जो किसी समय में उनके उपदेशों को अविश्वसनीय मानकर उनका साथ छोड़ गए थे। यहाँ से धर्मचक्र-परिवर्तन आरंभ हुआ। बौद्धमत तीव्रवेग से समस्त भारत में फैलने लगा।

अस्सी वर्ष की आयु तक निरंतर बौद्ध धर्म का प्रचार करते हुए उन्होंने गया में निर्वाण प्राप्त किया। उनके प्रभावशाली उपदेश ‘धम्मपद’ तथा अन्य बौद्ध ग्रंथों में उपलब्ध हैं।

Also Read:

 

Essay on Gautam Buddha in Hindi

महात्मा गौतम बुद्ध को लोग भगवान बुद्ध कहकर पुकारते हैं। महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 623 वर्ष पूर्व हुआ था। शैशव काल में आपका नाम सिद्धार्थ था। आपके पिता शुद्धोधन शाक्य वंश के राजा थे। आपके जन्म के सात दिन बाद ही आपकी माता महामाया का देहांत हो गया था। आपका लालन-पालन आपकी मौसी ने किया था। आपके जन्म के संबंध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं।

सुना जाता है कि आपके जन्म से पूर्व माता माया देवी ने यह स्वप्न देखा था कि एक अपूर्व ज्योति उनकी देह में प्रविष्ट हो रही है। महापुरुषों की लीलाएँ वैसे भी विचित्र होती हैं।

शैशवकाल से ही सिद्धार्थ एकांत प्रेमी थे। आपकी एकांतप्रिय प्रवृत्ति आपके पिता के लिए चिंता का विषय थी। सिद्धार्थ एकांत में बैठकर बस चिंतन किया करते थे। आपका विवाह अद्वितीय सुंदरी राजकुमारी यशोधरा से हुआ था। पिता शुद्धोधन और अन्य अनुभवी लोगों की सम्मति से राजकुमार सिद्धार्थ का विवाह करके उन्हें गृहस्थ जीवन के बंधन में बाँध दिया गया ताकि वह अपने एकांत से बाहर आ सकें।

परंतु ऐसा नहीं हुआ। शान-शौकत के चमक-दमक वाले राजशाही जीवन से तो वह पहले ही विरक्त थे, परंतु गृहस्थ आश्रम भी उन्हें अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सका। उन्हें तो केवल एकांत में साधना करना ही प्रिय था।

सिद्धार्थ का जिज्ञासु हृदय गृहस्थ आश्रम के वैभव में संतुष्ट न रह सका। अपने चारों ओर दुख, निराशा, रोग, शोक, संताप और जगत के अनन्य कष्टों को देखकर वह विचलित हो उठे थे। चिन्मय शांति की खोज में एक दिन अर्धरात्रि को वह वन की ओर चल पड़े। अपने पुत्र | राहुल और पत्नी यशोधरा का मोह भी उन्हें रोक नहीं सका। एक ही पल में उन्होंने संसार के सभी सुखों को त्याग दिया और वैरागी हो गए। ऐसा वैराग्य भाव करोड़ों में से किसी एक के मन में पैदा होता है।

कहने को तो सिर मुंडवाकर और गेहुँआ कपड़े पहनकर लोग शीघ्रता से संत अथवा वैरागी बन जाते हैं, परंतु वे अपने मन से सांसारिक सुखों का त्याग नहीं कर पाते और आजीवन माया-जाल में फँसे रहते हैं।

परंतु भगवान बुद्ध ने तो एक ही पल में सारा सुख और वैभव त्याग दिया था। अंत में उन्होंने वह मार्ग खोज ही लिया जो मनुष्य के मन को शांति की ओर ले जाता है। 49 दिनों तक ध्यानस्थ रहने के बाद इन्हें बुधत्व की प्राप्ति हुई। तब से ये गौतम बुद्ध कहलाने लगे। 80 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध ने अपने शरीर का परित्याग कर निर्वाण को प्राप्त किया। निर्वाण की प्राप्ति के लिए उन्होंने संसार को सद्धर्म का उपदेश दिया।

वह धर्म विश्व में बौद्ध धर्म के नाम से प्रचलित हुआ। आज भी बौद्ध विचारों में शांतिदायितनी स्तवन उठता है और दिशाओं को गुंजायमान करता है-

बुद्धं शरणं गच्छामि
संघं शरणं गच्छामि
धम्मं शरणं गच्छामि।

 

Also Read:

Written by

Romi Sharma

I love to write on humhindi.inYou can Download Ganesha, Sai Baba, Lord Shiva & Other Indian God Images

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.