श्रीमती इंदिरा गाँधी पर निबंध ?? indira Gandhi Essay in Hindi ??

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हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु indira Gandhi Essay in Hindi पर पुरा आर्टिकल। आज हम आपके सामने indira Gandhi के बारे में कुछ जानकारी लाये है जो आपको हिंदी essay के दवारा दी जाएगी। आईये शुरू करते है indira Gandhi Essay in Hindi 

indira Gandhi Essay in Hindi

 

indira Gandhi Essay in Hindi

 

इंदिरा का जन्म प्रयाग के आनंद भवन में November 19, 1997 को हुआ। इनके पितामह मोतीलाल नेहरू चोटी के वकील तथा प्रख्यात राजनीतिज्ञ थे। इंदिरा के पिताजी जवाहरलाल नेहरू प्रसिद्ध नेता थे। इंदिरा की माताजी कमलादेवी दिल्ली के सीताराम बाजार के निवासी (कश्मीरी) जवाहरलाल कौल की पुत्री थीं।

जवाहरलाल को भारतीय सभ्यता का भक्त बनाने में उनकी पत्नी कमलादेवी का भारी हाथ । कमलादेवी प्रायबीमार रहती थीं और नेहरू प्राय: जेल में रहते थे। अतइंदिरा था का बाल्यकाल अकेलेपन में व्यतीत हुआ। इनका एक भाई भी हुआ था जो अल्पवय में ही चल बसा था। इंदिरा प्रियदर्शिनी ने कुछ समय प्रयाग में ही शिक्षा पाई। फिर इनको रवींद्रनाथ के ‘शांति निकेतन’ में प्रविष्ट कराया गया। जब इनकी माता कमलादेवी अधिक बीमार हो गई तब जवाहरलालजी उन्हें इलाज के लिए स्विट्जरलैंड ले गए। वे इंदिरा को भी साथ ही ले गए थे। वहाँ कमलादेवी की मृत्यु हो गई । लौटते हुए जवाहरलाल अपनी पुत्री इंदिरा को लंदन के एक स्कूल में प्रविष्ट करा आए थे।

इंदिरा का विवाह फिरोज गांधी नामक युवक से 26 March 1942 को हुआ था। फिरोज गांधी बहुत हंसमुखउदार और देशभक्त थे। वे पत्रकार थे और बाद में संसद के सदस्य भी रहे। इनके राजीव तथा संजय दो पुत्र हुए। सन् 1960 में  फिरोज गांधी का स्वर्गवास हो गया। सन् 1947 में भारत स्वाधीन हुआ और जवाहरलाल भारत के प्रधानमंत्री बनेतब इंदिरा उनकी सहायिका बन गई और उन्हें राजनीति तथा प्रशासन की समस्याओं का निकटता तथा सूक्ष्म रीति से अध्ययन करने और व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने का सुअवसर मिला।

पिता के साथ रहकर इंदिरा ने न केवल देश के प्रशासन का गहरा अनुभव ही प्राप्त किया अपितु पिता के साथ-साथ संसार के प्राय: सभी बड़े देशों की यात्रा करके, वहाँ के प्रशासन की विभिन्न गतिविधियों तथा विभिन्न प्रकार की राजनीतिक विचारधाराओं का भी प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया। एक वर्ष के लिए ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष भी बनीं। इस काल में इन्होंने देश के प्राय: सभी भागों की यात्रा करके अपने देश की मुख्य समस्याओं को खूब अच्छी तरह से समझ लिया।

27 May 1964 को जवाहरलाल नेहरू की अचानक मृत्यु हो गई। इसके बाद श्री लालबहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने तब इंदिरा गांधी को सूचना तथा प्रसारण
मंत्री । 1965 में भारत-पाक युद्ध हुआ। उसमें भारत की विजय हुई। रूस के बनाया गया ताशकंद नगर में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधान फील्ड मार्शल अय्यूब में भारत के तथा
प्रधानमंत्री में शांति समझौता संपन्न हुआ लालबहादुर श्री लालबहादुर शास्त्री , परंतु शास्त्रीजी का वहीं देहांत हो गया।

उनके बाद इंदिरा गांधी को भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया। सन् 1967 में आम चुनाव। संपन्न हुआ और इंदिरा गांधी दुबारा प्रधानमंत्री चुनी गई।

सन् 1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने मध्यावधि चुनाव कराने का साहस किया और उसमें उनके दल नई कांग्रेस को भारी बहुमत मिला। December 3, 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। इस समय श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व व सूझबूझ के कारण पाकिस्तान चौदह दिनों में ही बुरी तरह परास्त हुआ। उन्होंने बैंगलादेश को स्वतंत्र कराकर उसे वहाँ के नेताओं के हाथों सौंप दिया।

इसके बाद भारत में प्रादेशिक चुनाव हुए। उनमें भी इंदिरा गांधी की भारी विजय हुई। इंदिरा गांधी की नीतियों के कारण भारत ने श्रीलंका, बर्मा, अफगानिस्तान, इराक, नेपाल भूटान, सिक्किम बंगलादेश से अच्छे मैत्री संबंध स्थापित किए। पाकिस्तान से संबंध सामान्य करने के लिए उसके एक लाख कैदी छोड़कर भारी कदम उठाया। शिमला समझौता से दोनों देशों में वार्तालाप द्वारा समस्याओं को सुलझाने का मार्ग खुल गया। May 18, 1974 में भारत ने जो परमाणु विस्फोट किया, उससे प्रकट है कि देश वैज्ञानिक प्रगति में अब किसी से पीछे नहीं रहा। इसका श्रेय श्रीमती इंदिरा गांधी को ही दिया जाता है।

 

इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने श्री राजनारायण की चुनाव याचिका मंजूर करके उनका संसद सदस्य के रूप में चुनाव रद्द कर दिया। परंतु पंद्रह दिन की छूट (स्टे-ऑर्डर) दी। गईजिस बीच श्रीमती गांधी उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में अपील कर सकें। विरोधी दलों ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय से पूर्व ही, श्रीमती गांधी के इस्तीफे की माँग शुरू कर दी। इसके लिए वे बवंडर उठाने को तैयार हो गए। 26 June 1975 को श्रीमती इंदिरा गांधी की सलाह पर राष्ट्रपति श्री फखरुद्दीन अली अहमद ने आपात्कालीन स्थिति की घोषणा कर दी। कई संस्थाओं को कानूनविरुद्ध घोषित कर दिया गया। जुलाई 1975 को प्रधानमंत्री ने बीस सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की।

1977 में जनता पार्टी की भारी बहुमत से जीत हुई 1977 से 1979 तक जनता पार्टी का शासन रहा। सन् 1980 में आम चुनाव में फिर इंदिरा कांग्रेस की जीत हुई। 31 October 1984 को अपने ही अंगरक्षकों की गोलियों से इंदिरा गांधी का देहावसान हो गया।

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indira Gandhi Essay in Hindi

भारतीय नारी को राजनीतिक उच्चता के गौरव शिखर तक पहुँचाने वाली श्रीमति इन्दिरा गाँधी के बचपन का पूरा नाम ‘इन्दिरा प्रियदर्शिनी था। वह दूरदर्शिनी तथा साहसी महिला थी। उन्हें भारत की पहली महिला प्रधानमन्त्री होने का गौरव प्राप्त है।

जन्म व शिक्षा :

भारत के सर्वप्रथम प्रधानमन्त्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की एकमात्र सुपुत्री इन्दिरा का जन्म 19 नवम्बर, सन् 1917 ई. में पुण्य तीर्थ स्थान इलाहाबाद में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमति कमला नेहरु था। इन्दिरा जी की प्रारम्भिक शिक्षा स्विट्जरलैण्ड में हुई थी। उनकी शेष शिक्षा कलकत्ता के ‘शान्ति निकेतन’ तथा ‘ऑक्सफोर्ड’ में हुई थी। इन्दिरा जी का बचपन काफी लाड़-प्यार में बीता था। सब उन्हें प्यार से ‘इन्दु’ कहते थे। घर में सुख-सुविधाओं की कभी कोई कमी नहीं थी किन्तु माँ की बीमारी तथा पिता के कारावास दोनों ने इन्दिरा जी के हृदय को अन्दर तक झकझोर दिया था। सन् 1936 में इनकी माँ का देहावसान हो गया।

राजनीतिक जीवन :

ऑक्सफोर्ड समरविले में अध्ययन करने के बाद भारत आने पर सन् 1938 ई. में उन्होंने राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लिया। इसके बाद वे राष्ट्रीय आन्दोलनों में हिस्सा लेने लगी। 26 मार्च, 1949 में इन्दिरा का विवाह समाजवादी कार्यकर्ता एवं पत्रकार फिरोज गाँधी ( फ़िरोज़ एक पारसी परिवार में पैदा हुवे थे और इंदिरा से शादी करने के बाद उन्होंने हिन्दू धर्म को पूरी तरह अपना लिया था उसके बाद महात्मा गाँधी ने उन्हें गोद ले लिया और उसका नाम फ़िरोज़ गाँधी हो गया।  ) से हो गया। इनसे दो पुत्र प्राप्त हुए-राजीव एवं संजय। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण दोनों को 15 मास जेल में रहना पड़ा। सन् 1960 में फिरोज गाँधी की मृत्यु हो गई। इन्दिरा जी एकदम टूट चकी थी। लेकिन एक सच्चे राष्ट्रनेता को अपने व्यक्तिगत दुखों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित के लिए जीना पड़ता है। विवश होकर इन्दिरा गाँधी जीवन संग्राम में कूद पड़ीं।

भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री :

सन् 1959 में वे अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गई। 27 मई, 1964 को पं. जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु के पश्चात् श्री लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमन्त्री बने। शास्त्री मन्त्रिमंडल में इन्दिरा जी सूचना एवं प्रसारण मन्त्री बनी। शास्त्री जी  की आकस्मिक मृत्यु के पश्चात् 24 जनवरी, 1966 को इन्दिरा गाँधी ने भारत की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री के रूप में कार्यभार सँभाला।

श्रीमति गाँधी ने अपने प्रधानमन्त्री काल में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। राजाओं के प्रिवीयर्स समाप्त कर दिए। अनाज की दृष्टि से देश को आत्मनिर्भर बनाया। सन् 1971 में पाकिस्तान पर विजय प्राप्त करके बांग्लादेश की स्थापना की। सन् 1975 में गरीबों तथा पिछड़े वर्ग के लोगों के उद्धार के लिए 20 सूत्री कार्यक्रम बनाया। सन् 1982 में नई दिल्ली में एशियाई खेलों का आयोजन करवाया तथा 1983 में निर्गुट सम्मेलन आयोजित करवाया।

मृत्यु :

इतनी खूबियों के बावजूद उनमें कुछ कमियाँ भी थी जिसके कारण उन्हें अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा। 31 अक्तूबर, सन् 1984 को उनके ही अंगरक्षकों सतवंत सिंह तथा बेअन्त सिंह ने उन्हें गोलियों से भून दिया तथा उनकी मृत्यु हो गई। इन्दिरा जी के अन्दर साहस, दूरदृष्टि तथा जन-भावनाओं को समझने की विलक्षण शक्ति थी।

इन्दिरा जी का बलिदान भारतवासियों का अखण्ड भारत के निर्माण तथा प्रगति के लिए सदैव मार्गदर्शन करता रहेगा। इन्दिरा जी की समाधि ‘शक्ति स्थल शान्ति वन तथा विजय घाट के बीच स्थित है। यदि हम श्रीमति गाँधी के सपनों को पूरा कर पाएँ, तो हमारी उनके प्रति यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

indira Gandhi Essay in Hindi

इंदिरा गाँधी को नारी रत्नों में गिना जाता है। भारत की इस महान् नारी ने विश्व के विशालतम जनतंत्र भारत पर 16 वर्ष तक एकछत्र शासन किया और विश्व में सर्वाधिक सशक्त महिला के रूप में ख्याति अर्जित की। कुछ लोग तो उन्हें लौह महिला भी कहते हैं। वह विश्व में सर्वाधिक प्रभावशाली महिला थीं। इंदिरा, पं. मोतीलाल जी की पौत्री और पं. जवाहर लाल नेहरू की पुत्री थीं। इंदिरा गाँधी का जन्म 29 नवंबर, 1917 को इलाहाबाद स्थित ‘आनंदभवन’ में हुआ था। शांतिनिकेतन की शिक्षा से गुरुदेव टैगोर का इंदिरा गाँधी पर बहुत प्रभाव पड़ा। महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू और रवीन्द्र नाथ टैगोर के प्रभाव से समन्वित रूप वाले व्यक्तित्व के विकास ने इंदिरा गाँधी को विशिष्ट बना दिया था। उन्होंने परंपराओं को दरकिनार करते हुए एक पारसी युवक फिरोज़ गाँधी से विवाह किया। फिरोज गांधी उनका असली नाम फिरोज खान था लेकिन देश में दंगे ना हो जाये और कांग्रेस की छवि सुधारने के लिए महात्मा गाँधी ने फिरोज को गोद ले लिया और फिरोज खान से फिरोज गांधी बन गया और इंदिरा गाँधी बन गयी उन्हें राजनीति और देशभक्ति अपने पिता पं. नेहरू से विरासत में मिली थी।

इंदिरा गाँधी सन् 1956 में कांग्रेस की सदस्य बनीं और 1959 में उन्हें कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। सन् 1964 में पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के पश्चात् श्री लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो जुलाई 1964 में इंदिरा गाँधी को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में सम्मिलित किया गया

फिर लालबहादुर शास्त्री जी की मृत्यु के पश्चात् 24 जनवरी, को इंदिरा जी को प्रधानमंत्री बनाया गया। इस प्रकार वह कई बार प्रधानमंत्री बनीं और 31 अक्तूबर, 1984 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। इंदिरा गाँधी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। भूतपूर्व राजाओं के प्रवीपर्स की समाप्ति, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, कोयला खानों का राष्ट्रीयकरण आदि उनके साहसिक कार्य थे। इसके अलावा उन्होंने पाकिस्तान द्वारा किए नरसंहार को देखकर अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए, बंगलादेश की सरकार को मान्यता देते हुए उसे स्वतंत्र कराया था।

भारतीय वैज्ञानिक द्वारा परमाणु विस्फोट करना उनके समय की महान उपलब्धि थी जिससे भारत विश्व के छठे परमाणु शक्ति-संपन्न देशों की श्रेणी में आ गया। उन्होंने ही राकेश शर्मा को अंतरिक्ष में भेजा था। इस प्रकार हर क्षेत्र मे इंदिरा गाँधी ने भारत की शक्ति को बढ़ाया था।

पंजाब में बढ़ते आतंकवाद को इंदिरा गाँधी ने ही समाप्त किया था। उनके इस साहसिक कार्य से आतंकवादियों में रोष फैल गया। परिणामस्वरूप बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने 31 अक्तूबर, 1984 को प्रातः 10 बजे उन पर गोलियाँ बरसाकर उन्हें मौत की नींद सुला दिया। न्होंने कहा था-“यदि राष्ट्र के लिए मैं अपनी जान भी दे दूँ तो मुझे गर्व होगा। मेरे खून की एक-एक बूंद राष्ट्र की प्रगति में और देश को शक्तिशाली बनाने में सहायता देगी।” निस्संदेह उनकी खून की एक-एक बूंद देश की सेवा करते हुए बही। सभी इस बात को स्वीकार करते हैं कि वह भारत की ही नहीं, विश्व की एक महान नारी थीं।

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जिस देश की नारी श्रावणी पूर्णिमा के शुभ दिन अपने भाई के हाथ में राखी बाँधकर अपनी रक्षा के लिए आश्वस्त हो जाती है, हर क्षण जो पति को भगवान मानकर पूजन के करती है, उसी देश की सेवापरायणा नारी शासन-सूत्र सँभालकर करोड़ों नर-नारियों को अभयदान दे सकती है—इसका ज्वलंत उदाहरण हैं श्रीमती इंदिरा गाँधी।

एक सुखद आश्चर्य की बात है कि जिस 19 नवंबर को रूस में जारशाही के विरुद्ध जनक्रांति का तूर्य बजा, उसी दिन 1917 में तीर्थराज प्रयाग के राजनीतिक तीर्थस्थल ‘आनन्द भवन’ में इन्दिराजी का जन्म हुआ। इंदिरा जी को बड़े बाप के एकलौते बेटे की लाड़ली होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जन्म की घड़ी से ही ये राजनीतिक बयार में पलीं, इनका राष्ट्रप्रेमी व्यक्तित्व निर्मित हुआ। जब ये तीन साल की थीं, तब ऊँची मेज पर खड़ी होकर नौकरों के बीच जोर-जोर से भाषण देती थीं।

इंदिराजी का सक्रिय राजनीतिक जीवन बारह वर्ष की अवस्था से आरंभ हो जाता है। 1930-31 में जब महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का बिगुल फूंका था, तो इंदिराजी ने अपनी उम्र के बच्चों का एक दल बनाया। इसका नाम था ‘वानर-सेना’। ‘वानर-सेना’ राजनीतिक कार्यकर्ताओं के संदेश एक-दूसरे के पास पहुँचाती थी। इंदिराजी के मोहक एवं कर्मठ व्यक्तित्व के कारण इसकी संख्या दसगुनी हो गयी।

इंदिराजी की पढ़ाई का श्रीगणेश पूना के गुजराती विद्यालय में हुआ। फिर ये शांतिनिकेतन में गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर के संपर्क में आयीं। उसके बाद ये अध्ययन के लिए स्विट्जरलैंड गयीं. किंतु क्रमबद्ध रूप से इनकी विश्वविद्यालयीय शिक्षा नहीं हुई। ये पंडित जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गाँधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, श्रीमती सरोजिनी नायडू इत्यादि के प्रत्यक्ष संपर्क के महाविद्यालय में ही शिक्षा-दीक्षा लेती रहीं। जिस परिवार की धुरी पर संपूर्ण भारतीय राजनीति ही चक्कर काटती रही, उस परिवार में जन्म लेने के कारण विरासत में ही क्रियात्मक ज्ञान की इन्हें अलभ्य निधि मिल गयी।

इंदिराजी इतने समृद्ध परिवार में उत्पन्न हुई थीं कि ये अपना समय रंगरेलियों में अच्छी तरह बिता सकती थीं। किंतु जब भारतमाता विदेशियों के अत्याचार के कारण कराह रही हो, तो उसकी बेटी मौज-मजे में दिन क्यों काटे? दुर्गाबाई और लक्ष्मीबाई की परंपरा की कड़ी क्या टूट सकती थी? नहीं, कदापि नहीं। इंदिराजी स्वतंत्रता-संग्राम में कूद पड़ीं। महज 22 वर्ष की इनकी अवस्था थी, जब 1939 में पहली बार तेरह महीने के लिए इन्हें जेल की सजा दी गयी। 26 मार्च 1942 के दिन इनका विवाह फिरोज गाँधी के साथ हुआ। किंतु कुछ ही महीने बाद अगस्त में ‘अँगरेजो, भारत छोड़ो’ का आंदोलन चला। अभी ये विवाह की गुड़िया-बहू ही थी कि फिर कारागृह की कालकोठरी में बंद कर दी गयीं। इन्होंने देश को स्वतंत्र करने के लिए अपने वैयक्तिक सुखों का होलिका-दहन किया और इनका सोने-सा तन राष्ट्रसेवा की आग में कुंदन बनता रहा।

भारतीयों की आकांक्षाओं के मंगलदीप पं. जवाहरलाल नेहरू की लौ को चिरकाल तक बुझने न देने के लिए ये स्वयं स्नेह बन ढलती रहीं। पंडितजी ने बहुत निश्चित होकर राष्ट्रहित के लिए जो किया, उसकी आधारभूमि थीं इंदिराजी ही। इंदिराजी पंडितजी के साथ विश्वभ्रमण में जाती रहीं; उनकी सुख-सुविधाओं का ध्यान तो रखती थी ही, साथ-ही-साथ संसार के राजनीतिक घटनाचक्र को भी ठीक ढंग से समझने की चेष्टा करती थीं।

1959 में इंदिराजी देश की सबसे बड़ी राजनीतिक संस्था काँग्रेस की अध्यक्षा निर्वाचित हुई। 1964 में जब पं. जवाहरलाल का निधन हुआ, तो ये श्री लालबहादुर शास्त्री के अनुरोध पर सूचना तथा प्रसारण मंत्री बनीं। देशवासियों का मनोबल बढ़ाने तथा विश्व में भारतीय मर्यादा फिर से प्रतिष्ठित करने के लिए इनका कार्य सराहनीय रहा। जब दुर्भाग्य से 11 जनवरी 1966 को श्री लालबहादुर शास्त्री का निधन हुआ, तो 19 जनवरी 1966 को ये सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री चुनी गयीं।

1967 के फरवरी महीने में चौथा साधारण निर्वाचन हुआ, जिसमें ये प्रधानमंत्री बनीं। इनके व्यक्तित्व का आकर्षण था कि इनकी पार्टी काँग्रेस 1971 में अजेय बहुमत से विजयी होकर सत्ता में आई और ये पुनः सर्वसम्मति से देश की प्रधानमंत्री बनायी गयीं।

अपने प्रधानमंत्रित्व-काल में इन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं; जैसे- जैसे—प्रमुख चौदह बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स का उन्मूलन, याहिया खाँ की बर्बरता के शिकार पूर्वी पाकिस्तान का एक नवीन स्वतंत्र राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में प्रतिष्ठापन, रूस के साथ मैत्री-स्थापन तथा पाकिस्तान को युद्ध में पराजित कर विश्व में भारत के सबल अस्तित्व का स्थापन। काल की सीढ़ियों पर इंदिराजी के निर्भीक चरण बड़ी दृढ़ता से बढ़ते रहे।

ये देश से गरीबी के दानव को पराजित करने तथा भारतीय संपन्नता के सूर्योदय के स्वप्न को साकार करने की हर क्षण चेष्टा करती रहीं। ये शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व एवं गुटों के अलग रहने की नीति में आस्था रखती थीं। अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जॉनसन की पत्नी ने इनके बारे में 1961 में कहा था, “यदि भारतीय जीवन का मर्म समझना हो, तो इंदिरा गाँधी-जैसी शिक्षिका का मार्गदर्शन प्राप्त करें।” इंदिरा गाँधी का यदि मोम-सा मुलायम तन था तो पत्थर-सा अविचल मन भी। यदि वे अपने देशवासियों की पीड़ा से पिघल उठती थीं तो संकट के तूफान में अविचल भी रह सकती थीं।

1977 के प्रारंभ में ही इन्होंने लोकसभा के लिए आम चुनाव कराने की घोषणा की और इस बार वे चुनाव हार गईं। 27 मार्च 1977 की सुबह श्रीमती गाँधी ने प्रधानमंत्री-पद से त्यागपत्र दे दिया। जनता सरकार एवं परवर्ती लोकदल कांग्रेस सरकार के शासनकाल में उन्हें सब ओर से मुक लांछित और उत्पीड़ित करने के प्रयास हुए। लेकिन वे अपने दृढ़ निश्चय और प्रबल इच्छाशक्ति सन के सहारे जनमत को अपने अनुकूल बनाती रहीं। फलतः, 1980 का प्रथम सप्ताह उनकी सेवा में असा एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्रित्व का पद लेकर उपस्थित हुआ। चौंतीस महीने के बाद 14 जनवरी, 1980 को श्रीमती इंदिरा गाँधी पुनः प्रधानमंत्री-पद पर आरूढ़ हुईं। इस बार लोकसभा की कुल 541 सदस्य-सूची में श्रीमती गाँधी के दल को 351 स्थान प्राप्त हुआ। इस प्रचंड बहुमत के साथ श्रीमती गाँधी ने भारत के सर्वांगीण विकास का कार्य नए सिरे से प्रारंभ किया। उन्होंने 1982 में एशियाड का आयोजन दिल्ली में कराया। वे 102 गुट-निरपेक्ष देशों की अध्यक्ष बनीं।

31 अक्टूबर 1984 के प्रातःकाल का 9 बजकर 30 मिनट। मानवता के इतिहास का एक सबसे काला पृष्ठ! उस दिन भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के दो अंगरक्षकों ने उनके आवास पर ही उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया। उन्होंने अपने शरीर की अंतिम बूंद दे डाली, पर भारत की अखंडता को खंडित नहीं होने दिया। वे मर कर भी अमर है। उनके आदर्श भारत का ही में नहीं, बल्कि संसार का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

श्रीमती इंदिरा गाँधी पर निबंध

 

भारतीय नारी को राजनीतिक उच्चता के गौरव शिखर तक पहुंचाने वाली श्रीमती इन्दिरा गांधी का वास्तविक नाम इन्दिरा प्रियदर्शिनी था। वह दूरदर्शिनी और साहसी नारी थीं। वे भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं।

इन्दिरा प्रियदर्शिनी का जन्म 19 नवम्बर सन् 1917 ई. को इलाहाबाद के आनन्द भवन, यानी अपने पैतृक निवास में हुआ था। वे राष्ट्र-पुरुष पं. जवाहरलाल नेहरू की एकमात्र पुत्री थीं। उनकी आरम्भिक शिक्षा स्विट्जरलैण्ड में हुई। उनकी शेष शिक्षा कलकत्ता के शान्ति निकेतन तथा ऑक्सफोर्ड में पूरी हुई। ऑक्सफोर्ड समरविले में अध्ययन करते समय ही इन्दिरा जी का राजनीति के साथ कुछ-कुछ सम्बन्ध जुड़ गया था। वहां से भारत आने पर सन् 1938 में जब वे मात्र इक्कीस वर्ष की थीं, तब उन्होंने राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लिया था।

इसके बाद वे प्रत्येक राष्ट्रीय आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगीं। 26 मार्च, 1942 ई. को उनका विवाह फिरोज गांधी उनका असली नाम फिरोज खान था लेकिन देश में दंगे ना हो जाये और कांग्रेस की छवि सुधारने के लिए महात्मा गाँधी ने फिरोज को गोद ले लिया और फिरोज खान से फिरोज गांधी बन गया और इंदिरा गाँधी बन गयी  के साथ हो गया जो स्वयं एक देश-भक्त कांग्रेसी कार्यकर्ता थे। तभी से वह इन्दिरा गांधी कहलाने लगीं। विवाह होने के कुछ समय पश्चात् वे ‘भारत छोड़ो आन्दोलन‘ के कारण जेल चली गई। सन् 1959 में वे ‘अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की अध्यक्ष चुनी गईं।

ज्यों-ज्यों वह अधिकाधिक राजनीति में सक्रिय होती गईं, पति से उनका एक प्रकार का अनकहा दुराव भी बढ़ता गया, पर इसी बीच वे राजीव एवं संजय नामक दो बेटों की मां बन चुकी थीं। सन् 1960 में पति के निधन के बाद वह पूर्ण रूप से राजनीति में सक्रिय हो गईं। सन् 1962 में चीनी आक्रमण के बाद राष्ट्र-रक्षा के यज्ञ की तैयारी के लिए अपने समस्त आभूषणों का दान देकर उन्होंने अपनी उदारता व राष्ट्रीयता का अभूतपूर्व परिचय दिया था।

सन् 1964 ई. में पं. जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद श्री लाल बहादुर शास्त्री-सरकार में श्रीमती गांधी सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं। सन् 1966 ई. में श्री लाल बहादुर शास्त्री के देहान्त हो जाने पर वे भारत की प्रधानमंत्री बनीं। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए जिनसे उनका नाम सारे विश्व में प्रसिद्ध हो गया। उन्होंने सन् 1969 ई. में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया।

राजाओं के प्रिवीपर्स बंद कर दिए। अनाज की दृष्टि से देश को आत्मनिर्भर बनाया। सन् 1971 में पाकिस्तान पर विजय प्राप्त करके बंगला देश की स्थापना की। सन् 1974 में पोखरण में परमाणु परीक्षण करवाकर देश को एक परमाणु सम्पन्न राष्ट्र बनाने की ओर अग्रसर किया। सन् 1975 में निर्धनों तथा पिछड़े वर्ग के लोगों के उद्धार के लिए 20-सूत्री कार्यक्रम बनाया।

सन् 1982 में नई दिल्ली में एशियाई खेल करवाए तथा सन् 1983 में निर्गुट सम्मेलन आयोजित करके प्रशंसा प्राप्त की। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि भारत की इस दृढ़ व निर्भीक महिला की इनके अपने अंगरक्षकों ने 31 अक्टूबर सन् 1984 को गोली मारकर हत्या कर दी परन्तु इनका देश के लिए किया गया यह बलिदान सदैव अमर रहेगा।

 

Written by

Romi Sharma

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