Sardar Vallabhbhai Patel Essay in Hindi & Vallabhbhai Patel quotes in hindi

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हेलो दोस्तों आज हम आपको Sardar Vallabhbhai Patel के बारे में बताएँगे तो आईये पढ़ते है Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi में जीवनी के तरह बता रहे है । अगर आप Sardar Vallabhbhai Patel quotes in hindi में भी ढूंढ रहे है तो आपके लिए ये आर्टिकल दोनों बातो को अच्छे से बताएगा।

निबंद शुरू करने से पहले सरदार वल्लभ भाई से जुड़े हुवे बहुत से सवाल है हम आपको उनका जवाब देंगे।

Q1. किसकी विनंती से सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बारडोली सत्याग्रह की‌ आगेवानी लेने की संमति दी थी

A. महात्मा गाँधी की विनंती से सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बारडोली सत्याग्रह की‌ आगेवानी की

Q 2. सरदार वल्लभ भाई की मां का नाम

A. सरदार वल्लभ भाई की मां का नाम लाडवा था

Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi

Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi

सरदार वल्लभ भाई पटेल जन्म 31 अक्टूबर, 1875 में हुवा था  वल्लभभाई झवेरभाई पटेल नडियादगुजरात में अपने मामा के घर में पैदा हुए थे। वह खेड़ा जिले के करसमद गांव में रहते थे, जहां उनके पिता झवेरभाई एक किसान थे। सोम भाई नरसिंह भाई और विट्ठलभाई (जो खुद भी राजनेता बन गए। उनके बड़े भाई थे। उनका एक छोटा भाई था काशी भाई और एक छोटी बहन – देहिबा कि वे किसी भी साधारण नौकरी या व्यवसाय करेंगे उन्होंने अपने प्रेमी से जेबरा लाया और गोधरा में अपना जीवन शुरू किया और बार में (वकील के शरीर) में अपना नाम दर्ज किया।

उन्होंने पैसे बचाने के लिए कई सालों से अपना लिया और खुद को एक तेज और कुशल वकील अर्जित किया।

उनकी पत्नी ज़वे ने दो बच्चों को जन्म दिया 1 9 04 में मनीबेन और 19 06 में धियाभाई। जब गुजरात फंस गया था जब आतंक पटेल की टाऊन प्लेग भी अपने दोस्त की कहानियों में से एक था, तब भी जब वे खुद को रोगवह तुरंत खाली घर में नाडियाड में छोड़ने के घर अपने परिवार के लिए एक सुरक्षित जगह जाने जा रहे हैं और खुद को (एक और संस्करण के अनुसार वह इस समय खांसी एक मंदिर में जो किया गया था),

जहां वह धीरे-धीरे उपचार कर रहा था। वल्लभभाई गोधरा बी जब उन्होंने इंग्लैंड जाने के लिए पर्याप्त पैसा इकट्ठा कियातो वहां जाने के लिए एक लाइसेंस मिला और एक टिकट बुक कियाजो उसका वी। था।

जे पटेल के बड़े भाई विक्लभाई पटेल पटेल के प्रसिद्ध नाम पर आए थे। हालांकि उनकी चिकित्सा स्थिति अचानक थी और उनकी तत्काल शल्यक्रिया सफल रही थी, लेकिन उनके धर्मशाला में उनका निधन हो गया। जब उन्हें वल्लभभाई की मौत के बारे में बात हुई थी, वह अदालत में गवाह की जांच कर रहा था। उसने मुकदमा की खबर के बाद दूसरों को दिया। वल्लभभाई ने फिर से लॉन्च करने का फैसला नहीं किया।

उन्होंने अपने बच्चों की मदद से अपने परिवार की मदद की और मुंबई स्थित अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में चले गए 36 साल की उम्र में, वह इंग्लैंड गए और इंग्लैंड में लंदन के मध्य मंदिर में दाखिला लिया। भले ही महाविद्यालय में पढ़ाई का अनुभव न हो, वह पहली बार 30 महीने के 36 वें पाठ्यक्रम में आया। वह भारत लौट आए और अहमदाबाद में बस गए और शहर में एक विशिष्ट बैरिस्टर बन गएवह यूरोपीय शैली के कपड़े पहनते थे और सभ्य राजनीति बनाए रखते थे और वह पुल खेल का एक प्रमुख खिलाड़ी भी बन गए थे। उनकी एक महत्वाकांक्षी योजना थी जिसमें उन्हें अपनी वकालत से बहुत पैसा कमाया था और अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा दी थी।

स्वतत्रता संग्राम

1917 में, पटेल को वल्लभभाई चुनाव में अपने दोस्त की आग्रह के सम्मान के बाद शहर के सफाई विभाग के प्रमुख के रूप में चुना गया था। ब्रिटिश अधिकारियों के साथ अपने पता और इसे देश के लिए स्वतंत्रता मिलेगी। लेकिन जब गांधीजी ने चंपारण क्षेत्र के शोषित किसानों के लिए ब्रिटिश साम्राज्य की निंदा की तो वल्लभभाई उनके साथ बहुत प्रभावित हुए ने भारतीय शैली के कपड़े पहने और अंग्रेजी की बजाय मातृभाषा के उपयोग को बढ़ावा दिया, जो बुद्धिजीवियों की प्राकृतिक भाषा की भारतीय भाषा थी।

वल्लभभाई विशेष रूप से कार्रवाई करने के लिए गांधी जी की इच्छा के रवैये से प्रभावित थे – एक संकल्प राजनीतिक नेता Ani बसंत की गिरफ्तारी की निंदा के बावजूद गांधीजी भी उनसे लिखे गति लल बनाने के कर्ज़ख़्वयंसेवकों को यह ने गांधीजी के ब्रिटिश राष्ट्र से स्वराज मांगने के लिए एक आवेदन में भाग लिया।

होने के लिए लागू किया गया था बाद गुजरात राजनीतिक महासभा में गांधी जी के साथ बैठक के बाद एक महीने के गोधरा में और उससे प्रोत्साहन प्राप्त करने के बाद आयोजित की, वल्लभ भाई गुजरात सभाजो बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गुजराती शाखा में प्रदर्शित करने पर चला गया के सचिव बन गए।

वल्लभभाई अब वेदद्वारा बाद एक महीने के गोधरा में और उससे प्रोत्साहन प्राप्त करने के बाद आयोजित की, वल्लभ भाई गुजरात सभाजो बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गुजराती शाखा में प्रदर्शित करने पर चला गया के सचिव बन गए। वल्लभभाई अब वेदद्वारा यूरोपीय लोगों के अनिवार्य मजदूरी के खिलाफ लड़ शुरू कर दिया है – भारतीय और खेड़ा जिले और सूखा राहत में प्लेग के आक्रमण से राहत उपायों भरने शुरू कर दिया। ब्रिटिश सरकार ने खेड़ा के किसानों से राहत का अनुरोध करने से इनकार कर दिया था, और इसलिए गांधी इसके खिलाफ लड़ने के लिए सहमत हए।

जब वे एक गजराती कार्यकर्ता को खुद को इस काम में समर्पित करने के लिए आमंत्रित किया गया, तो वे संघर्ष का नेतृत्व करने में असमर्थ रहे, गांधीजी ने खुशी से अपना नाम वल्लभभाई रखाजिन्होंने स्वेच्छा से अपना नाम दिया।

हालांकि उन्होंने इस फैसले को तेज़ी से कियाबाद में वल्लभभाई ने कहा कि उनकी इच्छा और प्रतिबद्धता का पालन करने के अपने फैसले से पहले वह बहुत स्वयं केंद्रित था, क्योंकि इसके लिए उन्होंने अपने वकील के करियर और भौतिक आकांक्षाओं को त्याग दिया था।

यदि सरदार पटेल पहले प्रधानमंत्री होते तो जिस आतंकवाद व कश्मीर समस्या से देश परेशान है वह नहीं होती। देश के प्रति उनकी सेवाओं के लिए सरदार पटेल को 1991 में “भारत रत्न से सम्मानित” किया गया।

मृत्यु

29 मार्च 1949 को सरदार पटेल और उनकी बेटी मनीबेन और पटियाला के तीर्थयात्रियों के साथ संपर्क टूट गया। एंजी की समस्या के कारणपायलट को राजस्थान के रेगिस्तान क्षेत्र में एक आपातकालीन लैंडिंग करना पड़ा। इस अवसर पर कोई भी दुखी नहीं था और सरदार अन्य यात्रियों के साथ साथ पास के गांव गए और स्थानीय अधिकारियों को सूचित किया। करने के लिए कांग्रेसियों के हजारों दिल्ली में आ गया और आधे घंटे के लंबे समय तक वाहवाही, जो कार्यवाही के परिणामस्वरूप के साथ स्वागत के माध्यम से संसद में मंत्रियों खड़े होने के लिए बंद आयोजित किया गया था सरदार का गर्मजोशी से स्वागत दे दी है।

पटेल उनके गोधूलि के वर्षों में संसद के सदस्यों द्वारा सम्मानित किया गया पंजाब विश्वविद्यालय और उस्मानिया विश्वविद्यालय के साथ ही किया गया सम्मानित डॉक्टरेट को एक डिग्री से सम्मानित किया गया था। 19 50 की गर्मियों के दौरान सरदार का स्वास्थ्य खराब हो गया और।

उन्होंने खुले तौर से कहा कि वह लंबे समय तक नहीं रहेंगे 2 नवंबर के बाद से, जब सरदार शुद्ध शुद्धता खो गया था, तब से उसके आंदोलन अपने बिस्तर तक ही सीमित थे। जब 12 दिसंबर वह अपने मुंबई के पुत्र दहयाभाई विमान यात्रा में था घर पर आराम करने (अपने दूसरे najuka था उनके स्वास्थ्य और नेहरू और राजगोपालाचारी हवाई अड्डे उनसे मिलने के लिए चला गया।

15 दिसंबर को, 1950 में दिन एक बड़े पैमाने पर दिल humalo था जिसने उनकी मृत्यु का नेतृत्व किया

Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi

भारतीय राजनीति में लौह पुरुष के नाम से प्रसिद्ध ‘भारत रत्न’ सरदार वल्लभभाई पटेल अद्वितीय महापुरुष थे, जिनकी रीति-नीति, प्रबंध-पटुता, प्रशासनिक क्षमता एवं दूरदर्शिता को यदि उनके कार्यकाल के दौरान स्वीकार कर लिया जाता, तो शायद भारत को इतनी परेशानी न उठानी पड़ती। पाकिस्तानी उत्पात, सीमाओं की अस्थिरता, मैकमोहन लाई का चीन द्वारा न माना जाना, तिब्बत का चीन के कब्जे में फंसा होना, कश्मीर की दुर्दशा आतंकवाद का फैलाव आदि ऐसी जटिलताएं हैं, जिन्होंने भारत को चीन जैसी महाशक्ति बनने से रोका है। काश! नेहरूजी तथा उनकी सरकार ने स्वतंत्रता के आरंभिक दिनों में महापुरुष पटेल की बात मान ली होती, तो कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तानी कब्जे में न होता। यह सरदार पटेल के राजनीतिक कौशल का ही नतीजा था कि लगभग 600 देशी रियासतों को उन्होंने अपनी कूटनीति से भारतीय संघ’ में मिलाया।

अंग्रेज भारत के भीतर ही छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्य बना गए थे और उनको स्वायत्तता दे दी गई थी। कुछ अपने सिक्के भी चलाते थे तथा आन्तरिक यातायात के साधन भी खुद जुटाते थे। ग्वालियर, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, अलवर, ट्रावनकोर, मैसूर आदि ऐसे ही राज्य थे, जिनके शासक स्वयं को महाराजा लिखते थे और अंग्रेज भी अपने इन एजेन्टों को ‘हिज हाइनेस’ की पदवी से सम्बोधित करते थे। 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता तो मिली, किन्तु रजवाड़ों की वजह से देश फिर भी अलगाववाद के कुचक्र में फंसा हुआ था। पटेल ने बुद्धिमानी की तथा सभी देशी नरेशी से कहा कि वे भारत संघ में स्वेच्छा से शामिल हो जाएँ। यदि वे ऐसा करते हैं, तो उन्हें प्रति वर्ष प्रिवीपर्स’ के नाम से एक अच्छी धनराशि मिलती रहेगी और यदि वे पसन्द करेंगे, तो उन्हें अपने सम्बन्धित राज्य का राज्य प्रमुख भी बनाया जाएगा। कई महाराजाओं ने इसे स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया था और सरकार ने भी उनके साथ उदारता से व्यवहार किया था। लेकिन निजाम जैसे कुछ लोगों ने रजाकर आदि संगठित करके सरकार से लोहा लेने की ठानी थी, जिन्हें दूरदर्शी, सशक्त उपप्रधानमंत्री श्री पटेल ने विफल कर दिया था।

सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 में गुजरात के करमसद नामक स्थान में एक सम्भ्रान्त कृषक परिवार में हुआ था। आपके पिता श्री झाबेरभाई पटेल महारानी लक्ष्मीबाई की सेना के सैनिक रह चुके थे और पूर्ण निर्भीक, स्वाभिमानी राष्ट्रभक्त थे। पिता की निर्भीकता तथा करुणामयी माँ की धार्मिकता, दोनों ही गुण सरदार वल्लभभाई पटेल में विद्यमान थे। आपके बड़े भाई श्री विठ्ठल भाई पटेल, जिन्होंने स्वयं इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्ट्री पड़ी थी, विदेश से वापस आकर अपनी वकालत अच्छी तरह जमा ली और इसके पश्चात् वल्लभभाई पटेल को विलायत बार-एट-लॉ करने भेजा।

पूरी मेहनत से आपने इंग्लैण्ड में रहकर अपनी शिक्षा पूरी की और परीक्षा में प्रथम श्रेणी लेकर स्वदेश वापस लौटे। आपने वकालत करने के लिए अहमदाबाद को अपना व्यवसाय केन्द्र चुना था। श्री विठ्ठलभाई एवं श्री वल्लभभाई पटेल दोनों में ही राष्ट्र के प्रति सच्ची श्रद्धा थी। इसीलिए वे अंग्रेजी जमाने में अपनी जमी जमाई हजारों रुपए महीने की आमदनी छोड़कर स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़े।

इसे देश का दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि उप प्रधानमंत्री के रूप में तथा एक दूरदर्शी स्वराष्ट्र मंत्री के रूप में भारत को उनकी सेवाएँ लंबे समय तक सुलभ न हो सकी। स्वतंत्रता के अभी चार वर्ष भी पूरे नहीं हुए थे कि क्रूर काल ने उन्हें हम सभी से छीन लिया। 15 दिसम्बर, 1950 को उन्होंने सदा के लिए हम सबसे विदा ले ली।

Sardar Vallabhbhai Patel Essay in Hindi

सरदार वल्लभभाई पटेल का व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली था-सुदृढ़ विशाल शरीर, कठोर मुख-मुद्रा और शत्रु के प्रति ललकारभरी आँखें। वल्लभभाई उचित अवसर का सदुपयोग करना भली-भाँति जानते थे। वल्लभभाई ऊपर से जितने रूखे, निष्ठुर और कठोर प्रतीत होते थे, अंदर से वे उतने ही सरल, कोमल तथा निराभिमानी थे। उनमें वे सभी गुण थे जो महान् राष्ट्र के नेता में होने आवश्यक हैं। वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्तूबर, 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले के करमसद नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता श्री झवेरी भाई पटेल एक किसान थे। उनके पिता ने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में बुंदेलों के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी। वल्लभभाई के जीवन पर अपने माता-पिता की वीरता एवं देश-प्रेम की अमिट छाप पड़ी थी।

वल्लभभाई के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। इसलिए वह दसवीं के बाद उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज में प्रवेश न पा सके। वह ‘मुख्तारी’ की परीक्षा उत्तीर्ण करके सन् 1900 में गोधरा में फौजदारी के मुकद्दमों की वकालत करने लगे। उन्हें इस कार्य में काफी सफलता और प्रसिद्धि मिली।

दूसरा और देश-सेवा के रंग में पूरी तरह से रंग गए। जब एक बार गोधरा में प्लेग फैला, तो उसमें उनकी पत्नी का मृत्यु हो गई, तब उनकी उम्र मात्र 33 वर्ष थी। फिर आजीवन उन्होंने विवाह नहीं किया। फिर 1910 ई० में वल्लभभाई बैरिस्टरी करने विलायत गए। तीन वर्ष बाद बैरिस्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण करके वह भारत आ गए और मुंबई में प्रैक्टिस आरंभ कर दी। फिर वह महात्मा गाँधी के सम्पर्क में आए सन् 1916-17 के ‘खेड़ा सत्याग्रह‘ की सफलता ने उन्हें एक सच्चे नेता के रूप में उभारकर जनता के सामने प्रस्तुत कर दिया। गाँधीजी भी उनकी संगठन-शक्ति और कार्य-कुशलता का सिक्का मान गए। वल्लभभाई को सर्वाधिक प्रसिद्धि ‘बारडोली सत्याग्रह’ से मिली। इसके पश्चात् वे केवल गुजरात के नहीं, बल्कि पूरे देश के ‘सरदार’ बन गए। इसी सत्याग्रह में उन्होंने किसानों को संघर्ष करने की प्रेरणा दी थी।

15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिलने पर उन्हें गृह-विभाग और उप-प्रधानमंत्री बनाया गया। उन्हें गृह-विभाग और रियासती विभाग सौंपे गए। उन्होंने अपनी कुशलता से थोड़े ही दिनों में भारत की लगभग 600 रियासतों का एकीकरण कर दिया और 219 छोटी रियासतों को विभिन्न प्रदेशों में मिला दिया। हैदराबाद के निज़ाम ने जब इसमें आनाकानी की तो उन्होंने कठोर कदम उठाकर उसे भारत में मिलाने के लिए विवश कर दिया। भारत का यह अमर सेनानी 15 सितंबर, 1950 को ये दुनिया छोड़कर चला गया। भारत के इतिहास में उनका नाम सदा स्वर्ण अक्षरों में लिखा रहेगा। वे सचमुच ‘लौह पुरुष’ थे और ‘सरदार’ कहलाने के योग्य थे।

Sardar Vallabhbhai Patel  quotes in Hindi

  • हम कभी हिंसा न करें, किसी को कष्ट न दें और इसी उद्देश्य से हिंसा के विरूद्ध गांधीजी ने अहिंसा का हथियार आजमा कर संसार को चकित कर दिया।
  • हर जाति या राष्ट्र खाली तलवार से वीर नहीं बनता तलवार तो रक्षा-हेतु आवश्यक है, पर राष्ट्र की प्रगति को तो उसकी नैतिकता से ही मापा जा सकता है।
  • सत्ताधीशों की सत्ता उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाती है, पर महान देशभक्तों की सत्ता मरने के बाद काम करती है, अतः देशभक्ति अर्थात् देश-सेवा में जो मिठास है, वह और किसी चीज में नहीं।
  • शारीरिक और मानसिक शिक्षा साथ –साथ दी जाये, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए शिक्षा इसी हो जो छात्र के मन का, शरीर का, और आत्मा का विकास करे।
  • विश्वास रखकर आलस्य छोड़ दीजिये, वहम मिटा दीजिये, डर छोड़िये, फूट का त्याग कीजिये, कायरता निकाल डालिए, हिम्मत रखिये, बहादुर बन जाइए, और आत्मविश्वास रखना सीखिए इतना कर लेंगे तो आप जो चाहेंगे, अपने आप मिलेगा दुनिया में जो जिसके योग्य है, वह उसे मिलता ही है।
  • बहुत बोलने से कोई फायदा नहीं होता बल्कि नुकसान ही होता है।
  • प्रत्येक मनुष्य में प्रकृति ने चेतना का अंश रख दिया है जिसका विकास करके मनुष्य उन्नति कर सकता है।
  • त्याग के मूल्य का तभी पता चलता है, जब अपनी कोई मूल्यवान वस्तु छोडनी पडती है जिसने कभी त्याग नहीं किया, वह इसका मूल्य क्या जाने।
  • जीवन में आप जितने भी दुःख और सुख के भागी बनते हैं, उसके पूर्ण रूप से जिम्मेदार आप स्वंय ही होते है। इसमें ईश्वर का कोई भी दोष नहीं।
  • जब तक हमारा अंतिम ध्येय प्राप्त ना हो जाए तब तक उत्तरोत्तर अधिक कष्ट सहन करने की शक्ति हमारे अन्दर आये, यही सच्ची विजय है।
  • काम करने में तो मजा ही तब आता है, जब उसमे मुसीबत होती है मुसीबत में काम करना बहादुरों का काम है मर्दों का काम है कायर तो मुसीबतों से डरते हैं लेकिन हम कायर नहीं हैं, हमें मुसीबतों से डरना नहीं चाहिये।
  • आलस्य छोडिये और बेकार मत बैठिये क्योंकि हर समय काम करने वाला अपनी इन्द्रियों को आसानी से वश में कर लेता है।
  • अगर आप आम के फल को समय से पहले ही तोड़ कर खा लेंगे, तो वह खट्टा ही लगेगा। लेकिन वहीँ आप उसे थोड़ा समय देते हैं तो वह खुद-ब-खुद पककर नीचे गिर जाएगा और आपको अमृत के समान लगेगा।
  • जब जनता एक हो जाती है, तब उसके सामने क्रूर से क्रूर शासन भी नहीं टिक सकता. अतः जात-पांत के ऊँच-नीच के भेदभाव को भुलाकर सब एक हो जाइए.
  • कायरता का बोझा दूसरे पड़ोसियों पर रहता है. अतः हमें मजबूत बनना चाहिए ताकि पड़ोसियों का काम सरल हो जाए.
  • जितना दुःख भाग्य में लिखा है, उसे भोगना ही पड़ेगा-फिर चिंता क्यों?
  • अपने धर्म का पालन करते हुए जैसी भी स्थिति आ पड़े, उसी में सुख मानना चाहिए और ईश्वर में विश्वास रखकर सभी कर्तव्यों का पालन करते हुए आनन्दपूर्वक दिन बिताने चाहिए.
  • कठोर-से-कठोर हृदय को भी प्रेम से वश में किया जा सकता है. प्रेम तो प्रेम है. माता को भी अपना काना-कुबड़ा बच्चा सुंदर लगता है और वह उससे असीम प्रेम करती है.
  • भारत की एक बड़ी विशेषता है, वह यह कि चाहे कितने ही उतर-चढ़ाव आएँ, किन्तु पुण्यशाली आत्माएँ यहाँ जन्म लेती ही रहती हैं.
  • शक्ति के बिना श्रद्धा व्यर्थ है. किसी भी महान कार्य को पूरा करने में श्रद्धा और शक्ति दोनों की आवश्यकता है.
  • हम कभी हिंसा न करें, किसी को कष्ट न दें और इसी उद्देश्य से हिंसा के विरूद्ध गांधीजी ने अहिंसा का हथियार आजमा कर संसार को चकित कर दिया.
  • शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाये, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम दे सकता है.
  • यह सच है कि पानी में तैरने वाले ही डूबते हैं किनारे पर खडे रहने वाले नहीं मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते हैं.

 

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Written by

Romi Sharma

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