विद्यार्थी जीवन पर निबंध ? Vidyarthi Jeevan Essay in Hindi

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हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Vidyarthi Jeevan Essay in Hindi पर पुरा आर्टिकल। आज हम आपके सामने Vidyarthi Jeevan के बारे में कुछ जानकारी लाये है जो आपको हिंदी essay के दवारा दी जाएगी। आईये शुरू करते है Vidyarthi Jeevan Essay in Hindi

 

Vidyarthi Jeevan Essay in Hindi No .1

vidyarthi jeevan essay in hindi

मानव जीवन की सबसे अधिक मधुर तथा सुनहरी अवस्था विद्यार्थी जीवन है। सरल निष्कपट मधुर चिंतारहित उत्साह पूर्ण आशाओं-भरी उमंगों की लहरें लेती हुई और उछल कूद करती हुई यह आयु कितनी रसीली है, इसका अनुमान-भर ही किया जा सकता है। विद्यार्थी जीवन सारे जीवन की नींव है। चतुर कारीगर बहुत सावधान तथा प्रयत्नशील रहता है कि वह जिस मकान को बना रहा है, कहीं उसकी नींव कमजोर न रह जाए। नव द्ट होने पर ही मकान धूप, पानी और भूकंप के वेग को सहज ही सह सकता है। इसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति अपने जीवन की नींव को सुदृढ़ बनाने के लिए सावधानी से यत्न करते हैं।

भली प्रकार विद्या को ग्रहण करना विद्या का मुख्य कर्तव्य है। इस जीवन में विद्यार्थी अपने लिएअपने माता-पिता तथा परिवार के लिएअपने समाज के लिए और अपने राष्ट्र के लिए तैयार हो रहा होता है, इसलिए उसे सब प्रकार से उसके योग्य बनना होता है। विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह अपने शरीरबुद्धि, मस्तिष्क, मन और आत्मा के विकास के लिए पूरापूरा यन करे।

आलस्य विद्यार्थियों का महान् शत्रु है। जो विद्यार्थी ऊँघ या नींद में अथवा निकम्मे रहकर समय गंवा देते हैं, उन्हें भलीभाँति अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। विद्यार्थी जीवन का एक-एक क्षण अमूल्य है। यह व्यर्थ ही बीत जाए तो बाद में शिक्षा प्राप्ति कठिन हो जाती है। विद्यार्थियों के लिए आराम नहीं है और जो आराम के इच्छुक हैं उनके लिए विद्या नहीं हैव्यर्थ की गणें और अधिक खेलतमाशे भी विद्यार्थी जीवन को चौपट कर डालते हैं।

विद्या को संयमी होना चाहिए इंद्रियों के अधीन रहनेवाले विद्यार्थी अपने जीवन में सफल नहीं हो पाते। जो साज-श्रृंगार की ओर लगा रहता है वह संयमी नहीं हो सकता। स्वादिष्ट और चटपटी वस्तुओं के लोभी विद्यार्थी अपने पर काबू नहीं रख सकतेइसलिए साधारण वस्तुओं से ही संतुष्ट और तृप्त होने का स्वभाव बनाना बहुत उपयोगी होता है। में फंसनेवाले विद्यार्थी अपने पाँव पर आप कुल्हाड़ी मारते हैं।

शिक्षकों तथा माता-पिता के प्रति आदर और श्रद्धा रखना विद्यार्थी के लिए नितांत आवश्यक है। इसके बिना विद्यार्थी भलीभत विद्या प्राप्त नहीं कर सकता। विद्या को जीवन में अच्छे गुण ग्रहण करने तथा अचछी विद्या प्राप्त करने के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए। ये गुण किसी से भी प्राप्त किए जा सकते हैं। इठे अभिमान में पढ़कर अपने को विद्या से वंचित रखना उचित नहीं। जो यह समझता है कि उसे सबकुछ आता है, वह कभी।

उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता। असली विद्यार्थी तो वह है जो सदा जिज्ञासु बना रहता है। कई विद्यार्थी माता-पिता के स्नेह का अनुचित लाभ उठाकर उनके धन का बड़ी बेदर्दी से अपव्यय करते हैं। यह अत्यंत अनुचित है। मितव्ययी होना विद्यार्थी का परम कर्तव्य है। अनुशासन प्रियता नियमितता, समय पर काम करना, उदारता, दूसरों की सहायता, सब्बी मित्रता, पुरुषार्थ सत्यवादिता, नीतिज्ञता देशभक्ति, विनोदप्रियता आदि गुणों से विद्यार्थी का जीवन सोने की भाँति चमक जाता है।

निर्लज्जता एक दुर्गुण है, किंतु शर्मीला होना उससे भी बढ़कर दुर्गुण है। विद्या को चाहिए कि वह झूठी शर्म छोड़कर साहसीवीर, स्पष्टवादी और निर्धक बने । शर्मीले विद्या जीवन की दौड़ में सफल नहीं हो पाते।

शरीर के पुष्ट होने पर ही मस्तिष्क, मन और आत्मा की पुष्टि संभव है। इसलिए शरीर को बलवान् बनाना प्रत्येक विद्यार्थी का परम कर्तव्य है। व्यायाम करनेनाना प्रकार के खेलों में भाग लेने, सैनिक-शिक्षा प्राप्त करने तथा अपने हाथ से काम करने में संकोच न करने से शरीर, मस्तिष्क, मन और आत्मा बलवान् बनते हैं।

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Vidyarthi Jeevan Essay in Hindi No .2  /विद्यार्थी जीवन पर निबंध

अनुशासन मानव जीवन का आभूषण है, श्रृंगार है। मनुष्य के चरित्र का यह सबसे शुभ लक्षण है1 विद्यार्थी जीवन के लिए तो यह नितांत आवश्यक है । विद्यार्थी जीवन का परम लक्ष्य । विद्या-प्राप्ति है और विद्या-प्राप्ति के लिए अनुशासन का पालन बहुत आवश्यक है। अनुशासन न केवल व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन के लिए आवश्यक है, अपितु राष्ट्रीय जीवन का आधार भी है। यदि हम यह कहें कि व्यक्तिगत जीवन समाजजाति तथा राष्ट्रीय विकास का मेरुदंड अनुशासन है तो कोई अत्युक्ति न होगी।

जिस अनुशासन का मानव जीवन में सामान्य रूप से और विद्यार्थी जीवन में विशेष रूप से इतना महत्त्व है, उस शब्द का अभिप्राय है देश, समाजसंस्था, माता-पितागुरुजनों तक बड़े अधिकारियों की आज्ञा का पालन करना और नियमोंविधानों, कानूनों का अनुसरण करना। अनुशासन की भावना ही स्वतंत्रता का मूल्य है।

विद्यार्थी जीवन भावी जीवन की नींव है। इस जीवन में यदि अनुशासन में रहने की आदत पड़ जाए तो भविष्य में प्रगति के द्वार खुल जाते हैं। एक ओर तो हम कहते हैं कि आज विद्यार्थी कल का नेता है और दूसरी ओर वही विद्यार्थी अनुशासन भंग करके आज राष्ट्र के आधार -स्तंभों को गिरा रहे हैं।

विद्यार्थी जीवन में अनुशासनहीनता अत्यंत हानिकारक है। इससे माता-पिता का मेहनत से कमाया हुआ धन व्यर्थ चला जाता है देश और समाज को अनुशासनहीनता से क्षति पहुँचती है। जो विद्यार्थी अनुशासन भंग करता है, वह स्वयं अपने हाथों से अपने भविष्य को बिगाड़ता है। बसों को आग लगाना, सरकारी संपत्ति को नष्ट करना, अध्यापकों और प्रोफेसरों का अपमान करना, स्कूल और कॉलेज के नियमों का उल्लंघन करना और पढ़ाई के समय में राजनीतिक गतिविधियों में समय नष्ट करना इत्यादि कतिपय अनुशासनहीनता के रूप हैं।

इस अनुशासनहीनता के व्यक्तिगत सामाजिक, नैतिक, आर्थिक तथा कुछ अन्य कारण हो सकते हैं। आज स्कूल और कॉलेज राजनीति के केंद्र बन जाते हैं और विद्यार्थियों में परस्पर फूट पैदा कर दी जाती है। ये राजनीतिक दल ऐसा करके न केवल विद्यार्थी जीवन की पवित्रता को भंग करते हैं, अपितु देश में अशांति, हिंसा और विघटन की भावना उत्पन्न करते हैं। अत: स्कूल और कॉलेज के जीवन में राजनीति के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

आज नवयुवक को अपने चारों ओर अंधकार-ही-अंधकार दिखाई देता है। शिक्षा में कुछ ऐसे आधारभूत परिवर्तन होने चाहिए जिनसे विद्यार्थी को अपने भविष्य के प्रति निष्ठा वर्तमान के प्रति प्रेम और अतीत के प्रति श्रद्धा बढ़े। चरित्र और नैतिक पतन की जो प्रतिष्ठा हो चुकी है उसके भी कारण खोजे जाएँ और ऐसी आचार संहिता बनाई जाएजिसका विद्या श्रद्धापूर्वक पालन कर सकें।

नवयुवक में शक्ति का अपार भंडार होता है। उसका सही प्रयोग होना चाहिए स्कूलों और कॉलेजों में खाली समय में खेलने के लिए सुविधाएं प्राप्त की जानी चाहिए। ग्रीष्मावकाश में विद्या भ्रमण के लिए बाहर ले जाए जाएँ। विद्यार्थियों की रुचि का परिष्कार करके उन्हें सामाजिक और सामूहिक विकास योजनाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाए।

नैतिक गिरावट के कारण और परिणाम उन्हें बताए जाएं जिससे वे आत्मनिरीक्षण करके अपने जीवन के स्वयं निर्माता बन सकें। शिक्षितों की बेकारी दूर करने की कोशिश की जानी चाहिए। अनुशासनहीनता से बचकर विद्यार्थी जब अपने कल्याण की भावना के विषय में सोचेंगे तभी उनका जीवन प्रगति-पथ पर बढ़ सकेगा।

 

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Written by

Romi Sharma

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