आलस्य पर निबंध – Essay on Laziness in Hindi @ 2020

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हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Essay on Laziness in Hindi पर पुरा आर्टिकल। आज हम आपके सामने Laziness or alasya  के बारे में कुछ जानकारी लाये है जो आपको हिंदी essay के दवारा दी जाएगी। आईये शुरू करते है Essay on Laziness in Hindi

Essay on Laziness in Hindi

आलस्य पर निबंध - Essay on Laziness in Hindi @ 2020 1
Essay on Laziness in Hindi

ऐसी मानसिक या शारीरिक शिथिलता जिसके कारण किसी काम को करने में मन नहीं लगता आलस्य है। कार्य करने में अनुत्साह आलस्य है। सुस्ती और काहिली इसके पर्याय हैं। संतोष की यह जननी है, जो मानवीय प्रगति में बाधक है। वस्तुतयह ऐसा राजरोग है, जिसका रोगी कभी नहीं संभलता। असफलता, पराजय और विनाश आलस्य के अवश्यम्भावी परिणाम हैं। आलसियों का सबसे बड़ा सहारा ‘भाग्य’ होता है। उन लोगों का तर्क होता है कि होगा वही जो रामरुचि रखा।’ प्रत्येक कार्य को भाग्य के भरोसे छोड़कर आलसी व्यक्ति परिश्रम से दूर भागता है। इस पलायनवादी प्रवृत्ति के कारण आलसियों को जीवन में सफलता नहीं मिल पाती। वस्तुतआलस्य और सफलता में 36 का आंकड़ा है।

भाग्य और परिश्रम के सम्बन्ध में विचार व्यक्त करते हुए सभी विचारकों ने परिश्रम के महत्व को स्वीकार किया है और भाग्य का आश्रय लेने वालों को मूर्ख और कायर बताया है। बिना परिश्रम के तो शेर को भी आहार नहीं मिल सकता। यदि वह आलस्य में पड़ा रहे, तो भूखा ही मरेगा। आलस्य की भत्र्सना सभी विद्वानों, संतों, महात्माओं और महापुरुषों ने की है।

स्वामी रामतीर्थ ने आलस्य को मृत्यु मानते हुए कहा’आलस्य आपके लिए मृत्यु है और केवल उद्योग ही आपका जीवन है। संत तिरूवल्लुवर कहते हैं, ‘उच्व कुल रूपी दीपक, आलस्य रूपी मैल लगने पर प्रकाश में घुटकर बुझ जाएगा।’ संत विनोबा का विचार है, ‘दुनिया में आलस्य बढ़ाने सरीखा दूसरा भयंकर पाप नहीं है।’ विदेशी विद्वान जेरेमी टेरल स्वामी रामतीर्थ से सहमति प्रकट करते हुए कहता है, ‘आलस्य जीवित मनुष्य को दफना देता है।’

आलस्य के दुष्परिणाम केवल विद्यार्थी जीवन में भोगने पड़ते हों, ऐसी बात नहीं। जीवन के सभी क्षेत्रों में उसके कड़वे पूंट पीने पड़ते हैं। शरीर को थोड़ा कष्ट है, आलस्यवश उपचार नहीं करवाते। रोग धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। जब आप डॉक्टर तक पहुँचते हैं, तब तक शरीर पूर्ण रूप से रोगग्रस्त हो चुका होता है, रोग भयंकर रूप धारण कर चुका होता है।

खाने की थाली आपके सामने है। खाने में आप अलसा रहे हैं, खाना अस्वाद बन जाएगा। घर में कुर्सी पर बैठेबैठे छोटी-छोटी चीज के लिए बच्चों को तंग कर रहे हैं, न मिलने या विलम्ब से मिलने पर उन्हें डांट रहे हैं, पीट रहे हैं, घर का वातावरण अशांत हो उठता है-केवल आपके थोड़े से आलस्य के कारण।

आलस्य में दरिद्रता का वास है। आलस्य परमात्मा के दिए हुए हाथपैरों का अपमान है। आलस्य परतन्त्रता का जनक है। इसीलिए देवता भी आलसी से प्रेम नहीं करते।’ (ऋग्वेद आलसी मनुष्य सदा ऋणी और दूसरों के लिए भार रूप रहता है, जबकि परिश्रमी मनुष्य ऋण को चुकाता है तथा लक्ष्मी का उसके यहाँ वास होता है। आलस्य निराशा का मूल है और उद्योग सफलता का रहस्य। उद्यम स्वर्ग है और आलस्य नरक। आलस्य सब कामों को कठिन और परिश्रम सरल कर देता है।

पाश्चात्य विद्वान रस्किन ने चेतावनी देते हुए लिखा है, ‘आलसियों की तरह जीने से समय और जीवन पवित्र नहीं किये जा सकते।’ अत: आलस्य को अपना परम शत्रु समझो और कर्तव्यपरायण बन परिस्थिति का सदुपयोग करते हुए उसे अपने अनुकूल बनाओ। कारण, कार्य मनोरथ से नहीं, उद्यम से सिद्ध होते हैं। जीवन के विकास-बीज आलस्य से नहीं, उद्यम से विकसित होते हैं।

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आलस्य एक ऐसी स्थिति है जिसमे व्यक्ति कुछ करने में असमर्थ हो जाता है , इसलिए नहीं कि उसके पास ऐसा करने की कोई क्षमता नहीं है, बल्कि अनिच्छुक और मनोवैज्ञानिक रूप से असमर्थ होने के कारण। हालांकि, आलस्य को थकान, मानसिक विकार या सिज़ोफ्रेनिया के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए, हालांकि कुछ समान चरित्र लक्षण प्रत्येक से जुड़े हुए हैं। वैसे देखा जाये तो हर किसी ने अपने या अपने जीवन में आलस्य का अनुभव किया है

आलस्य का प्रभाव

बहुत से लोग अपने जीवन में असफल होते हैं, क्योंकि वे आलस्य को अपने जीवन भगा नहीं पाए । वास्तव में, आलस्य गरीबी और सभी प्रकार की बुराई से जुड़ा हुआ है। आजकल लोग इतने आलसी हो गए हैं कि वे अपना भोजन तैयार करने में भी असमर्थ हैं। यह आलस्य के कारण ही दुनिया भर में बहुत सारे फास्ट फूड रेस्तरां विकसित हो रहे हैं।

हालांकि, प्रभावों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है क्योंकि मोटे लोगों की संख्या हर एक दिन बढ़ती रहती है। इसी तरह, मोटापे से संबंधित मौतें जो पहले के दिनों में असामान्य थीं, वह अब आम हो गयी हैं। बड़ा सवाल यह बना हुआ है कि आखिर आलस की बढ़ती दर के पीछे कारण क्या है?

आलस्य का कारण

दरअसल, अधिकांश व्यक्ति आंतरिक रूप से आलसी नहीं होते हैं, हालांकि उन्हें आलसी माना जाता है क्योंकि वे अपने जीवन या समाज के कल्याण के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, कुछ नौकरियों में विशेषज्ञता के स्तर की जरूरत होती है या ज्यादा पैसे की की जरूरत होती है यही वो चीज़ है जो उन्हें करने से रोकती है

हालांकि, दूसरी ओर, तकनीक भी लोगों को बहुत आलसी बना रही है। अधिकांश लोग कैलकुलेटर की मदद के बिना जोड़ जाता तक नहीं करते ऐसा नहीं है कि वे सक्षम नहीं हैं, क्योंकि वे अनिच्छुक हैं और इसे संभालने के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार नहीं हैं। वास्तव में, वर्तमान में चीजों को देखने के साथ, प्रौद्योगिकी भविष्य की पीढ़ियों को अपने दम पर कुछ भी करने के लिए आलसी बना देगी।

निराशा और भय व्यक्ति को कम आत्मसम्मान और सफलता के साथ असहज महसूस कराता है। वास्तव में, ज्यादातर अनाथ और गरीब पारिवारिक पृष्ठभूमि के बच्चों में उत्साह के साथ जीवन का सामना करने की हिम्मत नहीं होती है और इसलिए, वे आलस्य को खुद को तोड़फोड़ करने के साधन के रूप में पाते हैं।

आलस्य मनुष्य का शत्रु पर निबंध

मानव जीवन संघर्ष पूर्ण होता है। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक आशा निराशा और जिज्ञासा से पूर्ण मनुष्य विभिन लक्क्षों को प्राप्त करने के लिये लालायित रहता है। बहुत से लोग उसमें सफल हो जाते है तथा बहुत से असफल, असफलता का प्रमुख कारण कर्म के प्रति रूचि न होना तथा कार्य के प्रति दृढ़ निश्चय का न होना भी दर्शाता है, पर आलस्य उनमें प्राथमिक रूप से उत्तरदायी होता है जो काम को कल तक टालते रहते हैं और निराशा के शिकार होते है। अतः आलस्य को सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है। आलसी व्यक्ति सामाजिक बाबा राहता है जो निंदा से अनभिग्य निदेशन की अवहेलना करते हुए पूर्णता भाग पर निर्भर हो जाता है- ‘जो किस्मत में हो होगा वही होगा’ का मंत्र रखकर कर्म से विमुख हो जाता है जैसे तुलसी जी ने कहा है-

कादर मन कहुँ, एक अधरा,
देव-देव आलसी पुकारा।

भाग्य के भरोसे रहकर बड़े-बड़े कार्य मिट्टी में मिल जाते है। किसानों के थोड़े से आलस्य में पूरी फसल चौपट हो जाती है। मज़दूर के आलस करने से टुकड़े-टुकड़े के लाले पड़ जाते है। यही नहीं बड़े-बड़े सम्राज्य आलसी प्रवृत्ति के होने के कारण जड़ से मिट गये। जीवन, श्रम, परिश्रम कर्त्तव्य का नाम होता है जो आलसियों में नहीं पाया जाता है वह तो संकीर्ण विचारों वाला उस दिन पर जीने वाला, ज्ञान-विज्ञान से वंचित दिन रात भाग्य की दुहाई देने वाला आलसी आलस्य को न त्यागकर इस प्रकार कहता है-

‘अजगर करे न चा करि पंछी करे न काम,

दास मलूका कहि गये सबके दाता- राम।

आलस्य मनुष्य से उसकी सभी मनो वंचित वस्तुएँ को छीन लेता है। उसको कमज़ोर और बनजर बनाकर सामाजिकता की क्षीण समस्त लक्षण हर लेते हैं। गुणों के स्थान पर अवगुणों को सजा देता है। सारी सम्पन्ता को विन्रमता में परिवर्तित कर देता है। उसके लिये कोई मार्ग शेष नहीं छोड़ता, जिससे वह कहीं भी मुँह दिखा सके। आलस्य का भौग करते-करते मनुष्य की समस्त इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती है। उसका विवेक सो जाता है, बुद्धि नष्ट हो जाती और ऐसा आलसी प्राणी उठते-बैठने चलते-फिरते, मरा सा प्रतीत होता है। तभी तो किसी नितिज्ञ ने कहा है-

‘जिस प्रकार आग हरा-भरा सब कुछ जलाती है उसी प्रकार आलसी अपना सबकुछ स्वाहा कर देता है।’

मानव जीवन कर्तव्यों से बंध है जिसमें आलस्य का कोई स्थान नहीं है। बड़े आविष्कार सब कुछ परिश्रम और लगन से सफल हुए हैं। आसमान से लेकर धरती तक, धरती से लेकर पाताल तक सब कुछ ज्ञान- विज्ञान उत्साह और कर्त्तव्य से ही प्राप्त हुआ है। आलस्य से तो हम आज भी आदिकालीन वातावरण में रहे होते।

 

 

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Written by

Romi Sharma

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2 thoughts on “आलस्य पर निबंध – Essay on Laziness in Hindi @ 2020

  1. Essay On Laziness के बारे में बहुत ही बढ़िया लेख लिखा है आप अपना फीडबैक हमारे ब्लॉग पर जरूर दे

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