वर्षा ऋतु पर निबंध Essay on Rainy Season in Hindi @ 2018

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हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Essay on Rainy Season in Hindi पर पुरा आर्टिकल। आज हम आपके सामने Rainy Season के बारे में कुछ जानकारी लाये है जो आपको हिंदी essay के दवारा दी जाएगी। वर्षा ऋतु को हमारे सब के साथ साथ किसानो को भी इंतज़ार रहता है आईये शुरू करते है Essay on Rainy Season in Hindi

Essay on Rainy Season in Hindi

वर्षा ऋतु पर निबंध essay on rainy season in hindi

भारत में वर्षा ऋतु का आगमन जुलाई के महीने में होता है तथा सितंबर के महीने तक वर्षा होती रहती है। यह ऋतु किसानों के लिए वरदान सिद्ध होती है। वे इस ऋतु में खरीफ की फसल बोते हैं। वर्षा ऋतु वनस्पतियों के लिए भी वरदान होती है। वर्षा काल में पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाते हैं। वर्षा जल से उनमें जीवन का संचार होता है। वन-उपवन और बाग-बगीचों में नई रौनक और नई जवानी आ जाती है। तालतलैयों व नदियों में वर्षा -जल उमड पड़ता है। धरती की प्यास बुझती है तथा भूमि का जलस्तर बढ़ जाता है। मेढक प्रसन्न होकर टर्रटर्र की ध्वनि उत्पन्न करने लगते हैं।

झींगुर एक स्वर में बोलने लगते हैं। वनों में मोरों का मनभावन नृत्य आरंभ हो जाता है। हरीभरी धरती और बादलों से आच्छादित दृश्य देखते ही बनता है। वर्षा ऋतु गर्मी आसमान का से झुलसते जीव-समुदाय को शांति एवं राहत पहुँचाती है। लोग वर्षा ऋतु का भरपूर आनंद उठाते हैं।

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essay on rainy season in hindi

ग्रीष्य के ताप से जीवों को राहत देने के लिए वर्षा ऋतु आती है। पुरवाई चलने लगती है। उमड़-घुमड़कर बादलों के समूह आकाश में घिर आते हैं। नीली घटा सूर्य को छिपा देती है । बादलों को देखकर मोर छमछम नाचने लगते हैं। थोड़ी ही देर में टपटपकणकण बूंदें बरसने लगती हैं। बालक-बालिकाएँ नाचतेकूदते हुए वर्षा के स्वागत में गाने-गुनगुनाने लगते हैं। वर्षा से हमारे मैदान, खेत और बाग हरे-भरे हो जाते हैं। थोड़ी देर बाद वर्षा थम जाती है। लोगों का आना-जाना फिर आरंभ हो जाता है। एकाएक तेज हवाएं चलने लगती हैं। बादल घनघोर गर्जन करने लगते हैं।

बिजली चमकने लगती है। मूसलाधार वर्षा होने लगती है। लोग इधर-उधर दौड़कर भीगने से बचने के लिए प्रयत्न करते हैं। वायु के प्रचंड झोंके कारे-कजरारे बादलों को इधर से उधर धकेलते हैं और अंधकार घना होता जाता है। लगातार कई दिन तक वर्षा होती रहे तो नदीनालेतालाब आदि जल से भर जाते हैं। तैराक लोग तैरने को निकलते हैं। अति वृष्टि होने पर पेड़ कड़कड़ करते धड़ाम-धड़ाम गिरने लगते हैं। कहीं-कहीं बिजलीतार और टेलीफोन के खंभे भी गिर जाते हैं। गाँवों की गलियों और खेतों में पानी भर जाता है। नदी-नालों में बाढ़ आ जाती है ।

यह बाढ़ अपने किनारों पर खड़े पेड़ों को अपने साथ बहाकर ले जाती है। कहींकहीं गाँवों में बाढ़ का पानी आ जाता है तो लोगों को अपार हानि और कष्ट होता है।

 

वर्षा ऋतु पर निबंध essay on rainy season in hindi

धरती तप रही थी एवं सूर्य आग उगल रहा था। पेड़पौधे सूख रहे थे एवं पशु-पक्षी बेहाल थे। हर व्यक्ति मानसून की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा था। तभी आश्चर्यजनक रुप से मौसम में बदलाव आया।. आकाश बादलों से घिर गया। तेज़ हवा एवं गड़गड़ाहट के मध्य वर्षा की बूंदे पड़ने लगी। मिट्टी की सौंधी सुगन्ध साँसों को महकाने लगी। पेड़-पौधों में नया जीवन आ गया। बारिश ने इमारतों एवं सड़कों को धोकर चमका दिया। सभी ओर हर्ष उल्लास फैल गया। लोग घर के बाहर निकलकर वर्षा का आनन्द उठाने लगे। लोगों के रंगबिरंगे छाते एवं बरसातियाँ एक अलग ही दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे।

चिड़ियों ने चहचाहना प्रारम्भ कर दिया एवं मोर नाचने लगे। हर व्यक्ति वर्षा के रंग में सरोबार हो गया। बारिश के रुकने पर आकाश में एक बड़ा सा इन्द्रधनुष दिखाई पड़ा। बारिश का वह दिन किसी एक स्वप्न की तरह था।

वर्षा ऋतु पर निबंध essay on rainy season in hindi

भारत में प्रतिवर्ष बारीबारी से छ: ऋतुएँ आती हैं । ये ऋतुएँ हैं- ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिरवसन्त। इनमें से वसन्त को ऋतुराज कहा जाता है और वर्षा को ऋतुओं की रानी। ग्रीष्म ऋतु में जोर की गर्मी पड़ती है। इससे सागर का पानी भाप बनकर उड़ता है और बादल बन जाता है । मानसून की पवनों से धकेले हुए बादल पर्वत की ओर जाते हैं । उससे टकराकर वे बरस पड़ते हैं । इसे ही हम वर्षा कहते हैं। वर्षा प्रायः आषाढ़-सावनभादों के महीनों में होती है । पानी से भरे कालेकाले बादल जब घिर आते हैं तो बच्चे नाचनेकूदने और किलकारियाँ मारने लगते हैं । बादलों को देखकर भोर नाचने लगते हैं । सभी जीवजन्तु, पशु-पक्षी और मनुष्य शीतल पवन (पुरवाई) से खुश हो जाते हैं। रिमझिम वर्षा की बूंदें बरसती हैं, उस समय का दृश्य देखने योग्य होता है । खेतों और मैदानों में हरीहरी मखमली घास उग आती है, पेड़पौधों, बेलों पर हरे पत्ते छा जाते हैं, वन उपवन में कई प्रकार के फूल खिल जाते हैं ।

जिधर देखोहरा हरा दिखायी देता है । किसान प्रसन्न होते हैं कि अब खूव फसल होगी। कभी मूसलाधार पानी बरसने लगता है । तब लोग भीगने से बचने के लिए इधरउधर दौड़ते हैं । गड्ढोंतालाबों, नदियों और झीलों में पानी भर जाता है । लगातार मूसलाधार वर्ष होने से नदियों में बाढ़ आ जाती है । बाद में किनारे के पेड़ पौधे उखड़कर बह जाते हैं । नदी किनारे के गाँवों में पानी का जाता है। कभीकभी मकान भी गिर जाते हैं और रास्ते रुक जाते हैं। वर्षा में कई प्रकार के कीड़ेमच्छर, मक्खी आदि पैदा हो जाते हैं। इससे मलेरिया आदि रोग फैलते हैं । सांप, बिच्छ आदि बिलों से बाहर आ जाते हैं । हमारे देश की अधिकांश भूमि की सिंचाई का आधार वर्षा ही है । इसीलिए वर्षा को ऋतुओं की रानी कहा जाता है । भारत में वर्षा कभी कमकभी अधिक होती है । इसीलिए भारतीय कृषि को मानसून का जुआ आा भी कहते हैं। वर्षा ऋतु। में खोर और मालपुए ड़े) खाये जाते हैं। वषों के अपने पर हमारे देश में बहुत खुशियाँ मनाई जातो हैं ।

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वर्षा ऋतु पर निबंध essay on rainy season in hindi

भास्कर की क्रोधाग्नि से प्राण पाकर धरा शांत और शीतल हुई। उसको झुलसे हुए गाल पर रोमावली सी खड़ी हो गई। वसुधा हरीभरी हो उठी। पीली पड़ी, पत्तियों और मुरझाए पेड़ों पर हरियाली छा गईं। उपवन में पुष्प खिल उठे। कुंजों में लताएँ एक-दूसरे से आलिंगनबद्ध होने ल। सरिता-सरोवर जल से भर गए। उनमें कमल मुकुलित बदन खड़े हुए। नदियाँ इतरा, इठलात अठखेलियां करती, तट बंधन तोड़ बिछुड़े हुए पति सागर से मिलने निकल पड़ी। सम्पूर्ण वायुमंडल शीतल और सुखद हुआ। भवनमार्ग, लता-पुष्प धुले से नजर आने लगे। वातावरण मधुर और सुगंधित हुआ।

जनजीवन में उल्लास छा गया। पिकनिक और सैर-सपाटे का मौसम आ गया। पेड़ों पर झूले पड़ गए। किशोर किशोरियाँ पेंगे भरने लगूं। उनके कोकिल कंठी से मल्हार फूट निकला। पावस में बरती वारिधारा को देखकर प्रकृति के चतुर चितरे सुमित्रनन्दन पंत का हृदय गा उठा ‘पकड़ वारि की धार झूलता है रे मेरा मन।’ कविवर सेनापति को तो वर्षा में नवसुंध के आगमन का दृश्य दिखाई देता है इस ऋतु में आकाश में बादलों के झुंड नईनई क्रीड़ा करते हुए अनेक रूप धारण करते हैं। मेघमलाच्छदित गगन-मंडल इन्द्र को वज्रपात से चिंगारी दिखाने के समान विपुलता की बार-बार चमक और चपलता देखकर वर्षा में बन्द भी भीगी बिल्ली बन जाते हैं। मेघों में बिजली की चमक में प्रकृति सुन्दरी के कंकण मनोहारिणी छवि देते हैं।

घनघोर गर्जन से ये मेघ कभी प्रलय मचाते तो कभी इन्द्रधनुषी सतरंगी छटा से मन मोह लेते हैं। वन-उवन तथा बाग-बगीचों में यौवन चमका। पेड़पौधे स्वच्छन्दतापूर्वक भीगते हुए मस्ती में झूम उठे। हरे पत्ते की हरी डालियाँ रूपी कर नील गगन को स्पर्श करने के लिए मचल उठे। पवन वेग से गुंजित तथा कंपित वृक्षावली सिर हिलाकर चित्त को अपनी ओर बुलाने लगीं। वषां का रस रसाल क के रूप में टिप-टिप गिरता हुआ टपका बन जाता है तो मंद-मंद गिरती हुई जामुनें मानो भादों के नामकरण संस्कार को सूचित कर रही हों। ‘बाबा जी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी हुईमोतियों से जड़ी कूकड़ी की तो बात ही निराली है। सरिताओं की सुन्दर क्रीड़ा को देखकर प्रसाद जी का हृदय विस्मित हो लिखता है-‘सघन वृक्षाच्छादित हरित पर्वत श्रेणीसुन्दर निर्मल जल पूरित नदियों का हरियाली में छिपते हुए बहना, कतिपय स्थानों में प्रकट रूप में वेग सहित प्रवाह हृदय की चंचलधारा को अपने साथ बहाए लिए जाता है।’

(प्रकृति सौन्दर्यलेख से)। सावन की मनभावनी फुहारों और धीमी-धीमी शीतल पवन के चलते मतवाले मयूर अपने पंखों के चंदोवे दिखादिखाकर नाच रहे हैं। पोखरों में मेंढ़क टर्र-टर्र करते हुए अपना गला ही फाड़े डाल रहे हैं। बगुलों की पंक्ति पंख फैलाफैलाकर चांदनी-सी तान रहे हैं। मछलियाँ जल में डुबकी लगाकर जलक्रीड़ा का आनन्द ले रही हैं। रात्रि में जुगनू अपने प्रकाश से मेघाच्छादित आकाश में दीपावली के दीपक समान टिमटिमा रहे हैं।

केंचुएबिच्छू, मक्खी मच्छर सैर का आनन्द लेने भूतल पर विवरण कर रहे हैं। खगगण का कलरव, झींगुर समूह की झंकार वातावरण को संगीतमय बना रहे हैं। चांदनी रात में तो हिमपात का सौन्दर्य अत्यधिक हृदयी ग्राही बन जाता है, क्योंकि आकाश से गिरती हुई बर्फ और बर्फ से ढके हुए पदार्थ शुध्र ज्योत्सना की आभा से चमकते हुए बहुत ही सुन्दर लगते हैं। चांदनी के कारण सारा दृश्य दूध के समुद्र के समान दिखाई देता है। नयनाभिराम हिमराशि की श्वेतिमा मन को मोह लेती है।

वर्षा का वीभत्सव रूप है अतिवृष्टि। अतिवृष्टि से जलप्रलय का दृश्य उपस्थित होता है। दूर-दूर तक जल ही जल। मकान, सड़क, वाहनपेड़पौधे, सब जल मग्न। जीवनभर की संचित सम्पत्ति, पदार्थ जल देवता को अर्पित तथा जल प्रवाह के प्रबल वेग में नरनारी, बालकवृद्ध तथा पशु बह रहे हैं। अनचाहे काल का ग्रास बन रहे हैं। गाँव के गाँव अपनी प्रिय स्थली को छोड़कर शरणार्थी बन सुरक्षित स्थान पर शरण लेने को विवश हैं। प्रकृति प्रकोप के सम्मुख निरीह मानव का चित्रण करते हुए प्रसाद जी लिखते हैं हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छाँह एक पुरुष भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।

वर्षा से अनेक हानियाँ भी हैं। सड़कों पर और झोपड़ियों में जीवन व्यतीत करने वाले लोग भीगे वस्त्रों में अपना समय गुजारते हैं। उनका उठना-बैठनासोना-जागना खाना-पीना दुश्वार हो जाता है। वर्षा से मच्छरों का प्रकोप होता है, जो अपने वंश से मानव को बिना माँगे मलेरिया दान कर जाते हैं। वायरल फीवरटायफॉइ बुखार, गैस्ट्रो एंटराइटिस, डायरिया, डीसेन्ट्री, कोलेरा आदि रोग इस ऋतु के अभिशाप हैं।

essay on rainy season in hindi

गमियों से भूमि तपकर मानो दु:खी हो जाती है। उसे शांत करने के लिए वर्षा ऋतु आती है । इसके आषाढ़-सावनभादों महीने होते हैं । पन्द्रह जुलाई से पन्द्रह सितम्बर तक ये दिन होते हैं। सूर्य की किरणों से समुद्र का पानी गर्म होकर भाप बनकर बादल बन जाता है । बादल पहाड़ से टकरा कर वर्षा करते हैं। फिर पहाड़ों से लौटी हुई घटाएं मैदानों की ओर जाकर पानी बरसाती हैं । पानी से भरे कालेकाले बादल जब घिर आते हैं। तो बच्चे खूब नाचतेकूदते हैं । किलकारियां मारते हैं। इधरउधर दौड़ते और गाते हैं मीह बरसावो जारी जोर । बादलों को देखकर मोर नाचने लगते हैं। पशु पक्षी भी आनन्द मनाते हैं ।

वर्षा होने पर भूमि की प्यास मिट जाती है । मिट्टी दब जाती है । पर कीचड़ भी हो जाता है । वृक्षों पर हरेभरे पत्ते छा जाते हैं । किसान प्रसन्न होते हैं कि अब खेती खूब हरीभरी होगी । नदियों, झीलों, तालाबों, गड्ढों में पानी भर जाता है । कई बार बाढ़ आ जाती है। बाढ़ से बड़ी हानि होती है ।

रास्ते रुक जाते हैं । वर्षा में कई तरह के कीड़े उत्पन्न होते हैं। सांप बिलों से बाहर निकल आते हैं । इस ऋतु में हम झूले झूलते हैं । खीर और माल पूए (पूड़े) खाते हैं । राखी और तीजों के त्यौहार वर्षा ऋतु में होते हैं ।

वर्षा ऋतु पर निबंध essay on rainy season in hindi

भारत अनेक ऋतुओं का देश है। यहाँ प्रत्येक ऋतु समयानुसार आती-जाती रहती है। तथा प्रत्येक ऋतु अपनी कोईन-कोई छाप हमारे दिलों पर छोड़ जाती है। गर्मी से तपती हुई धरती की प्यास बुझाने हेतु पावस ऋतु का आगमन होता है। इस ऋतु के आने पर प्रकृति आनन्द-विभोर हो उठती है। नदी नाले फूले नहीं समाते हैं। पशु-पक्षी भी गर्मी से राहत पाते हैं। किसान की बांछे खिल उठती हैं। परन्तु यह सुखदायिनी वर्षा ऋतु कभीकभी अपना विनाशकारी रूप भी हमें जाती है जो भुलाने पर भी नहीं भूला जाता है। गत वर्ष ऐसा ही एक हृदय विदारक दृश्य मैंने बहुत समीप से देखा था।

2 अगस्त सन् 2001 की भयानक रात्रि का आंखों देखा दृश्य में कदापि नहीं भूल सकता हूं। मेरे जीवन की यह अविस्मरणीय रात्रि थी। दो दिन पूर्व अर्थात् 31 जुलाई सन् 2001 को मैं अपने गाँव जखौली गया था।2 अगस्त को दोपहर बाद लगभग 4 बजे से ही जोर से वर्षा प्रारम्भ हो गई थी। उस तेज वर्षा के कारण 5 बजते ही गाँव में अंधेरा छा गया था। वर्षा ने प्राप्त होने के बाद तो अगले दिन प्रातःकाल होने तक रुकने का नाम ही नहीं लिया। कालेकाले बादल घुमड़घुमड़ कर चारों ओर अपना आतंक फैला रहे थे। दामिनी रहरह कर जोरों से दमक रही थी।

गांव की कच्ची गलियां पानी से भर गई थीं। बिजली की गड़गड़ाहट कच्चे घरों में बैठे लोगों के दिलों को दहला रही थी। चारों ओर भयंकर अंधेरा छाया हुआ था। बाहर निकलना बहुत कठिन हो रहा था। रहरह कर हम बाहर की ओर झोंक-झांक कर देखते रहते थे। कच्चे घरों के छप्पर चू रहे थे।

घर का सभी आवश्यक सामान प्रायभीग गया था। हमारा घर तो फिर भी पक्का था सो हम सुरक्षित थे। सामने एक लुहार का कच्चा घर था, उसकी दशा तो बहुत दयनीय थी जो देखने पर भी देखी नहीं जा रही थी। अर्द्धरात्रि बीतने पर किसी के कच्चे घर के गिरने की आवाज सुनाई दी। बस फिर क्या था मैं उसी के विषय में सोचता रहा। थोड़ी देर बाद किसी के चीखने की आवाज आई। हम दो व्यक्ति टार्च लेकर बाहर निकले तो पता लगा कि सामने जो घर गिर गया था वहां एक बच्चा तथा एक गाय दब कर मर गए थे।

परन्तु वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी। लगभग एक घंटे बाद पता लगा कि कुछ आगे किसी अन्य व्यक्ति के घर की दीवार बैठ गई। प्रातकाल बाहर निकल कर देखा कि चारों ओर पानी-ही-पानी था। खेतों में पानी भर गया था। उस गाँव के लोगों के लिए तो यह प्रलय की रात्रि थी। पूराकापूरा गाँव जलमग्न था। वहाँ का जीवन अस्तव्यस्त हो गया था। पूरे गाँव में लगभग पाँच बच्चों की मौत हो गई थी। अनेक पशु भी अपने प्राणों से हाथ धो बैठे थे।

अगले दिन मैं अपने घर लौट आयापरन्तु उस विनाशकारी रात्रि को मैं आज तक भी नहीं भुला सका

Written by

Romi Sharma

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