यदि मैं प्रधानाचार्य होता पर निबंध?? Yadi Main Pradhanacharya Hota Essay in Hindi

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हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Yadi Main Pradhanacharya Hota Essay in Hindi पर पुरा आर्टिकल। आज हम आपके सामने Vidyarthi Jeevan के बारे में कुछ जानकारी लाये है जो आपको हिंदी essay के दवारा दी जाएगी। आईये शुरू करते हैYadi Main Pradhanacharya Hota Essay in Hindi

Yadi Main Pradhanacharya Hota

Yadi Main Pradhanacharya Hota Essay in Hindi

 

यदि मैं किसी माध्यमिक विद्यालय का प्रधानाचार्य होता तो विद्यालय में मेरी वही स्थिति होती जो रेलगाड़ी में इंजन की होती है। निस्संदेह विद्यालय का मुखिया होने के नाते मेरा कार्य पित कठिन होता। जटिलताएँ और चुनौतियाँ पग-पग पर मेरा मार्ग रोकती हुई दिखाई देतीं । विद्यालय का प्रशासक होने के नाते मुझे संस्था के सदस्यों का नेतृत्व करना पड़ता। नेता होने के नाते मुझे एक आदर्श व्यक्ति बनना पड़ता और शासकोपयोगी गुणों से संपन्न होना पड़ता।

यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो सबसे पहले मैं अपने लिए उच्च जीवन-दर्शन का ध्येय निश्चित करता। शिक्षा के  प्रति मेरा दृष्टिकोण रचनात्मक होता और व्यापक भी विद्यालय में मेरा उद्देश्य छात्रों की सेवा करना होता, जिसमें स्वार्थपक्षपात और सांप्रदायिक विचारों को कोई स्थान न होता।

यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो अपने विद्यालय को आदर्श विद्यालय बनाने का प्रयत्न करता। मेरा उद्देश्य होता बालकों को आदर्श नागरिक बनने की शिक्षा देना, क्योंकि आज के बालक ही कल के नेता होते हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मैं अपने सब सहयोगी अध्यापकों का सहयोग प्राप्त करता । मैं अध्यापकों और विद्यार्थियों पर अपने आदेश लादने के बजाय उनका हृदय जीतने का यत्ल करता। छात्रों से मैं पूछता कि उनके दैनिक जीवन में क्या-क्या कठिनाइयाँ हैं ? इन सब तथ्यों के प्रकाश में मैं अपनी नीति का निर्माण करता। इस प्रकार संपूर्ण विद्यालय में आत्मविश्वास और संतोष की भावना दृढ़ हो जाती।

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यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो विद्यालय में अनुशासन स्थापित करने की बहुमुखी योजना बनाता । मैं जानता हूँ कि विद्यार्थी अनुशासन को तभी भंग करते हैं, जब उनको आकांक्षाएं पूर्ण नहीं होतीं। विद्यालय के अनेक कार्यों में मैं विद्यार्थियों का सहयोग प्राप्त करता। अनेक कार्य तो मैं विद्यार्थियों को सौंप देता।

उनकी अपनी कार्य समिति होती। वे अपनी सहकारी समिति बनाते, अपने चुनाव करते, अपनी सहकारी दुकान चलातेविलंब से आनेवाले छात्रों के लिए दंडविधान करते। विद्यार्थी ही ऐतिहासिक यात्राओं की योजना बनाते और वे ही उसे चलाते। वर्ष में दो-चार दिन के लिए तो मैं विद्यालय का प्रधानाचार्य और अध्यापक भी विद्यार्थियों को बना देता।

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इन दिनों विद्यार्थी ही विद्यालय का सारा कार्य चलाते। इस प्रकार उत्तरदायित्व निभातेनिभाते विद्यार्थी स्वयं को विद्यालय का अंग मानने लगते। मेरा विश्वास है । कि इस प्रकार में अनुशासनहीनता पर बड़ी सरलता विजय प्राप्त कर लेता।

मैं स्वयं फूलों और फुलवारी का शौकीन हैं, अत: मैं सुंदर फुलवारी लगवाता । मैं स्वयं खेलों और मनोरंजक गतिविधियों का पक्षपाती हैं, अत: मैं यथासंभव शिक्षा को व्यावहारिक और मनोरंजक बनाता। यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो निश्चयपूर्वक यह कह सकता हूं कि सब अध्यापक आर सारे विद्या मुझे अपना अफसर न समझकर अपना साथी या मित्र समझते ।

क्या ही अच्छा हो, यदि सचमुच मैं एक दिन प्रधानाचार्य बन जाऊँ और अपने इन सपनों को साकार कर सकूँ

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Written by

Romi Sharma

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