आदर्श सूक्तियां और अनमोल वचन Suktiyan in Hindi 2018

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आज के भौतिक युग में हम भोगविलास की ओर जिस प्रकार दौड़ने लगे हैं, उसमें स्वयं ही थककर निराशा का दामन थामकर बैठ गये हैं। भोगविलाससुख की। अधिकता का पड़ाव नैराश्य पर होता है, ऐसे में महापुरुषों साधु-सन्तों, अवतारों, फकीरों, दार्शनिकों, लेखकों और कवियों तथा अन्य ज्ञान प्राप्त लोगों की सूक्तियां हमें ज्ञान
का पथ दिखाती हैं। इस आर्टिकल में हमने ऐसी ही Suktiyan in Hindi का संकलन किया है जो आप सभी के लिए लाया हु।

 

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suktiyan in hindi

 

  • किसी भी सुखान्त अभिनय में सबसे कठिन भूमिका है मूर्ख की और उस कलाकार को कदापि मूर्ख नहीं होना चाहिए।
  • जब एक अभिनेता के पास धन होता है, तब वह पत्र न भेजकर तार ही भेजता है।
  • जिसकी हम अभिलाषा करते हैं और जिसकी सिद्धि के लिए सम्पूर्ण अन्त:करण से प्रयत्न करते हैं, तो उसकी प्राप्ति हमें अवश्य होती है। -स्वेट मार्डन
  • कोई अभिलाषा यहां अपूर्ण नहीं रहती। खलील जिब्रान अभिलाषा
  • सब दु:खों का मूल है।
  • मनुष्य को चाहिए कि वह अभिमान न करे। एक-से-एक श्रेष्ठ मनुष्य बढ़-चढ़कर इस संसार में पड़े हैं। बड़े-सेबड़ा और बड़ा-से बड़ा
  • मिलता जायेगा। इसलिए अपने को किसी कार्य में सर्वश्रेष्ठ न कहना चाहिए। विनम्र रहकर जो कुछ है उस पर डींग न हांके।
  • आदत रस्सी की तरह है। पर रोज इसमें हम एक बट देते हैं और अन्त में इसे तोड़ नहीं सकते।
  •  बुरी आदतों से हमारी क्षुद्रता का अभ्यास मिलता है। -डॉ० एडलर
  • आदतों को यदि रोका न जायेतो वे शीघ्र ही लत बन जाती हैं। सत अगस्तिन
  •  लोमड़ी अपनी खाल बदलती है, आदतें नहीं।
  • जो कुछ मानवीय है, वह सभी अमर है।
  • अमरत्व की भावना ही मनुष्य के जीवन को सौन्दर्य तथा माधुर्य से पूर्ण – बुल्वर लिटन
  • बनाती है। यह भौतिक स्वर्ग या उस पार का बहिश्त, एक ही भावना हैं। चिरमुख की इच्छा ही उनमें पायी जाती है। -डॉ० रघुवीर
  •  श्रेष्ठ व्यक्ति कभी नहीं मर सकता। कैली माकस
  •  हमारा जीवन तो हमारे अमरत्व शैशव मात्र है।
  •  हमारी अमरत्व की मधुर आशा किसी धर्म का उद्भत नहीं होती, अपितु सारे धर्म इसी से उद्धृत होते हैं।
  •  बिना अमरत्व की भावना से प्रेरित हुए आज तक किसी ने अपने देश के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग नहीं किया।

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  1. गणतंत्र दिवस पर निबंध 
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  6. विज्ञान और तकनीकी पर निबंध
  7. पेड़ों का महत्व निबन्ध 
  8. ताजमहल पर निबंध 

 

  • भगवान् विष्णु कहते हैं-देवताओं और ऋषियों को भय देने वाले उस क्रूर एवं बलशाली राक्षसराज रावण का नाश करके मैं ग्यारह हज़ार वर्षों तक
    पृथ्वी का पालन करता हुआ मनुष्यलोक में निवास करूंगा।
  • इस प्रकार भगवान् ने देवताओं की प्रार्थना पर दशरथजी के घर में मनुष्यरूप में अवतार लेना स्वीकार कर लिया। वाल्मीकि रामायणाबालकाण्ड
  • भगवान् धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते रहते हैं। श्रीमदभागवत  प्रजापालक भगवान् गर्भ के मध्य में विचरता है, यद्यपि वह अजन्मा है, तथापि अनेक प्रकार से उत्पन्न होता है। -यजुर्वेद
  •  संसार को बनाने में ईश्वर का न कोई कार्यविशेष है और न ही कोई विशेष प्रयोजन है, किन्तु ज्ञानबल और क्रिया-ये तीन वस्तुएं भगवान् के
    अन्यतम स्वाभाविक गुण हैं। परमात्मा अपने भक्त की अनन्यभक्ति से प्रसन्न होकर उसका उद्धार करने स्वयं ही अवतरित हो जाते हैं। -बृहदारण्यक उपनिषद
  • भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं- जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं ही अपने रूप को प्रकट करता हूं, यानी अवतार लेकर
    आता हूं। सज्जनों की रक्षा, दुष्टों का विनाश और धर्म की पुनस्थापना इन तीन कार्यों के लिए मैं प्रत्येक युग में प्रकट हुआ करता हूं। ‘श्रमद्भगवदगाता
  •  धनहीन को धन की चाह, पशुओं को वाणी, मनुष्यों को स्वर्ण (ऐधर्च) की चाह और देवताओं को मोक्ष की इच्छा सदैव रहती है। -चाणक्य नीति
  • इस संसार में इच्छा के बिना किसी मनुष्य का कोई काम कभी भी दिखाई नहीं देता। मनुष्य जो कुछ करता है, वह सब इच्छा के कारण। मनुस्मृति
  •  यदि इच्छा ही घोड़ा बन सकतीतो प्रत्येक मनुष्य घुड़सवार हो जाता। पियर।
  •  इच्छा की प्यास कभी नहीं बुझती, न पूर्ण रूप से सन्तुष्ट होती है।
  1. समस्त भय और चिन्ता इच्छाओं का परिणाम हैं। -स्वामी रामतीर्थ
  2. मनुष्य की इच्छा उसके विवेक के द्वारा नियन्त्रित होती है।
  3.  चाहने मात्र से कुछ प्राप्त नहीं हो सकता। इच्छा करने वालों और कर्म करने वालों में आकाश-पाताल का अन्तर होता है। केवल इच्छा तो कम उष्ण जल , जो जीवन की गाड़ी को लक्ष्य स्थल तक नहीं पहुंचा सकती। हमारे अन्तकरण में उद्देश्य पूरी तरह खौलना चाहिए। जब वह वाष्प की भांति हो जायेगा, तब जीवन की गाड़ी को लक्ष्य स्थल तक पहुंचा देगा। स्वेट मार्डन
  4.  विषय भोग की इच्छा विषयों का उपभोग करने से कभी शान्त नहीं हो सकती। घी की आहुति डालने से अधिक प्रचलित होने वाली आग की भांति वह और भी बढ़ती ही जाती है। वेदव्यास (महाभारत, आदिव
  5. जिसने अपनी इच्छाओं का दमन करके मन पर विजय और शान्ति प्राप्त कर लती है, चाहे वह राजा हो या रंक, उसे जगत् में सुख ही सुख है।
  6. गरीब वह नहीं है, जिसके पास धन कम है, बल्कि धनवान् होते हुए भी जिसकी इच्छा कम नहीं हुई है, वह सबसे अधिक गरीब है। विनोबा भावे
  7. प्रकृतिसमय और धैर्य-ये तीन सर्वश्रेष्ठ और महान् चिकित्सक हैं। एच० जी० बौन
  8. सर्वश्रेष्ठ वही हैजिसको तुम खोजते हो, किन्तु पाते नहीं।
  9. सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक वही है, जो अधिकांश औषधों को व्यर्थ समझता है।
  10. मेरा विश्वास है कि आज का सम्पूर्ण चिकित्साशास्त्र यदि समुद्र में डुबो दिया जाये, तो यह मनुष्यों का परम सौभाग्य होगा, किन्तु मछलियों का परम दुर्भाग्य।
  11. पथ्य से रहने वाले रोगी के लिए औषध की आवश्यकता नहीं है और पथ्य से न रहने वाले रोगी के लिए भी औषध की आवश्यकता नहीं है।
  12. कंजूस के पास जितना होता है, उतना ही वह उसके लिए तरसता है, जो उसके पास नहीं होता।
  13. छोटे दानी पुरुष का भी सम्मान करना चाहिएपरन्तु महान् सम्पत्ति के स्वामी होने पर भी कंजूस का नहीं।
  14. मनुष्य जितना ही अधिक ज्ञानवान् और संकल्पवान् बनेगाउसकी इच्छाएं भी उसी अनुपात से पूर्ण होंगी। अथर्ववेद
  • कंजूस एक-एक पाई के लिए उतना ही उत्तेजित हो जाता है, जितना कि एक महत्वाकांक्षी पुरुष एक राज्य की जीत के लिए। एडम स्मिथ
  • हे कंजूसी ! मैं तुझे जानता हूं। लू विनाश करने वाली और व्यथा देने वाली सम्भव हो, दूसरों के आगे हाथ नहीं पसारना चाहिए। लोकमान्य तिलक
  • कर्ज वह मेहमान है, जो एक बार आकर जाने का नाम नहीं लेता।
  • कर्ज लेना भी भिक्षावृत्ति से कोई अधिक अच्छा नहीं है।
  • कर्ज देना ही पाप करना है।
  • क्षमाहीन पुरुष अपने को तथा दूसरों को भी दोष का भागी बना लेता है।
  • क्षमा ही मनुष्य का धर्म है। क्षमा ही पृथ्वी पर उसके लिए यज्ञ है और क्षमा विदुर नीति  में ही सब धर्मशास्त्र एकत्रित हैं। इस प्रकार क्षमा के स्वरूप और व्यावहारिक
    प्रयोग को जानने वाला सबको क्षमा करता है। -महाभारत/वनपर्व
  •  क्षमा करने वाला पाप से मुक्त हो जाता है। विदुर नीति 2/74
  • जो मनुष्य अपने उत्पन्न क्रोध का क्षमा द्वारा उसी प्रकार निराकरण कर देता है, जिस प्रकार सांप अपनी पुरानी केंचुली को छोड़ देता है, वही सच्चा पुरुष कहा जाता है। मत्स्यपुराण
  • समर्थ पुरुष के लिए सब जगह और सब समय में क्षमा के समान हितकर और अत्यन्त श्रीसम्पन्न बनाने वाला उपाय दूसरा नहीं माना गया है। विदुर नीति
  • मनुष्य का आभूषण उसका रूप है, रूप का आभूषण गुण है। गुण का आभूषण ज्ञान है और ज्ञान का आभूषण क्षमा है। सुभाषित भण्डागार
  •  स्त्री अथवा पुरुष के लिए क्षमा ही अलंकार है। वाल्मीकि रामायण/बालकाण्ड
  • अच्छे लोग मूर्ख के दोष को सदा क्षमा कर देते हैं। गुणवानों का बल है-क्षमा। -विदुर नीति
  • जिसके हाथ में क्षमारूपी शस्त्र हो, उसका दुर्जन क्या बिगाड़ सकेगा। घासफूस रहित भूमि पर गिरी अग्नि स्वयं ही शान्त हो जाती है। सुभाषित भण्डागार
  • क्षमाशील पुरुष का तप बढ़ता रहता है। चाणक्य सूत्र
  • क्षमाशील मनुष्य को लोग असमर्थ समझ लेते हैं। -विदुर नीति
  • क्षमा दान है, क्षमा सत्य है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा यश है और क्षमा धर्म है। यहां। तक कि क्षमा पर ही यह सम्पूर्ण जगत् टिका हुआ है। वाल्माक रामायणा/बालकाण्ड
  • जिसने अपने दोस्त का काम करने का बीड़ा उठाया है, वह देर नहीं किया करता।
  •  दोस्ती खुशी को दूना करके और दु:ख को बांटकर खुशी को बढ़ाती है तथा मुसीबत कम करती है।
  • धन के मद में मतवाला मनुष्य गिरे बिना होश में नहीं आता।
  • जिनको कुछ न चाहिए, वे ही शहंशाह।
  • न्यायपूर्वक कमाया हुआ धन असली धन होता है। -चाणक्य सूत्र
  • जिसके पास धन होता है, उसी के मित्र और बन्धु-बान्धव, अर्थात् सब अपने होते हैं। संसार में धनवान् ही बुद्धिमान् और पुरुषार्थ माना जाता है।
  • जो मांगता नहीं, लक्ष्मी उसकी दासी हो जाती है। -स्वामी रामतीर्थ
  • दान देने के लिए धन कमाओ। संग्रह करने या विलासिता के लिए धन नहीं है। अथर्ववेद
  • धन से अच्छे गुण नहीं मिलतेधन अच्छे गुणों से मिलता है।
  • उचित रीति से कमाया धन, सत्कार्यों में लगाने से सद्गति प्रदान करता है।
  • जो उसे पाप के कामों में लगाता है, उनका नाश हो जाता है। ऋग्वेद
  • दूसरे का धन लेना मनुष्य के लिए उसका सबसे बड़ा अपमान है और इसके आगे सभी अपमान तुच्छ हैं। महात्मा गांधी
  • अपार धनशाली कुबेर भी यदि आमदनी से अधिक खर्च करेतो कंगाल हो जाता है।
  •  धन प्रायलोगों को घमण्ड हो जाता है, जिससे लोग धर्म के मार्ग से से विचलित हो जाते हैं। इसलिए धन प्राप्त करेंपरन्तु कभी पागलपन का शिकार न हों। -अथर्ववेद
  • अगर तुम जितना पाते हो, उससे कम खर्च करना जानते हो, तो तुम्हारे पास पारस पत्थर है। बैंजामिन फ्रैंकलिन
  • जिसके पास धन है, उसके धर्मअर्थ-काम पुरुषार्थ सिद्ध हो जाते हैं, सब
  • प्रिय होने पर भी जो हितकर न हो, उसे न कहें। हितकर कहना ही अच्छा है, चाहे वह अत्यन्त अप्रिय ही क्यों न हो। अर्थात् हितकारी वाणी ही बोलें।
    विष्णुपुराण
  • यदि अच्छी तरह से सान्त्वनापूर्णमधुर एवं स्नेहयुक्त वचन बोले जायें और सदा सब प्रकार से उसी का सेवन किया जायेतो उसके समतुल्य इस जगत् में निस्सन्देह कुछ नहीं है। महाभारत/शान्तिपर्व
  • ऐसी वाणी बोलो, जिससे सबका कल्याण हो।
  • कणि, नालीक और नाराच नामक विनाशकारी बाणों को शरीर से निकाल सकते हैं, परन्तु कटु वचन रूपी कांटा नहीं निकाला जा सकता क्योंकि वह हृदय के भीतर धंस जाता है। विदुर नीति
  • बाणों से बधा हुआ तथा फरसे से काटा हुआ वन भी पनप जाता है, किन्तु कटु वचन कहकर वाणी से किया हुआ भयानक घाव कभी नहीं भरता। विदुर नीति
  • मेरी जीभ मीठी वाणी बोले। तैत्तिरीय संहिता
  • कटु वचन रूपी बाण मुख से निकलकर दूसरों के मर्म स्थान पर ही चोट करते हैं, उनसे आहत मनुष्य रातदिन घुलता रहता है। अतविद्वान् पुरुष दूसरों पर उनका प्रयोग न करें। -महाभारत/उद्योगपर्व
  • अपनी उन्नति और अवनति अपनी वाणी के अधीन है। चाणक्य सूत्र
  • केवल सुसंस्कृत वाणी पुरुष को भली प्रकार अलंकृत करती है। अन्य आभूषण तो कालान्तर में नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं, परन्तु वाणी रूपी आभूषण सदैव आभूषण की भांति सुशोभित करता है। .भतृहरि नीतिशतक
  • सब वेदों का वाणी ही एकमात्र मार्ग है। बृहदारण्यक उपनिषद्
  • वाणी सत्यज्ञान के मधुर सुख को प्रदान करती है। ऋग्वेद प्रेरक सूक्ति कोश
  • विद्या, तप, इन्द्रिय निग्रह और लोभत्याग के सिवा और कोई शान्ति . का उपाय नहीं है। विदुर नीति से
  •  शान्ति के बराबर कोई तप नहींसन्तोष से बढ़कर कोई सुख नहींतब बढ़कर कोई रोग नहीं और दया से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। चाणक्य नीति
  •  युद्ध को प्रस्तुत रहना ही शान्ति स्थापना का सर्वोपयुक्त साधन है। “शिशु और शैशव

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  1. शिक्षा पर निबंध 
  2. सुबह की सैर पर निबंध 
  3. स्वच्छता पर निबंध 
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  12. गाय पर निबंध 3 तरह के –
  13.  अंधविश्वास पर कहानियाँ
  14. महापुरूषों के श्रेष्ठ प्रेरक प्रसंग

 

  • विश्वास और निर्देषिता शिशु के अतिरिक्त और किसी में नहीं पाये जाते।
  • शिशु भी बड़ों के समान ही होते हैं, उन्हें भी दूसरों के अनुभवों से ला उठाना नहीं आता।
  • उस व्यक्ति को दुष्ट मत कहोजो असंख्य त्रासों को सहन करते हुए भी किसी शिशु से प्रेम करता है।
  • सबसे छोटे बच्चे ईश्वर के सर्वाधिक निकट होते हैं, जिस प्रकार कि सबसे छोटे ग्रह सूर्य के निकट होते हैं।
  • जिस प्रकार प्रातःकाल दिन का द्योतक होता है, उसी प्रकार ही शैशव भी मनुष्य का परिचायक होता है।
  • बच्चों का केवल घृणापात्र होने की अपेक्षा वृद्धों के समाज से तिरस्कृत होकर निकाला जाना श्रेयस्कर है। -आर० एस० आना
  • शिशुओं के केवल सौन्दर्य और भोलेपन को निरखियेउनका सुनिये मत। -अंग्रेज़ी लोकोक्ति
  1. अपने बालक को मौन रहना सिखाइये और वह अत्यन्त शीघ्रता से बोलना सीख लेगा।
  2. शिशुओं को मेरे निकट आने दो, रोको मत, क्योंकि ईश्वर का साम्राज्य शिशुओं से निर्मित है।
  3. एक बुद्धिमान् पुत्र एक प्रसन्न पिता बनता है।
  4. जंगली बछेड़े ही सुन्दर घोड़े बनते हैं।
  5. शिशुओं को वही शिक्षा दो, जिस मार्ग पर से चलना चाहिए और वृद्ध हो जाने पर वह इसे भूलेगा नहीं।
  6. स्वर्ग में दुष्ट सताना छोड़ देते हैं और थके हुए विश्राम करते हैं।
  7. मेरे पिता के घर-स्वर्ग में असंयक विशाल राजप्रसाद है। -बाइबल
  8. पृथ्वी पर कोई ऐसा दुखी नहीं है, स्वर्ग जिसका निवारण न कर सके।
  9. धनवान्, रूपवान, युवावस्था वाले होते हुए भी जो पुरुष इन्द्रियजित हैं, वे स्वर्ग जाते हैं। -पद्मपुराणभूमिखण्ड
  10. संयमी मनुष्य स्वर्ग को भी जीत लेता है। ऋग्वेद
  11. जो पुरुष कठोरकटुनिष्ठुर भाषण नहीं करते और चुगलखोरी से बचे हुए हैं, वे सत्पुरुष स्वर्ग जाते हैं। -महाभारत/अनुशासनपर्व
  12. जो पुरुष क्रोध में भरकर हृदय को विदीर्ण करने वाली वाणी नहीं बोलते। क्रोध का कारण होने पर भी नम्रतापूर्ण वचन कहते हैं, वे पुरुष स्वर्ग जाते -महाभारत/अनुशासनपर्व
  13. वैश्य यदि वेद-शास्त्रों का अध्ययन करके ब्राह्मणक्षत्रिय तथा आश्रितजनों को समय-समय पर धन देकर, उनकी सहायता करे और यज्ञों द्वारा तीनों अग्नियों के पवित्र धूम की सुगन्ध लेता रहेतो वह मरने के पश्चात्स्व र्गलोक में दिव्य सुख भोगता है। विदुर नीति
  14. इस संसार में रहते हुए भी जो ‘स्वर्ग में स्थित’ की भांति रहते हैं, उनके जीवन में चार चिह्न दिखलाई देते हैं-दान देने का स्वभाव, मधुर बोलना, देवताओं का पूजन और ब्राह्मणों एवं विद्वानों को तृप्त करना। चाणक्य नीति
  15. आज्ञाकारी पुत्र इच्छानुसार चलने वाली आज्ञाकारिणी पत्नी, थोड़े ही धन से सन्तोष प्राप्त करने वाले मनुष्य का स्वर्ग इस धरती पर ही होता है। चाणक्य नीति
  16. जो पुरुष कठोर बोलना नहीं जानतेप्रिय वचन बोलना जिनका स्वभाव है. वे पुरुष स्वर्ग जाते हैं। पदमपुराण/भूमिखण्ड
  17. गलतियों की सबसे बड़ी औषध है-उनको विस्मृत कर देना।
  18. भूल करना मनुष्य का स्वभाव है, की हुई भूल को स्वीकार कर लेना वैसी भूल फिर न करने का प्रयास करना वीर एवं शूर होने का प्रतीक है। महात्मा गांधी
  19. यदि मनुष्य कुछ सीखना चाहेतो छोटे-से-छोटी गलती भी अमर वाणी ‘अनमोल रत्न’ से उसे कुछ शिक्षा दे सकती है।
  20. सब जानते हैं और मैं भी जानता हूं कि मैं यूरोप का कुशल जनरल हूं, फिर भी कोई दिन नहीं जाता, जबकि मुझसे कम-से-कम दस गलतियां न होती।
  21. मनुष्य जब कोई चीज प्राप्त नहीं कर सकता है, तो वह अपनी दुर्बलता का अनुभव न कर परिस्थितियों को ही दोष देने लगता है। इस कारण अपने
    कार्य में वही सफल होते , जो दूसरों को दोष न लगाकर अपनी कमियों को देखते हैं। अपनी त्रुटियों को दूर कर वह सफल हो जाते हैं। विष्णु शर्मा (पंचतन्त्र)
  22. पुरुषों की त्रुटियों में उनकी स्वार्थप्रथा निहित रहती है, नारियों की त्रुटियों के मूल में उनकी दुर्बलता। मैडम द स्टील
  23. त्रुटियां करना मानवीय स्वभाव है, क्षमा कर देना स्वर्गीय है।
  24. अपनी त्रुटियों के विषय में हम सदैव स्वयं को धोखा देते रहते हैं और अन्त में उन्हें ही अपना सद्गुण समझने लगते हैं।
  25. जिस प्रकार जीवन बचपन से आरम्भ होता है, उसी प्रकार ज्ञान वैराग्य से उत्पन्न होता है। -‘संत वचन’ से
  26. पातालभूतल और स्वर्ग में वह सुख कहीं भी नहीं दिखाई देता, जो ज्ञानवान होने पर प्राप्त होता है। स्कन्दपुरा
  27. तुम्हारा मस्तिष्क एक छोटी-सी बाल्टी के समान है। तुम उतना ही प्राप्त कर सकते हो, जितनी तुम्हारी ग्रहण शक्ति है। डॉ० हरदयाल

 

 

Written by

Romi Sharma

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