हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाया हु Essay on Doordarshan in Hindi पर पुरा आर्टिकल। जैसा की आप जानते है जब तक इंटरनेट का दौर नहीं आया था तब तक Doordarshan का बहुत बोल बाला था आज आपको Doordarshan से रूबरू करवायेंगे . आईये पढ़ते है Essay on Doordarshan in hindi या दूरदर्शन (टेलीविजन) पर निबंध
Essay on Doordarshan in hindi
प्रस्तावना :
आज विज्ञान की उन्नति चरम सीमा पर है। दूरदर्शन भी विज्ञान का ही एक चमत्कारिक आविष्कार है। यह बच्चों, बूढ़ों, विद्यार्थियों, व्यवसायियों, महिलाओं, राजनीतिज्ञों, वकीलों, डॉक्टरों सभी के लिए समान रूप से फायदेमंद है। दूरदर्शन ने मनुष्य के जीवन के खालीपन को भरने के साथ-साथ उसका पूरा मनोरंजन भी किया है।
दूरदर्शन का अर्थ :
दूरदर्शन का शाब्दिक अर्थ है–‘दूर की वस्तु को देखना।’ दूरदर्शन के द्वारा हम दूर से प्रसारित ध्वनि और चित्र को देख भी सकते हैं तथा सुन भी सकते हैं। दूरदर्शन में रेडियो (आकाशवाणी) तथा चलचित्र (सिनेमा) दोनों की विशेषताएँ होती है। इसके द्वारा आवाज के साथ-साथ बोलने वाले या अभिनय करने वाले को साक्षात देखा भी जा सकता है। रेडियो के द्वारा तो हम देश-विदेश की घटनाओं को केवल सुन सकते हैं लेकिन टेलीविजन के द्वारा उन घटनाओं तथा चित्रों को अपनी आँखों से देख भी सकते हैं।
दूरदर्शन का आविष्कार :
दूरदर्शन का आविष्कार सन् 1926 में स्कॉटलैण्ड के वैज्ञानिक ‘बेयर्ड’ ने किया था। सन् 1936 में पहली बार बी. बी.सी. लन्दन से दूरदर्शन के कार्यक्रम का प्रसारण हुआ था। लेकिन भारतवर्ष में दूरदर्शन का शुभारम्भ अक्तूबर, 1959 में हुआ था और इसका उद्घाटन हमारे प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के शुभ हाथों द्वारा हुआ था। पहले यह केवल ‘काला-सफेद’ रूप में ही उपलब्ध था लेकिन अब तो यह रंगीन स्वरूप में सारे विश्व में उपलब्ध हैं।
दूरदर्शन के लाभ :
दूरदर्शन आज के प्रतियोगितावादी युग में बहुत महत्त्वपूर्ण है। किसी भी बात के बारे में पुस्तक या अखबार में पढ़कर या रेडियो में सुनकर हम उस व्यक्ति विशेष से इतना प्रभावित नहीं हो पाते, जितना कि उसको साक्षात् देखकर होते हैं। दूरदर्शन शिक्षा प्रचार का एक सशक्त माध्यम है इसके द्वारा जहाँ एक ओर विद्यार्थी को उसके पाठ्यक्रम ‘गगन गित न रापलेला
से सम्बन्धित जानकारी मिलती है, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण किसानों को खेती, पशुपालन, परिवार-नियोजन, शिक्षा की उपयोगिता, अंध-विश्वासों तथा कुरीतियों के दुष्परिणामों आदि की सम्पूर्ण जानकारी भी प्राप्त होती है। दूरदर्शन पर आज खेल प्रेमी हर खेल का सीधा प्रसारण देख सकते हैं, वहीं दूसरी ओर कानून के प्रमुख कानून सम्बन्धी, चिकित्सक चिकित्सा सम्बन्धी, अध्यापक अध्यापन सम्बन्धी आधुनिकतम जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। दूरदर्शन आज के व्यस्त जीवन में मनोविनोद तथा मनोरंजन का भी सबसे सस्ता तथा सरल माध्यम है।
आज दूरदर्शन पर संगीत, नाटक, हास्य-व्यंग्य, गायन, नृत्य, कवि-सम्मेलन, चलचित्र आदि अनेकों कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।
दूरदर्शन से हानियाँ :
हर सिक्के के दो पहलूओं की भांति दूरदर्शन की कुछ कमियाँ भी हैं। पहले तो टेलीविजन के विस्तृत कार्यक्रमों के कारण परिवार के सदस्य एक-दूसरे से दूर हो गए हैं। आज सभी अपना खाली समय टेलीविजन पर अपना मनपसंद कार्यक्रम देखकर व्यतीत करना चाहते हैं। टेलीविजन को लगातार देखने से हमारी आँखों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। यहाँ तक कि आँखों की रोशनी भी जा सकती है।
इससे व्यक्ति का मोटापा भी बढ़ सकता है। बच्चे बाहरी खेल नहीं खेलना चाहते इससे उनका शारीरिक विकास रुक जाता है। कभी-कभी टेलीविजन पर अश्लील फिल्में तथा दूसरे भद्दे नृत्य आदि भी दिखाए जाते हैं जिससे हमारे मस्तिष्क पर कुप्रभाव पड़ता है।
उपसंहार :
यह तो सच्चाई है कि हर वस्तु में सुविधा के साथ दुविधा अवश्य होती है। अमृत का प्रयोग भी यदि आवश्यकता से अधिक किया जाए तो वह भी हानिकारक सिद्ध होगा। अधिक मात्रा में फल, दूध, मेवों का सेवन भी नुकसानदायक होता है। ठीक उसी प्रकार हमे दूरदर्शन को अपने जीवन की नीरसता तथा एकरसता को समाप्त करने के लिए थोड़े समय के लिए प्रयोग करना चाहिए। हमे दूरदर्शन पर अच्छे कार्यक्रम देखकर लाभान्वित होना चाहिए न कि भद्दे और अश्लील कार्यक्रम देखकर अपनी बुद्धि को हानि पहुँचानी चाहिए।
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दूरदर्शन (टेलीविजन) पर निबंध
टेलिविजन एक नया और मनोरंजन का बढ़िया साधन है । स्काटलैंड के इंजीनियर बेयर्ड ने इसका अविष्कार किया। अभी मंहगा होने के कारण यह भी सबको सुलभ नहीं । रेडियो में तो हम बोलने वाले की आवाज ही सुनते हैं, परन्तु टेलीविजन में हम बोलने वाले को हंसते-बोलते, गाते-बजाते, नाचते भी देख सकते हैं। इससे हम समाचार, भाषण, बहस, वाद- विवाद देख सकते हैं ।
टेलीविजन पर हम घर बैठे भी फिल्म देख सकते हैं। सभा, मैच, जुलूस आदि को हम घर बैठे अपनी आंखों से देख सकते हैं। | टेलीविजन द्वारा हम अपना तथा अपने मित्रों का बहुत मनोरंजन कर सकते हैं। मनोरंजन के साथ-साथ इससे हमारा ज्ञान भी बहुत बढ़ता है।
भारत में अभी कुछ ही स्थानों पर टेलीविजन प्रसारण केन्द्र हैं। यथा नई दिल्ली, श्रीनगर, अमृतसर, पूना, कानपुर, बम्बई । अन्य स्थानों पर शीघ्र ही दूर- दर्शन केन्द्रों की स्थापना की सम्भावना है।
दूरदर्शन (टेलीविजन) पर निबंध
दूरदर्शन आधुनिक युग का महत्त्वपूर्ण आविष्कार है। यह एक ऐसा यन्त्र है जिसकी सहायता से व्यक्ति दूर की वस्तु एवं व्यक्ति को देख और सुन सकता है। इस यन्त्र की सहायता से कानों तथा आँखों दोनों की तृप्ति होती है। दूरदर्शन का आविष्कार सन् 1926 ई. में इंग्लैंड के जॉन एल. बेयर्ड ने किया था। दूरदर्शन मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा देने, जानकारी बढ़ाने, प्रसार और प्रचार का भी महत्त्वपूर्ण तथा सशक्त साधन है।
आरम्भ में दूरदर्शन काफी महँगा पड़ता था, इसीलिए यह प्रत्येक व्यक्ति को तो क्या प्रत्येक देश तक में सुलभ नहीं था। धीरे-धीरे इसका प्रचलन और प्रसारण इस सीमा तक बढ़ा कि आज यह सर्वत्र देखा और सुना जा सकता है। अब यह राजभवन से लेकर झोपड़ी तक में पहुँच चुका है। पहले यह श्वेत-श्याम स्वरूप में ही प्राप्त था परन्तु अब तो रंगीन दूरदर्शन, सारे विश्व में उपलब्ध है।
इसके द्वारा हम देश-विदेश में होने वाले खेलों को घर बैठकर देख सकते हैं और उनका भरपूर आनन्द उठा सकते हैं। इसके अतिरिक्त देश-विदेश में घटित घटनाओं को हम सीधे अपनी आँखों से देख सकते हैं। आजकल इसके माध्यम से कक्षा में पाठ भी पढ़ाया जाता है जिसे बच्चे भली प्रकार समझ लेते हैं। आजकल दूरदर्शन को भू-उपग्रह से जोड़ दिया गया है ताकि ग्रामवासी भी इसका भरपूर लाभ उठा सकें।
आज के व्यस्त जीवन में यह मनोविनोद का बढ़िया और सस्ता साधन है। इसके द्वारा नाटक, हास्य-व्यंग्य, संगीत, कवि सम्मेलन, चलचित्र तथा अनेक प्रकार के सीरियल देखकर हम अपना मनोरंजन कर सकते हैं। इसके माध्यम से कृषि सम्बन्धी कार्यक्रम दिखा कर कृषि कार्यों की अधिकाधिक जानकारी दी जा रही है। इस तरह यह कृषि के विकास में किसानों की सहायता कर रहा है।
विज्ञापनों को देकर व्यापारी वर्ग व विभिन्न वस्तुओं के निर्माता अपनी सहायता कर रहा है। सुदूर ग्रहों की जानकारी इसके कैमरे सरलता से प्राप्त कर लेते हैं। विज्ञान के नित्य नए-नए आविष्कारों ने इसे अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया है। केबल टी.वी., स्टार टी.वी., वी.सी.आर., कम्प्यूटर खेल आदि ने इसे नया रूप दे दिया है।
दूरदर्शन में कुछ कमियाँ भी दृष्टिगत होती हैं। इसके प्रकाश से तथा इसे अनवरत देखने से आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है, यहाँ तक कि आँखें खराब भी हो जाती हैं। इसके द्वारा कुछ ऐसे कार्यक्रम देखने को मिलते हैं जिनका बच्चों के मानस पटल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित (कुंठित) होती है।
Essay on Doordarshan in hindi
आज घर-घर में टेलीविजन हैं। टेलीविजन एक प्रभावशाली प्रचार माध्यम बन | चुका है। इस पर दिन-रात कोई-न-कोई कार्यक्रम आता ही रहता है। फिल्म, चित्रहार, रामायण, महाभारत, और अनेक धारावाहिक कार्यक्रम तो बूढ़ों से लेकर बच्चों तक | सबकी जुबान पर रहते हैं। सारे काम-कंधे को छोड़कर लोग इन कार्यक्रमों को देखने के लिए टी.वी. सेट के करीब खिंचे चले आते हैं।
रेडियो-प्रसारण में वक्ता अथवा गायक की आवाज रेडियोधर्मी तरंगों द्वारा श्रोता तक पहुँचती है। इस कार्य में ट्रांसमीटर की मुख्य भूमिका होती है। रेडियो तरंगें एक सेकंड में ३ लाख कि.मी. की गति से दौड़ती हैं। दूरदर्शन में जिस व्यक्ति अथवा वस्तु का | चित्र भेजना होता है, उससे परावर्तित प्रकाश की किरणों को बिजली की तरंगों में बदला जाता है, फिर उस चित्र को हजारों बिंदुओं में बाँट दिया जाता है।
एक-एक बिंदु के प्रकाश को एक सिरे से क्रमशः बिजली की तरंगों में बदला जाता है। इस प्रकार टेलीविजन | का एंटेना इन तरंगों को पकड़ता है। विद्युत् तरंगों से सेट में एक बड़ी ट्यूब के भीतर ‘इलेक्ट्रॉन’ नामक विद्युत् कणों की धारा तैयार की जाती है। ट्यूब की भीतरी दीवार में एक मसाला लगा होता है। इस मसाले के कारण चमक पैदा होती है। सफेद भाग पर ‘इलेक्ट्रॉन’ का प्रभाव ज्यादा होता है और काले भाग पर कम। टेलीविजन समुद्र के अंदर खोज करने में बड़ा सहायक सिद्ध हुआ है। चाँद के धरातल का चित्र देने में भी यह सफल रहा।
आज बाजार में रंगीन, श्वेत-श्याम, बड़े, मझले तथा छोटे हर तरह के टेलीविजन सेट उपलब्ध है। सन् 1925 में टेलीविजन का आविष्कार हुआ था। ग्रेट ब्रिटेन के एक वैज्ञानिक जॉन एल. बेयर्ड ने टेलीविजन का आविष्कार किया था।
हमारे देश में टेलीविजन द्वारा प्रयोग के तौर पर 15 सितंबर, 1 9 51 को नई दिल्ली के आकाशवाणी केंद्र से इसका प्रथम प्रसारण किया गया था। प्रथम सामान्य प्रसारण नई दिल्ली से 15 अगस्त, 1 9 65 को किया गया था। और हाँ, एक समय ऐसा आया, जब आकाशवाणी और दूरदर्शन एक-दूसरे से अलग हो गए।
इस तरह से 1 अप्रैल, 1 9 76 को दोनों माध्यम एक-दूसरे से स्वतंत्र हो गए। टेलीविजन के राष्ट्रीय कार्यक्रमों का प्रसारण ‘इनसेट -1 ए’ के माध्यम से 15 अगस्त, 1 9 82 से प्रारंभ हो गया था। उसके बाद आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, महाराष्ट्र में इसके प्रसारण केंद्र खोले गए। इस तरह टेलीविजन के विविध कार्यक्रमों का प्रसारण होने लगा।
भारत में टेलीविजन तेजी से चर्चित होता जा रहा है। सन् 1 9 51 में टी.वी. ट्रांसमीटर की संख्या मात्र 1 थी। यह ट्रांसमीटर दिल्ली में स्थापित किया गया था। इनकी संख्या बढ़ते-बढ़ते सन् 1 9 73 मे 5 और 1 9 83 में 42 तक पहुँच गई।
वर्ष 1 9 84 में यह संख्या 126 थी। कम शक्ति के ट्रांसमीटरों (लो पॉवर ट्रांसमीटर्स) की स्थापना के साथ ही देश में टी.वी. ट्रांसमीटरों की संख्या 166 हो गई। 5 सितंबर, 1987 तक देश के पास 99 ट्रांसमीटर थे। इनके बारह पूर्ण विकसित केंद्र, आठ रिले ट्रांसमीटर वाले छह इनसेट केंद्र (एक अपने रिले ट्रांसमीटर के साथ) और 183 लो पॉवर ट्रांसमीटर थे।
टेलीविजन आज अपने लगभग 300 ट्रांसमीटरों के साथ देश के 47 प्रतिशत क्षेत्र में फैली 47 प्रतिशत आबादी की सेवा करता है। सबसे बड़ी बात यह है कि दूरदर्शन के माध्यम से हम घर बैठे दुनिया की सैर कर लेते हैं। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, फिल्मोत्सव, ओलंपिक और क्रिकेट मैचों के सजीव प्रसारण देखकर मन झूम उठता है। समय-समय पर कई विशेष कार्यक्रमों का प्रसारण तो देखते ही बनता है।
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टलीविजन के आविष्कारों में दूरदर्शन का एक महत्वपूर्ण स्थान है। दूरदर्शन (टलीविजन) ने समाचारों में घटनाओं के माध्यम का दृश्यीकरण प्रस्तुत कर समस्त विश्व को इतना करीब ला दिया है कि मानो ऐसा लगता हो कि दुनिया एक गांव बन गयी है। अमेरिका व जापान में घटने वाली घटनाओं को आप घर बैठे तुरंत देख सकते हैं। संप्रति दूरदर्शन मनोरंजन का एक सस्ता व सहज माध्यम है। इस माध्यम की अपनी तमाम खूबियाँ हैं।
इसके बावजूद इस भाष्य का दुरुपयोग भी हो रहा है। दूरदर्शन पर कुछ ऐसे कार्यक्रमों का प्रस्तुतीकरण भी किया जा रहा है, जिसका प्रभाव नवयुवकों व बच्चों के दिलोदिमाग पर बुरा पड़ रहा है। और, यह तो रही इस माध्यम के दुरुपयोग की बात, जिसके लिए इस वैज्ञानिक आविष्कार को दोषी करार नहीं दिया जा सकता। इसके लिए दूरदर्शन के कार्यक्रम बनाने वाले और सरकार ही कुसूरवार है।
टेलीविजन का आविष्कार करने का श्रेय जॉन बेयर्ड को दिया जाता है जो स्कॉटलैण्ड के निवासी थे। उनके द्वारा यह आविष्कार सन् 1926 में किया गया था। सन् 1936 में बी.बी.सी. लन्दन से टी.वी. का प्रसारण शुरू हुआ। इसके आविष्कार का श्रेय यद्यपि जॉन बेयर्ड को प्राप्त हुआ है, किन्तु अन्य लोगों ने भी इस आविष्कार में प्रकारान्तर से अपनी विशेष भूमिका निभाई थी। ऐसे लोगों में मोर्स, कार्लस्टाईन, प्रोटोविज, ग्राहम बैल, जगदीश चन्द्र बसु और मार्कोनी का नाम उल्लेखनीय है।
भारत में टेलीविजन कितना उपयोगी और लाभकारी है यदि इस पर विचार किया जाए तो पक्ष में अधिक और विरोध में कम तर्क सामने आएंगे। दूरदर्शन मनोरंजन का श्रेष्ठ साधन होने के साथ-साथ कलाओं का उन्नायक भी है। दूरदर्शन में दिखाए जाने वाले नाटकों, प्रहसनों, मनोरंजक कार्यक्रमों के जरिये हमारे दूर-दराज के ग्रामवासी भी आनन्दित होते हैं। जो कार्यक्रम तथा शास्त्रीय नृत्य कभी राजदरबारों तथा दरबार के विशिष्ट व्यक्तियों को सुलभ थे अब आम जनता को भी सुलभ हो गए हैं। अतः दूरदर्शन के कार्यक्रमों को हम लोकरंजक कार्यक्रम कह सकते हैं।
दूरदर्शन से जहां कला के क्षेत्र में चेतना जगी है, वहीं व्यापार के क्षेत्र में इसका योगदान कम नहीं है। दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कुछ विज्ञापनों की शैली काफी प्रभावशाली होती है जिसे दर्शक बरबस देखना चाहता है। इन आकर्षणों की वजह से विज्ञापनदाता के उत्पादों की बिक्री भी बढ़ जाती है। इसीलिए टेलीविजन पर विज्ञापन की दरें काफी अधिक होती है तथा बहत नपा-तला समय विज्ञापनदाताओं को दिया जाता है।
दूरदर्शन से हमें अपनी प्राचीन गरिमा का बोध होता है। महाभारत और रामायण की कथाएं, नेहरू जी की लिखी भारत की खोज ऐसे कार्यक्रम टी.वी. ने दिखाए हैं जिनकी वजह से लोगों के मन में अपनी संस्कृति के प्रति काफी अनुराग जागा है। टी.वी. आज के समय में ऐसी अनोखी ईजाद है जो मानव की अनेक प्रकार से लाभ दे रही है। इन सब लाभों के होते हुए भी टी.वी. के अवगुणों की संख्या भी कम नहीं है।
कुछ विचारकों का मत है कि टी.वी. अधिक देखने से लोगों की वैयक्तिक विचारशक्ति कुंठित होने लगती है। टी.वी. के कार्यक्रम एक घिसी-पिटी परम्परा पर आधारित होते हैं जिनमें केवल कुछ लोगों का ही योगदान होता है। इसलिए अधिक टी.वी. देखने से मनुष्य की स्वतंत्र चिंतन की शक्ति में अवरोध आने लगता है जो चिन्ता का विषय हैं।
भारत एक निर्धन देश है। बहुत से लोग तो केवल एक कमरे अथवा कोठरी या झुग्गी में रहकर ही गुजारा करते हैं। वे टी.वी. तो खरीद लेते हैं किन्तु उसे जितनी दूरी से देखना चाहिए, उतनी दूरी से उसे नहीं देखते। फलतः निरंतर ऐसा करने से नेत्र-ज्योति पर अन्तर आने लगता है। विशेषज्ञों का मत है कि ब्लैक एण्ड व्हाइट टी.वी. के अपेक्षा रंगीन टी.वी. आंखों के लिए ज्यादा हानिप्रद है।
मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि मन्दमति बालकों के लिए टी.वी. देखना ज्यादा हानिप्रद हो सकता है। ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’ कहावत को ध्यान में रखते हुए टी.वी. को एक सीमा के अन्दर तथा निर्धारित दूरी से देखना ही उचित माना गया है। भारतीय टी.वी. दूरदर्शन) पर फिल्में दिखाने का प्रचलन कुछ ज्यादा ही हो गया है। इन फिल्मों के चयन में पूरी सावधानी न बरतने के कारण कभी-कभी घटिया और बचकानी फिल्में भी दूरदर्शन में दिखाई जाती हैं।
कला के नाम पर देर रात को दिखाई जाने वाली फिल्मों में कभी-कभी कुरूपता को दिखाने में भी सतर्कता नहीं बरती जाती जिससे दर्शकों की मानसिकता पर अस्वस्थ प्रभाव पड़ता है।
सारांश यह है कि वर्तमान समय में दूरदर्शन की उपयोगिता बहुत अधिक है। उसके अनेक लाभ हैं, किन्तु उससे होने वाली हानियां भी कम नहीं हैं। अच्छा हो कि दूरदर्शन हानियों से सावधान रहने के विषय में भी अपने कार्यक्रम दिखाए।
Essay on Doordarshan in hindi
दूरदर्शन आधुनिक वैज्ञानिक युग का महत्वपूर्ण आविष्कार है। यह एक ऐस। यत्र है, जिसकी सहायता से व्यक्ति दूर की वस्तु एवं व्यक्ति को पंख और स् । सकता है। इस यन्त्र की सहायता से कानों तथा आंखों दोनों की तृप्ति होती है। दूरदर्शन का आविष्कार सन् 1926 ई. में इंग्लैंड के जॉन एल.बेयर्ड ने किया थ दूरदर्शन मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा देने, जानकारी बढ़ाने, प्रसार और प्रचा। का भी महत्त्वपूर्ण तथा सशक्त साधन है।
आरम्भ में दूरदर्शन काफी महँगा पड़ता था, इसीलिए यह प्रत्येक व्यक्ति छ । तो क्या प्रत्येक देश तक में सुलभ नहीं था। धीरे-धीरे इसका प्रचलन और प्रसार। इस सीमा तक बढ़ा कि आज यह सर्वत्र देखा और सुना जा सकता है। अब यः रजभवन से लेकर झोंपड़ी तक में पहुँच चुका है। पहले यह श्वेत-श्याम स्वरुप में ही प्राप्त था परन्तु अब तो रंगीन दूरदर्शन सारे विश्व में उपलब्ध है। इस द्वारा हम देश-विदेश में होने वाले खेलों को घर पर बैठकर देख सकते हैं और उनका भरपूर आनन्द उठा सकते हैं। इसके अतिरिक्त देश-विदेश में घटित घटनाओं को हम सीधे अपनी आँखों से देख सकते हैं।
आजकल इसके माध्यम से कक्षा में पाठ भी पढ़ाया जाता है जिसे बच्चे भली प्रकार समझ लेते हैं। आजकल दूरदर्शन को भू–उपग्रह से जोड़ दिया गया है कि ताकि ग्रामवासी भी इसका भरपूर लाभ उठा सकें। आज के व्यस्त जीवन में यह मनोविनोद का बढ़िया और सस्ता साधन है। इसके द्वारा नाटक, हास्य-व्यंग्य, संगीत, कवि सम्मेलन, चलचित्र तथा अनेक प्रकार के सीरियल देखकर हम अपना मनोरंजन कर सकते हैं। इसके माध्यम से कृषि सम्बन्धी कार्यक्रम दिखा कर कृषि कार्यों की अधिकाधिक जानकारी दी जा रही है। इस तरह यह कृषि के विकास में किसानों की सहायता कर रहा है।
विज्ञापनों को देकर व्यापारी वर्ग व विभिन्न वस्तुओं के निर्माता अपनी वस्तुओं की बिक्री बढ़ा सकते हैं। दूरदर्शन अन्तरिक्ष विज्ञान की भी कई तरह से सहायता कर रहा है। सुदूर ग्रहों की जानकारी इसके कैमरे सरलता से प्राप्त कर लेते हैं। विज्ञान के नित्य नए-नए आविष्कारों ने इसे अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया है। केबल टी.वी., स्टार टी.वी., वी.सी.आर., कम्प्यूटर खेल आदि ने इसे नया रूप दे दिया है।
दूरदर्शन में कुछ कमियों भी दृष्टिगत होती हैं। इसके प्रकाश से तथा इसे अनवरत देखने से आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है, यहाँ तक कि ऑखें खराब भी हो जाती है। इसके द्वारा कुछ ऐसे कार्यक्रम देखने को मिलते हैं जिनका बच्चों के मानस पटल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित (कुटित) होती है।
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