देश प्रेम पर निबंध Essay on Desh Prem in Hindi @ 2020

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हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाया हु Essay on Desh Prem पर पुरा आर्टिकल लेकर आया हु। कहते है Desh Prem की भावना जिस इंसान में नहीं होती वह
पशु के समान होता है। इस आर्टिकल में हम आपके लिए लाये है देश प्रेम पर निबंध की पूरी जानकारी जो आपको अपने बच्चे का होमवर्क करवाने में बहुत मदद मिलेगी।

Essay on Desh Prem in Hindi

देश प्रेम पर निबंध

प्रस्तावना :

स्वदेश प्रेम की भावना प्रत्येक व्यक्ति में होना स्वभाविक है और जिसमें यह भावना नहीं है वह इंसान नहीं, पशु है। जिस देश में हम पैदा हुए हैं, जहाँ की भूमि की मिट्टी हमारी रग-रग में बसी हुई है, उस मिट्टी से प्यार करना हमारा धर्म है। वह भूमि ही तो हमारी माता है, जननी है और अपनी जननी की सभी को रक्षा करनी चाहिए।

मातृभूमि की उपयोगिता :

हमारी अपनी माता हमें केवल जन्म देती है, लेकिन हमारा पालन-पोषण, अन्न, धन, फूल, फल तो हमें हमारी धरती माता ही देती है, इसलिए मातृभूमि का महत्व तो स्वर्ग से भी बढ़कर है। यह स्वदेश की भावना केवल इंसान में ही नहीं, अपितु पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों में भी होती है। सभी को अपने जन्म-स्थान से लगाव होता है।

पशु-पक्षी  भी अपने रहने के स्थान को सजा-संवाकर रखते हैं और दिनभर इधर-उधर  घूमने के बाद सायंकाल को अपने घर में आकर ही शान्ति का अनुभव करते | हैं।

विदेशों में रहने वाले भारतीय इस पीड़ा को समझते हैं कि अपने देश की मिट्टी से दूर रहना कितना कष्टप्रद होता है। स्वदेश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत व्यक्ति अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राण भी न्यौछावर कर सकता है

मातृभूमि के उपकार :

सत्य ही तो है कि मातृभूमि ने हमे सभी सुख दिए हैं। इसी धरती का अन्न खाकर हम बड़े हुए हैं, इसी का पानी पीकर हमने अपनी प्यास बुझाई है। इसी की शुद्ध वायु में हम साँस ले रहे हैं, फिर क्यों न हम भी अपनी मातृभूमि की जी-जान से रक्षा करें। सच्चे देशभक्तों का इतिहास : सच्चे देश-प्रेमियों का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है।

अनेक महापुरुषों, जैसे-महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई, शिवाजी, राजाराममोहन राय, गुरु गोविन्द सिंह, सरदार पटेल,भगत सिंह ,राज गुरु ,लाल बहादुर शास्त्री आदि ने देश-सेवा के सामने अपनी निजी सुख की कभी भी चिन्ता नहीं की और देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था।

उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन भारतमाता का बाल भी बांका न होने दिया। देश की धरती ऐसे वीर सपूतों को दिल से श्रद्धांजलि अर्पित करती है।

मातृभूमि के प्रति हमारा कर्त्तव्य :

मातृभूमि का हमारे ऊपर बहुत ऋण है, जिसे हम कभी भी नहीं चुका सकते। आज हम स्वतन्त्र है, लेकिन हमारे वीरों ने अनेक कुर्वानियों के पश्चात्, यह स्वतन्त्रता प्राप्त की है। हमें भी अपनी मातृभूमि की पूरे जी-जान से रक्षा करनी चाहिए। सच्चा देशभक्त वही है जो आवश्यकता पड़ने पर अपने बारे में नहीं सोचता, वरन् अपनी मातृभूमि के बारे में सोचता है।

उपसंहार :

देश-प्रेम बलिदान माँगता है। हमे कोरी बातों से नहीं, बल्कि अपने कार्यों से देश-सेवा करनी चाहिए। देश की प्रगति के लिए अथक प्रयास करने चाहिए। आतंकवादियों, चोरों, लुटेरों से अपनी भारतमाता को बचाना चाहिए। कोई भी बाहरी व्यक्ति आकर हमारी भारतमाता को नुकसान पहुँचाए, तो हमे डटकर उसका सामना करना चाहिए। तभी हम सच्चे देशभक्त कहलाएंगे।

 

देश प्रेम पर निबंध

रूस और जापान में युद्ध छिड़ा हुआ था। रूस की सेना ने एक पहाड़ी पर आक्रमण कर दिया। उस पहाड़ी पर जापान के थोड़े से सैनिक अपनी भारी तोप के साथ डटे थे। रूसी सेना उस तोप पर अधिकार करना चाहती थी। रूस के सैनिकों का आक्रमण बहुत भयानक था। वे संख्या में बहुत अधिक थे। जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा। उस तोप और पहाड़ी पर रूसी सेना ने आधिपत्य कर लिया। तोप चलाने वाले जापानी तोपची को यह बात सहन नहीं हुई कि उसकी तोप से शत्रु उसी के सैनिकों की जान | ले ले।

रात्रिकाल में बिना किसी को सूचित किए पेट के बल सरकता वह उस पहाड़ी  पर पहुँच गया। वह तोप के पास तो पहुँच गया, किंतु उसे हटाने अथवा नष्ट करने का उसके पास कोई उपाय नहीं था। उसने कुछ देर तक सोच-विचार किया। अंत में वह तोप की नली में घुस गया।

रात में वहाँ भारी हिमपात हुआ। तोप की नली में घुसे तोपची को ऐसा अनुभव । हुआ कि सर्दी के मारे उसकी नसों के भीतर रक्त जमता जा रहा है। उसकी एक-एक | नस फटी जा रही थी। फिर भी वह दाँत में दाँत दबाए रात भर तोप में घुसा रहा। सूर्योदय होने पर रूसी सैनिक तोप के पास आए। वे अपनी सफलता पर खुश हो रहे थे। उन्होंने तोप की परीक्षा करने का मन बनाया।

तोप में गोला-बारूद भरा गया। जैसे ही तोप छूटी उसकी नली में घुसे जापानी तोपची के चीथड़े उड़ गए। तोप के सामने का वृक्ष रक्त से लाल हो गया। तोप की नली से रक्त निकल रहा था। रूसी सैनिकों ने वह रक्त देखा तो कहने लगे, “ऐसा प्रतीत होता है कि तोप छोड़कर जाते समय जापानी सैनिक इसमें कोई प्रेत बैठा गए हैं। अब वह रक्त उगल रहा है। आगे पता नहीं क्या करेगा? अत: यहाँ से भाग निकलना ही श्रेयस्कर प्रेत के भय से रूसी सैनिक तोप छोड़कर उस पहाड़ी से भाग गए। तब जापानी सैनिकों ने पहाड़ी पर पुनः कब्जा जमा लिया।

इस प्रकार जापानी तोपची ने अपना बलिदान देकर वह कर दिखाया, जो एक विशाल तथा शक्तिशाली सेना नहीं कर सकती थी। ऐसी थी जापानी सैनिकों की देशभक्ति! अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु हँसते हँसते | प्राण दे देना जापानी बड़े गौरव की बात मानते हैं।

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देश प्रेम पर निबंध

देश के प्रति मन में होने वाला कोमल भाव जिसे वह बहुत अच्छा, प्रशंसनीय तथा सुखद समझता है, देश-प्रेम है। देश के साथ अपना घनिष्ठ संबंध बनाए रखने की चाहना देश-प्रेम है। स्वार्थ रहित तथा देश के सर्वतोमुखी कल्याण से ओत-प्रोत भाव देश-प्रेम है। देश के प्रति अंत:करण को अत्यंत द्रवीभूत कर देने वाले और अत्यधिक ममता से युक्त अतिशय अथवा प्रचंड भाव को देश-प्रेम कहते हैं।

देश-प्रेम शाश्वत शोभा का मधुवन है। उर-उर के हीरों का हार है। हृदय का आलोक है। कर्तव्य का प्रेरक है। जीवन-मूल्यों की पहचान है। जीवन-सिद्धि का मूल मंत्र है।

प्रश्न उठता है, देश से प्रेम क्यों हो, इसका उत्तर देते हुए स्वामी विवेकानन्द कहते हैं, भारत मेरा जीवन, मेरा प्राण है। भारत के देवता मेरा भरण-पोषण करते हैं। भारत मेरे बचपन का हिंडोला, मेरे यौवन का आनन्दलोक और मेरे बुढ़ापे का बैकुंठ है।’ _महात्मा गाँधी कहते हैं, ‘मैं देश-प्रेम को अपने धर्म का ही एक हिस्सा समझता हूँ। देश प्रेम के बिना धर्म का पालन पूरा हुआ, कहा नहीं जा सकता।’ (इंडियन ओपिनियन) श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी देश-प्रेम का कारण बताते हुए लिखते हैं-‘यह वन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है। यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है। इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है। हम जिएंगे तो इसके लिए, मरेंगे तो इसके लिए।’

देश-प्रेम के सम्बन्ध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का कथन है-‘परिचय प्रेम का प्रवर्तक है। बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता। यदि देश-प्रेम के लिए हृदय में जगह करनी है तो देश के स्वरूप से, अंग-अंग से परिचित और अभ्यस्त हो जाइए।’ जब देश-प्रेम का दिव्य रूप प्रकट होता है तब आत्मा में मातृभूमि के दर्शन होते हैं।

स्वामी रामतीर्थ लिखते हैं, ‘मेरी वास्तविक आत्मा सारे भारतवर्ष की आत्मा है। जब मैं चलता हूँ तो अनुभव करता हूँ सारा भारतवर्ष चल रहा है। जब मैं बोलता हैं तो मैं मान करता हूँ कि यह भारतवर्ष बोल रहा है। जब मैं श्वांस लेता हूँ तो महसूस करता हूँ कि यह भारतवर्ष श्वांस ले रहा है। मैं भारतवर्ष हूँ।

देश-प्रेम का भाव राष्ट्रीयता का अनिवार्य तत्व है, देशभक्ति की पहचान है। इहलोक की सार्थकता का गुण है और मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में निश्चित स्थान की उपलब्धि है। संस्कृत का सूक्तिकार तो जन्मभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर महान मानता है। सरदार पटेल का कहना है, ‘देश की सेवा में जो मिठास है, वह और किसी चीज में नहीं।’

कथाकार प्रेमचन्द की धारणा थी, ‘खून का वह आखिरी कतरा जो वतन की हिफाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज है।’ आज के भारत में देश-प्रेमी और देश-द्रोही की पहचान आसान नहीं रही। यहाँ तो राजा प्रताप की जय-जय की जगह अकबर की जय-जय, देश को लूटकर खाने वाले परम देशभक्त और चरित्र-हीनता की ओर धकेलने वाले ‘भारत-रत्न‘ हैं।

देशहित के लिए जीवनभर तन को तिल-तिल गलाने वाले परम साम्प्रदायिक और जातिवाद के परम पक्षधर धर्मनिरपेक्षता के अवतार बने हैं। विदेशी भाषा अंग्रेजी को महारानी और राष्ट्रभाषा हिन्दी की दासी मान नाक-भौंह सिकोड़ने वाले राष्ट्रीय हैं। जब यह न का कालुष्य धुलेगा तो देश-प्रेमी की जय-जयकार और देश-द्रोही की धिक्कार होगी।

 

Essay on Desh Prem in Hindi

“वह जीव ही नहीं जिसमें प्रेम की भावना नहीं, मनुष्य तो हो हा नहा सकता।”एस विचार किसी महात्मा के हैं। वे तो प्रेमरहित प्राणी को पाषाण की उपमा देते हैं। अन्य प्राणियों से ऊपर उठकर मनुष्य जाति के लिए देशप्रेम और देशभक्ति का होना अत्यंत आवश्यक है और यह उसके लिए विशेष गुण भी है।

‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’, अर्थात् माता तथा मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है-यह भावना जिस व्यक्ति में नहीं, वह पशु एवं पाषाण से भी निकृष्ट है। जहाँ जन्म लिया, पले, बढ़े, जहाँ चलना-दौड़ना, खेलना-हँसना आदि क्रियाएँ कीं, जहाँ का अन्न-जल ग्रहण करके बड़े हुए. जिसके कण-कण को गंदा-मैला-कलुषित किया और जिससे सदा स्नेह और पोषण मिलता रहा, यदि हमें उस ‘माँ’ (जन्मभूमि) से प्रेम नहीं तो धिक्कार है हमारे जीवन पर, धिक्कार है ऐसे व्यक्ति पर, जिसकी माता को शत्रु पददलित एवं अपमानित करने का प्रयत्न कर रहा हो और वह सख की साँस ले।

जिसे अपने देश से प्रेम है, वह ऐसी उपेक्षा नहीं कर सकता। अपने में देशप्रेम की भावना को जाग्रत करना न केवल अपनी जन्मभूमि को बचाना है, अपितु उन ऋणों से उऋण होना है, जिनके बिना हमारे लिए नरक का विधान है। हमें अपने देश पर गर्व करना चाहिए। उसकी रक्षा के लिए तन, मन, धन-सर्वस्व न्योछावर करने तक के लिए मन में भावना और संकल्प होना चाहिए। इस विषय में किसी कवि ने ठीक ही कहा है-

‘जिनको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है। वह नर नहीं, नर-पशु निरा है और मृतक समान है।’ स्वदेश-प्रेम का यह अर्थ नहीं कि हम भारत माता की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते रहें या भारत माता की जय’ पुकारते रहें। देश के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करना और उन्हें अन्य सभी कार्यों से सर्वोच्च प्राथमिकता देना ही स्वदेश-प्रेम है।

देश के प्रति हमारे कर्तव्य क्या हैं, इसपर विचार करने की आवश्यकता है। हमारा कर्तव्य है स्वदेश को स्वतंत्र बनाए रखें। देश की समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न करें; जैसे-अन्न समस्या, बेकारी की समस्या, अशिक्षा की समस्या, गरीबी की समस्या आदि।

यदि हमें स्वदेश से सच्चा प्रेम है तो हमें एकता की रक्षा करनी चाहिए। यह तभी हो सकता है जब हम मन से संप्रदाय-भेद, भाषा-भेद, जाति-भेद, स्पृश्यता-अस्पृश्यता आदि भेदभावों को भुला दें। हम आपस की लड़ाई और दंगे-फसाद करते रहें तो हमें ‘स्वदेश-प्रेम’ का गुणगान करने का कोई अधिकार नहीं। यदि हम राष्ट्रीय एकता तथा प्रेम की भावना का प्रसार करते हैं तभी हम सच्चे अर्थों में स्वदेश-प्रेमी हैं।

जो व्यक्ति देश से, देश की सरकार से बेईमानी नहीं करता, वह व्यक्ति वास्तव में देश- प्रेमी है। देश पर जब कोई संकट आ पड़े, उस समय देश पर प्राण न्योछावर करने के लिए जो आगे बढ़े, वही देशप्रेम का दावा कर सकता है।

अपने देश के लोगों की सहायता करना भी देशप्रेम का आवश्यक अंग है। जो भूखे को भोजन, नंगे को वस्त्र, बेकार को रोजगार और अशिक्षित को शिक्षा देता है, वही देशप्रेमी है। हमें  सुभाषचंद्र बोस, लाला लाजपतराय, रवींद्रनाथ ठाकुर, मदनमोहन मालवीय, बाल गंगाधर तिलक, सरदार वल्लभभाई पटेल, चंद्रशेखर, भगतसिंह आदि के जीवन-चरित्र से स्वदेश-प्रेम की शिक्षा लेनी चाहिए।

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Essay on Desh Prem in Hindi

प्रेम मानव का स्वाभाविक गुण है। प्रेम के अभाव में जीवन सारहीन है। यह प्रेम पारिवारिक-प्रेम, जाति-प्रेम, मित्र के प्रति प्रेम, स्वदेश-प्रेम आदि अनेक रूपों में प्रकट होता है। परंतु इनमें स्वदेश-प्रेम ही सर्वोच्च प्रेम है। जब पशु-पक्षियों को अपने घर से, अपनी मातृभूमि से प्यार होता है, तो भला मानव को अपनी जन्मभूमि और अपने देश से प्रेम क्यों नहीं होगा। मनुष्य तो विधाता की सर्वोत्तम रचना है। संस्कृत के किसी महान कवि ने ठीक ही कहा है-

“जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी।” अर्थात् माता और जन्मभूमि की तुलना में स्वर्ग का सुख भी तुच्छ प्रत्येक देशवासी को अपने देश से अनुपम प्रेम होता है। अपना देश चाहे बर्फ से ढका हो, चाहे गर्म रेत से भरा हो, चाहे ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से घिरा हो, वह सबके लिए प्रिय होता है।

वास्तव में अपनी टूटी-फूटी झोंपड़ी में हमें जो सुख मिलता है, वह पराए महलों में भी नहीं मिल सकता। अपनी मातृभूमि के हज़ारों संकट भी परदेस के सुखों से श्रेयस्कर हैं। देश-प्रेम का अर्थ है-देश में रहने वाले जड-चेतन सभी प्राणियों से प्रेम है। वास्तव में, सच्चे देश-प्रेमी के लिए देश का कण-कण पावन और पूज्य होता है।

सच्चा देशप्रेमी वही होता है, जो देश के लिए निःस्वार्थ भावना से बड़े से बड़ा त्याग कर सकता है। सच्च देशभक्त कर्तव्य की भावना से प्रेरित होता है। वह अपने प्राण हथेली पर रखकर देश की रक्षा के लिए शत्रुओं का मुकाबला करता है। ध्यान रहे, सभी को अपना कार्य करते हुए देशहित को सर्वोपरि समझना चाहिए।

जिस देश में हमने जन्म लिया है, उस देश के प्रति हमारे अनंत कर्तव्य हैं। हमें अपने प्रिय देश के लिए कर्तव्य-पालन और त्याग की भावना  रखनी चाहिए। हमारे देश में अनन्य देशभक्त हुए हैं, जिन्होंने हँसते-हँसते देश पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।

हमें भी उनके जैसा ही देशभक्त होना चाहिए। भगतसिंह, चन्द्रशेखर, सुखदेव आदि देशभक्तों ने अपने देश के लिए हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे को चूम लिया। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, लाला लाजपत राय आदि अनेक देशभक्तों ने अनेकों कष्ठ सहकर और अपने प्राणों का बलिदान करके देश को आजाद करने में अपना योगदान दिया। राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू आदि देश-रत्नों ने जीवन भर देश की सेवा की।

स्वदेश-प्रेम मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। अत: हमें स्वदेश-प्रेम की भावना के साथ-साथ समग्र मानवता के कल्याण को भी ध्यान में रखना होगा। तभी हमारा जीवन सफल होगा।

Essay on Desh Prem in Hindi

देशप्रेम वह पुण्य क्षेत्र है अमल असीम त्याग से विलसित। आत्मा के विकास से जिसमें, मानवता होती है विकसित। -गोपालशरण सिंह

मनुष्य जिस देश या समाज में जन्म लेता है, यदि वह उसकी उन्नति में समुचित सहयोग नहीं देता तो उसका जन्म व्यर्थ है। देश-प्रेम की भावना ही मनुष्य को बलिदान, त्याग की प्रेरणा देती है। मनुष्य जिस भूमि पर जन्म लेता है, जिसका अन्न खाकर, और जल पीकर अपना विकास करता है, उसके प्रति प्रेम की भावना का उसके जीवन में सर्वोच्च स्थान होता है-‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

देशप्रेम की स्वाभाविकता-देश-प्रेम की भावना मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है। प्रत्येक मनुष्य के हृदय में अपनी जन्मभूमि के लिए मोह तथा लगाव अवश्य होता है। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षियों में भी अपनी जन्मभूमि के प्रति प्रेम का भाव होता है। वे भी उसके लिए मर-मिटने की भावना रखते हैं- आग लगी इस वक्ष में जलते इसके पात तुम क्यों जलते पक्षियो, जब पंख तुम्हारे पास। फल खाए इस वृक्ष के, बीट लथेड़े पात, यही हमारा धर्म है, जलें इसी के साथ।

देश-प्रेम की भावना सर्वत्र और सब युगों में विद्यमान रहती है। मनुष्य जहाँ रहता है, अनेक कठिनाइयाँ होते हुए भी उस स्थान के प्रति उसका मोह बना रहता है। देश-प्रेम के सम्मुख सुविधा असुविधा की बाधा नहीं रहती। विश्व में बहुत से ऐसे राष्ट्र व प्रदेश हैं, जहाँ जीवन अत्यंत कठिन है, परंतु वहाँ के वासियों ने स्वयं को उन परिस्थितियों के अनुरूप बना लिया, उस स्थान को नहीं छोड़ा- विषुवत् रेखा का वासी जो जीता है नित हाँफ-हाँफकर, रखता है अनुराग अलौकिक फिर भी अपनी मातृभूमि पर।

हिमवासी जो हिम में, तम में जी लेता है काँप-काँपकर, वह भी अपनी मातृभूमि पर कर देता है प्राण निछावर। मनुष्य, पशु आदि जीवनधारियों की बात ही क्या; फूल-पौधों में भी अपने देश के लिए मिटने की चाह होती है। पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प की इसी अभिलाषा का वर्णन किया है-

मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक, मातृभूमि हित शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक। इस प्रकार अपने देश और अपनी जन्मभूमि के प्रति प्रेम एक स्वाभाविक भावना है।

देश-प्रेम का महत्त्व-देश-प्रेम विश्व के सभी आकर्षणों से बढ़कर है। यह एक ऐसा पवित्र व सात्त्विक भाव है, जो मनुष्य को निरंतर त्याग की प्रेरणा देता है। देश-प्रेम का संबंध मनुष्य की आत्मा से है। मानव की हार्दिक इच्छा रहती है कि उसका जन्म जिस भूमि पर हुआ है, वहीं पर वह मृत्यु का वरण करे। विदेशों में रहते हुए भी अंत समय में वह अपनी मातृभूमि के दर्शन करना चाहता है।

गुप्त जी ने कहा है-

पाकर तुझको सभी सुखों को हमने भोगा, –

तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा?

तेरी ही यह देह तुझी से बनी हुई है, बस तेरे ही सुरस सार से सनी हुई है। फिर अंत समय तू ही इसे अचल देख अपनाएगी, हे मातृभूमि यह अंत में तुझमें ही मिल जाएगी।

वास्तव में देश-प्रेम की भावना मनुष्य की उच्चतम भावना है। देश-प्रेम के सामने व्यक्तिगत लाभ का कोई महत्त्व नहीं है। जिस मनुष्य के मन में अपने देश के प्रति अपार प्यार और लगाव नहीं है, उस मानव के हृदय को कठोर पाषाण-खंड कहना ही उपयुक्त होगा। कहा भी गया है- भरा नहीं जो भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं, वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। जो मानव अपने देश के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देता है, वह अमर हो जाता है। परंतु जो देश-प्रेम तथा मातृभूमि के महत्त्व को समझता है, वह तो जीते हुए भी मरे हुए जैसा है- जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है। वह नर नहीं, नर-पशु निरा है, और मृतक समान है।

देशप्रेम के विविध क्षेत्र व देश-सेवा-देश-प्रेम के कई क्षेत्र हैं। हम तन-मन धन से देश के विकास में सहयोग दे सकते हैं। हमारे जिस कार्य से देश की उन्नति हो, वही कार्य देश-प्रेम की सीमा में आता है। देश की वास्तविक उन्नति के लिए हमें सब प्रकार से अपने देश की सेवा करनी चाहिए। देश-सेवा के विभिन्न क्षेत्र हो सकते हैं-

(क) राजनीति द्वारा- भारत प्रजातंत्रात्मक देश है, जिसमें वास्तविक शक्ति जनता के हाथ में रहती है। अपने मताधिकार का उचित प्रयोग करके, जनप्रतिनिधि के रूप में सत्य, निष्ठा तथा ईमानदारी से कार्य करके देश को जनप्रतिनिधि के रूप में सत्य, निष्ठा तथा ईमानदारी से कार्य करके, देश को जाति, संप्रदाय तथा प्रांतीयता की राजनीति से मुक्त करके हम उसके विकास में सहयोग दे सकते हैं।

(ख) समाज-सेवा द्वारा- समाज में फैली कुरीतियों को दूर करके हमें देश को सुधारना चाहिए। अशिक्षा, मद्यपान, बाल-विवाह, छुआछूत, व्यभिचार आदि अनेक बुराइयों को, जिनसे देश की उन्नति में बाधा पहुँचती है, दूर करके देश-सेवा की जा सकती है।

(ग) धन द्वारा- जो मनुष्य आर्थिक दृष्टि से अधिक संपन्न हैं, उन्हें देश की विकास योजनाओं में सहयोग देना चाहिए। देश के रक्षा-कोष में उत्साहपूर्वक धन देना चाहिए, जिससे प्रतिरक्षा शक्ति मजबूत की जा सके।

(घ) कला द्वारा- कलाकार सक्रिय रूप से देश की सेवा कर सकता है। उसकी कृतियों में अद्भुत शक्ति होती है। कवि, लेखक अपनी रचनाओं द्वारा मनुष्य में उच्च विचारों तथा देश के लिए त्याग की भावना जगा सकते हैं। कलाकार की सुंदर कृतियों को जब विदेशी खरीदते हैं, तो विदेशी-मुद्रा प्राप्त होती है।

इसप्रकार केवल राजनीति करनेवाला व्यक्ति ही देश-प्रेमी नहीं है, स्वस्थ व्यक्ति सेना में भर्ती होकर, किसान, मजदूर, अध्यापक अपना कार्य मेहनत, निष्ठा तथा लगन से करके, छात्र अनुशासन में रहकर देश-प्रेम का परिचय दे सकते हैं।

हमारा कर्त्तव्य-

हमारा कर्तव्य है कि सब कुछ अर्पित करके भी देश की रक्षा तथा तथा विकास में सहयोग दें। जहाँ भी हों, जिस रूप में हों हम अपने कार्य ईमानदारी से तथा देश के हित को सर्वोपरि मानकर करें। जब देश अनेक राष्ट्रों व अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का सामना कर रहा है, ऐसे समय हमारा कर्त्तव्य है कि व्यक्तिगत सुखों को त्याग कर देश के सम्मान, रक्षा तथा विकास में तन-मन-धन को न्यौछावर कर दें। प्रसाद के ये शब्द हमारा आदर्श बन जाते हैं- जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष।

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Written by

Romi Sharma

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