Essay on Gram Panchayat in hindi language ग्राम पंचायत पर निबंध

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हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाया हु Essay on Gram Panchayat in Hindi पर पुरा आर्टिकल। जैसा की आप जानते है हमारा भारत देश गावों में रहता है और गावों की दशा को सुधारने के लिए Gram Panchayat का एक अहम् रोल है। आईये पढ़ते है Essay on Gram Panchayat in Hindi या ग्राम पंचायत पर निबंध

Essay on Gram Panchayat in hindi

Essay on Gram Panchayat in hindi language

प्रस्तावना :

भारतवर्ष गाँवों का देश है यहाँ की 70% से अधिक जनसंख्या गाँवों में बसती है इसलिए गाँवों का उद्धार ही भारत का उद्धार है। यदि गाँवों का उद्धार होगा तो किसानों का उद्धार होगा और यदि किसानों का उद्धार होगा तो देश में कोई भी भूखा नहीं रहेगा। सरकार की ओर से गाँवों का उदार करने के लिए ही ‘ग्राम पंचायत’ नामक संस्था का निर्माण हुआ है। ग्राम पंचायत कोई नई चीज नहीं है। प्राचीनकाल में भी ग्राम पंचायतें होती थीं लेकिन अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में इन पंचायतों को कोई महत्व नहीं दिया था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात्, महात्मा गाँधी जी के अथक प्रयासों से दोबारा ग्राम पंचायतों का विकास हुआ है।

ग्राम पंचायत का परिचय :

ग्राम पंचायत का निर्माण पाँच व्यक्तियों पर आधारित होता है, जिनका चयन गाँव के लोगों के सामने उन्हीं के द्वारा होता है। यही पाँच व्यक्ति अपना एक मुखिया चुन लेते हैं, जिसे ‘सरपंच नाम दिया जाता है। बाकी चार ‘पंच’ कहलाते हैं। हर गाँव में एक ग्राम सभा होती है। तीन या चार गाँवों को मिलाकर एक पंचायत अदालत होती है जो उन ग्रामों के छोटे-छोटे मुकदमों का फैसला करती है। ग्राम सभा का सदस्य कम से कम 22 वर्ष आयु या उससे अधिक आयु का होना चाहिए। इस पंचायत के मन्त्री तथा निरीक्षक सरकारी पदाकिारी होते हैं।

ग्राम-पंचायतों के कर्तव्य : 

ग्राम पंचायतें अपने अधिकार के अन्तर्गत आने वाले गाँवों के लिए अनेक कार्य करती हैं। इन कार्यों में गाँव की सड़कें, स्वच्छता, नालियों का निर्माण, ग्रामों के झगड़ों का निर्णय करना, शिक्षा तथा चिकित्सा का प्रबन्ध करना, सह-समितियों की स्थापना करना तथा गाँवों की प्रगति व विकास कार्य आते हैं। ग्राम पंचायतें गाँवों के सर्वांगीण विकास के लिए अन्य कार्य भी करते हैं।

ग्राम पंचायतों के लाभ :

ग्राम पंचायतों की स्थापना से गाँवों में लड़ाई-झगड़े कम होने लगे हैं। इनसे मुकदमेबाजी का खर्च और समय की। भी बचत होती है। ग्रामों का आर्थिक विकास हो रहा है तथा लोगों में मैत्री-भाव बढ़ रहा है। सभी को इन पंचायतों से बहुत आशाएँ हैं कि यदि ये पंचायतें निस्वार्थ भाव से ग्राम सेवा करें तो देश के गाँव उन्नति के शिखर पर पहुंच जाएंगे।

पंचायतों के अनेक रूप :

भारतवर्ष में पंचायत की व्यवस्था अत्यन्त प्राचीन व्यवस्था है। प्राचीन काल में राजा अपनी न्याय-व्यवस्था को इन्हीं पंचायतों के द्वारा जन-जन तक पहुँचाया करते थे। एक गाँव की पंचायत के ऊपर अनेक गाँवों की खंड-पंचायत हुआ करती थी। यदि स्थानीय पंचायत सही निर्णय नहीं कर पाती या उसका निर्णय किसी को मान्य नहीं होता, तो वह मामला ‘खण्ड-पंचायत के समक्ष लाया जाता था। ‘खण्ड-पंचायत’ के ऊपर पूरे जिले की ‘सर्व ग्राम पंचायत’ होती थी।

उपसंहार :

ग्राम पंचायत का लक्ष्य सही और समय पर निष्पक्ष फैसला करना है लेकिन आजकल की पंचायतो में मनमाना व्यवहार होने लगा है। ग्राम पंचायतें भी आजकल राजनीति का मैदान बन गई है। सभी अपने लाभ के बारे में सोचकर निर्णय सुनाते हैं, वास्तव में यह बहुत चिन्ता का विषय है।

ग्राम पंचायत पर निबंध

गाँवों के लोगों की दिन-प्रतिदिन की आवश्यकताओं की वस्तुओं की पूर्ति को लक्ष्य करते हुए कुछ उपयोगी वस्तुओं को स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके उत्पादित करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश में पंचायतीराज संस्थाओं द्वारा देश में पंचायत उद्योग’ के नाम से छोटे-मोटे उद्योगों की स्थापना का सूत्रपात किया गया.

प्रदेश में पंचायतों को आर्थिक सम्बल प्रदान करने, उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति प्रदान करने तथा गाँव में औद्योगिक विकास को उचित दिशा देने के उद्देश्य से एक मौलिक एवं देशभर में अपने ढंग का एक अभिनव प्रयोग ‘पंचायत उद्योग’ के नाम से प्रारम्भ किया गया है

प्रदेश के गाँवों में बेरोजगार युवकों को रोजगार प्रदान करने, प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों की अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा देने तथा पंचायतों को आय के निजी स्रोत प्रदान करने एवं ग्रामीण बेरोजगारी की स्थिति पर प्रभावी नियन्त्रण करने आदि की दिशा में पंचायत उद्योगों का बहुत कुछ योगदान रहा है.

पंचायत उद्योगों का सूत्रपात ।

उत्तर प्रदेश में पंचायत उद्योगों का प्रारम्भ प्रयोग के तौर पर ‘वर्ष 1961 में किया गया और इसके अन्तर्गत सर्वप्रथम लखनऊ में ‘चिनहट पंचायत उद्योग’ प्रयोग के स्तर पर स्थापित किया गया. चिनहट पंचायत उद्योग प्रयोग के तौर पर विकास अन्वेषणालय लखनऊ (वर्तमान में विकास अन्वेषण एवं प्रयोग प्रभाग, राज्य नियोजन संस्थान, नियोजन विभाग, उप्र.) द्वारा प्रारम्भ किया गया था और इसकी स्थापना के अगले दो वर्षों में प्रदेश के विभिन्न जनपदों में 11 पंचायत उद्योगों को स्थापित किया गया.

इन पंचायत उद्योगों ने काफी सफलतापूर्वक कार किया. अपने उद्देश्यों की पूर्ति में इन्हें पर्याप्त रूपेण सफल पाए जाने पर वर्ष 1963 में इन सभी 11 पंचायत उद्योगों के प्रवन्धन और इसकी व्यवस्था का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व पंचायतराज विभाग को सौंप दिया गया.

साथ ही साथ इस प्रकार के उद्योगों को पूरे प्रदेश में स्थापित करने के लिए योजना तैयार की गई. इसके फलस्वरूप प्रदेश में जिला स्तर के साथ साथ विकासखण्ड स्तर पर भी पंचायत उद्योगों की स्थापना की गई जिससे इनकी संख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई. पंचायत उद्योगों को उत्पादन की दृष्टि से अधिक उपयोगी बनाने तथा उनकी आय में पर्याप्त वृद्धि कराने के उद्देश्य को लेकर कालान्तर में प्रत्येक जिला मुख्यालय पर ‘केन्द्रीय प्रिटिंग प्रेसो’ की स्थापना का भी निर्णय लिया गया.

इन प्रिटिंग प्रेसो के माध्यम से विभिन्न सरकारी विभागों में होने वाले छपाई के कार्य को कराए जाने का प्रावधान भी किया गया. इसके अन्तर्गत वर्तमान में प्रदेश में 47 केन्द्रीय प्रिंटिंग प्रेस स्थापित की जा चुकी है तथा इनमें और अधिक वृद्धि की कोशिश की जा रही हैं. वर्तमान में प्रदेश के विभिन्न जनपदों और विकासखण्डों में 806 पंचायत उद्योग सफलतापूर्वक कार्यरत् ।।

उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश का पंचायतीराज व्यवस्था की स्थापना में पूरे देश में एक अग्रणी स्थान है जहाँ दिसम्बर 1947 में ‘यू.पी. पंचायतराज एक्ट’ पास किया गया था और 15 अगस्त, 1949 से प्रदेश में 35 हजार चुनी हुई ग्राम पंचायतों ने विधिवत् रूप से अपने दायित्वों का निर्वहन प्रारम्भ कर दिया था.

वर्ष 1961 में प्रदेश में पंचायतीराज व्यवस्था को और अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश क्षेत्र समिति एवं जिला परिषद् अधिनियम पास करके यहाँ त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था लागू कर दी गई थी.

देश में पंचायतीराज व्यवस्था के पुनर्गठन के उद्देश्य से 73वें संविधान संशोधन किए जाने के फलस्वरूप पंचायतीराज व्यवस्था को अधिक प्रभावी और ग्रामीण विकास को विशेष गति देने के उद्देश्य से अधिनियम में किए गए प्रावधानों के अनुरूप प्रदेश के दोनों अधिनियमों में यथा आवश्यक एवं यथावांछित संशोधन एवं परिवर्द्धन किया गया है, वर्तमान में प्रदेश में 52028 ग्राम पंचायतें 813 क्षेत्र पंचायतें तथा 70 जिला पंचायतें कार्यरत हैं जिनमें 7.5 लाख के करीब चुने हुए पंचायत प्रतिनिधि हैं जिनमें से 2.25 लाख तो महिला प्रतिनिधि हैं जो प्रदेश में पंचायतीराज व्यवस्था के सफल क्रियान्वयन के लिए विशेष रूप से उत्तरदायी है, वर्तमान में पंचायतों को ग्रामीण विकास के विभिन्न विकास कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने हेतु काफी बड़ी मात्रा में सरकार द्वारा धनराशि उपलब्ध कराई जा रही है.

इसके अतिरिक्त पंचायतों को कराधान के माध्यम से भी विकास कार्यों हेतु वित्तीय संसाधनों को जुटाने के लिए अधिकृत किया गया है.

इसके साथ ही साथ पंचायते अपनी आय को बढ़ाने के लिए कुछ आर्थिक गतिविधियाँ भी प्रारम्भ कर सकती हैं, जिनके सम्बन्ध में उन्हें यु.पी. पंचायतराज अधिनियम, 1947 के अन्तर्गत प्रारम्भ से ही व्यवस्था निर्धारित है.

इसी व्यवस्था के क्रम में उत्तर प्रदेश में पंचायत उद्योग’ की अवधारणा का प्रादुर्भाव हुआ और वर्ष 1961- 6. पंचायतीराज अधिनियम की धारा 30 के अन्तर्गत संयुक्त समितियां स्थापित करके प्र में पंचायत उद्योगों द्वारा कारोबार करना प्रारम्भ किया गया और उत्तरोत्तर उनके का में वृद्धि होती गईवर्ष 1976 में पंचायत उद्योगों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से प्रदः ।

पंचायत उद्योगों में निर्मित वस्तुओं को समस्त सरकारी विभागों तथा अर्धसरकारी प्रतिनों को पंचायत उद्योगों से सामान क्रय करने के लिए टेन्डर या कोटेशन आदि से छूट प्रदा की गई. इसके फलस्वरूप इनको अपने कारोबार में और भी अधिक सफलता प्राप्त है

पंचायत उद्योगों की स्थापना के उद्देश्य

प्रदेश में पंचायत उद्योगों की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास की अवधारणा की।
ध्यान में रखते हुए विविध उद्देश्यों को लेकर की गई. इनमें से प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-

1. ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के साथ-साथ उद्योग आधारित अर्थव्यवस्था को विकसित करने के प्रयास करना.
2. प्रदेश में ग्राम पंचायतों के अन्तर्गत पंचायत उद्योगों की स्थापना से पंचायतों की आय
के निजी स्रोत विकसित कराकर उनकी अर्थव्यवस्था को नई दिशा प्रदान करना.
3. स्थानीय कच्चे माल, कार्य-कौशल एवं दस्तकारी का उपयोग कर ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ाना.
4. ग्रामीण जनता को तुलनात्मक रूप से सस्ती दरों पर उनकी जरूरत का सामान उपलब्ध कराना.
5. स्थानीय कुशल एवं अकुशल कारीगरों, दस्तकारों तथा युवकों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर ग्रामीण बेरोजगारी कम करने में सहायता करना,
6. ग्रामीण पंचायतों को आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी बनाने का प्रयास करना.

पंचायत उद्योगों में उत्पादित वस्तुएं
प्रदेश में स्थापित किए गए पंचायत उद्योगों द्वारा दिन-प्रतिदिन की घरेलू काम में आने वाली विविध वस्तुओं का मुख्य रूप से उत्पादन किया जाता है. इसके अतिरिक्त कार्यालयों से सम्बन्धित फर्नीचर, छपाई प्रेस तथा कृषि कार्य में काम आने वाली वस्तुएं भी तैयार कराई जाती हैं. इन उद्योगों में उत्पादित की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं का विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

1. स्टील तथा लकड़ी की कुर्सी, मेज, अलमारी, रैक, डेस्क, बुक केसिस आदि.
2. लकड़ी के तख्त, टावल स्टैण्ड, पलंग, चकला वेलन, खिड़की, चारपाई के पाए, सोफासेट आदि
3. नाव, बैलगाड़ी, डनलप की वाड़ी, लोहे के कुदाल, खुरपा, फावड़ा, पावर प्रेसर आदि.
4. सीमेन्ट के शौचालय सैट, पाइप, नांद, सीमेन्ट के नाक, पानी की टंकी, व आदि.
5. ऊनी कम्बल, हैण्डलूम के कपड़े, थैले, दरी, टाट, निवाड़, टोकरी, चटाई आदि.
6. पत्थर की मिलेट, ब्लैक बोर्ड, चाक, फाइल कवर लकड़ी के खिलौने आदि.
7. छपाई प्रेम, साबुन, कोल्हू तेल की घानी, जूते, चप्पल आदि,

सरकार द्वारा प्रोत्साहन

प्रदेश में पंचायत उद्योगों को विकसित करने और उन्हें प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से प्रदेश सरकार द्वारा समय-समय पर विशेष उपाय और प्रयास भी किए जाते रहे हैं, पंचायत उद्योगों को सरकार द्वारा आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराई जाती रही है.

वर्ष 1976 में तो सरकार द्वारा पंचायत उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं को समस्त सरकारी एवं अर्द्धसरकारी विभागों को पंचायत उद्योगों से क्रय करने के लिए टेण्डर या कोटेशन आदि माँगने से छूट प्रदान कर दी थी अर्थात् प्रदेश सरकार के सरकारी एवं अर्द्धसरकारी विभाग पंचायत उद्योगों से सीधे ही उनके द्वारा बनी कोई भी वस्तु बिना किसी औपचारिकता के सीधे खरीद सकते थे, सरकार की इस नीति से पंचायत उद्योगों को काफी बढ़ावा मिला और धीरे धीरे इनके उत्पादन, विक्री तथा लाभ में शनैःशनैः वृद्धि भी अंकित की गई, किन्तु देखने में यह भी आया है कि पंचायत उद्योगों में जितनी प्रगति होनी चाहिए थी, उतनी नहीं हुई.

भ्रष्टाचार यहां भी पनपा जिसके फलस्वरूप उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता में गिरावट आयी. अतः इनकी विश्वसनीयता में कमी आई, आवश्यक है कि इस प्रवृत्ति की सम्पूर्ण रूप से रोका जाए।

अन्यथा जिस उद्देश्य के लिए इनकी स्थापना की गई थी, उनका पूरा होना असम्भव नहीं तो वहुत कठिन अवश्य होगा.

 

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Written by

Romi Sharma

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