हिंदी वर्णमाला का मतलब Hindi Alphabets. english की तरह हिंदी में भी Alphabets होती है जिनकी वजह से हम उस भाषा को बोल और लिख सकते है आईये जानते है हिंदी वर्णमाला या hindi Varnamala क्या होती है और कैसे उसे परियोग करते है।
Hindi Alphabets & Hindi Varnamala
परिभाषा- भाषा अभिव्यक्ति का एक ऐसा समर्थ साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को दूसरों पर प्रकट कर सकता है। और दूसरों के विचार जाना सकता है।
संसार में अनेक भाषाएँ हैं। जैसे, हिन्दी, संस्कृत,अंग्रेजी, बैंगला , गुजराती, पंजाबी, उर्दू, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, फ्रेंच,चीनी, जर्मन
भाषा के प्रकार- भाषा दो प्रकार की होती है-
1. मौखिक भाषा।
2. लिखित भाषा।
आमने सामने बैठे व्यक्ति परस्पर बातचीत करते हैं अथवा कोई व्यक्ति भाषण आदि द्वारा अपने विचार प्रकट करता है तो उसे भाषा का मौखिक रूप कहते हैं।
जब व्यक्ति किसी दूर बैठे व्यक्ति को पत्र द्वारा अथवा पुस्तकों एवं पत्रपत्रिकाओं में लेख द्वारा अपने विचार प्रकट करता है तब उसे भाषा का लिखित रूप कहते हैं।
व्याकरण
मनुष्य मौखिक एवं लिखित भाषा में अपने विचार प्रकट कर सकता है और करता रहा है किन्तु इससे भाषा का कोई निश्चित एवं शुद्ध स्वरूप स्थिर नहीं हो सकता। भाषा के शुद्ध और स्थायी रूप को निश्चित करने के लिए नियमबद्ध योजना की आवश्यकता होती है और उस नियमबद्ध योजना को हम व्याकरण कहते हैं।
परिभाषा-
व्याकरण वह शास्त्र है जिसके द्वारा किसी भी भाषा के शब्दों और वाक्यों के शुद्ध स्वरूपों एवं शुद्ध प्रयोगों का विशद ज्ञान कराया जाता है।
भाषा और व्याकरण का संबंध- कोई भी मनुष्य शुद्ध भाषा का पूर्ण ज्ञान व्याकरण के बिना प्राप्त नहींकर सकता। अतः भाषा और व्याकरण का घनिष्ठ संबंध हैं वह भाषा में उच्चारण शब्द प्रयोग, वाक्यगठन तथा अर्थों के प्रयोग के रूप को निश्चित करता है। व्याकरण के विभाग- व्याकरण के चार अंग निर्धारित किये गये हैं
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1. वर्णविचार।
2. शब्दविचार।
3. पदविचार।
4. वाक्य विचार।
हिन्दी भाषा में प्रयुक्त सबसे छोटी ध्वनि वर्ण कहलाती है। जैसे अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदि।
वणों के समुदाय को ही वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में 44 वर्ण हैं। उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी वर्णमाला के दो भेद किए गए हैं
1. स्वर
2. व्यंजन
स्वर
जिन वर्गों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता हो और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक हों वे स्वर कहलाते है। ये संख्या में ग्यारह अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। उच्चारण के समय की दृष्टि से स्वर के तीन भेद किए गए हैं
1. हस्व स्वर।
2. दीर्घ स्वर
3. प्छत स्वर
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1. हस्व स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में कम-सेकम समय लगता हैं उन्हें नव स्वर कहते हैं। ये चार हैं- अ, इ, उ, ऋ। इन्हें मूल स्वर भी कहते
2. दीर्ष स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में नस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्थ स्वर कहते हैं। ये हिन्दी में सात हैं- आ, , ऊ, , ऐ, ओ, विशेष- दीर्घ स्वरों को नस्व स्वरों का दीर्घ रूप नहीं समझना चाहिएयहाँ दीर्घ शब्द का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया गया है।
3. प्ठत स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने में किया जाता है।
ई टी खीर
उ १ गुलाब।
ऊ भूल
ऋ णु तृण
४ केश
ऐ के है।
ओ चोर
औ री चौखट
अ वर्ण स्वरकी कोई मात्रा नहीं होती। व्यंजनों का अपना स्वरूप निम्नलिखित हैं
क् न् छ ज् म् त् प्ध आदि।
अ लगने पर व्यंजनों के नीचे का । (हल) चिह्न हट जाता है। तब ये इस प्रकार लिखे जाते हैं
क च छ ज झ त थ ध आदि।
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जिन वर्गों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है वे व्यंजन कहलाते हैं। अर्थात व्यंजन बिना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जा सकते। ये संख्या में 33 हैं। इसके निम्नलिखित तीन भेद हैं
1. स्पर्श
2. अंतःस्थ
3. ऊष्म
1. स्पर्श
इन्हें पांच वर्षों में रखा गया है और हर वर्ग में पाँचपाँच व्यंजन हैं। हर वर्ग का नाम पहले वर्ग के अनुसार रखा गया है जैसे
कवर्ग – क् ख ग
चवर्ग – ब् लू जू झ
टवर्गद – टू डू द् ण् (इ)
तवर्गत् – धु दं ध न
पवर्ग- फ् ब् म् म्
2. अंतःस्य
ये निम्नलिखित चार हैं
य , र , ल , व्
3. ऊष्म
ये निम्नलिखित चार हैं
श , ष , स , ह
वैसे तो जहाँ भी दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, किन्तु देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूपपरिवर्तन हो जाने के कारण इन तीन को गिनाया गया है। ये दो-दो व्यंजनों से मिलकर बने हैं। जैसे-, ज्ञान, त्र=त्र नक्षत्र कुछ लोग म् और न् को भी हिन्दी वर्णमाला में गिनते हैं, पर ये संयुक्त व्यंजन हैं।
अतः इन्हें वर्णमाला में गिनना उचित प्रतीत नहीं होता।
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