हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाये है त्योहारों का महत्व पर निबंध। भारतवर्ष में हर दिन एक त्योहार होता है और इसीलिए त्योहारों का हमारे जीवन में बहुत अहमियत है तो आईये जानते है त्योहारों का महत्व क्यों है Essay on importance of festivals in life in Hindi की जानकारी जिससे आपको निबंध लिखने में बहुत मदद मिलेगी ।
त्योहारों का महत्व पर निबंध
भारतवर्ष में हर दिन एक त्योहार होता है। इन त्योहारों के बिना तो हम भारतीय अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। त्योहारों से हमारे जीवन में परिवर्तन, उमंग, उल्लास तथा खुशी का संचार होता है। प्रत्येक त्योहार अपने आदर्श की छाप हमारे जीवन में छोड़ता है, जिनसे मानव-जीवन समृद्ध होता है। इसी समृद्धता के कारण ही प्रत्येक धर्म के लोग अपने त्योहारों को हर्षोल्लास से मनाता है। ये त्योहार प्रकृति, पूर्वजों के प्रेरणादायक अतीत, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परम्पराओं तथा राजनीति के आधार पर बनाए गए हैं।
ये त्योहार भारतीय संस्कृति का दर्पण है। धार्मिक त्योहार यदि एक वर्ग विशेष के लोग मनाते हैं, तो राष्ट्रीय त्यौहार जैसे-स्वतन्त्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस तथा महापुरुषों की जयन्तियाँ जैसे गाँधी जयन्ती, शिक्षक दिवस, बाल-दिवस आदि सभी भारतीय मिल-जुलकर मनाते हैं।
यदि होली रंगों का त्योहार है, तो दीपावली रोशनी का त्योहार है। ईद यदि भाईचारे का त्योहार है तो बड़ा दिन बलिदान का पर्व है। वास्तव में हर त्योहार का अपना ही महत्व है और वे हमें एक प्रेरणा देकर जाते हैं। ये उत्सव राष्ट्र एवं समाज के प्राण कहलाते हैं।
इनको सच्ची तथा निःस्वार्थ भावना के साथ मनाया जाना ही राष्ट्र तथा समाज के लिए हितकारी होता है।
Essay on importance of festivals in life in Hindi
हमारा जीवन ऐसे सांसारिक चक्र में बंधा है, जिसमें काफी ऊंच-नीच आती | रहती हैं। सुखद और दुःखद क्षणों का अनुभव हमारे लिए अनिवार्य है। पर्व-त्योहार हमारे जीवन के अच्छे पहलुओं का सुखद स्मरण कराते हैं। ये हमारे उन सपनों का साकार रूप और प्रतीक हैं, जिनके लिए हम सब संघर्षरत हैं। यही कारण है कि, हम इन्हें उत्सवी वातावरण में पूरी धूमधाम से मनाते हैं। एक-दूसरे से मिलते हैं, शुभकामनाओं और बधाइयों का आदान-प्रदान करते हैं। जीवन का जश्न शायद इसे ही कहते हैं।
पर्व-त्योहार एक प्रकार से हमारे और हमारे पूर्वजों के बीच संपर्क सूत्र का काम भी करते हैं। अपने जमाने में वे भी इन पर्व-त्यौहारों को मनाते थे। पर्व-त्योहार पूर्व और वर्तमान पीढ़ी को एक-दूसरे से जोड़ने वाली महत्वपूर्ण कड़ी हैं। परंपराएं, रीति-रिवाज तथा अनुष्ठान हमें अतीत की दुर्लभ ऐतिहासिक जानकारी प्रदान करते हैं। वे हमें मानव जाति के नृवैज्ञानिक विकास क्रम को जानने और समझने में मदद करते हैं। इतना ही नहीं, वे हमारी आस्थाओं और विश्वासों के अपरिहार्य संरक्षक भी हैं। अगर पर्व-त्योहार न होते तो मानव-विकास की समूची प्रक्रिया प्रभावित होती।
लेकिन, विगत कुछ वर्षों में पर्व-त्योहारों की पवित्रता पर आंच आई है। इनका आयोजन आडंबरपूर्ण हो गया है। सादगी और गरिमा का स्थान दिखावे ने ले लिया है। इनके बहाने लोग अपने पैसे और रुतबे का भद्दा प्रदर्शन करने लगे हैं। इनके माध्यम से लोग अपने पड़ोसी या संबंधी को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, चाहे उसमें कितना ही पैसा क्यों न खर्च करना पड़े! इन अवसरों पर उपहारों का आदान-प्रदान करना किसी प्रेमवश नहीं, बल्कि दिखावे के वश ही होता है। इन समारोहों में गरीब-अमीर के बीच का अंतर अच्छी तरह मुखर होकर सामने आता है।
इसे देख कर ऐसा लगता है मानो पर्व-त्योहार तो संपन्न और विपन्न के बीच विभाजक-रेखा खींचने के लिए ही आयोजित किए जाते हैं। इससे एक ऐसी अप्रिय और कटु प्रतिद्वंद्विता का जन्म हुआ है, जो आगे चल कर समाज के लिए काफी हानिकारक सिद्ध हो सकती है। अपने पड़ोसी की देखा-देखी ऐसे आयोजनों के लिए वे भी झूठा दिखावा करने लगे हैं, भले ही बाद में भूखों मरने की नौबत आ जाए। इस प्रकार के आडंबरपूर्ण आयोजनों से जहां राष्ट्रीय बचत में कमी आती है, वहीं महंगाई भी बढ़ती है।
हमारा देश त्योहारों का देश माना जाता है। लेकिन उनकी ये हालत देख कर तो यही लगता है कि इन्हें मनाना ही बंद कर देना चाहिए। तब समाज में अधिक समरूपता आ सकेगी। पर यह भी तो हो सकता है कि इन पर्व-त्योहारों को इनकी भावना और गरिमा के साथ बिना किसी आडंबर के मनाया जाए। इनका असली आनंद भी हमें तभी मिल सकेगा और इनमें निहित उद्देश्य भी पूरे हो सकेंगे।
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