हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाया हु गंगा में प्रदूषण पर निबंध । जैसा की हम सब जानते है गंगा नदी बहुत प्रदूषित हो चुकी है इसको साफ करने को लेकर बहुत से काम हुवे लेकिन कोई फर्क नहीं हुवा। आईये पढ़ते है Essay on Ganga Pollution की जानकारी जिससे आपको निबंध लिखने में बहुत मदद मिलेगी ।
गंगा में प्रदूषण
भारतवासियों के लिए गंगा मात्र एक नदी ही नहीं है, वरन् यह तो हमारी आस्था, विश्वास तथा श्रद्धा की प्रतीक है। गंगा को तो हम भारतीय ‘गंगा माँ’ कहकर पुकारते हैं। भारतीय तो इस नदी को मोक्ष का द्वार मानते हैं। तभी तो हम भारतीय इसके जल को बोतलों आदि में बंद करके रख देते हैं तथा किसी भी अपवित्र स्थान को, कपड़े को तथा मनुष्य को पवित्र करने के लिए इसकी कुछ बूंदे छिड़क देते हैं।
मृतक के मुँह में इसकी कुछ बूंदे डालने से वह सीधा स्वर्ग को जाने वाला मान लिया जाता है। लेकिन दुर्भाग्यवश आज यही गंगा प्रदूषित होती जा रही है। लगता है किसी दिन यह गंदे नाले का रूप ही धारण कर लेगी। इस प्रदूषण के कुछ कारण है।
पहला कारण । है अनेक औद्योगिक नगर जैसे बनारस, कानपुर, कोलकाता इत्यादि गंगा के तट पर बसे हैं। इन उद्योगों का प्रदूषित पानी, कूड़ा-कचरा, धुंआ सब गंगा । में ही मिल जाता है।
दूसरा कारण है कि कुछ नगर जो गंगा के तट पर बसे हैं, उनका मल-मूत्र सभी कुछ गंगा के पानी में मिल जाता है। तीसरा तथा सबसे प्रमुख कारण है कि बरसो से चली आ रही धार्मिक आस्था के कारण मृतकों की अस्थियाँ तथा राख आदि इसी में बहा दी जाती हैं। बाढ़ आदि के समय मरे हुए जानवर, लावारिस बच्चे भी इसी गंगा के हवाले कर दिए जाते हैं। अब भला गंगा को प्रदूषित होने से कौन बचा सकता है। सभी लोग पूजा-पाठ की सामग्री भी तो इसी में विसर्जित कर देते हैं। सरकार की ओर से अनेक बार गंगा का शुद्धिकरण कार्यक्रम चलाया जाता है, लेकिन फिर से वही गंदगी इसे प्रदूषित कर देती है। हम सबके पारस्परिक सहयोग द्वारा ही गंगा को शुद्ध रखा जा सकता है। गंगा तो हमारी राष्ट्रीय धरोहर है, हमारी माता है, हम सबको इसकी देखभाल करनी चाहिए।
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गंगा में प्रदूषण
नदियाँ जीवित प्राणियों को प्रकृति के द्वारा दिए गए उपहारों में से एक हैं। नदियों का धरती पर वही स्थान है जो मानव शरीर में धमनियों का है। धमनियाँ खून को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचाती हैं तो नदियाँ जल को सभी जीवों के लिए सुलभ बनाती हैं। कल-कल करती नदी की धारा का दृश्य हमें सुख और संतोष प्रदान करता है। जीव-समुदाय इसके जल को पीकर अपनी प्यास बुझाता है।
इससे फ़सल सींचे जाते हैं। मनुष्य इस जल से नहाने-धोने का कार्य करते हैं। आधुनिक युग में नदी जल को रोककर बाँधों का निर्माण किया गया है जो जल की आवश्यकता पूर्ति के साथ-साथ विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता को भी पूर्ण करता है। इन सब बातों को देखते हुए नदियों की सुरक्षा पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।
नदी जल की निर्मलता को बनाए रखने की चेष्टा की जानी चाहिए। नदियों में प्रदूषण को कम करने के लिए चहुँमुखी प्रयास करने चाहिए।
Essay on ganga pollution in hindi
गंगा भारतीय जन-मानस बल्कि स्वयं समूची भारतीयता की आस्था का जीवन्त प्रतीक है, मात्र एक नदी नहीं। हिमालय की गोद में पहाड़ी घाटियों से नीचे उतर कल्लोल करते हुए मैदानों की राहों पर प्रवाहित होने वाली गंगा पवित्र तो है ही, वह धीरज बंधा। लाईन तेज-तेज सरक रही थी, आखिरकार मेरा नम्बर आ गया और मैं टिकट लेकर प्लेटफार्म की ओर चल दिया।
प्लेटफार्म पर बहुत-ही भीड़ थी और धक्कम धक्का हो रहा था, सामान लादे स्वयं इधर-उधर भागते और यात्रियों के सामान को ले जाते कुली हत्थे, ठेले, खोमचे वालों की बेसुरी पुकार और अथाह शोर। उस भीड़ और शोर से बचते-बचते निकल रेलवे पुल को पार कर आखिर उस प्लेटफार्म पर पहुंचा जहाँ हावड़ा मेल आ रही थी। उस प्लेटफार्म का दृश्य तो और भी देखने लायक था। कई जगहों पर ब्रेकवैन आदि में लादे जाने वाले सामान के ढेर लगे थे, एक स्थान को डाक-थैलों आदि ने घेर रखा था।
इधर-उधर बैंचो पर सामान सहित यात्री बैठे हुए ट्रेन के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। कुछ कुली गाड़ी पर सवार होने के इच्छुकों से भाव-ताव करते सीट दिला देने के पक्के वायदे भी कर रहे थे। मैंने सिर उठाकर देखा कि कहीं बैठने को या खड़े होने को जगह मिल जाये पर प्लेटफार्म पर जगह शायद ही बची हो। खड़े होने की कोशिश में बार-बार किसी आने-जाने वाले से टकरा कर गिरते-गिरते बचा। तभी किसी ने जोर से कहा-वह आ गई ट्रेन। देखा, सचमुच ट्रेन आ रही थी।
बस फिर क्या था ? प्लेटफार्म पर तो जैसे घमासान युद्ध मच गया। सामान जल्दी से लादकर आगे कुली और पीछे यात्री इधर-से-उधर भागने लगे। मैं भी प्लेटफार्म पर लग रही ट्रेन की तरफ भागा; पर भीड़ के रेले ने धकेलकर मुझे बहुत पीछे फेंक दिया। आखिरकार किसी तरह मैं उस डिब्बे के पास पहुँचा जिसमें हमारे रिश्तेदार आ रहे थे। मैं उन्हें लेकर घर पर आ गया।
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