हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Vriksharopan Par Nibandh / essay in hindi पर पुरा आर्टिकल।पेडों को बहुत तेज़ी से काटा जा रहा है इसलिए वृक्षारोपण करना बहुत जरुरी है इसलिए हम आपके लिए वृक्षारोपण पर निबंध की जानकारी देंगे ताकि आप इस विषय पर अच्छे से समझ सके। आइये पढ़ते है वृक्षारोपण पर निबंध Vriksharopan Par Nibandh in Hindi
वृक्षारोपण पर निबंध
प्रस्तावना :
वृक्षरोपण का शाब्दिक अर्थ है-‘वृक्षों को उगाना’ । प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण अत्यावश्यक है। मानव जीवन को सुखी तथा समृद्ध बनाए रखने के लिए वृक्षों का बहुत महत्व है। वृक्षों का महत्व : सभ्यता के विकास से पूर्व मानव वृक्षों पर या वक्षों से ढकी कंदराओं में ही रहा करता था तथा फल-फूल खाकर ही जीवित रहता था। वृक्षों की छाल को तन ढकने के लिए प्रयोग करता था।
सर्दियों में पत्तियों के बिस्तर पर ही सोता था। वह इन वृक्षों को देवता के रूप में आराधना भी करता था। उस समय वृक्ष ही सर्दी, गर्मी, बरसात में उसकी माता-पिता के समान रक्षा करते थे। यह परम्परा आज भी जीवित है। आज भी हम पीपल, तुलसी बड़, केला इत्यादि के वृक्षों की पूजा करते हैं। इसीलिए पेड़ों को काटना हमारे लिए नुकसानदायक भी है और पाप करने वाला भी है।
औद्योगिकरण-पेड़ों के विनाश का कारण :
शहरीकरण तथा औद्योगिकरण | की बढ़ती हुई प्रवृत्ति के कारण ही आज शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों से भी पेड़ विलीन होते जा रहे हैं। आज शहरों में लहलहाते खेत तथा हरे-भरे पौधों के स्थान पर आसमान छूती इमारतें बन चुकी हैं। हर जगह उद्योग स्थापित किए जा रहे हैं और पेड़ों को बड़ी निर्दयता से काटा जा रहा है।
आज यदि थकाहरा पथिक दो क्षण रुककर विश्राम करना चाहे तो उसके लिए कोई छायादार पेड़ ही नहीं बचा है। वायु में ऑक्सीजन की कमी होती जा रही है तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। इससे लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है तथा श्वाँस रोग, अनिद्रा रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, नेत्र रोग इत्यादि बढ़ रहे हैं। ईधन के दाम बढ़ रहे हैं क्योंकि पेड़ कम हो रहे हैं। भूमि की उर्वरता भी कम हो रही है इसलिए अनाज भी कम पैदा हो रहा है।
वन-महोत्सव :
वृक्षों की कमी तथा उनके दुष्प्रभाव को देखते हुए सन् 1950 में भारत सरकार ने ‘वन-महोत्सव’ की योजना प्रारम्भ की थी।जगह-जगह नए वृक्ष लगाने का काम बहुत तीव्रगति से प्रारम्भ किया गया। लेकिन 1950 के वन-महोत्सव की इस योजना में शिथिलता होने लगी और लोगों ने इसमें उत्साह दिखाना बंद कर दिया।
वृक्षारोपण :
वृक्षों के महत्व को ध्यान में रखते हुए आज भारत-सरकार की ओर से वृक्षारोपण का कार्य-स्थानीय निकायों को सौंपा गया है। 12 नवम्बर, सन् 1976 को केन्द्र सरकार ने प्रत्येक राज्य सरकार को यह लिखित संदेश भेज दिया कि केन्द्र सरकार की आज्ञा के बिना किसी भी राज्य में जंगलों की कटाई व सफाई नहीं की जाएगी। तभी से लेकर वृक्षारोपण का यह कार्य प्रत्येक विद्यालय में भी जुलाई के महीने में होता है। बच्चे अपने घरों में तथा स्कूलों में वृक्षारोपण का कार्य करते हैं तथा अध्यापक भी इस कार्य में उनका साथ देते हैं।
निष्कर्ष :
वृक्ष ही हमारे देश की आर्थिक, सामाजिक, नैतिक तथा धार्मिक समृद्धि के मूल आधार है इसीलिए वन-सम्पदा की रक्षा करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है। सूखे तथा बाढ़ जैसी समस्याओं पर भी वन संरक्षण तथा वृक्षारोपण द्वारा ही विजय प्राप्त की जा सकती है।
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Vriksharopan Par Nibandh in Hindi
वक्षारोपण का शाब्दिक अर्थ है – वृक्ष लगाकर उन्हें उगाना। इसका प्रयोजन है प्रकृति के सन्तुलन को बनाए रखना। मानव के जीवन को सुखी, समृद्ध व सन्तुलित बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण का अपना विशेष महत्त्व है। मानव सभ्यता का उदय तथा इसका आरम्भिक आश्रय भी प्रकृति अर्थात् वन-वृक्ष ही रहे हैं। मानव को प्रारम्भ से प्रकृति द्वारा जो कुछ प्राप्त होता रहा है उसे निरन्तर प्राप्त करते रहने के लिए वृक्षारोपण अति आवश्यक है।
मानव सभ्यता के उदय के आरम्भिक समय में वह वनों में वृक्षों पर या उनसे ढकी कन्दराओं में ही रहा करता था। वह (मानव) वृक्षों से प्राप्त फल-फूल आदि खाकर या उसकी डालियों को हथियार के रूप में प्रयोग करके पशुओं को मारकर अपना पेट भरा करता था। वृक्षों की छाल को वस्त्रों के रूप में प्रयोग करता था। यहाँ तक कि ग्रन्थ आदि लिखने के लिए जिस सामग्री का प्रयोग किया जाता था वे भोज-पत्र अर्थात् विशेष वृक्षों के पत्ते ही थे।
मानव सभ्यता के विकास के साथ जब मानव ने गुफाओं से बाहर निकल कर झोंपड़ियों का निर्माण आरम्भ किया तो उसमें भी वृक्षों की शाखाएँ व पत्ते ही काम आने लगे। आज भी जब कुर्सी, मेज, सोफा सैट, रैक आदि का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। ये भी मुख्यतः लकड़ी से ही बनाए जाते हैं। अनेक प्रकार के | फल, फूल और औषधियों भी वृक्षों से ही प्राप्त होती हैं। वर्षा जिससे हमें जल व पेय जल प्राप्त होते हैं वह भी प्रायः वृक्षों के अधिक होने पर ही निर्भर करती । है। इसके विपरीत यदि हम वृक्ष-शून्य की स्थिति की कल्पना करें तो उस स्थिति । में मानव तो क्या समूची जीव-सृष्टि की दशा ही बिगड़ जाएगी। इस स्थिति से | बचने के लिए वृक्षारोपण करना अत्यन्त आवश्यक है।
आजकल नगरों तथा महानगरों में छोटे बड़े उद्योग-धन्धों की बाढ़-सी आती जा रही है। इनसे धुआँ, तरह तरह की विषैली गैसें आदि निकलकर वायुमण्डल में फैलकर हमारे पर्यावरण में भर जाते हैं। पेड़-पौधे इन विषैली गैसों को वायुमण्डल में फैलने से रोककर पर्यावरण को प्रदूषित होने से रोकते हैं। यदि हम चाहते हैं कि हमारी यह धरती प्रदूषण रहित रहे तथा इस पर निवास करने वाला मानव सुखी व स्वस्थ बना रहे तो हमें पेड़ पौधों की रक्षा तथा उनके नवरोपण की ओर ध्यान देना चाहिए।
Vriksharopan Par Nibandh in Hindi
वृक्ष प्रकृति की अनुपम देन हैं। किसी क्षेत्र विशेष में अनेक वृक्षों का समूह वन कहलाता है। किसी भी देश में वन-संपदा का बेहद महत्त्व होता है। वन देश की सुंदरता बढ़ाते हैं। इनसे देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। वनों से जलवायु पर भी असर पड़ता है। ये देश की सुरक्षा और समृद्धि में भी सहायक होते हैं।
वनों की इस महत्ता के कारण ही पुराने जमाने से हमारे देश में वृक्षारोपण पर बल दिया जाता रहा है। उनकी पूजा की जाती रही है। पुराणों के अनुसार, एक वृक्ष लगाने का उतना ही पुण्य मिलता है जितना दस गुणवान पुत्रों के सुयश से।
बड़े ही खेद का विषय है कि हम वनों के इस महत्त्व को भूलते जा रहे हैं। इसीलिए हम वनों को काटते जा रहे हैं। वहाँ मैदान बनाते जा रहे हैं। बस्तियाँ बसाई जा रही हैं। इसका सबसे बुरा प्रभाव यह हो रहा है कि प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने लगा है।
वनों से हमें अनेक लाभ होते हैं। इनसे हमें उद्योगों के लिए बहुत-सी उपयोगी सामग्री मिलती है। जलाने के लिए ईंधन मिलता है। वनों से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। वनों में अनेक पशु-पक्षियों को शरण मिलती है। सिंह, हाथी, चीते, हिरण आदि जानवर वन में ही स्वच्छंद विचरण करते हैं।
वनों से ईंधन के साथ-साथ इमारती लकड़ी भी मिलती है। इसके अतिरिक्त वनों से लाख, रबर, गोंद भी मिलते हैं। रेशम, कागज, वार्निश, प्लाईवुड, दियासलाई जैसे अनेक उद्योगों के लिए कच्ची सामग्री वनों से ही मिलती है। इन चीजों के संग्रह, व्यापार, परिवहन आदि से लाखों लोग अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं।
वन भूमि का कटाव रोकने में सहायक होते हैं। ये नदियों की गति को नियंत्रित रखते हैं। वनों की बदौलत भूमि के उपजाऊ कण सुरक्षित बने रहते हैं।
वन भूमिगत जल के स्रोत हैं। वनों से पर्याप्त वर्षा होने में सहायता मिलती है। इनसे धरती की उर्वरता बढ़ती है।
इसलिए हमें वनों को कटने से रोकना चाहिए। उनकी रक्षा करनी चाहिए। वनों की रक्षा के लिए ही सुंदर लाल बहुगुणा ने एक बार ‘चिपको आंदोलन’ चलाया था। इसके साथ-साथ हमें चाहिए कि हम अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण करें। संकल्प लें कि जब भी मौका मिलेगा, हम वृक्षारोपण करेंगे।
Vriksharopan Par Nibandh in Hindi
धर्मशास्त्रों में वृक्षारोपण को पुण्यदायी कार्य बताया गया है। इसका कारण यह है कि वृक्ष धरती पर जीवन के लिए बहुत आवश्यक हैं। भारतवर्ष में आदि काल से लोग तुलसी, पीपल, केला, बरगद आदि पेड़-पौधों को पूजते आए हैं। आज विज्ञान सिद्ध कर चुका है कि ये पेड़-पौधे हमारे लिए कितने महत्त्वपूर्ण हैं।
वृक्ष पृथ्वी को हरा-भरा बनाकर रखते हैं। पृथ्वी की हरीतिमा ही इसके आकर्षण का प्रमुख कारण है। जिन स्थानों में पेड़-पौधे पर्याप्त संख्या में होते हैं, वहाँ निवास करना आनंददायी प्रतीत होता है। पेड़ छाया देते हैं। वे पशु-पक्षियों को आश्रय प्रदान करते हैं। पेड़ों पर बंदर, लंगूर, गिलहरी, सर्प, पक्षी आदि कितने ही जंतु बड़े आराम से रहते हैं। ये यात्रियों को सुखद छाया उपलब्ध कराते हैं। इनकी ठंडी छाया में मनुष्य एवं पशु विश्राम कर आनंदित होते हैं।
वृक्ष हमें क्या नहीं देते। फल, फूल, गोंद, रबड़, पत्ते, लकड़ी, जड़ी-बूटी, झाड़, पंखा, चटाई आदि विभिन्न प्रकार की जीवनोपयोगी वस्तुएँ पेड़ों की सौगात होती हैं। ऋषि-मुनि वनों में रहकर अपने जीवन-यापन की सभी आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त कर लेते थे। जैसे-जैसे सभ्यता बढ़ी लोग पेड़ों को काटकर उनकी लकड़ी से घर के फ़र्नीचर बनाने लगे। उद्योगों का विकास हुआ तो कागज, दियासलाई, रेल के डिब्बे आदि बनाने के लिए लोगों ने जंगल के जंगल साफ़ कर दिए। इससे जीवनोपयोगी वस्तुओं का अकाल पड़ने लगा। साथ ही साथ पृथ्वी की हरीतिमा भी घटने लगी।
वृक्षों की संख्या घटने के दुष्प्रभावों का वैज्ञानिकों ने बहुत अध्ययन किया है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि वृक्षों के घटने से वायु प्रदूषण की मात्रा बढ़ी है। वृक्ष वायु के प्राकृतिक शोधक होते हैं। ये वायु से हानिकारक कार्बन डायऑक्साइड का शोषण कर लाभदायक ऑक्सीजन छोड़ते हैं। ऑक्सीजन ही जीवन है और जीवधारी उसे लेकर ही जीवित रहते हैं। अत: धरती पर वृक्षों की पर्याप्त संख्या का होना बहुत आवश्यक होता है।
वृक्ष वर्षा कराते हैं। ये जहाँ समूहों में होते हैं वहाँ बादलों को आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं। वृक्ष मिट्टी को मज़बूती से पकड़े रखते हैं और इसका क्षरण रोकते हैं। ये बाढ़ और अकाल दोनों ही परिस्थितियों को रोकने में सहायक होते हैं। ये मरुभूमि के विस्तार को कम करते हैं। ये वायुमंडल के ताप को अधिक बढ़ने से रोकने में बहुत मदद करते हैं। जहाँ अधिक पेड़-पौधे होते हैं वहाँ गर्मियों में शीतल हवा चलती है।
इसीलिए समझदार लोग अधिक से अधिक संख्या में पेड़ लगाने की बात करते हैं। संतुलित पर्यावरण के लिए किसी बड़े क्षेत्र के एक-तिहाई हिस्से पर वनों का होना आवश्यक माना जाता है। लेकिन वर्तमान समय में वन इस अनुपात में नहीं रह गए। हैं। इसके हानिकारक परिणाम सर्वत्र दृष्टिगोचर हो रहे हैं। अत: वर्तमान समय की आवश्यकता है कि हर कोई वृक्षारोपण करे। एक पेड़ काटा जाए तो तीन पेड़ लगाए जाएँ। मास का एक दिन वृक्षारोपण के लिए समर्पित हो।
इस कार्य में विद्यार्थियों को सहभागी बनाया जाए। अनुर्वर भूमि पर, सड़कों के किनारे, पहाड़ी स्थलों पर, रिहायशी इलाकों में और जहाँ थोड़ा भी रिक्त स्थान हो, पेड़ लगा दिए जाएँ।
पेड़ बचेंगे तो जीव समुदाय बचेगा। पेड़ रहेंगे तो लकड़ी की आवश्यकता की पूर्ति होगी और उद्योगों को कच्चा माल मिलता रहेगा। हमारी आगामी पीढ़ी को पेड़ों के अभाव में कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। पेड़ और वन होंगे तो वन्य-जीवन को आश्रय मिलता रहेगा। दुर्लभ वन्य प्राणियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा। इसलिए सब लोगों को पेड़ लगाने का संकल्प लेना चाहिए। लोगों को वन महोत्सव और वृक्षारोपण के अभियान में सक्रिय भागीदारी करनी चाहिए। सरकार उन तत्वों से सख्ती से निबटे जो वृक्षों और वनों की अंधाधुंध कटाई में संलिप्त हैं।
Vriksharopan Par Nibandh in Hindi
वृक्षारोपण का सामान्य एवं विशेष सभी का अर्थ है-वृक्ष लगाकर उन्हें उगाना। प्रयोजन है-प्रकृति का सन्तुलन बना रहे। वन-सम्पदा के रूप में प्रकृति से हमें जो कुछ भी प्राप्त होता आ रहा है, वह नियमपूर्वक हमेशा आगे भी प्राप्त होता रहे ताकि हमारे समाज-जीवन का सन्तुलन बना रहे, हमारे पर्यावरण की पवित्रता और सन्तुलन नियमित बने रहे। मानव सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। उसका जीवन सुखी, समृद्ध एवं सन्तुलित रह सके, सांस्कृतिक सामाजिक एवं व्यापक मानवीय दृष्टि से इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है ? निश्चय ही अन्य कोई नहीं। एक इस कारण भी वृक्षारोपण करना एक प्रकार का सहज सांस्कृतिक दायित्व स्वीकार किया गया है।
वृक्षारोपण मानव समाज का सांस्कृतिक दायित्व है, इसे प्रमाणित किया जा सकता है। मानव सभ्यता का उदय और आरम्भिक आश्रय प्रकृति यानि वन-वृक्ष ही रहे हैं। उसकी सभ्यता-संस्कृति के आरम्भिक विकास का पहला चरण भी वन-वृक्षों की सघन छाया में ही उठाया गया। यहां तक कि उसकी समृद्धतम साहित्य-कला का सृजन और विकास ही वनालियों की सघन छाया और प्रकृति की गोद में ही सम्भव हो सका, यह एक पुरातत्व एवं इतिहास सिद्ध बात है।
आरम्भ में मनुष्य वनों में वृक्षों पर या उनसे ढकी कन्दराओं में ही रहा करता था। वृक्षों से प्राप्त फल-फूल आदि खाकर, या उसकी डालियों को हथियार की तरह प्रयोग में ला उनसे शिकार करके अपना पेट भरा करता था। बाद में बचे-खुचे फल और उनकी गुठलियों को दुबारा उगते देखकर ही मानव ने खेती-बाड़ी करने की प्रेरणा और सीख प्राप्त की।
वृक्षों की छाल का ही सदियों तक आदि मानव वस्त्र रूप में प्रयोग करता रहा, यद्यपि बाद में वन में रहकर तपस्या करने वालों, वनवासियों के लिए ही वे रह गए थे। इसी प्रकार आरम्भिक वैदिक ऋचाओं की रचना या दर्शन भी सघन वनालियों में बने आश्रमों में रहने वाले लोगों ने किये।
इतना ही नहीं आरम्भ में ग्रन्थ लिखने के लिए कागज के बजाय जिस सामग्री का प्रयोग किया गया वे भोजपत्र भी विशेष वृक्षों के पत्ते थे। संस्कृति की धरोहर माने जाने वाले कई ग्रन्थों की भोजपत्रों पर लिखी गई पाण्डुलिपियाँ आज भी कहीं-कहीं उपलब्ध हैं।
मानव सभ्यता ने संस्कृति के विकास की दिशा में कदम बढ़ाते हुए गुफाओं से बाहर निकल और वृक्षों से नीचे उतर कर जब झोंपड़ियों का निर्माण आरम्भ किया, तब तो वृक्षों की शाखाएँ-पत्ते सहायक सामग्री बने ही, बाद में मकानों-भवनों की परिकल्पना साकार करने के लिए भी वृक्षों की लकड़ी का भरपूर प्रयोग किया गया। उन घरों को सजाने का काम तो आज भी वृक्षों की लकड़ी से ही किया जा रहा है। कुर्सी, टेबिल, सोफासैट आदि मुख्यतः लकड़ी से ही बनाए जाते हैं।
हमें अनेक प्रकार के फल-फूल और औषधियाँ भी वृक्षों से प्राप्त होती ही हैं, कई तरह की वनस्पतियों का कारण भी वृक्ष ही हैं। इतना ही नहीं, वृक्षों के कारण ही हमें वर्षा-जल एवं पेयजल आदि की भी प्राप्ति हो रही है। वृक्षों की पत्तियों धरती के जल का शोषण कर सूर्य-किरणें और प्रकृति बादलों को बनाती हैं और वर्षा कराया करती है। कल्पना कीजिए, निहित स्वार्थी मानव जिस बेरहमी से वनों-वृक्षों को काटता जा रहा है, यदि उस क्षति की पूर्ति के लिए साथ-साथ वृक्षारोपण-रक्षण न होता रहे, तब धरती के एकदम वृक्ष-शून्य हो जाने की स्थिति में मानव तो क्या, समूची जीव-सृष्टि की क्या दशा होगी? निश्चय ही वह स्वतः ही जलकर राख का ढेर बन और उड़कर अतीत की भूली-बिसरी कहानी बनकर रह जाएगी।
प्राचीन भारत में निश्चय ही वृक्षारोपण को एक उदात्त सांस्कृतिक दायित्व माना जाता था। तब तो मानव समाज के पास ऊर्जा और ईंधन का एकमात्र स्रोत भी वृक्षों से प्राप्त लकड़ी ही हुआ करती थी, जबकि आज कई प्रकार के अन्य स्रोत भी उपलब्ध हैं। इस कारण उस समय के लोग इस तथ्य को भली-भांति समझते थे कि यदि हम मात्र वृक्ष काटते रहेंगे, नहीं उगायेंगे, तो एक दिन वनों की वीरानगी के साथ मानव-जीवन भी वीरान बनकर रह जाएगा। इसी कारण एक वृक्ष काटने पर दो नए वृक्ष उगाना वे लोग अपना धर्म एवं साँस्कृतिक कर्तव्य माना करते थे। जो हो, अभी भी बहुत देर नहीं हुई है।
अब भी निरन्तर वृक्षारोपण और उनके रक्षण के सांस्कृतिक दायित्व का निर्वाह कर सृष्टि को अकाल भावी-विनाश से बचाया जा सकता है। व्यक्ति और समाज दोनों स्तरों पर इस ओर प्राथमिक स्तर पर ध्यान दिया जाना परम आवश्यक है।
Vriksharopan Par Nibandh in Hindi
पर्यावरण को जीवन्त बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण आवश्यक है। बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिक विकास की होड़ में जिस प्रकार जंगलों का विनाश किया गया है और किया जा रहा है, उससे समस्त धरा असुरक्षित हो गई है। अतः धरती पर जीवन को सुरक्षित बनाने के लिए वृक्षारोपण आवश्यक है। हमारे यहां प्राचीन काल से ही वनों की सुरक्षा और वृक्षारोपण को धार्मिक भावनाओं से जोड़ दिया गया। वट-सावित्री पूजन, एकादशी को आंवले के नीचे भोजन करना, पीपल की पूजा आदि प्राचीन विधियां वनों को सुरक्षित रखने और वृक्षारोपण को प्रश्रय देने के लिए की गई थी।
वृक्षारोपण से वन-सम्पदा में वृद्धि होती हैं। इससे अनेक लाभ है- जलावन, घर के किवाड़, खिड़की, धरन और अन्य उपयोगी सामान इसी से प्राप्त होते हैं। अनेक वृक्षों के छाल और पत्ते उद्योग धन्धों को चलाने के काम आते हैं। बबूल की छाल, हर्र-बहेरा और आंवला चमड़ा बनाने के काम में भी आता है। रबर, रेशम आदि वृक्ष से ही प्राप्त होते हैं। भारतवर्ष के अधिकांश हिस्सों में आज भी जलावन के लिए लकड़ी का ही व्यवहार किया जाता है।
वृक्षारोपण न केवल हमारे गार्हस्थ्य जीवन का आधार है, बल्कि यह वायु मंडल को नियंत्रित करने में भी सहायक है। वृक्ष ऑक्सीजन का सर्वप्रमुख माध्यम है। यह हमें ऑक्सीजन प्रदान कर वायुमंडल में कार्बनडाई -ऑक्साइड की मात्रा को नियंत्रित करता है। साथ ही यह हमें छाया प्रदान करने के साथ-साथ पशु-पक्षियों को खाद्य और आश्रय प्रदान करता है। जंगलों के विनाश से बाढ़ का प्रकोप बढ़ा है। इसे वृक्षारोपण द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। वृक्ष (जंगल) मिट्टी का क्षरण रोककर बाढ़ की विनाशलीला से हमारी रक्षा करता है। कहा जाता है कि रोम और बेवालीन के पतन के कारणों में जंगलों का विनाश भी था। जंगल के अभाव में बड़े-बड़े उपजाऊ प्रदेश रेगिस्तान में बदल गये।
वृक्षारोपण से मिट्टी में जलधारण की क्षमता बढ़ती है जिससे अनेक लाभ हैं। साथ ही यह मिट्टी में जैविक पदार्थों की वृद्धि कर मिट्टी की कार्य क्षमता को बढ़ाता है। धरती को जीवन्त और उपजाऊ बनाकर हमें फल-फूल, अनाज आदि प्रदान करता है।
आज हमारे समक्ष उत्पन्न पर्यावरण संबंधी विभिन्न समस्याओं को । भी अनुभव किया जा रहा है जिसका एक मात्र हल वृक्षारोपण है। इन समस्याओं के निराकरण के लिए सरकार ने भी वृक्षारोपण योजना को प्रश्रय देने के लिए विभिन्न योजनाओं को आकार दिया है। वन-महोत्सव एक आन्दोलन की शक्ल में देखा जा रहा है। पंजाब में सिंचाई करके जंगल लगाये जा रहे हैं। अन्य प्रदेशों में भी वृक्षारोपण बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।
निष्कर्षत :
वृक्षारोपण का जीवन पर अत्यधिक प्रभाव है। हमारा कर्तव्य है कि हम स्थायी जंगलों की रक्षा करें, साथ ही वृक्षारोपण द्वारा नये जंगल लगाने का प्रयास करें। इससे न केवल आंधी,तूफान, बाढ़ आदि प्राकृतिक प्रकोपों से हमारी रक्षा होगी अपितु इंधन की समस्या भी दूर होगी। बंजर और व्यर्थ पड़ी भूमि को वृक्षारोपण द्वारा हम उपयोगी बना सकते हैं। वृक्षारोपण एक यज्ञ है और इस यज्ञ को पूरा करने में हमें तन-मन-धन से जुट जाना चाहिए।
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