रुपये की आत्मकथा पर निबंध Rupaye ki Atmakatha in Hindi

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हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाये है रुपये की आत्मकथा पर निबंध। इस प्रसिद्ध कहावत को कि ‘बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया’ आपने सुन ही रखा है। मैं वही रुपया हूँ, जो आकार में छोटा-सा होते हुए भी शक्ति में सबसे बलवान हूँ। Essay on autobiography of money in Hindi की जानकारी जिससे आपको निबंध लिखने में बहुत मदद मिलेगी । अगर आपको हमारी वेबसाइट के और बहुत से Hindi essay पढ़ने हो तो पढ़ सकते है

Rupaye ki Atmakatha in Hindi

रुपये की आत्मकथा पर निबंध

भूमिका :

इस प्रसिद्ध कहावत को कि ‘बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया’ आपने सुन ही रखा है। मैं वही रुपया हूँ, जो आकार में छोटा-सा होते हुए भी शक्ति में सबसे बलवान हूँ। मैं ही तो इस दुनिया का सरताज हूँ तथा सारे विश्व का मालिक हूँ। सभी मुझे देख-देखकर जीते हैं तथा माथे से लगाकर रखते हैं। कोई मुझे ‘लक्ष्मी जी’ कहता है तो कोई ‘धन’ । मेरे लिए तो भाई-भाई का दुश्मन हो जाता है। मेरी अपनी एक लम्बी जीवन यात्रा है जो इस प्रकार है-

मेरा जन्म परिचय :

मेरा जन्म धरती माता के गर्भ से हुआ है। मैं सालों तक धरती माता के गर्भ में विश्राम करता रहा हूँ। उस समय मेरा रूप आज से एकदम भिन्न था। मैं एक बड़े परिवार में रहता था। हम सब एक-दूसरे के साथ मिलकर रहते थे।

मेरे जीवन ने करवट तब बदली जब एक दिन कुछ लोगों ने खान को खोदना आरम्भ कर दिया। मेरा तो दिल ही काँपने लगा। बड़ी-बड़ी मशीनों से हमें खोदा जाने लगा। फिर कुछ स्वार्थी लोगों ने हमें खान से बाहर निकाल लिया। हमें एक बड़े भवन में लाया गया तथा रसायन डालकर, हमें साफ किया गया। हमने बहुत कष्ट सहे, लेकिन हम चुप रहे। हमने सोचा सोना भी तो तप कर ही निखरता है। शायद हमारे भी अच्छे दिन आने वाले हैं। सकलाल की यात्रा । इसके बाद हमे टकसाल में भेजा दिया गया।

वहाँ हमें मिट्टी में डालकर पिघलाया गया और फिर साँचे में ढाल दिया गया। हमारा नामकरण कर दिया गया ‘रुपया’ । हम सभी छोटे बड़े हैं लेकिन हमारी कीमत अलग अलग है। मैं भी बहुत खुश था कि अब तो मैं भी चमकने लगा हूँ। तभी तो मैं अपने भाग्य पर इतराने लगा।

लेकिन मेरे भाग्य की विडम्बना तो देखिए। मैं कितने ही दिनों तक , टकसाल में ही पड़ा रहा। फिर एक आदमी ने मुझे एकत्रित करके थैलों में बंद कर दिया। थैलों में कैद होकर तो मेरा दम घुटने लगा। साँस लेना भी मुश्किल हो गया। क्या करता, चुपचाप अपने भाग्य पर आँसू बहाता रहा।

बैंक में जमा:

फिर उन थैलों को सुरक्षापूर्वक स्टेट बैंक में लाया गया जहाँ उन थैलों को बड़े और मजबूत कमरे में बंद कर दिया गया। यहाँ तो हमारा दम और भी घुटने लगा क्योंकि यहाँ तक तो सूर्य की किरण तक भी नहीं पहुँचती थी। यहाँ पर भी मैं मन मारकर रह गया।

कई महीने तक उस कालकोठरी में पड़े रहकर मैं निराशा का जीवन जीने लगा। काश, इससे तो मैं मर ही जाता। फिर मेरे भी भाग्य ने पलटा मारा। मैं जिस थैले में बंद था, उसे खोला गया और एक बैंक के खजांची को दे दिया गया। बैंक के खजांची ने मुझे और मेरे साथियों को एक व्यापारी को दे दिया। अब मैं खुशी से उछलने लगा कि शायद मेरे अच्छे दिन आ गए हैं।

किस्मत का फूटना :

लेकिन यहाँ भी मेरी किस्मत ने साथ नहीं दिया। व्यापारी भी बहुत कंजूस था। उसने उन थैलों को बैंक से लाकर अपने घर की जमीन में खुदी तिजोरी में कैद कर दिया। मैं तो नरक में जी रहा था कि तभी एक दिन उस सेठ के यहाँ डाकुओं ने डाका डाला और पैसे चुराकर ले गए।

उपसंहार :

अन्त में मेरी किस्मत ने करवट ली और डाकू मुझे खुले हाथ से खर्च करने लगे। मैं जगह-जगह घूमने लगा। बड़ी-बड़ी दुकानें मेरी घर बन गईं। तभी तो मैं कहता हूँ कि मुझे अधिक छिपाकर मत रखो वरना कोई भी मुझे आजाद करने के लिए आ जाएगा और आप हाथ मलते रह जाओगे।

रुपये की आत्मकथा पर निबंध

 

मैं रुपया हूँ। मैं पृथ्वी माता की सन्तान हूँ। मेरी जन्म भूमि अमेरिका में मैक्सिको है। मेरे भाई-बन्धुओं में ताँबा, शीशा तथा जस्ता आदि हैं। वर्षों तक मैं अपने इन आत्मीयजनों के साथ माता की गोद में सुख-चैन की नींद सोता रहा हूँ। एक दिन सहसा श्रमिकों तथा मशीनों की सहायता से मेरा घर खोदा जाने लगा। उस समय मैं डर के मारे अपनी प्यारी माता की गोद से चिपका हुआ था। परन्तु श्रमिकों की क्रूर दृष्टि मुझ पर पड़ी और उन्होंने मुझे माता की गोद से खींच लिया और कैदियों की तरह बन्द गाड़ियों में डालकर मुझे एक विशाल भवन के सामने लाया गया।

तभी मुझे अग्नि में झोंक दिया गया। हमें कई प्रकार के रसायनों से साफ किया जाना था। जब अग्नि की लपटों की प्रचण्डता कम हुई तो मेरा द्रवित रूप ठण्डा होकर सिल्ली के रूप में बदल गया। तब मेरा नाम पड़ा – रजत।।

हमें इसके बाद टकसाल ले जाया गया। वहाँ पर मर्मान्तक पीड़ा सहन करने के बाद जो नया रूप हमें मिला वह बड़ा ही आकर्षक था। वह थी चमकती हुई गोलाकार देह-जिसे देखकर लोग हमें ‘रुपए’ के नाम से सम्बोधित करने लगे। मेरी सुन्दर, सुडौल देह, और चमकता हुआ भव्य रूप मुझे भी आश्चर्य में डाल देता है। अब हर कोई मेरे स्वागत के लिए तैयार रहता है। मैं जिसके भी हाथ में जाता हूँ वह ही मुझे अपने सीने से लगा लेता है।

अब तो मुझमें तेज दौड़ लगाने की शक्ति आ गई है। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति, एक घर से दूसरे घर, एक गाँव से दूसरे गाँव और एक बैंक से दूसरे बैंक तक छलांगें मारता चला जाता हूँ। मैंने अपने गोल रूप को सार्थक कर दिया है। क्योंकि मैं गोल पहिए की भाँति घूमता ही रहता हूँ।

मेरा यह रूप इतना मनमोहक था कि सभी धर्मों वाले, सभी मतावलम्बी, भिक्षु व राजा लोग भी मेरे प्यार में बंध गए। पूजा की थाली में भी मुझे स्थान मिला. कन्याओं की माँगों में सिन्दूर भी मेरे द्वारा भरा गया। मेरे इस रूप पर ऋषि, मुनि, गृहस्थ सभी मोहित हो जाते हैं। यहाँ तक कि विश्व में सभी भयंकर युद्ध भी मेरे कारण लने गए हैं। अन्त में घूमता-फिरता मैं पुनः अपने पुराने घर टकसाल में पहुँच जाता हूँ जहाँ नया रूप लेकर फिर बाहर आता हूँ। यही है मेरी अर्थात् रुपए की आत्मकथा।

Rupaye ki Atmakatha in Hindi

जी हां! में रुपया हूँ-पियूषपाणि मसीहा। लोगों की सांसों से मेरी ही सुगन्धि आ रही है। मेरे सिर पर ब्रम्हांड सुन्दरी के सौंदर्य का ताज है। मैं सुहागिन के माथे की बिन्दी सदृश मनमोहक, स्वस्तिक चिन्ह की तरह शुभसूचक, गुलाब की पंखुड़ी की तरह अनुरंजक, कमल की पंखुड़ियों की तरह आकर्षक हूँ। रूप और ऐश्वर्य का महासागर मेरे ही द्वारा निर्मित है। आज मैं तफसील से अपने बारे में बता रही हूँ। ध्यान से सुनिए। आप मेरे लघु आकार पर मत जाइए। मेरा आकार जितना लघु है मेरी माया उतनी ही विराट।

मैं सम्पत्ति रूपी सर्वेश्वरी का एक मात्र विश्वस्त और आज्ञाकारी अनुचर हूँ। मेरी महिमा किसी से छिपी नही है। मैं महिमा मण्डित सौंदर्य की खान हूँ। धरती पर अवतरण के साथ ही मैने धरती के गुरुत्वाकर्षण बल को अपने भीतर समेट लिया। मैं जहां रहती हूँ, वहां सभी केवल मेरी ही ओर देखते हैं। मेरा जादू सबको अपनी ओर खींच लेता है।

टकसाल से निकलकर मैं जहां-जहां गयी, सबने मेरा भव्य स्वागत किया, अभावों के अन्धकार में मेरे प्रवेश के साथ ही दीवाली जगमगा उठती है। मुझे किसी ने तिजोरी में कैद करना चाहा, किसी ने मुझे अपने सीने में समेटना चाहा, किसी ने गर्म मुट्टियों में भींच लिया। सब मुझपर अनन्य प्रेम बरसाते हुए मुझे प्रणयपाश में बांध लेना चाहते हैं। भिखारी, किसान, मजदूर, व्यवसायी, सेठ, नेता, सोसायटी गर्ल सभी मेरी ही साधना करते हैं।

मानव मात्र ईश्वर की स्तुति, बन्दना, विनती, प्रार्थना मुझे ही प्राप्त करने के लिए करता है। पर मैं कहीं टिककर नही रहती, श्रोतस्विनी की वेगवती धारा की भांति बहना ही मेरा स्वभाव है। मेरे भक्तों की संख्या अनन्त है, मुझे लगता है कि मेरी ही वंदना में यह श्लोक रचा गया-

त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव-
त्वमेव सर्वं मम देव देव ।।

मैंने अपने मायाजाल में फसाकर सबको त्यागी बना दिया। मेरे कारण मानव ने ईमान और सम्मान छोड़ा। गृहस्थ ने घर छोड़ा कृषक ने खेत और खलिहान छोडा, खलीफे ने मैदान छोड़ा, रूपसि ने लाज छोड़ा, दोस्तों ने साथ छोड़ा, किसी ने सच्चा साहित्य छोड़ा, किसी ने शुद्ध संगीत। बनिये ने दुकान छोड़ा, ज्ञानी ने ज्ञान छोड़ा, भक्त ने भगवान छोड़ा। बेटे ने बाप को, भाई ने भाई को, पत्नी ने पति को, शिष्य ने गुरू को, नेता ने दल को, सरकार ने जनता को, सम्बन्धियों ने सम्बन्ध को, महंत ने संत को और उच्चाधिकारियों ने पद को छोड़ा। इस दुनिया में यदि कोई संबंध बचा हुआ है तो उसका आधार भी मैं ही हूँ।

मेरे लोभ ने पूरी तरह मानव भावों को अपने अधीन कर लिया । है। आज कुलीनता और सराफत, गुण और कमाल की कसौटी, केवल मैं हूँ। जिसके पास मैं हूँ वह अन्दर से चाहे जितना भी काला क्यों न हो-देवता स्वरूप है। साहित्य, संगीत, कला-सभी मेरी देहली पर माथा टेकते हैं। मनुष्यता, मित्रता, स्नेह, सहानुभूति, दया, सच्चाई और सौजन्य मेरे कारण लुप्त हो गये हैं। मेरे बिना भूखों की भूख नही मिटती, विद्यार्थियों को शिक्षा नही मिलती, रूपसियों की लाज और विर रों की जान नही बचती।

मेरे ही अभाव में कितनी ही शिष्ट शिक्षित कुलान ललनाएं अविवाहिता रह गई या मेरी मांग पूरी न करने पर उन्हे जला या मार दिया गया।

राहजनी, पॉकेटमारी, लूट-खसोट, चोरी डकैती आदि की बात छोड़िये मेरे कारण कितने ही रोमांचक महायुद्ध हुए हैं और हो रहे हैं। मेरा मोह मत कीजिए। मुझे अपने पास अधिक दिनों तक मत रखिये। मेरा उपयोग कर अपने से दूर रखिये ताकि समाज में मेरा प्रवाह बना रहे।

इसीसे मानवता निरोग रहेगी। यही मेरी राम कहानी है। इस राम कहानी से यदि आपको कोई प्रेरणा मिले तो मैं ही नही सम्पूर्ण मानवता आपकी कृतज्ञ बनी रहेगी।

Rupaye ki Atmakatha in Hindi

मेरा जन्म उत्तरी अमेरिका के मैक्सिको प्रदेश में हुआ। पृथ्वी की खुदाई कर मुझे बाहर निकाला गया। मजदूरों ने निर्दयतापूर्वक मेरी मां के शरीर को क्षत-विक्षत कर मुझे उससे छीन लिया मैं अपनी माता से बिछुड़ने के कारण जहां दु:खी था वहीं मुझे ले जाने वाले लोग खुश थे। और कहते जा रहे थे आखिर चांदी मिल ही गयी। जबकि मेरे में अनेक धातुएं मिली हुई थीं। मुझे उस समय पता लगा कि मेरा शरीर चांदी का है।

बाहर निकालकर मुझे टकसाल पहुंचाया गया। टकसाल पहुंचने पर वहां का वातावरण देखने को मिला वहां काफी चहल-पहल थी। थोड़ी ही देर में मुझे गरम भट्टियों में डाल दिया गया। सीता की तरह मेरी भी अग्नि परीक्षा हुई और मैं शुद्ध होक बाहर निकला। बाहर आते ही ठंड के कारण मैं जम गया।

इसके बाद मुझे पानी के जहाज से यात्रा का अवसर मिला। मैं एक देश से दूसरे देश होता हुआ विसी तरह भारत पहुंचा। जलयात्रा के दौरान मुझे अच्छा लगा। चारों ओर समुद्र और ऊपर नीले रंगका आसमान था। भारतीय बंदरगाह पहुंचने पर मुझे कुलियों ने गोदियों से भरकर उतारा। यहां से मुझे कोलकाता स्थित टकसाल में भेज दिया गया। यहां पहुंचने पर एक बार फिर मुझे भट्टी में डाला गया। भट्टी की गरमी के कारण मैं न जाने कब बेहोश हो गया।

मुझे ज्ञात नहीं कि उसके बाद मेरे साथ उन लोगों ने क्या-क्या व्यवहार किया। जब मुझे होश आया तो मैंने अपने को गोलकार रूप में पाया। और मेरे एक तरफ एक रुपया लिखा था तो दूसरी ओर शेर का चिह्न बनाया। उस पर मेरी जन्मतिथि भी लिखी गई थी। मेरे जैसे मेरे साथ हजारों साथी थे। उसके बाद हम सभी लोग बिछुड़ गये। टकसाल के पंडितों ने हमारा रुपये के नाम से नामकरण कर दिया। इसाकार मैं पुरुष हो गया।

अब मेरी जीवन यात्रा शुरू हुई। अपने हजारों सेवकों द्वारा बैंक में गया छोटे-बड़े लोगों के हाथ उछल-कूद कर मैं अब जीवन का आनन्द लेने लगा। शहरों की भाग-दौड़ की जिन्दगी और वहका शोरगुल मुझे कतई पसन्द न था। मेरा स्वभाव तो एकांत में रहने का था। किसी तरह मैं एवसेठ के हाथ लग गया। उस सेठ ने काफी दिनों तक मुझे एकांत में रहने को भेज दिया। उस एवत स्थान का नाम तिजोरी था।

उस सेठ के यहां जितने भी लोग आते, और उससे बात करते इन्सभी बातों को सुन मैं अपना मनोरंजन करता। एक दिन मुझे सेठ ने एकांत स्थान से निकाल कर किसी के हाथों सौंप दिया। जिस व्यक्ति को मुझे सौंपा गया। वह मुझे पाकर काफी प्रसन्न हुआ। बार-बार मुझे हाथ फेर कर चूमने लगा।

मुझे लगा जैसे मुझे मेरा कोई परिजन मिल गया है। उसने मुझे एक दुकान के हवाले कर वहां से कुछ सामान खरीदा और मुझे छोड़ वहां से चला गया। दुकानदार ने मुझे एक लकड़ी के बक्से में डाल दिया। बक्से में जाते ही मैं खुश हो उठा। मेरे जैसे कई भाई वहां पहले से मौजूद थे। वहां मुझे एक ही रात रहने का मौका मिल सका। अगले दिन दुकानदार ने अपने मुनीम के हाथों दूसरे बड़े दुकानदार के पास भिजवा दिया।

इसके बाद तो मैं कहां-कहां नहीं घूमा। मुझे देकर लोगों ने क्या-क्या नहीं खरीदा। कोई सब्जी खरीदता तो कोई फल। कोई मुझे देकर पुस्तकें खरीदता तो कोई मुझे देकर रसगुल्ला। कई बार ऐसा भी होता कि मैं कई दिनों तक एकांत में पड़ा रहना । कई बार ऐसा भी होता कि मैं एक ही दिन में कई किलोमीटर की सैर कर लेता। एक बार मैं एक साधु के हाथ पड़ गया। वह साधु मुझे लेकर हरिद्वार, लक्ष्मण झूला, काशी, उज्जैन, अयोध्या समेत न जाने कितने तीर्थ स्थलों पर ले गया। अंत में उसने मुझे देवताओं के चरणों में चढ़ा दिय।

यहां बामुश्किल मैं दो ही दिन रहा हूंगा कि ब्राह्मण देवता ने मुझे फिर एक दुकानरार को सौंप दिया। इसके बाद मैं भिखारी, कोढ़ी, विधवा, अपाहिजों के हाथ होते हुए दुकानदार वे पास पहुंचा। इस दौरान मेरी किसी ने भी उपेक्षा नहीं की बल्कि मुझे सम्मान दिया, हृदय से लगधा और प्यार दुलार दिया। इस संसार के सुख-दुःख के धूप-छाँवों का असर मेरे पर भी पड़ा।कभी मैं सेठ के घर में होता तो कभी मैं गरीब के घर मैं। ऐसे घूमते-घूमते मैं एक गरीब परिवा के यहां पहुंचा।

वहां रहने पर मुझे पता चला कि उस परिवार में कुछ ही दिनों में एक कन्या का विवाह होने वाला है। वे लोग एकत्र हो हमेशा यही बात करते कि अंदर जो चांदी के सिक्के हैं उन्हें पिघलाकर उसका कुछ जेवर आदि क्यों न बना लिया जाए। इस तरह एक बार फिर मुझे सीत की तरह अपनी अग्नि परीक्षा देनी पड़ी। इस बार मुझे रुपये का जीवन न मिल सका। मैं अब अंगठी के रूप में उस गरीब की बेटी के साथ हूं। मैं यह जीवन पाकर खुश नहीं हूं, मुझे धूप, बरसात, मट्टी आदि से लथपथ होना पड़ता है। इस जीवन से न जाने मुझे कब मुक्ति मिलेगी।

 

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Written by

Romi Sharma

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