हेलो दोस्तों आज हम आपको Meerabai Story in Hindi में बाटूंगा ताकि आप मीराबाई के बारे में सारी जानकारी पता कर सको।मीराबाई कृष्ण की बहुत बड़ी भक्तिभक्त थी। उनके पति की मौत के बाद उनका कृष्णभक्ति दिन- प्रति- दिन बढ़ती गई और वह मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती थीं। इस आर्टिकल में हम आपको उनके बचपन से जवानी तक का सफर के बारे में सारी जानकारी देंगे।आईये शुरू करते है Meerabai Story in Hindi या मीराबाई जीवन परिचय
Meerabai Story in Hindi मीराबाई का जीवन परिचय
मीराबाई कृष्णभक्ति की हिंदी की महान कवयित्री थी उनका जन्म 1573 में जोधपुर के चोकड़ी नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम रतन सिंह था जो की राठौर राजपूत परिवार में थे। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेती थी।
इनका विवाह उदयपुर के महाराणा कुमार भोजराज जी के साथ हुआ था। जो की मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया लेकिन मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं और संसार को छोड़ कर साधु संतो की संगति में कीर्तन करने लग गयी विवाह के थोड़े दिन बाद ही उनके पति का स्वर्गवास हो गया था।
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पति के मरने के बाद इनकी भक्ति दिन- प्रति- दिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं।
उनका नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगता था। उन्होंने कई बार मीराबाई को जहर देकर मारने की कोशिश की लेकिन कभी सफर नहीं हुवे मीरा को मरने के लिए सांप भेजा गया लेकिन वह भी फूलो की माला बन गया इस तरह उसको मरने की हर कोशिश विफल हो गयी।
द्वारका में 1627 वो भगवान कृष्ण की मूर्ति में मीरा बायीं समा गईं।
उसके बाद वो द्वारका और वृंदावन चली गयी
लोग उन्हे देवी के जैसा प्यार और सम्मान देते थे।मीरा के समय में ही बाबर ने हिंदुस्तान पर हमला किया और बाबर और राणा संग्राम सिंह के बीच युद्ध हुवा। साथ ही
मुगलो की भारत में शुरूवात हुई।
मीराबाई ने 4 ग्रंथों की रचना की जिनके नाम कुछ इस प्रकार है।
नरसी का मायरा
गीत गोविंद टीका
राग गोविंद
राग सोरठ के पद
इसके अलावा मीराबाई के गीतों का संकलन “मीरांबाई की पदावली’ नामक ग्रन्थ में किया गया है
मीराबाई के कुछ प्रमुख भजन।
मीराबाई भजन no 1
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥
सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥
मीराबाई भजन no 2
“हरि तुम हरो जन की भीर”
हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी,
तुरत बढ़ायो चीर॥
भगत कारण रूप नर हरि,
धरयो आप सरीर॥
हिरण्याकुस को मारि लीन्हो,
धरयो नाहिन धीर॥
बूड़तो गजराज राख्यो,
कियौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गिरधर,
चरण-कंवल पर सीर॥
मीराबाई भजन no 3.
रैण पड़ै तबही उठ जाऊं भोर भये उठि आऊं।
रैन दिना वाके संग खेलूं ज्यूं त।ह्यूं ताहि रिझाऊं॥
जो पहिरावै सोई पहिरूं जो दे सोई खाऊं।
मेरी उणकी प्रीति पुराणी उण बिन पल न रहाऊं।
जहां बैठावें तितही बैठूं बेचै तो बिक जाऊं।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर बार बार बलि जाऊं॥
मीरा बाई जी के भजन
मैं गिरधर के घर जाऊं
भजन – मीरा बाई जी – मैं गिरधर के घर जाऊं
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