हेलो दोस्तों आज हम आपको Guru Nanak Dev Ji History in Hindi और गुरु नानक देव जी के जीवन परिचय के बारे में बहुत सारी बातें बातयेंगे। नानक सिखों के सबसे पहले गुरु हैं। इनके सभी नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु – सभी के गुणों को समेटे हुए थे। इस आर्टिकल में हम आपको उनके बचपन से जवानी तक का सफर के बारे में सारी जानकारी देंगे।आईये शुरू करते है Guru Nanak Dev Ji History in Hindi या गुरु नानक देव जी के जीवन परिचय
Guru Nanak Dev Ji History in Hindi
Guru Nanak Dev Ji का जन्म
Guru Nanak Dev Ji का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था। उनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 को मानी जाती मानते हैं। किंतु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवंबर में दीवाली के 15 दिन बाद आती है। इनके पिता का नाम कल्याणचंद था और माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था।
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नानक जी के स्कूल के दिन
बचपन से इनमें प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लग गए थे। बचपन से ही ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। पढ़ने लिखने में इनका मन नहीं लगता था। 7-8 साल की उम्र में उनका स्कूल छूट गया था क्योंकि भगवत्प्रापति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ने आ गए। उसके बाद सारा समय वे आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे। बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व भी मानने लगे थे । बचपन के समय से ही इनमें श्रद्धा रखने वालों में इनकी बहन नानकी तथा गाँव के शासक राय बुलार प्रमुख थे। बहुत सारे लोगो का मानना है कि बाबा नानक एक सूफी संत भी थे और उनके सूफी कवि होने के प्रमाण भी समय-समय पर लगभग सभी इतिहासकारो द्वारा दिए जाते है ।
नानक के सिर पर सर्प द्वारा छाया करने का दृश्य देखकर राय बुलार का नतमस्तक होना। इनका विवाह बालपन मे सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहनेवाले मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था।
नानक के सिर पर सर्प द्वारा छाया करने का दृश्य देखकर राय बुलार का नतमस्तक होना। इनका विवाह बालपन मे 16 वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहने वाले मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था।
32 वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ। चार वर्ष बाद दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। दोनों लड़कों के जन्म के बाद 1507 में नानक अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पडे़।
उन्होंने जातपातऊंचनीच तथा छूआछूत जैसी सामाजिक तथा धार्मिक बुराइयों को दूर करने के लिए ही सिक्ख धर्मकी स्थापना की।
ये चारों ओर घूमकर उपदेश करने लगे। 1521 तक इन्होंने तीन यात्राचक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। इन यात्राओं को पंजाबी में “उदासियाँ” कहते है।
मूर्तिपूजा उन्होंने सनातन मत की मूर्तिपूजा की शैली के विपरीत एक परमात्मा की उपासना का एक अलग मार्ग मानवता को दिया। उन्होंने हिंदू धर्म मे फैली कुरीतिओं का सदैव विरोध किया । साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी नज़र डाली है। संत साहित्य में नानक उन संतों की श्रेणी में हैं जिन्होंने नारी को बड़प्पन दिया है।
इनके उपदेश का सार यही होता था कि ईश्वर एक है उसकी उपासना हिंदू मुसलमान दोनों के लिये हैं। मूर्तिपुजा, बहुदेवोपासना को ये अनावश्यक कहते थे। हिंदु और मुसलमान दोनों पर इनके मत का प्रभाव पड़ता था।
जीवन के अंतिम दिनों में इनकी ख्याति बहुत बढ़ गई और इनके विचारों में भी परिवर्तन हुआ। उन्होंने करतारपुर नामक एक नगर बसाया, जो कि अब पाकिस्तान में है और एक बड़ी धर्मशाला उसमें बनवाई। इसी स्थान पर आश्वन 22 सितंबर 1539 ईस्वी को इनका परलोकवास हुआ।
मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।
नानक अच्छे सूफी कवि भी थे। उनके भावुक और कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर जो अभिव्यक्ति की है, वह निराली है। उनकी भाषा “बहता नीर” थी जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी के शब्द समा गए थे।
सच्चा सौदा :
नानक की वैराग्य भावना से इनके पिता बहुत चिन्तित थे उन्होंने नानक को व्यापार में लगा दिया। एक बार उनके पिता ने। अतः उन्हें कुछ धन देकर रोजगार के लिए शहर भेज दिया। नानक अभी शहर पहुँच भी नहीं पाए थे कि रास्ते में उन्हें साधुसंतों की एक टोली मिल गई। नानक ने सारा धन उन्हीं साधुसंतों के भोजन पर खर्च कर दिया। जब वे खाली हाथ घर लौटे तो उन्होंने कहा कि वे ‘सच्चा सौदा’ कर आए हैं। उनके पिता बहुत क्रोधित हुए लेकिन नानक पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
गृहस्थ जीवन तथा यात्राएँ :
इनके पिता ने इनका विवाह एक सुशील कन्या सुलक्षणा से करा दिया, जिनसे इनके दो पुत्र भी हुएलेकिन पत्नी और संतान का मोह भी इन्हें रोक नहीं पाया और नानक ने अपना घर छोड़ दिया और अपने शिष्य ‘बाला’ तथा मरदाना’ के साथ भ्रमण करने लगे। वे मक्का मदीना भी गए। उन्होंने साधु- सन्तों तथा जनसाधरण में अपने उपदेशों की अमृतवर्षा की और अनेक शिष्य बना लिए।
गुरुवाणी :
गुरु नानक देव की अमृत वाणी ‘गुरुग्रन्थ साहिब’ में संकलित है। अपनी रचनाओं के कारण वे हिन्दी के संतकवियों में भी बहुत प्रसिद्ध हैं। उनका विश्वास था कि सभी धर्मों का सार एक ही है। सभी धर्म त्याग, सेवा, अच्छे आचरण की शिक्षा देते हैं। कोई भी धर्म झूठपाखंड या अंधविश्वास का समर्थन नहीं करता।
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