साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप पर निबंध

1 MIN READ

हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाया हु साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप पर निबंध  पर पुरा आर्टिकल लेकर आया हु। इस आर्टिकल में हम आपके लिए लाये है साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप की पूरी जानकारी जो आपको अपने बच्चे का होमवर्क करवाने में बहुत मदद मिलेगी।

साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप 

साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ‘सत्येन धारयते जगत् ।’ अर्थात् सत्य ही जगत को धारण करता है। संस्कृत की यह उक्ति अक्षरक्षः सत्य है। यदि कोई व्यक्ति समाज, नारेवार या राष्ट्र बार-बार असत्य का सहारा लेता है तो अंततः वह अवनति को ही प्राप्त होता है। झूठे व्यक्ति का न ही कहीं मान होता है और न ही सम्मान। झूठ पकड़े जाने पर उसे बहुत लज्जा का सामना करना पड़ता है। यदि फिर वह सत्य का मार्ग अपनाना भी चाहे, तो कोई उसकी बात पर विश्वास नहीं करता। संसार के सभी महापुरुष सत्य का गुणगान करते नहीं थकते थे। राजा हरिश्चंद्र ने तो सत्य के मार्ग पर चलते हुए राज-पाट तक छोड़ दिया था।

महाभारत में युधिष्ठिर का दृष्टांत सत्य धर्म पर चलने वालों के लिए एक ज्वलंत उदाहरण है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी सत्य तथा अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए ही अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिए थे। यदि कोई व्यक्ति सोचता है कि आज के कलयुग में सत्य का कोई मोल नहीं है, तो वह गलत सोचता है।

आज के भौतिकवादी युग में भी सत्य का उतना ही महत्व है जितना कि सतयुग या द्वापर युग में था। हाँ, यदि किसी की भलाई के लिए असत्य बोला जाए, तो उसमें कोई बुराई नहीं है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सत्यवादी व्यक्ति किसी अन्य साधन के बिना भी इस लोक में मान-सम्मान तथा परलोक में मोक्ष को प्राप्त करता है, क्योंकि-

“साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदय साँच है, ताके हिरदय आप।”

Also Read:

Written by

Romi Sharma

I love to write on humhindi.inYou can Download Ganesha, Sai Baba, Lord Shiva & Other Indian God Images

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.