Essay on Bhagwan Mahavir in Hindi भगवान महावीर पर निबंध

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हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए Hindi essay वाली केटेगरी यानि सूची के लिए एक और article लाया हु जो की Bhagwan Mahavir के जीवन पर है या फिर हम उसको Essay on Bhagwan Mahavir in Hindi से साइट से ढूंढ सकते है। इस तरह के essay या निबंध स्कूलों में बच्चो से पूछे जाते है और उनके एग्जाम में भी एते है। आप निचे दिए गए है भगवान महावीर पर निबंध को पढ़कर उनके जीवन के बारे में पूरी तरह जान सकते है।

Essay on Bhagwan Mahavir in Hindi

Essay on Bhagwan Mahavir in Hindi

प्रस्तावना :

हमारी भारतभूमि पर अनेक महापुरुषों ने अवतार लिए हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम, धर्मराज युधिष्ठिर, बलशाली भीम, योगीराज श्रीकृष्ण, विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती इसी धरती पर पैदा हुए हैं। ऐसे ही महान पुरुषों में भगवान महावीर स्वामी का नाम सर्वोपरि है।

जन्म तथा परिचय :

जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामी का जन्म आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व बिहार के वैशाली नगर के कण्ड ग्राम में लिच्छवि वंश के राजघराने में हुआ था। इनका बचपन का नाम ‘वर्द्धमान’ था। इनकी माता का नाम त्रिशला देवी तथा पिता का नाम सिद्धार्थ था।

बचपन में ही एक भयंकर सर्प तथा हाथी को वश में कर लेने के कारण इनको सभी लोग ‘महावीर कहने लगे थे। बचपन से ही इनका मन सुख वैभव में नहीं लगता था और सारा संसार नाशवान लगता था। युवावस्था में महावीर जी का विवाह यशोदा नामक सुन्दर व सुशील स्त्री से करा दिया  गया, फिर भी ये इस भौतिकी संसार के प्रलोभन में नहीं फँसे। 28 वर्ष के होने पर इनके पिता का स्वर्गवास हो गया था और तभी से ये संसार से विरक्त हो गए थे।

वैराग्य तथा साधना :

मात्र 30 वर्ष की आयु में महावीर जी संन्यास के पार्श्वनाथ के शिष्य बन गए। 22 वर्षों तक वनों में घोर तपस्या की । ज्ञान प्राप्त होने पर महावीर जी वनो को छोड़कर, नगरों में आ गए 740 वर्षों तक बिहार के उत्तर तथा दक्षिण में अपने मत का प्रचार-प्रसार किया। अनगिनत अनुयायी बन जाने पर इन्होंने लोगों को सदाचार व खान-पान में पवित्रता तथा प्राणीमात्र पर दया करने की शिक्षा दी।

जैन धर्म और महावीर स्वामी :

महावीर स्वामी ने अपने धर्म को मानने वालों का नाम ‘जैनी’ रखा। महावीर स्वामी की मृत्यु के पश्चात् जैन अनुयायी दो भागों में बँट गए-दिगम्बर व श्वेताम्बर। निर्वसन रहने वाले दिगम्बर कहलाए तथा वस्त्र धारण करने वाले श्वेताम्बर कहलाए। जैन धर्म के प्रमुख रूप से पाँच सिद्धान्त हैं, जिनका सार इस प्रकार है–‘सत्य, अहिंसा, चोरी न करना, आवश्यकता से अधिक कुछ भी एकत्रित न करना तथा शुद्धाचरण । इन सिद्धान्तों पर चलकर मनुष्य मोक्ष पा सकता है।

महावीर स्वामी का निर्वाण :

महावीर स्वामी जी 72 वर्ष की आयु में बिहार प्रान्त के ‘पावापुरी’ में कार्तिक मास की अमावस्या को निर्वाण-पद को प्राप्त हुए थे। जन्म, जरा, आधि और व्याधि के बंधनों से मुक्त होकर महावीर जी अजर-अमर तथा अविनाशी हो गए। आज जब इस संसार में घृणा, बैर, द्वेष, मार-काट का बोलबाला है, ऐसे में महावीर स्वामी के उपदेशों पर चलकर जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।

Essay on Bhagwan Mahavir in Hindi

भगवान महावीर को वर्धमान महावीर भी कहा जाता है। वर्धमान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व भारत में बिहार के वैशाली के निकट कुण्डग्राम में हुआ था। वैशाली लिच्छवी गणतंत्र की राजधानी थी। वह कुण्डग्राम के राजा सिद्धार्थ और त्रिशला के सुपुत्र थे। सिद्धार्थ नाथ वंश के शूरवीर परिवार से संबंध रखते थे। वर्द्धमान महावीर की माँ त्रिशला चेतक की पुत्री थीं, जो वैशाली के शक्तिशाली और सुप्रसिद्ध लिच्छवी राजा थे। वर्धमान महावीर के एक बड़े भ्राता थे जिनका नाम था-नंदीवर्धन।

वर्धमान महावीर की छ: मौसियाँ थीं, पूर्वी भारत के विभिन्न राजाओं के साथ जिनका विवाह हुआ था। इस प्रकार वर्धमान विभिन्न राजाओं से ताल्लुक रखते थे और जैन धर्म के सुधार में उन्होंने भरपूर सहायता की थी।

यह गलत धारणा थी कि वर्धमान महावीर जैन धर्म के संस्थापक थे। लेकिन बहुत से भारतीय और पश्चिमी विद्वान तथा इतिहासकारों ने अब यह सिद्ध कर दिया है कि महावीर स्वामी जैन धर्म के संस्थापक नहीं थे, वे धर्म-प्रवर्तक थे। उन्होंने 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के सिद्धांतों को परिष्कृत और प्रचारित किया था।

वर्धमान महावीर को एक राजकुमार के रूप में सभी प्रकार की शिक्षा मिली थी। उन्होंने साहित्य, कला, दर्शनशास्त्र, प्रशासनिक विज्ञान आदि शिक्षा बहुत शीघ्र और आसानी से ग्रहण कर ली थी। परंतु दुनिया की किसी भी वस्तु से उन्हें कोई लगाव नहीं था, उनका मन तो वैराग्य से भरा हुआ था। वे इस दुनिया को त्यागकर वैराग्य लेना चाहते थे, परंतु उनके माता-पिता ये नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र वैराग ले।

जब वर्धमान महावीर 28 वर्ष के थे, तब उनके माता-पिता का देहांत हो गया। अब वह वैराग्य लेने के लिए स्वतंत्र थे। परंतु उनके भाई नंदीवर्धन ने वर्धमान महावीर को कुछ समय तक वैराग्य न लेने के लिए प्रार्थना की, तो अपने बड़े भाई का मान रखते हुए उन्होंने 30 वर्ष तक राजमहल में रहने की उनकी बात मान ली। इन दो वर्षों में वर्धमान महावीर संन्यासी जीवन जीने का अभ्यास करने लगे।

 

उसके बाद जब वे 30 वर्ष के हो गए, तो उन्होंने अपनी सारी व्यक्तिगत संपत्ति ज़रूरतमंद और गरीबों को दान कर दी, शेष संपत्ति को वे अपने घर पर ही छोड़ गए। फिर वे जंगलों में नंगे पाँव घूमे, उन्होंने वहाँ तपस्या की और अपना संपूर्ण समय उन्होंने किसी से कुछ बोले बिना जंगलों में ही व्यतीत किया। इस दौरान उन्होंने बहुत कम खाया और अधिकांशतः उन्होंने बिना कुछ खाए-पिए ही जीवन गुज़ारा। लोगों ने उन्हें तंग भी किया, परंतु वे शांत रहे। उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा।

12 वर्ष बाद 42 वर्ष की उम्र में उन्होंने सत्य की खोज कर ही ली। अर्थात् उन्हें कैवल्य की प्राप्ति हुई और वे अर्हत या जिन कहलाए। फिर वर्धमान महावीर दिगंबर भिक्षु बन गए। उन्होंने बिना किसी मोटरगाड़ी के पूर्वी भारत के विभिन्न प्रांतों की यात्रा की, जो बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा और पूर्वी उत्तर प्रदेश में हैं। उन्होंने इन सब स्थानों पर उपदेश दिए।

उनके तीन सिद्धान्त, जैन धर्म के तीन रत्न हैं-सम्यक् ज्ञान, सम्यक् धर्म और सम्यक् आचरण। उनके महाव्रत थे-सत्य, अहिंसा, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। उनका ध्येय था कि हर मनुष्य मोक्ष प्राप्त करे। वर्धमान महावीर ने 72 वर्ष की आयु में (527 ईसा पूर्व) बिहार के पावापुरी में निर्वाण प्राप्त किया था। आज उनके सिद्धांतों का संपूर्ण विश्व अनुसरण करता है।

Essay on Bhagwan Mahavir in Hindi

धर्म की संस्थापना करने वाले तथा सज्जन व्यक्तियों की रक्षा के लिए दुष्टों से बचने का मार्ग दिखाने वाले भगवस्वरूप महावीर स्वामी जी का जन्म उस समय हुआ जब यज्ञों का महत्त्व बढ़ने के कारण केवल ब्राह्मणों की ही प्रतिष्ठा समाज में लगातार बढ़ती जा रही थी। पशुओं की बलि देने से यज्ञ-विधान महंगे हो रहे थे। इससे उस समय का जन समाज मन-ही-मन पीड़ित और तंग था क्योंकि इससे ब्राह्मणवादी चेतना सभी जातियों को हीन और मलीन समझ रही थी। कुछ समय बाद तो समाज में यह भी असर पड़ने लगा कि धर्म आडम्बर बनकर सभी ब्राह्मणेतर जातियों को दबा रहा है।

वही जाति प्रलान ब्राह्मण जाति गर्वित होकर अन्य जातियों को पीड़ित करने लगी। इसी समय देवी कृपा से महावीर स्वामी ने धर्म के सच्चे स्वरूप को समझाने के लिए परस्पर भेदभाव की गहराई को भरने के लिए सत्यस्वरूप में इस पावन भारत भूमि पर प्रकट हुए।

महावीर स्वामी का जन्म आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व बिहार राज्य के वैशाली के कुण्डग्राम में लिच्छवी वंश में हुआ था। आपके पिता श्री सिद्धार्थ वैशाली के क्षत्रिय शासक थे। आपकी माताश्री त्रिशला देवी धर्म-परायण भारतीयता की साक्षात् प्रतिमूर्ति थीं। बाल्यावस्था में महावीर स्वामी का नाम वर्धमान था । किशोरावस्था में एक भयंकर नाग तथा मदमस्त हाथी को वश में कर लेने के कारण आप महावीर के नाम से पुकारे जाने लगे थे।

यद्यपि आपको पारिवारिक सुखों की कोई कमी न थी लेकिन ये पारिवारिक सुख तो आपको आनन्दमय और सुखमय फूल न होकर दुःख एवं काँटों के समान चुभने लगे थे। आप सदैव संसार की असारता पर विचारमग्न रहने लगे। आप बहुत ही दयालु और कोमल स्वभाव के थे। अतः प्राणियों के दुःख को देखकर संसार से विरक्त से रहने लगे।

युवावस्था में आपका विवाह एक सुन्दरी राजकुमारी से हो गया। फिर भी आप अपनी पत्नी के प्रेमाकर्षण में बंधे नहीं अपितु आपका मन संसार से और अधिक उचटता चला गया। अट्ठाइस वर्ष की आयु में आपके पिताजी का निधन हो गया। इससे आपका वैरागी मन और खिन्न हो गया। आप इसी तरह संसार से वैराग लेने के लिए चल पड़े लेकिन ज्येष्ठ भाई नन्दिवर्धन के आग्रह पर दो वर्ष और गृहस्थ जीवन के जैसे-तैसे काट दिए। इन दो वर्षों के भीतर महावीर स्वामी ने मनचाही दान-दक्षिणा दी। लगभग तीस वर्ष की आयु में आपने सन्यास पथ को अपना लिया।

आपने इस पथ के लिए गुरुवर पार्श्वनाथ का अनुयायी बनकर लगभग बारह वर्षों तक अनवरत कठोर साधना की थी। इस विकट तपस्या के फलस्वरूप आपको सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ। अब आप ने जंगलों की साधना को छोड़कर शहरों में अपने साधनारत् कर्म का विस्तार किया। आप जनमानस को विभिन्न प्रकार के ज्ञानोपदेश देने लगे।

आपने लगभग 40 वर्षों तक बिहार प्रान्त के उत्तर-दक्षिण स्थानों में अपने मतों का प्रचार कार्य किया। इस समय आपके अनेकानेक शिष्य प्रशिष्य बनते गए और वे सभी आपके सिद्धान्त-मतों का प्रचार कार्य करते गए। महावीर स्वामी ने जीवन का लक्ष्य केवल मोक्ष प्राप्ति माना है।

आपने अपनी ज्ञान किरणों के द्वारा जैन धर्म का प्रवर्तन किया। जैन धर्म के पाँच मुख्य सिद्धान्त हैं-सत्य, अहिंसा, चोरी न करना, आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना और जीवन में शुद्धाचरण। इन पाँचों सिद्धान्तों पर चलकर ही मनुष्य मोक्ष या निर्वाण प्राप्त कर सकता है।

महावीर स्वामी ने सभी मनुष्यों को इस पथ पर चलने का ज्ञानोपदेश दिया है। भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर के रूप में आज भी सुश्रद्धा और ससम्मान पूज्य और आराध्य हैं यद्यपि आपकी मृत्यु 92 वर्ष की आयु में पावापुरी नामक स्थान में बिहार राज्य में हुई लेकिन आज भी आप अपने धर्म प्रवर्तन पथ पर महान कार्यों से हमारे अज्ञानान्धकार को दूर कर रहे हैं।

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Written by

Romi Sharma

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