चांदनी रात का वर्णन Essay on Chandni Raat ka Varnan in Hindi

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हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाये है चांदनी रात पर निबंध। सूर्य, चन्द्रमा एवं तारों का उदय तथा अस्त प्रकृति की नियमबद्धता का प्रमाण है Essay on Chandni Raat ka Varnan in Hindi की जानकारी जिससे आपको निबंध लिखने में बहुत मदद मिलेगी ।

essay on Chandni Raat

चांदनी रात का वर्णन

सूर्य, चन्द्रमा एवं तारों का उदय तथा अस्त प्रकृति की नियमबद्धता का प्रमाण है। चन्द्रमा पृथ्वी का एक मास में एक चक्कर पूरा करता है। चन्द्रमा उदय तथा अस्त शनैः शनैः करता है। न तो एकदम पूर्णिमा (चाँदनी रात) होती – है और न ही अमावस्या (अँधेरी रात)। चाँदनी रात में चन्द्रमा की शोभा देखते ही बनती है। चारों ओर चन्द्र किरणों की उज्जवल तथा शीतल ज्योत्सना का साम्राज्य होता है। सम्पूर्ण जगत कांति से आलोकित हो जाता है। पूर गगन-मंडल में शुभ्रता छा जाती है। कवियों का हृदय तो जैसे चाँदनी रात की सुन्दरता देखकर मचल ही उठता है। वे तो अपनी सुध-बुध ही भूल जाते हैं।

सर-सरोवरों, झरनों, समुद्रों, नद-नदियों सभी में चाँदनी रात का दृश्य अत्यन्त विलक्षण तथा आकर्षक होता है। जल की स्वच्छ नीलिमा से चन्द्रमा की परछाई हिलोरे लेने लगती है। उपवन में विकसित फूल अपनी महक से वातावरण को और भी मादक बना देते हैं। चाँदनी रात में तो ताजमहल  की सुन्दरता में जैसे चार चाँद लग जाते हैं। दूध से सफेद संगमरमर से निर्मित यह भव्य इमारत उज्जवल चाँदनी में जगमग-जगमग करती हुई बहुत ही सुन्दर । लगती है। कौन पत्थर दिल ऐसा होगा, जो ऐसी खूबसूरती का दीवाना न  हो जाए। चाँदनी रात में नौका-विहार का अपना अलग ही आनंद है।

नदी तट का शान्त तथा शीतल वातावरण मन में आनंद के हिलोरे लेने लगता है। जल में प्रतिबिम्बित होते तारों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वे सारे पानी के अन्दर घुसकर कुछ ढूँढ रहे हैं, लेकिन चाँदनी रात का दृश्य सबके लिए सब जगह सर्वप्रिय हो, ऐसा नहीं है। चौर्य-कर्मी ऐसी रात को अपना शत्रु मानते हैं, इसके अस्तित्व में वे अपने कर्म की सफलता में संदेह अनुभव करते हैं। इसी प्रकार विरह वेदना से पीड़ित नायिका को चाँदनी रात और भी संतप्त कर देती है।

फिर भी तप हरण करने वाली, सहृदयों के हृदय को प्रफुल्लित करने वाली तथा शुभ्र ज्योत्सना से जगमगाती चाँदनी रात्रि का वर्णन अवर्णनीय है।

 

चांदनी रात का वर्णन

नौका-विहार करना एक अच्छा शौक, एक स्वस्थ खेल, एक प्रकार का श्रेष्ठ व्यायाम तो है ही साथ ही, मनोरंजन का भी एक अच्छा साधन है। सुबह-शाम या दिन में तो लोग नौकायन या नौका-विहार किया ही करते हैं, पर चांदनी रातों में ऐसा करने का सुयोग कभी कभार ही प्राप्त हो पाता है। गत वर्ष शरद पूर्णिमा की चांदनी में नौका विहार का कार्यक्रम बनाकर हम कुछ मित्र (पिकनिक) मनाने के मूड में सुबह सवेरे ही खान-पान एवं मनोरंजन का कुछ सामान लेकर नगर से कोई तीन किलोमीटर दूर बहने वाली नदी तट पर पहुँच गए।

वर्षा बीत जाने के कारण नदी तो यौवन पर थी ही, शरद ऋतु का आगमन हो जाने के कारण प्राकृतिक वातावरण भी बड़ा सुन्दर सुखद, सजीव और निखार पर था। लगता था कि वर्षा ऋतु के जल ने प्रकृति का कण-कण, पत्ता-पत्ता धो-पोंछ कर चारों ओर सजा संवार दिया है।

मन्द-मन्द पवन के झोंके चारों ओर सुगन्धी को बिखेर वायुमण्डल और वातावरण को सभी तरह से निर्मल और पावन बना रहे थे। उस सबका आनन्द भोगते हुए आते ही घाट पर जाकर हमने नाविकों से मिलकर रात में नौका विहार के लिए दो नौकायें ठीक कर ली और फिर खाने पीने, खेलने, नाचने गाने, गप्पे और चुटकलेबाजी व्यायाम का अनुशासन से सीधा संबंध है। हमें शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के लिए व्यायाम की आवश्यकता होती है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि शरीर को विस्तार देने की क्रियाएं व्यायाम हैं।

चांदनी रात का वर्णन

चन्द्रमा रात्रि का राजा है एवं आकाश का वैभव है। चांदनी रात में सैर एक नवीन एवं मत्रं मुग्ध करने वाला अनुभव है। चांदनी रात में टहलने से जो मानसिक प्रसन्नता एंव स्वर्गिक आन्नद प्राप्त होता है उसको शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता। चान्दनी रात में टहलने से न केवल पूरे दिन की थकान मिट जाती है अपितु इससे हमारा मनो:मस्तिष्क ताज़ा हो जाता है एवं आत्मिक शन्ति प्राप्त होती है। चांदनी रात में

वातावरण पूर्णतयः

शान्त होता है अगर हम शहर की नीरसता से थोड़ा दूर देहात की ओर चले जायें तो प्रदूषण रहित स्वच्छ शीतल वातावरण का सानिध्य प्राप्त होता है। चांद की किरणें प्रकृति के हर रूप का चुम्बन करती हुई प्रतीत होती हैं। मन ठगा सा रह जाता है। आंखे बंद कर चांदनी आत्मा में उतर जाती है। बुद्धि स्वतन्त्र विचरण करने लगती है मन में नये विचार जन्म लेने लगते हैं।

चांदनी रात हमारे मनो:

मस्तिष्क को स्फूर्ति प्रदान करती है। चांदनी रात में प्राकृतिक दृश्यावाली और भी निखर जाती है। चांद प्रकाश स्तम्भ की तरह अधरी रात में हमारा मार्गदर्शन करता प्रतीत होता है। इस तरह की चांदनी रात में शहरों के शोर-शराबे एवं गन्दगी से दूर जब हम अपने प्रिय मित्र समूह के साथ होते हैं चुटकले सुनाते, गपशप करते तो हम आन्नद से सरोबार हो जाते हैं। सितारों के बीच चांद उनका अभिभावक महसूस होता है।

प्रकृति चांदनी के रंग की तिल्लेदार जड़ाउ चादर ओढ़ लेती है हर वस्तु गुनगुनाती, चहकती हुई लगती है। फूलों की भीनी-भीनी सुगन्ध वातावरण को सुगन्धित बना देती है, फूल, पत्ते शीतल बयार की धुन पर नृत्य करने लगते है एवं पेड़-पौधे मन्द-मन्द हवा से फुसफुसा कर बातें करते हैं तो वातावरण रहस्यमयी बन जाता है।

खेत-खलिहान, फूल, फल एवं नदी सब एक तरंग में बहने लगते हैं। वातावरण में चांद का साम्राज्य छा जाता है। वस्तुतः चांदनी रात नेत्रों के लिये वरदान है। सर्वोतम दृश्य तारों जड़ी द्रश्यावली एवं प्रकृति की ध्वनि के साथ मन झूम उठता है। चांदनी रात में शरारतें करने, गुनगुनाने एवं छेड़छाड़ करने का अपना ही आन्नद है।

चांदनी रात की उस सैर की स्मृतियां मेरे मन में बिलकुल ताज़ा हैं और मुझे स्फूर्ति प्रदान करती हैं। चांदनी रात में सैर एक अच्छा अनुभव है जो हमें प्रकृति के और समीप लाता है।

Essay on Chandni Raat ka Varnan in Hindi

 

नौका-विहार करना एक अच्छा शौक, एक स्वस्थ खेल, एक प्रकार का श्रेष्ठ व्यायाम तो है ही सही, मनोरंजन का भी एक अच्छा साधन है। सुबह-शाम या दिन में तो लोग नौकायन या नौका-विहार किया ही करते हैं, पर चांदनी रात में ऐसा करने का सुयोग कभी कभार ही प्राप्त हो पाता है। गत वर्ष शरद पूर्णिमा की चांदनी में नौका विहार का कार्यक्रम बनाकर हम कुछ मित्र (पिकनिक) मनाने के मूड में सुबह सवेरे ही खान-पान एवं मनोरंजन का कुछ सामान लेकर नगर से कोई तीन किलोमीटर दूर बहने वाली नदी तट पर पहुँच गए।

वर्षा बीत जाने के कारण नदी तो यौवन पर थी ही, शरद ऋतु का आगमन हो जाने के कारण प्राकृतिक वातावरण भी बड़ा सुन्दर सुखद, सजीव और निखार पर था। लगता था कि वर्षा ऋतु के जल ने प्रकृति का कण-कण, पत्ता-पत्ता धो-पोंछ कर चारों ओर सजा संवार दिया है। मन्द-मन्द पवन के झोंके चारों ओर सुगन्धी को बिखेर वायुमण्डल और वातावरण को सभी तरह से निर्मल और पावन बना रहे थे। उस सबका आनन्द भोगते हुए आते ही घाट पर जाकर हमने नाविकों से मिलकर रात में नौका विहार के लिए दो नौकायें तै कर ली और फिर खाने-पीने, खेलने, नाचने गाने, गप्पे और चुटकलेबाजी में पता ही नहीं चल पाया कि सारा दिन कब बीत गया। शाम का साया फैलते ही हम लोग चाय के साथ कुछ नाश्ता कर, बाकी खाने-पीने का सामान हाथ में लेकर नदी तट पर पहुँच गए।

वहाँ से की गई दोनों नौकाओं के नाविक पहले से ही हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। सो हम लोगों के सकार होते ही उन्होंने चप्पू सम्हाल कलछल बहती निर्मल जलधारा पर हंसिनी-सी तैरने वाली नौकायें छोड़ दी।

तब तक शरद पूर्णिमा का चांद आकाश पर पूरे निखार पर आकर अपनी उजली किरणों से अमृत वर्षा करने लगा था। हमने सुन रखा था कि शरद पूर्णिमा की रात चाँद की किरणें अमृत बरसाया करती हैं, सो उनकी तरफ देखना एक प्रकार की मस्ती और पागलपन का संचार करने वाला हुआ करता है। इसे गप्प समझने वाले हम लोग आज सचमुच उस सबका वास्तविक अनुभव कर रहे थे। चप्पू चलने से कलछल करती नदी की शान्त धारा पर हंसिनी-सी नाव धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी। किनारे क्रमश: हमसे दूर छिटकते जा रहे थे। दर हटते किनारों और उन पर उगे वृक्षों के झाड़ों की परछाइयां धारा में बड़ा ही सम्मोहक सा दृश्य चित्र प्रस्तुत करने लगी थीं।

कभी-कभी टिटीहरी या किसी अन्य पक्षी के एकाएक चहक उठने, किसी अनजाने पक्षी के पंख फड़फड़ा कर हमारे ऊपर से फुर्र करके निकल जाने पर वातावरण जैसे कुछ सनसनी सी उत्पन्न कर फिर एकाएक रहस्यमय हो जाता। फटी और विमुग्ध आंखों से सब देखते सुनते हम लोग लगता कि जैसे अदृश्यर्व परीलोक में आ पहुँचे हों।

चांद नशीला होकर कुछ और ऊपर उठ आया था। हमारी नौका अब नदी की धारा के मध्य तक पहुंच चुकी थी। नाविक ने लग्गी से थाह नापने का असफल प्रयास करते हुए बताया कि वहां धारा जल अथाह है, अमाप है। हमने उस पारदर्शी जल के भीतर तक देखने का प्रयास किया कि जो नाव के प्रवाह के कारण हिल रहा था। उसके साथ ही हमें परछाई के रूप में धारा में समाया बैठा चांद और असंख्य तारों का संसार भी हिलता-डुलता नजर आया। ऐसा अनुभव हुआ कि जैसे धारा का भीतरी भाग उजली रेशम पर जड़े तारों और चाँद का ही बुना या बना हुआ है। तभी कहीं दूर से पपीहे का स्वर सुनाई दिया और इसके साथ ही नाविकों ने विरहा की कोई सम्मिलित तान छेड़ दी।

नाविकों ने अब चप्पू चलाना बन्द कर दिया था। लगातार खुमार में वृद्धि पाती उस चांदनी रात में हमारी नौकाएँ अब मन की मौजों की तरह स्वेच्छा से बही चली जा रही थीं। पता नहीं कहाँ या किधर ? चारों ओर का वातावरण और भी नशीला हो गया था। हम जो नौकाओं में गाने-बजाने के लिए अपने वाद्य लाए थे, उनकी तरफ देखने-छूने तक की फुर्सत हमें अनुभव नहीं हुई। चांदनी रात और उसमें जलधारा पर विहार करती नौका के कारण जिस एक मादक प्राकृतिक गीत-संगीत की सृष्टि हो रही थी, कि उसके सामने और कुछ याद रख या कर पाना कतई संभव ही नहीं था।

बस, एक-दूसरे की तरफ देखते हुए हम लोग केवल बहते-अनकही कहते रहे। तभी नाविकों के स्वर रुके और हाथ चप्पू की ओर बढ़ गए। कहीं दूर किसी कारखाने का सुबह की पाली आरम्भ होने का गजर बज उठा और एक दूसरे से कुछ कहकर नाविकों ने नावों के रुख पीछे की तरफ मोड़ दिए। हमने खुली आंखों से देखा कि पहले से ही फीके लगने वाले तारे अब और भी फीके पड़ने लगे थे। चाँद ने भी जैसे अपनी किरणें समेटना शुरू कर दिया था। इधर-उधर से पक्षियों के चहकने के स्वर सुनाई पड़ने लगे थे और हमारी नावें कहीं तेज गति से किनारे की तरफ बढ़ रही थीं।

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Written by

Romi Sharma

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