परतन्त्रता : एक अभिशाप पर निबंध | Essay on Subordination

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हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाया हु परतन्त्रता : एक अभिशाप पर निबंध पर पुरा आर्टिकल लेकर आया हु। इस आर्टिकल में हम आपके लिए लाये है परतन्त्रता एक अभिशाप की पूरी जानकारी जो आपको अपने बच्चे का होमवर्क करवाने में बहुत मदद मिलेगी।

 परतन्त्रता : एक अभिशाप पर निबंध

Essay on Subordination

यदि स्वतन्त्रता सुखों का सागर है, तो पराधीनता दुखों एवं कष्टों की जननी है। पराधीन व्यक्ति के पास चाहे कितनी भी सुख-सुविधाएँ क्यों न हो, वह सच्चे सुख की अनुभूति नहीं कर सकता। पराधीनता तो पशु-पक्षियों की भी मंजूर नहीं होती तभी तो सोने के पिंजरे में बंद तथा सोने की कटोरी में भोजन खाने वाला पक्षी स्वतंत्रता के लिए छटपटाता रहता है। वह तो भूखा रहकर स्वछंदतापूर्वक खुले आकाश में विचरण करना चाहता है।

पराधीन व्यक्ति न तो अपने मन का खा सकता है, न पहन सकता है, न सो सकता है, न कहीं जा सकता है। वह तो बस अपने मालिक की आज्ञा का पालन करता है, अर्थात् उसके पास स्वयं निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं होता। परिणामतः उसकी आत्मा का हनन होता जाता है, उसका आत्म सम्मान खतरे में रहता है, उसकी बुद्धि कुंठित हो जाती है, और उसे विवेक अविवेक का कोई अन्तर समझ में नहीं आता।

वह जडवत् सा अपनात। अपने जीवन का बोझ ढोता है। पराधीन व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास पूर्णतया रुक जाता है। भाव-शून्य होकर उसे अपमानित जीवन जीना पड़ता है। पराधीनता की लज्जा का कलंक सदैव उसके माथे पर लगा रहता है और वह सपने में भी सुख की कल्पना नहीं कर पाता।

तभी तो खूटे से बंधी गाय रस्सी तोड़कर भागना चाहती है तथा पिंजरे में कैद पक्षी पिंजरे के खुलने के इंतजार में रहता है। जब वह ऐसा करने में समर्थ हो जाता है, तो लगता है-जैसे उसे पूरे जमाने की खुशियाँ मिल गई हों।

 

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Written by

Romi Sharma

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