खानजादा मिर्जा खान का जन्म 17 दिसंबर 1556 में हुवा था। ज्यादा तर लोग इन्हें रहिम के नाम से जानते है ये मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल से है।रहिम साहब सम्राट अकबर के न्यायालय में नौ महत्वपूर्ण मंत्रियों (दीवान) में से एक थे, जिन्हें नवरत्न भी कहा जाता था। रहिम अपने उर्दू दोहो और ज्योतिष पर उनकी पुस्तकें के लिए जाने जाते है। खान खाना गांव का नाम उनके नाम पर रखा गया है जो की भारत के पंजाब राज्य के नवनशहर जिले में स्थित है। इस आर्टिकल में हमने रहीम के दोहे – rahim ke dohe in hindi में समझाने की कोशिस की है।
रहिम जी के प्रमुख काम
विभिन्न दोहाओं को लिखने के अलावा, रहिम ने बाबर के संस्मरणों का अनुवाद भी किया है। रहिम जी को संस्कृत भाषा की बहुत ज्यादा नॉलेज थी उन्होंने संस्कृत में दो पुस्तकें लिखीं जिनका नाम है खेटकौतुुकम्) और दवत्रिंश्द्वीवली)।
रहिम का जीवन परिचय
Born | 17 December 1556 Lahore, Pakistan |
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Died | 1627 Agra, India |
Burial | Tomb of Abdul Rahim Khan-i-Khana, Delhi |
Spouse | Mah Banu Begum |
Issue | Jana Begum Two sons |
House | Jalayirid |
Father | Bairam Khan |
Mother | Daughter of Jamal Khan of Mewat |
Religion | Islam |
चलो पढ़ते है रहीम दास के दोहे – Rahim ke Dohe in Hindi:
1. रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिये डार। जहाँ काम आवे सुई कहा करै तलवार।।
रहीम के दोहे हिंदी अर्थ: रहीम कहते हैं कि अगर कोई बड़ी वस्तु मिल जाए तो छोटी को नहीं छोड़ना चाहिए क्यूंकि जो काम एक छोटी सुई कर सकती हैं उसे बड़ी तलवार नहीं कर सकती | अर्थात जो आपके पास हैं उसकी कद्र करे उससे अच्छा मिलने पर जो हैं उसे ना भूले |
2. जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग। चंदन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग।।
रहीम के दोहे हिंदी अर्थ: रहीम कहते हैं जो व्यक्ति योग्य एवम अच्छे चरित्र का होता हैं उस पर कुसंगति भी प्रभाव नहीं डाल सकती जैसे जहरीला नाग अगर चन्दन के वृक्ष पर लिपट जाए तब भी उसे जहरीला नहीं बना सकता |
3. खीरा सिर से काटिये मलियत नमक बनाय। रहिमन करूए मुखन को चहियत इहै सजाय।।
रहीम के दोहे हिंदी अर्थ: रहीम कहते हैं जिस तरह खीरे को काटकर उसमे नमक लगा कर उसके कड़वेपन को दूर किया जाता हैं उसी प्रकार कड़वे व्यक्ति वचन बोलने वाले को भी यही सजा मिलनी चाहिए |
4. रहिमन धागा प्रेम का मत तोरउ चटकाय। टूटे से फिर से ना मिलै, मिलै गांठि परि जाय।।
रहीम के दोहे हिंदी अर्थ: रहीम कहते हैं प्रेम का धागा अर्थात रिश्ता कभी तोड़ना नहीं चाहिए | अगर एक बार यह प्रेम का धागा टूटता हैं तो कभी नहीं जुड़ता और अगर जुड़ भी जाए तो उसमे गांठ पड़ जाती हैं | कहने का मतलब यह हैं कि रिश्तों में दरार आ जाये तो खटास रह ही जाती हैं |
5. रूठे सुजन मनाइये जो रूठे सौ बार। रहिमन फिर फिर पोइये टूटे मुक्ताहार।।
रहीम के दोहे हिंदी अर्थ: रहीम कहते हैं अगर आपका कोई खास सखा अथवा रिश्तेदार आपसे नाराज हो गया हैं तो उसे मनाना चाहिए अगर वो सो बार रूठे तो सो बार मनाना चाहिए क्यूंकि अगर कोई मोती की माला टूट जाती हैं तो सभी मोतियों को एकत्र कर उसे वापस धागे में पिरोया जाता हैं |
6. रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुहँ स्याह। नहीं छलन को परतिया, नहीं कारन को ब्याह
रहीम के दोहे हिंदी अर्थ: रहीम कहते हैं थोड़े दिन के लिए कौन अपना मूंह काला करता हैं क्यूंकि पर नारि को ना धोखा दिया जा सकता हैं और ना ही विवाह किया जा सकता हैं |
7. गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढि। कूपहु ते कहूँ होत है, मन काहू को बाढी ।
रहीम के दोहे हिंदी अर्थ: रहीम कहते हैं जिस तरह गहरे कुंए से भी बाल्टी डालकर पानी निकाला जा सकता हैं उसी तरह अच्छे कर्मों द्वारा किसी भी व्यक्ति के दिल में अपने लिए प्यार भी उत्पन्न किया जा सकता हैं क्यूंकि मनुष्य का ह्रदय कुएँ से गहरा नहीं होता |
8. जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह। धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।
रहीम के दोहे हिंदी अर्थ: रहीम कहते हैं जिस तरह धरती माँ ठण्ड, गर्मी और वर्षा को सहन करती हैं उसी प्रकार मनुष्य शरीर को भी पड़ने वाली भिन्न- भिन्न परिस्थितियों को सहन करना चाहिए |
9. वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।|
रहीम के दोहे हिंदी अर्थ: रहीम कहते हैं जिस प्रकार मेहँदी लगाने वालों को भी उसका रंग लग जाता हैं उसी प्रकार पर नर सेवा करने वाले भी धन्य हैं उन पर नर सेवा का रंग चढ़ जाता हैं |
10. रहिमन मनहि लगाईं कै, देखि लेहू किन कोय। नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय।|
रहीम के दोहे हिंदी अर्थ: रहीम कहते हैं कि शत प्रतिशत मन लगा कर किये गए काम को देखे उनमें कैसी सफलता मिलती हैं | अगर अच्छी नियत और मेहनत से कोई भी काम किया जाए तो सफलता मिलती ही हैं क्यूंकि सही एवम उचित परिश्रम से इंसान ही नहीं भगवान को भी जीता जा सकता हैं |
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Some Popular Rahim ke Dohe
11. बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय. रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय.
मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए,क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा.
12.जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं. गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं.
रहीम कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं घटता, क्योंकि गिरिधर (कृष्ण) को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती.
13. जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह. धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह.
रहीम कहते हैं कि जैसी इस देह पर पड़ती है – सहन करनी चाहिए, क्योंकि इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ती है. अर्थात जैसे धरती शीत, धूप और वर्षा सहन करती है, उसी प्रकार शरीर को सुख-दुःख सहन करना चाहिए.
14. खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय. रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय.
खीरे का कडुवापन दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है. रहीम कहते हैं कि कड़ुवे मुंह वाले के लिए – कटु वचन बोलने वाले के लिए यही सजा ठीक है.
15. दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं. जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं.
कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती।लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है.
16. रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ, जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ.
रहीम कहते हैं की आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा.
17. रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय. सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय.
रहीम कहते हैं की अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता.
18. पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन. अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन.
वर्षा ऋतु को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया है. अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमारी तो कोई बात ही नहीं पूछता. अभिप्राय यह है कि कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रह जाना पड़ता है. उनका कोई आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता है.
19. रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय. हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय.
रहीम कहते हैं कि यदि विपत्ति कुछ समय की हो तो वह भी ठीक ही है, क्योंकि विपत्ति में ही सबके विषय में जाना जा सकता है कि संसार में कौन हमारा हितैषी है और कौन नहीं।
20. वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग. बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग.
रहीम कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है. जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है.
21. समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात. सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात.
रहीम कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है. सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है.
22. वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग. बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग.
रहीम कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है. जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है.
23. ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों. तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै.
ओछे मनुष्य का साथ छोड़ देना चाहिए. हर अवस्था में उससे हानि होती है – जैसे अंगार जब तक गर्म रहता है तब तक शरीर को जलाता है और जब ठंडा कोयला हो जाता है तब भी शरीर को काला ही करता है.
24. वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर !
वृक्ष कभी अपने फल नहीं खाते, नदी जल को कभी अपने लिए संचित नहीं करती, उसी प्रकार सज्जन परोपकार के लिए देह धारण करते हैं !
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25. देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन । लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन
रहीम दास जी कहते हैं कि देने वाला तो कोई और है, वो ईश्वर दिन रात हमको देता ही रहता है। और लोग इतने मूर्ख हैं वो सोचते हैं कि हम ही सब कुछ कर रहे हैं इससे ज्यादा मूर्खता और क्या हो सकती है।
26. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय । रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय
रहीम दास जी कहते हैं कि एक ईश्वर की प्रार्थना करो। पूरी निष्ठा से उपासना करने से सभी मनोकामनायें पूरी होती हैं। अगर बिना मन को शांत किये किसी भी देवी देवता की उपासना की जाये तो कोई मनोकामना पूरी नहीं होगी वो व्यर्थ है। जिस प्रकार कोई माली पेड़ की जड़ की जगह अगर फल, फूल या पत्तियों को सींचता रहे तो पेड़ सूख जायेगा अर्थात हमें जड़ यानि मूल को ही सींचना चाहिए।
27. रहिमन पानी राखिए,बिनु पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे , मोती, मानुष , चून ।।
रहीम दास जी ने इस दोहे में 3 बार पानी शब्द का प्रयोग किया है और हर बार पानी शब्द का अलग मतलब है। 1. पानी = प्रतिष्ठा सम्मान 2. पानी = चमक 3. पानी = जल। प्रत्येक चीज़ के लिए पानी बहुत जरुरी है बिना पानी के संसार कुछ भी नहीं है। इंसान को पानी यानि मान सम्मान बनाये रखना चाहिए। मोती को पानी यानि चमक बनाये रखनी चाहिए नहीं तो उसका कोई मोल नहीं रहेगा। और पानी यानि जल के बिना तो हर जीव का जीवन ही खत्म हो जायेगा।
28. तरुवर फल नहिं खात है,सरवर पियहि न पान। कहि रहीम पर काज हित ,संपति सँचहि सुजान।।
रहीमदास जी कहते हैं कि पेड़ अपने फल खुद नहीं खाता और समुद्र अपना पानी खुद नहीं पीता। रहीमदास जी कहते हैं कि सज्जन लोग हमेशा दूसरों के लिए जीते हैं। परोपकारी लोग सुख संपत्ति भी केवल परोपकार के लिए ही जोड़ते हैं।
29. जे गरीब सों हित करें ,ते रहीम बड़ लोग। कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।
रहीमदास जी कहते हैं कि जो लोग गरीबों की मदद करते हैं, हर संभव तरीके से उनके हित की बात सोचते हैं। ऐसे लोग महान होते हैं। सुदामा एक गरीब इंसान थे और श्री कृष्णा द्वारिका के राजा थे लेकिन कृष्ण ने मित्रता निभाई और आज उन दोनों की मित्रता के किस्से बड़ी महानता से सुनाये जाते हैं।
30. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। चंदन विष ब्यापत नहीं , लिपटे रहत भुजंग।।
रहीमदास जी कहते हैं कि जो लोग अच्छे विचारों वाले और सज्जन होते हैं उनपर दुष्टता का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जैसे चन्दन के पेड़ पर सांप लिपटे रहते हैं लेकिन फिर भी चन्दन अपनी खुशबु और गुण नहीं छोड़ता।
दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय।
जो सुख में सुमिरन करें, तो दुःख काहे होय।।