तुलसीदास को गोस्वामी तुलसीदास भी कहा जाता है वे रामानंद सम्प्रदाय के एक हिंदू कवि-संत, सुधारक और दार्शनिक माने जाते है । तुलसीदास को भगवान श्री राम (lord Ram) के प्रति अपनी भक्ति के लिए भी जाने जाते है। तुलसीदास जी प्रसिद्ध जगदगुरु रामानंद आचार्य की वंश सिंकृत और अवधी में कई लोकप्रिय रचनाओं के लेखक भी है। लेकिन तुलसीदास को उन्हें किये गए योगदान रामचरित्रमानस के रूप में पुरे भारत में जाना जाता है। उन्हें हनुमान चालीसा के जनक भी माना जाता है जो की सिर्फ हनुमान जी को समर्पित एक लोकप्रिय भक्ति गीत है । आप Tulsi Das Ke Dohe in Hindi में पढ़ सकते है
तुलसीदास ने अपना अधिकांश जीवन वाराणसी शहर में बिताया है । वाराणसी में गंगा नदी के घाट का नाम उनके नाम पर “तुलसी घाट” रखा गया है। उन्होंने वाराणसी में संकटमोचन हनुमान के मंदिर की स्थापना की जहां पर उन्होंने हनुमान को देखा था। तुलसीदास ने रामलीला का नाटक शुरू किया। उन्हें हिंदी, भारतीय और विश्व साहित्य में सबसे महान कवियों में से एक माना गया है। भारत में कला, संस्कृति और समाज पर तुलसीदास और उनके कार्यों का असर व्यापक है और रामलीला का नाटक, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत, लोकप्रिय संगीत और टेलीविजन श्रृंखला को आप अपने स्थानीय भाषा में देख सकते है।
क्रमांक | जीवन परिचय बिंदु | तुलसीदास जीवन परिचय |
1. | पूरा नाम | गोस्वामी तुलसीदास |
2. | बचपन का नाम | रामबोला, तुलसीराम |
3. | जन्म | सावन माह शुक्ल पक्ष सप्तमी 1532 या 1589 |
4. | जन्म स्थान | राजापुर |
5. | पिता-माता | आत्माराम शुक्ल दुबे, हुलसी |
6. | पत्नी | रत्नावली |
7. | गुरु | नरहरिदास |
8. | मुख्य रचना | रामचरितमानस |
9. | मृत्यु | 1680 |
Tulsi Das Ke Dohe in Hindi – तुलसीदास जी के प्रसिद्द दोहे हिंदी अर्थ सहित
1. राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार | तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||
तुलसीदासजी कहते हैं कि हे मनुष्य ,यदि तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज़ पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो |
2. नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु | जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||
राम का नाम कल्पतरु (मनचाहा पदार्थ देनेवाला ) और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर ) है,जिसको स्मरण करने से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया |
3. तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||
गोस्वामीजी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं |सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार साँप का है |
4.सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु | बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||
शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं ,कहकर अपने को नहीं जनाते |शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं |
5. सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||
स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता ,वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है |
6. मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक | पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||
तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है |
7. सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस | राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||
गोस्वामीजी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है |
8. तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर | बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ||
तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं |किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे |
9. सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि | ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||
जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं |दरअसल ,उनका तो दर्शन भी उचित नहीं होता |
10. दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान | तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||
गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होता है|
11. आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह| तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह||
जिस जगह आपके जाने से लोग प्रसन्न नहीं होते हों, जहाँ लोगों की आँखों में आपके लिए प्रेम या स्नेह ना हो, वहाँ हमें कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ धन की बारिश ही क्यों न हो रही हो|
12. तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक| साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक||
तुलसीदास जी कहते हैं, किसी विपत्ति यानि किसी बड़ी परेशानी के समय आपको ये सात गुण बचायेंगे: आपका ज्ञान या शिक्षा, आपकी विनम्रता, आपकी बुद्धि, आपके भीतर का साहस, आपके अच्छे कर्म, सच बोलने की आदत और ईश्वर में विश्वास|
13. तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान| भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण||
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, समय बड़ा बलवान होता है, वो समय ही है जो व्यक्ति को छोटा या बड़ा बनाता है| जैसे एक बार जब महान धनुर्धर अर्जुन का समय ख़राब हुआ तो वह भीलों के हमले से गोपियों की रक्षा नहीं कर पाए
14. तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए| अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए||
तुलसीदास जी कहते हैं, ईश्वर पर भरोसा करिए और बिना किसी भय के चैन की नींद सोइए| कोई अनहोनी नहीं होने वाली और यदि कुछ अनिष्ट होना ही है तो वो हो के रहेगा इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़ अपना काम करिए|
15. तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग| सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग||
तुलसीदास जी कहते हैं, इस दुनिय में तरह-तरह के लोग रहते हैं, यानी हर तरह के स्वभाव और व्यवहार वाले लोग रहते हैं, आप हर किसी से अच्छे से मिलिए और बात करिए| जिस प्रकार नाव नदी से मित्रता कर आसानी से उसे पार कर लेती है वैसे ही अपने अच्छे व्यवहार से आप भी इस भव सागर को पार कर लेंगे|
16. लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन| अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन||
बारिश के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी अधिक हो जाती है कि कोयल की मीठी बोली उस कोलाहल में दब जाती है| इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है| यानि जब मेंढक रुपी धूर्त व कपटपूर्ण लोगों का बोलबाला हो जाता है तब समझदार व्यक्ति चुप ही रहता है और व्यर्थ ही अपनी उर्जा नष्ट नहीं करता|
17. काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान| तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान||
तुलसीदास जी कहते हैं, जब तक व्यक्ति के मन में काम, गुस्सा, अहंकार, और लालच भरे हुए होते हैं तब तक एक ज्ञानी और मूर्ख व्यक्ति में कोई भेद नहीं रहता, दोनों एक जैसे ही हो जाते हैं|
18. सुर समर करनी करहीं कहि न जनावहिं आपु, विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु.
शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं, कहकर अपने को नहीं जनाते. शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डिंग मारा करते हैं.
19. बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय, आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय
तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है, उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है. ठीक वैसे ही जैसे, जब राख की आग बुझ जाती हैं, तो उसे हर कोई छुने लगता है.
20.सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानी, सो पछिताई अघाइ उर अवसि होई हित हानि.”
स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सिख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता, वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती हैं.
Kuch aur Popular Tulsi Das Ke Dohe in Hindi:
21. नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु. जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास
राम का नाम कल्पतरु और कल्याण का निवास हैं, जिसको स्मरण करने से भाँग सा तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया.
22. मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूँ एक, पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक
मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने पिने को तो अकेला हैं, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगो का पालन पोषण करता हैं.
23. रम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार तुलसी भीतर बाहेर हूँ जौं चाहसि उजिआर.
मनुष्य यदी तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखीरूपी द्वार की जिभरुपी देहलीज पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो.
24. काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान । तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान ।।
तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि जब किसी व्यक्ति के मन में काम, क्रोध, आलस्य, लालच और अहंकार से भर जाता है। तो एक ज्ञानी व्यक्ति और मूर्ख अंतर नहीं रह जाता। अर्थात ज्ञानी व्यक्ति भी मूर्ख के समान हो जाता है
25.तनु गुन धन महिमा धरम, तेहि बिनु जेहि अभियान। तुलसी जिअत बिडम्बना, परिनामहु गत जान।।
तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि तन की सुंदरता, अच्छे गुण, धन, यश और धर्म के बिना भी जिन लोगों में अभिमान है। ऐसे लोगों पूरा जीवन दुःख भरा होता है जिसका परिणाम बुरा ही होता है।
Kabir Das Ke Dohe in Hindi | कबीर के दोहे का हिंदी में अर्थ जाने
26. बचन बेष क्या जानिए, मनमलीन नर नारि। सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि।।
तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि मधुर भाषा और अच्छे वस्त्रों से किसी व्यक्ति के बारे में ये नहीं जाना जा सकता कि वह अच्छा है या बुरा। मधुर भाषा और अच्छे वस्त्रों से किसी के मन के विचारों को नहीं जाना जा सकता। जैसे शूपर्णखां, मरीचि, पूतना और रावण के वस्त्र अच्छे थे लेकिन मन मैला था
27. तुलसी’ जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ। तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोइ।।
तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि दूसरों की बुराई करके स्वयं प्रतिष्ठा पा जाने का विचार बहुत ही मूर्खतापूर्ण है। ऐसे दूसरों की बुराइयाँ करके अपनी तारीफ करने वालों के मुख पर एक दिन ऐसी कालिख लगेगी जो धोने से भी नहीं मिटेगी
28. तुलसी’ किएं कुंसग थिति, होहिं दाहिने बाम। कहि सुनि सुकुचिअ सूम खल, रत हरि संकंर नाम।
तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि बुरी संगति से अच्छे लोग भी बदनाम हो जाते हैं और अपनी स्वयं की प्रतिष्ठा को गवाँकर लघुता को प्राप्त होते हैं। बुरी संगत वाले किसी स्त्री या पुरुष का नाम देवी देवता के नाम से रख देने पर भी वो बदनाम ही रहते हैं। ऐसे लोगों का कहीं सम्मान नहीं होता
गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के महान कवि थे। इनका जन्म सोरों शूकरक्षेत्र, वर्तमान में कासगंज (एटा) उत्तर प्रदेश में हुआ था। कुछ विद्वान् आपका जन्म राजापुर जिला बाँदा(वर्तमान में चित्रकूट) में हुआ मानते हैं। इन्हें आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। श्रीरामचरितमानस का कथानक रामायण से लिया गया है। रामचरितमानस लोक ग्रन्थ है और इसे उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। इसके बाद विनय पत्रिका उनका एक अन्य महत्वपूर्ण काव्य है। महाकाव्य श्रीरामचरितमानस को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में ४६वाँ स्थान दिया गया।
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- तुलसीदास के दोहे अर्थ सहित
Contents
- Tulsi Das Ke Dohe in Hindi – तुलसीदास जी के प्रसिद्द दोहे हिंदी अर्थ सहित
- 1. राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार | तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||
- 2. नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु | जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||
- 3. तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||
- 4.सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु | बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||
- 5. सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||
- 6. मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक | पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||
- 7. सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस | राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||
- 8. तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर | बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ||
- 9. सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि | ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||
- 10. दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान | तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||
- 11. आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह| तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह||
- 12. तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक| साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक||
- 13. तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान| भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण||
- 14. तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए| अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए||
- 15. तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग| सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग||
- 16. लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन| अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन||
- 17. काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान| तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान||
- 18. सुर समर करनी करहीं कहि न जनावहिं आपु, विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु.
- 19. बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय, आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय
- 20.सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानी, सो पछिताई अघाइ उर अवसि होई हित हानि.”
- Kuch aur Popular Tulsi Das Ke Dohe in Hindi:
- 21. नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु. जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास
- 22. मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूँ एक, पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक
- 23. रम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार तुलसी भीतर बाहेर हूँ जौं चाहसि उजिआर.
- 24. काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान । तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान ।।
- 25.तनु गुन धन महिमा धरम, तेहि बिनु जेहि अभियान। तुलसी जिअत बिडम्बना, परिनामहु गत जान।।
- 26. बचन बेष क्या जानिए, मनमलीन नर नारि। सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि।।
- 27. तुलसी’ जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ। तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोइ।।
- 28. तुलसी’ किएं कुंसग थिति, होहिं दाहिने बाम। कहि सुनि सुकुचिअ सूम खल, रत हरि संकंर नाम।