Mulla Nasruddin Stories in Hindi – मुल्ला नसरुद्दीन ओशो के किस्से व कहानियां

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दोस्तों आज में आपके लिए लाया हु mulla nasruddin की कहानिया जो आपको रोमांचित कर देंगी। mulla nasruddin अपनी रोचक कहानियों के लिए ज्यादा जाने जाते है इनका जन्म Hortu Village in Sivrihisar जो की तुर्की में है। आइए पढ़ते है Mulla Nasruddin Stories in Hindi भाषा में जो आपको अच्छे से समझ आ जायँगी।

 

 Mulla Nasruddin Story No. 1: असली कौन.नकली कौन ?

 

Mulla Nasruddin Stories

बूढ़े मौलाना हुसैन ने खुद को संभाला और घुटनों क बल बैठ गया। उसका सारा बदन कांप रहा था। वह रहम की याचना कर रहा था। अमीर ने सख्त लहजे में कहा”इस बागी काफिर को सीधा खड़ा करो” सिपाहियों ने उसे उठाकर खड़ा कर दिया

अमीर और कोई हुक्म जारी करता, इसक पहल हां असंला बंग आग बढ़कर बाला, “आपके हर हुक्म की तामील होगी, लेकिन मेरी अर्ज भी सुन लें।”
“क्या बकना चाहते हो, बोलो?”
‘हुजूरमेरा यकीन करें, यह बूढ़ा नसरुद्दीन नहीं हो सकता वह जवान है, करीब तीस साल का बांका। सिपाहियों को जरूर कोई धोखा हुआ है। ये लोग इनाम के लालच में किसी को भी नसरुद्दीन समझ कर पकड़ लेते हैं।”

इधर बूढ़ा कांपती आवाज में कह रहा था, “अमीरे आजम मैं तो बगदाद से यहां सीधा आपसे मिलने आया था। बाजार में अफरातफरी मची हुई थी।

एक अजनबी मुझे भीड़ से बचाकर एकांत में ले गया और बताया कि बुखारा के अमीर ने मुनादी करवाई है
कि शहर में मेरे दाखिल होते ही मेरा सिर कलम कर दिया जाए। मैं डर गया और भेस बदलकर भागने को तैयार हो गया। मैं बगदाद के खलीफा का खास आलिम मौलाना हुसैन । खासतौर पर आपके लिए बुखारा भेजा गया । ”
तू और मौलाना हुसैन! ऐसा सफेद झूठ मैंने आज तक नहीं सुना। तू जरूर कोई धोखेबाज है।”

 

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“अमीरे आजम मुझे झूठ बोलने की क्या जरूरत? सचमुच में ही मौलाना हुसैन हूं।” तुम मौलाना हुसैन हो ही नहीं सकते असली मौलाना हुसैन तो यह देखो मेरे बगल में बैठे हैं।”

नसरुद्दीन ने गर्दन आगे बढ़ा दी। उस पर नजर पड़ते ही बूढ़ा डर और ताज्जुब से वह सहमकर एक कदम पीछे सरक गया, धीरे-से बोला, “हुजूर यही है मक्कार अजनबी।

अमीर ने नसरुद्दीन की ओर देखा, “यह क्या कहता है, मौलाना हुसैन? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा। ” नसरुद्दीन कुछ कहता, इसके पहले ही बूढ़े ने जोर देकर कहा, “इसमें समझना क्या ।

है मेरे आकायह कोई बहरूपिया है। बगदाद का असली मौलाना हुसैन तो मैं हूं हुजूर इसने मेरा नाम चुराया है।”
नसरुद्दीन मुस्करा कर कहा, “हुजूर, यह बुड्ढा तो गजब का गुस्ताख है।कहता है। मैंने इसका नाम चुराया है, अब कहेगा, मैंने इसकी पोशाक भी चुराई है।”

“बिलकल ठीक, यह पोशाक भी मेरी है। ”

नसरुद्दीन अमीर की ओर देखकर बोला, “सुन लिया आपने, मैं न कहता था कि यह बूढ़ा मक्कार और जालसाज है। झूठ बोलने में इसका जवाब नहीं।”

अमीर ने सिर हिलाया, “तुम्हारी बातों में दम है, मौलाना हुसैन। यह खतरनाक शख्स हमारा नुकसान करने के इरादे से महल में घुसा है। इसका जिंदा रहना ठीक नहीं, क्यों न इसका सिर कलम करवा दिया जाए।”

बूढ़ा आलिम हुसैन फूटफूटकर रो पड़ा। वह उस घड़ी को कोस रहा था, जब उसने बुखारा आने का फैसला किया था। नसरुद्दीन असलियत जानता था।

सो बोला, “इसका सिर कलम करवाने में जल्दबाजी न करेंमुझे इसकी हरकत के पीछे गहरी चाल नजर आती है। यह अकेला नहीं हो सकता इसके जरूर कई साथी भी होंगे। क्या पता यह बागी नसरुद्दीन की शरारत हो। मेरी राय है, पहले इससे अच्छी तरह पूछताछ की जाए।

 

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मैं चाहता हूं, इसे मेरे हवाले कर दिया जाए” “हूं, तुम्हारी राय में दम है, मौलाना हुसैनइसे तुम्हारे हवाले कियाजरा होशियार रहना।

बुड्ढा चालाक है, कहीं तुम्हें चकमा देकर फरार न हो जाए।” उन दोनों को एक आलीशान मकान में भेज दिया। नसरुद्दीन ने बूढ़े आलिम मौलाना हुसैन को एक कमरे में डाला और दरवाजे पर ताला लगाकरचाबी जेब के हवाले कर दी।

 

Mulla Nasruddin Stories No. 2: नसरुद्दीन की धाक जमी

 

अमीर पर नसरुद्दीन की धाक जम चुकी थी। वह नसरुद्दी बात कि इस के दिमाग का कायल हो चुका था। अब यह और थी समय नसरुद्दीन मौलाना हुसैन के के वेश में था।

नसरुद्दीन की हर बात अमीर आंख मूंदकर मान लेता था। पूरे महल में अमीर यदि। किसी पर भरोसा करता था तो वह था नसरुद्दीन। अमीर को हैरानी थी कि शहर में अमन-चैन था और कहीं से नसरुद्दीन की शरारत का समाचार नहीं था।Mulla Nasruddin Story hindi

 

वह इसका करता तो जवाब में जब जिक्र मौलाना हुसैन बना नसरुद्दीन कहता, “मेरे ख्याल से नसरुद्दीन को खबर लग चुकी है कि मौलाना हुसैन के होते वह शहर में दंगा करने के बारे में सोच भी नहीं सकता। हो सकता है, वह बुखारा से भाग निकला हो।” मगर नसरुद्दीन को अफसोस था कि वह जिस मकसद से यहां आया था , उसमें अभी तक कामयाब नहीं हुआ था। वह गुलनाज की सूरत तक न देख पाया था।

इधर अमीर बीचबीच में असली मौलाना हुसैन के बारे में पूछ लेता था। नसरुद्दीन ने उसे बड़े आराम से कैद में रखा हुआ था।

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एक दिन नसरुद्दीन एक कमरे में बैठा गुलनाज के बारे में सोच रहा था। तभी महल का एक सिपाही आकर बोला, जनाबआपको अमीर साहब ने शाही बाग में याद फरमाया है। नसरुद्दीन शाही बाग में पहुंचा। अमीर एक पेड़ के नीचे खड़ा था।

नसरुद्दीन पास आया और हैरानी से बोला”यह मैं क्या देख रहा हूं। इस कदर गमगीन होने की वजह? मेरे रहते आपका यह हाल?” लंबी सांस लेकर अमीर बोला”तुमसे क्या छिपा है मौलाना। यह ऐसा मामला है, जिसमें तुम भी कुछ नहीं कर सकते” “ऐसा न कहेंमुझ पर भरोसा करके आपको निराश नहीं होना पड़ेगा।” मेरी उदासी की वजह वह नई लड़की गुलनाज है?” नसरुद्दीन की धड़कनें तेज हो गईं, “क्या हुआ उसे? क्या वह भाग गई?” नहीं मौलाना, हरम से कोई भाग जाए, यह ममकिन नहीं।

Mulla Nasruddin Story

यह वही लड़की हूं जिसके पास जाने से तुमने रोक रखा है। खबर मिली है कि पिछले तीन दिनों से उसन खाना-पीना छोड़ दिया है। वह बीमार और कमजोर हो गई है। वह मर गई तो मेरा दिया। होगा?”

 

मेरे होते हुए वह मर कैसे सकती है। मैं  आपके सितारों और ग्रहों को शांत करने में करीब-करीब कामयाब हो गया हूं। जल्दी ही आपको उसके पास जाने की इजाजत मिल जाएगी। मेरी हकीमी में वह कमाल है कि कैसी भी बीमारी और कमजोरी हो मेरे सामने टिक नहीं सकती।”

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अमीर ने बेचैनी से करवट बदली, “क्या तुम हकीम भी हो?” “बगदाद के खलीफा से पूछ लें, है कोई मेरे जैसा हकीम।” “तो देर मत करो मौलाना, इसी वक्त उसके लिए ऐसी खुराक तैयार करें कि वह तंदुरुस्त हो जाए।”
“मेरे आकाखुराकें ऐसे तैयार नहीं होती हैं। पहले मरीज को देखना पड़ेगा। उसका मर्ज क्या है, यह भी तो जानना जरूरी है। उसकी जांच-परख किए बिना खुराक नहीं बन सकती।”

 

“जांच-परख तो मुमकिन नहीं, मौलाना। तुम अच्छी तरह जानते हो हरम में सिवा हमारे किसी के कदम नहीं पड़ सकते” “हुजूरमेरी नजर में मरीज सिर्फ मरीज होता है, औरत या मर्द नहीं। मरीज की जांच-परख किए बिना इलाज मुमकिन नहीं। हां, चेहरा देखना जरूरी नहीं, मेरी ।

खासियत तो यह है कि दूर से मरीज का नाखून देखकर ही भांप लेता हूं कि इसे किस तरह की दवा की जरूरत है।” अमीर ने राहत की सांस ली, “तब तुम्हें जांचपरख की इजाजत दी जा सकती है।

लेकिन हरम में तुम अकेले नहीं जाओगेहम भी तुम्हारे साथ होंगे। तुम मरीज का नाखून देखोगे बस। ”
नसरुद्दीन के लिए इतना ही बहुत था। वह गुलनाज को अपनी मौजूदगी का अहसास
दिलाना चाहता था।

 

Mulla Nasruddin Stories No 3: मिलने का मौका मिला।

 

नसरुद्दीन को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। अमीर ने नसरुद्दीन को साथ लिया और हरम की ओर चल पड़ा।
हरम की ओर जाने वाली राहदारी पर सख्त पहरा था। नसरुद्दीन ने राहदारी , मोहों और घुमावों का पूरा नक्शा दिमाग में उतार लिया। अमीर ने एक दरवाजा खोला और नसरुद्दीन के साथ अंदर प्रवेश किया। सामने गुलनाज मुलायम गद्देदार दीवान पर लेटी थी। बिस्तर के चारों तरफ सफेद चमचमाता झीना पा लटक रहा था।

Mulla Nasruddin Stories in Hindi - मुल्ला नसरुद्दीन ओशो के किस्से व कहानियां 1

 

नसरुद्दीन ने देखापर्दे क के उस पार गुलनाज क चेहरे पर पीलापन था और आखा म डर। नसरुद्दीन ने पास पहुंचकर धीरे से पुकारा, “गुलनाज!” नसरुद्दीन की जानी-पहचानी आवाज सुन वह चौंकी।

नसरुद्दीन को लगा, कहीं घबराहट में गुलनाज की जबान से उसका असली नाम न निकल जाए, इसलिए बोला, ” में मौलाना हुसैन हूं अमीर का नया आलिमनजूमी और हकीम। बगदाद से इनकी खिदमत में हाजिर हुआ ।

मैं क्या कहता हूं, समझती हो न गुलनाजमैं..।

गलनाज के चेहरे पर हैरत छा गई। वह खुशी से चीख ही पड़ती कि एकाएक नसरुद्दीन ने अमीर की ओर देखकर कहा”मुझे हर तरह के मरीजों को ठीक करना बखूबी आता है, मैं इसे ठीक कर देंगा।”

Mulla Nasruddin Stories in Hindi - मुल्ला नसरुद्दीन ओशो के किस्से व कहानियां 2
गुलनाज की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़ेयकीनन यह आवाज नसरुद्दीन की ही थी। वह निश्चित हो गई और सावधान भी। उसने आंसू पोंछकर कहा, “मुझे आप पर पूरा भरोसा है, मौलाना। आप जैसा कहेंगे, वैसा ही करेगी।

“‘अच्छा, अब तुम पर्दे के बाहर हाथ निकालो, ताकि नाखूनों का रंग  देखकर तुम्हारे मर्ज का हाल मालूम कर सका”
गुलनाज ने पर्दे की दरार से हाथ बाहर निकाला

 

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नसरुद्दीन नाखून जांचने के बहाने उसका हाथ दबा दिया, जवाब में गुलनाज ने भी । – ऐसा ही किया
अब नसरुद्दीन गुलनाज के हाथ की सबसे छोटी उंगली के नाखून का गए हैं। मुआयना करने लगा।

फिर बोलामैं कल बनाकर तुम्हारे गुलनाज, खुराक पास आऊंगा। तुप तैयार अमीर निकले दरबार में पहुंच
और नसरुद्दीन हरम से बाहर । अमीर खुश था। बहुत कर वह बोला, ” सचमुच आपने उस पर कोई जादू किया है। यह तो कमाल मौलानालो, इसे मेरी तरफ से मामूली सौगात समझकर रख लो।

तुमसे बहुत खुश अमीर ने अशर्फियों से भरी थैली उसके हाथों में सौंप दी। नसरुद्दीन ने। झुककर अभिवादन किया और अपने डेरे की तरफ चल पड़ा।

Mulla Nasruddin Stories No 4 ( जासूस की शामत आयी )

नसरुद्दीन का महल में दम घुट रहा था। वह एक जगह बंधकर रहने का आदी नहीं था। वह गुलनाज के साथ यहां से फौरन उड़न-छू होना चाहता था। मगर कैसे.?”
रात का अंधेरा उतर आया था।

नसरुद्दीन कमरे में बैठेबैठे ऊब गया तो घूमने के इरादे से बाहर निकल पड़ा। सड़कों पर लोग कम थे और माहौल में ठंडक थी।

वह कुछ देर तक बाजार में टहलता रहाफिर इधर-उधर देखता हुए अली की सराय के पिछले दरवाजे पर रुककर हौले से दस्तक दी। नसरुद्दीन इस वक्त ।

आवाज पहचानते ही अली ने दरवाजा खोल दिया। जानता था, खास मकसद से ही आया होगा। उसने दरवाजा बंद किया और नसरुद्दीन को लेक गोदाम में जा बैठा।

तब नसरुद्दीन ने उसे अपनी योजना से अवगत करवाया।
सुनकर अली बोला”बिलकुलमैं तुम्हारा और गुलनाज का यहीं इंतजार करना गुलनाज के लिए मना लिबास तुम्हें तैयार मिलेगा। तुम्हारा गधा भी तैयार होगा।” “शुक्रिया अलीतुम्हारा अहसान जिंदगी भर याद रहेगा।”

गोदाम में अधरा था, इसलिए अंदर कौन बैठा है, यह किसी को नजर नहीं आ रहा था।

सामने पर्दा था और पर्दे के उस पार लोग गद्दों बैठे चाय-पानी पी रहे थे। वहां पर रोशनी थी और लोगों के चेहरे साफ नजर आ रहे थे। सहसा नसरुद्दीन को उन लोगों के बीच चेचक के दागों वाला जासूस नजर आया वह
कह रहा था, कुछ अरसा पहले बुखारा में खुद को जो नसरुद्दीन कहता फिरता था, दरअसल वह कोई छलिया था। असली नसरुद्दीन तो मैं हूं।”

 

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नसरुद्दीन बोला, “ अली, महल वालों को भ्रम है कि मैं मालाना हुसैन के डर से बुखारा छोड़कर चला गया हूं। लगता है, इसक माध्यम से महल तक बुखारा में अपनी मौजूदगी की खबर पहुंचानी ही पड़ेगी।”

नसरुद्दीन ने गोदाम में रखी अपनी पुरानी पोशाक पहन ली। वह पिछले दरवाजे से ।

बाहर निकला और सामने के दरवाजे से सराय में घुस गया और अंधेरे कोने में जाकर बैठ गया।

काफी देर तक वह जासूस नसरुद्दीन को बुरा-भला कहता रहा। जब बात बदाश्त से बाहर हा गई तो नसरुद्दीन अंधेरे कान से निकलकर उजाले में खड़ा हो गया।

बुखारा से उसे देखते ही सबने पहचान लिया।
नसरुद्दीन जासूस के सामने जा खड़ा हुआ और उसे तीखी नजरों से देखा। बोला, “तुम असली नसरुद्दीन हो तो मैं कौन हूं?”
जासूस उसे देखते ही बौखला गया, बोला, “तुम.तुम शहर में ही होने वाला। भागे नहीं?”
नसरुद्दीन बोला, “दोस्तो, थोड़ी देर पहले यह कह रहा था कि जो खुद को नमन कहे उसे नकली समझो और सिपाही या जासूस के हवाले कर दो। तो उठाओ इसे औ बाहर फेंक दो।

नसरुद्दीन ने जासूस की दाढ़ी-छ नोच ली और साफा उतार फेंका जासूस। -मारो, लोगों ने उसे पहचान लिया“अरे यह तो वही है, अमीर का मारो बचने न पाए।” अजर-पजर भीड़ उस पर टूट पड़ी। लातों और घूसों से लोगों ने उसके ढीले कर दिए।

थोड़ी देर में उसके कपड़े तार-तार हो गए थे और सिर के बाल नुच चुके थे। फिर लोग उसे मारते-घसीटते महल की ओर ले गए।

 

Mulla Nasruddin Stories No 5 ( काम निपटाकर फिर महल में )

नसरुद्दीन अपना काम निपटाकर मौलाना हुसैन के वेश में महल में जा पहुंचा। महल के अंदर फाटक के पास चेचक के दागों वाला जासूस जमीन पर पड़ा कराह रहा था। पास ही अर्सला बेग खड़ा था।

मौलाना हुसैन ने पास जाकर बड़े अदब से पूछा, “क्या हुआ ? सिपहसालार, इतनी रात गए यहां क्या कर रहे हैं?” “मौलाना साहबक्या बताएं, अभी-अभी खबर मिली है कि नसरुद्दीन शहर में ही मौजूद है?”

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“यह अफवाह भी हो सकती है। आपको यह खबर किसने दी?” अर्सला बेग ने जमीन पर पीड़ा से कराहते जासूस की ओर इशारा करते कहा हुए यह मेरा सबसे काबिल जासूस है।

मेरे हुक्म से नकली नसरुद्दीन बनकर लोगों को अमीर का वफादार बनने को कहता था। आज असली नसरुद्दीन से इसकी भिडंत हो गई और उसने इसका यह हाल बनाकर यहां भेज दिया।” जासस कानों पर हाथ रखकर बोला”खुदा बचाए उस नसरुद्दीन से।

सिपहसालार साहबमैंने तौबा कर ली है, मैं आइंदा नसरुद्दीन के पचड़ों से दूर ही रहूंगाइस शहर से कहीं दूर चला जाऊंगा।”

मौलाना हुसैन बने नसरुद्दीन ने उसकी नाजुक हालत पर रहम खाते हुए कहा, “खुदा का शुक्र मनातेरी जान बच गई।”

 

Mulla Nasruddin Stories No 6:  असलियत जाहिर हो गई ।

दूसरे दिन सुबह होते ही नसरुद्दीन उठा तो उसके चेहरे पर सख्ती थी। सोच-समझकर अगला कदम उठाने का वक्त आ पहुंचा था। सूरज चढ़ते ही नसरुद्दीन कमरे से निकला और असली मौलाना हुसैन के पास जा पहुंचा मौलाना हुसैन को नसरुद्दीन ने बड़े आराम के साथ रखा हुआ था।

नसरुद्दीन बोला, “आपको जानकर खुशी होगी कि आपकी आजादी का वक्त आ गया है। आज आपकी कैद खत्म हुई। मैं खुद आज रात यहां से हमेशा के लिए चला जाऊंगा लेकिन मेरी एक शर्त है। मैं जाते-जाते आपके दरवाजे का ताला खोल ढूंगा,

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मगर आप दो दिनों के बाद ही बाहर निकलेंगे। अगर आप पहले निकल आए और मैं महल में ही मौजूद रहा तो सोच सकते हैं कि आपका मैं दोबारा क्या हाल करवा आप सकता हूं। हां, दो दिन के बाद आप अमीर से मिलकर अपनी असलियत बता सकते बूढ़ा आलिम सहमकर बोला, “मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है।

मगर मुझे यह तो पता चले कि मुझ पर उपकार करने वाले का नाम क्या है?” “नसरुद्दीन!”
“ओह!” मौलाना हुसैन सहमकर पीछे हट गया।

नसरुद्दीन उसे उसी हाल में छोड़कर बाहर निकल गया। नसरुद्दीन के जाते ही बूढ़े मौलाना हुसैन ने दरवाजा बंद कर दिया, बोला, “मुझे क्या लेनादेना नसरुद्दीन से। मैं तो उसे जानता तक नहीं।

दो दिन क्या..मैं हमेशा के लिए यहा पड़ा रहूंगा, मगर नसरुद्दीन से आफत मोल नहीं ढूंगा।”

 

Mulla Nasruddin Stories No 7: गुलनाज की रिहाई की तैयारी

चारों तरफ रात का सन्नाटा छा गया था।

मौलाना हुसैन बने नसरुद्दीन ने मिट्टी की सुराही उठाई और कमरे से निकल पड़ा। उसे किसी भी समय कहीं भी आनेजाने की इजाजत थी। वह सीढ़ियों से नीचे उतरा और दबे पांव हरम की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे किसी ने नहीं टोका।

वह अमीर के साथ पहले जब हरम में गया था तो सभी ने देखा था। यह किसी से छिपा नहीं था कि गुलनाज बीमार है और उसके इलाज का जिम्मा अमीर ने उसे ही सौंप रखा था।

वह हरम के पास जाकर ठिठक गया। वहां दो सिपाही खड़े थे। एकाएक मोटा सिपाही आकाश की ओर देखकर बोला, “वो देखोसितारा टूटकर चमचमाता हुआ गिर रहा है। लेकिन यह सितारा गिरता कहां है?”

Mulla Nasruddin Stories in Hindi - मुल्ला नसरुद्दीन ओशो के किस्से व कहानियां 3

दूसरा बोला, “जमीन पर आकर गिरता है।

“जमीन पर गिरता है तो कभी नजर क्यों नहीं आता? मेरे ख्याल से तो समुद्र में गिरता होगा।”
तभी नसरुद्दीन उनके पास गया और हुक्म दिया, “जाओ, अपने सरदार को खबर करो कि हम आए हैं।”

अगले पल ही सरदार वहां हाजिर हो गया।

नसरुद्दीन ने उसे सुराही थमाते हुए कहा“सुन, इसमें दवा है। इसे अच्छी तरह से गुलनाज के पास ले जा।”
सुराही में दवा के नाम पर खड़िया का सफेद पानी भरा हुआ था। सरदार सुराही लेकर चला गया।
मोटे सिपाही सहमकर नसरुद्दीन कहा“आप आलिम हैं। क्या आप ने से , तो शाही बता सकते हैं कि सितारे आसमान से टूटकर कहां गिरते हैं?”
“जमीन परऔर कहांजमीन पर गिरते ही सितारे चांदी के सिक्कों में बदल जाते हैं। सुबह होते ही लोग सिक्के बटोर कर ले जाते हैं। मैंने कई लोगों को सुबह-सुबह रईस बनते देखा है।”

दोनों सिपाहियों ने एक-दूसरे को ताज्जुब से देखा। उनकी आंखों में लालच के साए उतर आए थे।

थोड़ी देर आराम करने के बाद वह आधी रात को उठ खडा हुआ उस यकाना था, कमरे में कैद मौलाना हुसैन दो दिन से पहले बाहर निकलने की हिम्मत नहीं कर सकता।

वह सीढ़ियों से नीचे उतरा। उसने सोचा था कि सिपाही और पहरेदार नींद में गाफिल होंगे और हरम में जाने का रास्ता साफ होगा। लेकिन हरम के निकट पहुंचते ही उसे उन्हीं दो सिपाहियों की बातचीत सुनाई पड़ी तो वह ठिठक कर आड़ में खड़ा हो गया।

मोटे सिपाही ने आसमान की ओर देखाबोला, “यार, यहां भी सितारा आकर गिरता तो हम चांदी के सिक्के बटोर कर रईस बन जाते।”

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‘तुम भी कैसी बेसिर-पैर की सोचते हो। मैं ऐसी बातों पर यकीन नहीं करता।”
“अरे भाई, मुझे तो पूरा यकीन है। यह बात किसी और ने नहीं बगदाद के पहुंचे हुए आलिम ने बताई है। उनकी बात गलत नहीं हो सकती”
“शाही आलिम की बातों में जरूर दम है। देखो, हमारी किस्मत का सितारा कब टूटता है।”

 

नसरुद्दीन को बेहद गुस्सा आया कि सोने के बजाय दोनों उसकी बेतुकी बातों में आकर सितारा टूटने का इंतजार कर रहे हैं। वे सोए होते तो वह बेखटके हरम में जा सकता था।

तभी आसमान में बिजली कौंधी। दोनों सिपाहियों ने एक-दूसरे को देखा और खुशी से बोले, “देखो, शायद सितारा टूट हैं

कुछ सोचकर नसरुद्दीन मुस्कराया। उसने अंटी से थैली निकाली और एक सिक्का टटोल कर सिपाहियों की तरफ उछाल दिया।

टन.सिक्का गिरने की आवाज सुनकर दोनों सिपाही चौंके। एक ने पूछा”तुम्हें कुछ सुनाई दिया?” “हां, लगता है, आसपास कोई सिक्का गिरा है।” अब नसरुद्दीन ने उनकी ओर दूसरा सिक्का उछाल दिया।

 

दोनों ने सामने दो सिक्के देखे और छलांग मारकर एक-एक सिक्के पर कब्जा जमा लिया। उनके उठने से पहले नसरुद्दीन ने मुट्ठी में सिक्के भरे और उनसे काफी दूर उछाल दिए कई सिक्कों के गिरने की झनझनाहट सुनकर सिपाही उस तरफ लपक लिए।

नसरुद्दीन को इसी मौके की तलाश थी। वह लंबेलंबे डग भरता हरम में घुस गया। अगले ही पल वह गुलनाज के सामने खड़ा था। उसे देखते ही गुलनाज बिस्तर से उठ बैठी। नसरुद्दीन ने कहागुलनाज, अपने को संभालो और जल्दी से यहां से निकलने की कोशिश करो”

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नसरुद्दीन ने गुलनाज का हाथ पकड़ा और उसी दरवाजे से बाहर निकलाजहां के पहरेदार सिक्कों की खोज में कहीं दूर निकल गए थे।

नसरुद्दीन चुपचाप गुलनाज के साथ आगे बढ़ा और मीनार की सीढ़ियां चढ़कर अपने कमरे जाकर लिया
में दम । उसने मीनार की पिछली खिड़की से पहले ही एक मजबूत रस्सी लटका दी थी। उसने गुलनाज से कहातुम इस रस्सी के सहारे नीचे उतरो। महल के पीछे सन्नाटा है और कोई पहरेदार भी नहीं।”

गुलनाज खिड़की पर चढ़ी और रस्सी के सहारे घीरे-घीरे नीचे उतरने लगी।

गुलनाज नीचे पहुंच गई तो नसरुद्दीन ने राहत की सांस ली। उसने सिर नीचे झुका कर कहा,’शाबाश गुलनाज, यहां से सीधे अली की सराय में जाना।” गुलनाज तेजतेज कदमों से आगे बढ़ गई।

 

Mulla Nasruddin Stories No 8:महल में खलबली

 

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महल में जस तूफान आया हुआ था। जिधर देखो उधर अफरा-तफरी मची हुई थी। सिपाही और पहरेदार बौखलाए हुए चारों ओर दौड़-भाग रहे थे। सभी बड़ी मुस्तैदी से कुछ खोज रहे थे।

गुलनाज के गायब होने की खबर रात को ही लग गई थी। पहरदार के सरदार ने उसी समय अमीर को गलनाज के गायब होने की खबर दी। अमीर गुस्से और बेबसी से बौखला उसने चीखचीख कर सभी को बुलवा लिया गया।

अर्सला बेग पर नजर पड़ते ही वह दहाड़कर बोला, “नमकहराम सिपहसालार, तू और तेरे निकम्मे सिपाहियों के होते गुलनाज यहां से भागने में कैसे कामयाब हो गई?
जाओ, महल में चारों तरफ उसकी खोज करोवह महल से बाहर नहीं जा सकती।” फिर अमीर ने मौलाना हुसैन को तलब किया।

मौलाना हुसैन को देखते ही अमीर ने कहा”देखोमेरे लोगों की लापरवाही देखो। इतनी चौकसी के बावजूद गुलनाज यहां से भाग निकली। अगर यही हाल रहा तो नसरुद्दीन को महल में आने से कौन रोक सकता है?

वह तो किसी भी वक्त मेरे सामने सीना तानकर खड़ा हो सकता है। कौन करेगा मेरी हिफाजत उससे? मौलाना हसैन बिना मदद के वह बाहर नहीं जा सकतीकौन कर सकता है उसकी मदद?” वजीरे आजम बीच में ही हिचकिचाकर बोला, “मैं नहीं समझता कि इतनी सख्त चौकसी के होते हुए नसरुद्दीन महल में आ सकता है।”

तभी वजीर बोल उठा, “हो सकता है, गुलनाज को भगाने में किसी ने मदद की हो।”

 

सारे बुखारा में सिपाही फैल गए। पहरेदारों के जत्थे महल के हर कोने को कई कई बार छानते फिर रहे थे। खोजबीन में सबसे बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा था नसरुद्दीन।

कुछ देर बाद नसरुद्दीन ने अमीर की आरामगाह में प्रवेश किया और बोला, “यह तो कमाल हो गया। मेरे यहां होते कौन गुलनाज को ले उड़ा?”

यह और किसी का काम नहीं, मौलाना हुसैन!” अमीर हताश होकर बोला, “नसरुद्दीन के अलावा गुलनाज को यहां से कोई नहीं ले जा सकता।

मुझे कोई ऐसी तरकीब बताएं कि नसरुद्दीन हमारी मुट्ठी में आ जाए।”

 

“तरकीबें तो बहुत हैं अमीरे आजम लेकिन आपके लोग सचमुच नाकारा हैं, वरना एक अकेला और निहत्था
नसरुद्दीन ऐसा कैसे कर सकता है।” फिर मौलाना हुसैन बने नसरुद्दीन ने नसरुद्दीन की गिरफ्तारी के एक से एक
नायाब हथकडे सुझाएअमीर ने खुश होकर मौलाना हुसैन को अशर्फियों की एक थैली भेंट की।

वह अमीर से विदा लेकर अपने कमरे में पहुंचा। उसने सारी अशर्फियां एक थैली में भर्ती और उसे अंटी में खोंस
लिया। महल में उसका काम खत्म हो व चुका था।

वह मीनार की सीढ़ियों से उतरा और महल के फाटक की ओर कदम बढ़ा दिए। फाटक के निकट पहुंचते ही वह ठिठक कर खड़ा हो गया। चेहरे पर उलझन छा गई।

पहरेदार उसके परिचितों और साथियों को पकड़ कर फाटक से अंदर प्रवेश कर रहे थे। गिरफ्तार लोगों में नियाज कुम्हार, युसूफ लोहार, सराय वाले अली के अलावा कई अन्य लाग शामिल थे।

सबको जेल में यूंस दिया गया। उन पर आरोप था कि वे नसरुद्दीन के मददगार हैं। नसरुद्दीन का सारा जोश जाता रहा। इतने बेगुनाह लोगों को उसकी वजह से मौत के घाट उतार दिया जाएगा, यह वह चुपचाप कैसे बर्दाश्त कर लेता।

उसने तय किया कि वह यहां से तब तक नहीं जाएगा, जब तक अपने साथियों को रिहा नहीं करवा लता।

 

Mulla Nasruddin Stories No 8:मैं हूं मुल्ला नसरुद्दीन

 

महल के बाहर खुले मैदान में अदालत लगी हुई थी। सारा शहर मानो वहां उमड़ आया था। बुखारा में ऐसा हादसा पहले कभी पेश नहीं आया था। महल में ठीक अमीर की नाक के नीचे से गुलनाज चुरा ली गई थी। अमीर को
पूरा शक था कि इस कांड में नसरुद्दीन का हाथ है।

यही वजह थी कि नसरुद्दीन को शहर में पल भर के लिए जिस किसी से दुआ-सलाम करते भी देखा गया
था, उसे सिपाहियों ने धर दबोचा था। सबको इंतजार था अमीर का।

 

अमीर की सवारी तख्त के सामने आ पहुंची। तख्त पर बैठते ही अमीर ने कार्यवाही शुरू करने का इशारा किया
वजीर दो कदम आगे बढ़ा और जल्लादों से घिरे कैदियों को देखकर बोला, “देखो इन गद्दारों को। इनका सबसे बड़ा गुनाह है बागी नसरुद्दीन की मदद करना, उसे पनाह देना।

इन सभी को नसरुद्दीन का साथी होने के जुर्म में अमीर ने सजा-ए-मौत दी है।” वजीर ने एक बार अमीर को देखा, फिर जनता से बोला, “नियाज कुम्हार, यह साबित हो चुका है कि तुमने अपने घर में नसरुद्दीन को पनाह दी थी। सबसे पहले जल्लाद तुम्हारा सिर धड़ से अलग करेगा, लेकिन तुम चाहो तो नसरुद्दीन का पता बताकर अपनी जान बचा सकते हो।

नियाज कुम्हार ने इनकार कर दिया। वजीर का इशारा पाकर जल्लादों ने उसे दबोच लिया और घसीटते हुए आगे बढ़े दरबारियों के बीच नसरुद्दीन मौलाना हुसैन के रूप में मौजूद था, वह फौरन अमीर के निकट पहुंचा और बोला, “आप नियाज की जान बख्श दें। मैं इसी वक्त नसरुद्दीन को आपके सामने हाजिर कर देगा। ”
अमीर ने ताज्जुब से उसकी ओर देखा।

मौलाना हुसैन पर उसे पूरा यकीन था। उसने जल्लादों को इशारा किया। जल्लाद नियाज को छोड़कर अलग खड़े हो गए।

नसरुद्दीन बोला, “असली मुजरिम नियाज, युसूफ या अली नहीं, असली मुजरिम तो वह है, जिसने खुलेआम नसरुद्दीन को पनाह दे रखी है, जो उसे साथ बिठाकर लजीज खाना खिलाता है, इनाम देता है और उसके आराम का पूरा ख्याल रखता है।”

यह मैं क्या सुन रहा हूं?अमीर के पर बल पड़ गएहै। ” माथे मुझे बताओ कौन ‘ वह गुस्ताख? उसे हमारे सामने पेश करो ”

“ठीक है, उसे सजा न दिए जाने की हालत में इनको भी रिहा कर दिया जाएगा।” तब नसरुद्दीन बोला, “सबसे बड़े गुनहगार आप हैं, आपने ही नसरुद्दीन को महल में पनाह दे रखी है।” क्या बकते हो, मौलाना?”

“ मैं मौलाना नहीं हूं।” उसने मौलाना हुसैन का वेश उतार फेंका और वास्तविक रूप में आकर बोला”मैं नसरुद्दीन हूं।”

अमीर ने खौफ और अविश्वास से नसरुद्दीन को देखा। यानी नसरुद्दीन महल में उसके साथ था। गुस्से से दहाड़कर बोला, “पकड़ ला इस नामुराद को।

इसने हमें बेवकूफ बनाया, इसे सजा मिलेगी.ऐसी सजा कि इसकी रूह भी कांप उठेगी।”

 

सिपाहियों ने आगे बढ़कर नसरुद्दीन को गिरफ्तार कर लिया उसने भीड़ को बुलंद आवाज में संबोधित किया अभी-

अभी अमीर ने वादा किया था कि नसरुद्दीन को पनाह देने वाले को सजा नहीं दी गई तो कैदियों को रिहा कर दिया जाएगा। आप लोग अमीर को वादा याद दिला दें।”

तब अमीर ने वजीर के कान में कुछ कहावजीर ने जल्लादों को हुक्म दिया, “सारे कैदियों को रिहा कर दिया
जाए।

भीड़ में खुशी की लहर दौड़ गई लेकिन अगले ही पल तब सब खामोश हो गए, जब सिपाही नसरुद्दीन को पकड़कर  एक तरफ ले जाने लगे तो सबने कपकपाती जबान में कहा, | नसरुद्दीन, तुम्हारा अहसान हम कभी नहीं भूलेंगे।

अलविदा प्यारे नसरुद्दीन।”

 

Written by

Romi Sharma

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