Desh Bhakti Kahani in Hindi Language – देश भक्ति की कहानियाँ [15 सबसे अच्छी कहानी ]

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Desh Bhakti Kahani No.1 रेत के घरौदे

Desh Bhakti kahani

“वाह शिल्पी तुमने तो बहुत सुंदर घर बनाया है!” निम्मी बोली। यह सुनकर सभी बच्चे शिल्पी के रेत के घरौदे को देखकर दंग रह गए। शिल्पी के रेत के घरौदे को देखकर गोल्डी बोला”शिल्पीमेरा दिल तो कर रहा है कि
काश ऐसा घर हमारा रहने के लिए होता ।” कुछ देर बाद सभी बच्चे अपनी-अपनी झुग्गियों में चले गए। ये सभी बच्चे मोती बस्ती में रहते थे।

जहां पर झुग्गी बस्ती बनी हुई थी। इन बच्चों में अधिकतर के पिता मजदूरी करते थे और मांएं घरघर जाकर काम करती थीं। इनमें से कुछ ही बच्चे ऐसे थे जो सरकारी स्कूलों में जाते थेबाकी अपने मातापिता के साथ बचपन से काम में लग जाते थे और किशोरावस्था तक पहुंचतेपहुंचते वे भी उन कामों में परिपक्व हो जाते थे।

 

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शिल्पी और गोल्डी ऐसे बच्चों से अलग थे। शिल्पी को पढ़ाई के अलावा बड़ीबड़ी बिल्डिंगों के नक्शे देखना, सुंदर कोठियों के कलात्मक नमूनों को जांचना और घर की बनावट आदि में ध्यान देना बहुत भाता था।
कई बार चित्रकारी करते समय वह घरों को इतना खूबसूरत बनाती थी कि सभी दंग रह जाते थे।

वहीं गोल्डी को कार्टून बनाने का शौक था। हर पात्र को वह मिनटों में ही कार्टूनों में ढाल देता था। उसके कार्टून बोलते मालूम पड़ते थे। शिल्पी की उम्र बारह साल और गोल्डी की तेरह साल थी। दोनों एक दूसरे के अच्छे
दोस्त थे। शिल्पी के मातापिता उससे बेहद प्यार करते थे इसलिए उन्होंने उसे पढ़ने के साथसाथ अपने शौक को पूरा करने की छूट दी हुई थी।

दरअसलइसके पीछे यह कारण था कि शिल्पी उनकी एकमात्र संतान थी ।अभी तक पांच संता गरीबी, पौष्टिक भोजन के अभाव व समय उचित पर इलाज न मिलने के कारण चल बसी थीं। एकमात्र शिल्पी ही बच पाई थी। दोनों ही निःसंतान कहलाए जाने के बजाय शिल्पी को जीवित रहना अच्छा मानते थे।

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गोल्डी का पिता शराब पीकर घर में मारपीट करता था। मां लोगों के कपड़ों पर प्रेस करती थी। जो भी कमाई आती थी उसे गोल्डी का पिता मारपीट करके ले जाता था। बची-खुची कमाई में गोल्डी और उसके तीन छोटे भाई-बहनों का गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था।

गोल्डी के साथ के लड़के भरपेट भोजन की तलाश में अक्सर चोरीमारपीट व गैरकानूनी कामों में फंस चुके थे लेकिन गोल्डी के पास इन सबके लिए वक्त ही कहां था?

उसे तो जैसे ही समय मिलता, वैसे ही वह अपने कागजों के साथ सड़क पर चलते वाहनों, लोगों, पशुओं आदि को देखकर कार्टून बनाने में जुट जाता। वह भी सरकारी स्कूल में सातवीं कक्षा में पढ़ता था।

एक दिन शिल्पी व गोल्डी सड़क पर चल रहे थे तभी एक बदमाश जैसा व्यक्ति उनसे टकराया और तेजी से हड़बड़ाकर आगे बढ़ गया। उसे देखकर शिल्पी बोली, “यह आदमी कितना अजीब लग रहा है? क्या तुम इसका कार्टून बना सकते हो?” गोल्डी आदमी को देखकर बोला, “हां, बना सकता हूं।” तभी गोल्डी की नजर उसके हाथों पर गई तो उसने देखा कि उसके हाथों पर एक बहुत सुंदर घर का टैटू बना हुआ था।

शिल्पी की नजर भी बदमाश के हाथ पर गई और वह बोली, “वाह, इसके हाथ पर बहुत खूबसूरत कलात्मक घर बना हुआ है। मैं शाम को रेत का घर बनाते समय यही डिजाइन बनाऊंगी ।” शाम को शिल्पी ने उसी डिजाइन का घर बनाया और स्वय ही मुग्ध हो गई।

 

उधर गोल्डी ने भी उस व्यक्ति का कार्टून बना अगले दिन गलीगली में यह शोर मच गया कि एक व्यक्ति ने देश के महत्त्वपूर्ण सुराग रक्षा मंत्रालय से हथिया लिए हैं। किसी को अनुमान नहीं था कि वह कौन था? इसलिए उसके स्केच भी तैयार नहीं हो पाए थे। अगले दिन शिल्पी रेत से अपना घर बना रही थी तभी पीछे से उसने दो में व्यक्तियों की आवाजें सुनीं। पहला कह रहा था, “सुना गया है कि जो बरतावेज लेकर भाग है उसके हाथ पर कोई टैटू भी बना हुआ है। जी सात | लोगों ने उसके हाथ में घर का सुंदरसा टैटू देखा है। इसके कि आदमी का बायां अंगूठा कटा हुआ । साथ ही यह भी पता चला है उस वह खबर सुनकर शिल्पी चौंक गई और तुरंत गोल्डी के पास पहुंची
और बोली, “कहीं ऐसा तो यह वही व्यक्ति हो जिसका नहींकार्टून तुमने और उसके टेटू के डिजाइन रेत का घरौदा मैंने बनाया का था” गोल्डी बोलाऐसा कैसे हो सकता है? टैटू तो बहुत लोगों के हाथों पर होता

यह सुनकर शिल्पी बोली, “हां, वह आदमी ये भी बोल रहे थे कि उसका बाएं हाथ अंगूठा नहीं था। यह तो मैंने ध्यान नहीं दिया।” तभी गोल्डी का उस आदमी को याद करते हुए बोला“अरे.हां, शिल्पी वाकई उसके बाएं
हाथ में चार थीं। वह व्यक्ति वही है। हमें किसी भी तरह उस अंगलियां व्यक्ति को पकड़वाना होगा।” पर यह बातें हम बताएंगे किसको?” तभी ही शिल्पी चहककर बोलीकल हम स्कूल में अपनेअपने टीचर को यह बताएंगे। वह हमारी मदद करेंगे।” इसके बाद दोनों ने अपनेअपने स्कूल में अपनी टीचर व मास्टर को यह बात बताई तो वह दंग रह गए। गोल्डी ने उस व्यक्ति का कार्टून मास्टर को सौंप दिया और शिल्पी ने स्कूल के मैदान में जाकर रेत के घरौदे में बदमाश के हाथ में बने घर का डिजाइन उकेर दिया। दोनों स्कूलों के प्रिंसीपल ने आपस में बात की और शिल्पी के घर के आकार व गोल्डी के बनाए कार्टून को पुलिस अधीक्षक तक पहुंचाया गया।

सारी बात पता चलते ही तीव्रगति से काम किया गया। पुलिस की मुस्तैदी के कारण बादमाश को पकड़ लिया गया। वह वही बदमाश था जो रक्षा मंत्रालय से दस्तावेज चुरा कर भागा था और शिल्पी और गोल्डी से जा टकराया था। शिल्पी व गोल्डी पर दोनों स्कूलों के प्रिंसीपलों के साथ ही पूरे देश को गर्व हो रहा था। दो ऐसे बच्चों ने आरामदायक सुविधाओं के अभाव में अपनी प्रतिभा व चतुरता से एक खतरनाक बदमाश को पकड़वा कर देश को विदेशीताकतों के हमले से बचा लिया था। दोनों को सरकार की ओर से इनाम दिया ।

गयामंच पर शिल्पी ने कहा कि वह बड़ी होकर एक कुशल इंजीनियर बनना चाहती है और अपने देश के लिए मजबूत व सुंदर बिल्डिंगों का निर्माण करना चाहती है। गोल्डी बोला, “वह भविष्य में एक सफल कार्टूनिस्ट बनना चाहता है।” दोनों की यह घोषणा सुनकर वहां मौजूद मंत्री बोले, “इन दोनों बच्चों को उत्कृष्ट शिक्षा सरकार की ओर से प्रदान की जाएगी ताकि ऐसे गरीब अनगिनत बच्चे मात्र रेत के घरौदों तक सिमटकर न रह जाएं बल्कि उनके रेत के घरौदों को बनाने के खेल भविष्य में एक मजबूत नींव बनकर उभरें। पूरा देश इन गरीब नौनिहालों को सलाम करता है जिन्होंने अपनी जान की परवाह न कर वतन पर सब कुछ न्योछावर करने की ठान ली।”
यह घोषणा सुनकर शिल्पी व गोल्डी दोनों ही आसमान से ऊंची उड़ान भरने को आतुर दिखाई दिए। आखिर भरते भी क्यों नउन दोनों की कल्पनाएं साकार होकर उनके सामने एक मजबूत भविष्य का निर्माण करती
हुई जो दिखाई दे रही थीं।

Desh Bhakti Kahani No 2:  प्रश्नों का पिटारा

नंदन को विद्यालय से पुस्तकें मिली थीं। वह बिस्तर पर लेटा हुआ उन्हें उलटपुलटकर देख रहा था। पुस्तक के अन्तिम पृष्ठ पर लिखी पंक्तियां वह गुनगुनाने लगा। “जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता ।”

“ऐ-ऐ नंदन यह क्या? राष्ट्रगान को इस तरह लेटकर नहीं गाया जाता।  राष्ट्रगान को हमेशा सावधान की मुद्रा में खड़े होकर खुले आसमान के नीचे राष्ट्रध्वज के सामने गाया जाता है।”

अगर लेटकर या बैठकर या चलते हुए गाएं तो दीदी?” “नहीं, इससे हमारे राष्ट्र का अपमान होता है।

राष्ट्रगान का सम्मान करना हमारे देश प्रेम की भावना को प्रकट करना है। अब कभी भी कहीं भी चलते या बैठे हुए तुम्हारे कानों में यदि राष्ट्रगान की धुन भी सुनाई पड़ जाएतो तुरन्त वहीं ठहरकर सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाना। फिर गान की समाप्ति पर श्रद्धा से शीश झुका देना।

“वह क्यों दीदी?” वह तुम्हारा मातृभूमि को किया गया नमन होगा।” ओह दीदी। अज्ञानतावश मैं कितनी बड़ी गलती कर बैठा।” अच्छा नंदन अब मैं चलती हूं। आज शाम को मैं तुम्हें राष्ट्रीय चिन्हों से सम्बन्धित बातें बताऊंगी। अभी मुझे जाना है।” दीदी की बातें सुन नंदन की उत्सुकता बढ़ गई थी। शाम तक का इन्तजार करने का सब्र उसमें नहीं था। वह दौड़ा-दौड़ा रसोई में मां के पास |

“मां-मां, मुझे राष्ट्रीय चिन्हों के बारे में बताओ न?”

“हूं से नोट तो निकालो

अभी बताती पर पहले अपनी जेब । नंदन ने जेब से एक रुपए का नोट निकाला। मां बताने लगी. देखो नंदनहमारा राष्ट्रीय चिन्ह जो कि वाराणसी के पास सारनाथ से सब अशोक द्वारा बनाए गए सिंह स्तंभ से लिया है।”

“बना हुआ है। हां, और नीचे की इस चौरस पट्टी के बीच एक चक्र जिसके दाईं ओर सांड और घोड़ा बना हुआ है। बीच में देखोसत्यमेव जयते’ लिखा हुआ , जो हमारे राष्ट्र का आदर्श वाक्य भी है।

इसका अर्थ । समझते हो नंदन?” नहीं, नंदन ने “ना” में गर्दन हिलाई। इसका अर्थ है सत्य की हमेशा विजय होती है। यह चक्र, जिसे तम तिरंगे झंडे में भी देखते हो।

“हां, मां झंडे के तीनों रंग मुझे मालूम हैं। सबसे ऊपर केसरिया, बीच। में सफेद और नीचे हरा।।

हां, राष्ट्रीय ध्वज की सफेद पट्टी पर नीले रंग का यह चक्र बना हुआ है जिसे अशोक चक्र कहते हैं। यह हमारी प्रगति का सूचक है। तिरंगे। के सभी रंग अपने अन्दर संदेश समाहित किए हुए हैं। इतना कहने के बाद मां चौंक पड़ी। दूध उबलकर बाहर आ गया था। आगे की बात बाद में बताने को कहवह रसोई में जुट गईकिन्तु नंदन की।
जिद थी कि वे उसे पूरी बात उसी समय ही बताएं।

नंदन की जिद सुन उसके पिताजी ने पुकारा, “इधर आओ नंदनमैं तुम्हें बताता हूं, कहकर पिताजी नंदन को बताने लगेइडे का के ऊपर केसरिया रंग हमारी वीरता का प्रतीक है।

प्राचीन समय में जब भारत में राजाओं का राज्य था। तब वीर राजपूत योद्धा केसरिया बाना (वस्त्र ) पहनकर युद्धभूमि में अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ निकल पड़ते थे। यह रंग हमें संदेश देता है कि हम हमेशा हमारे उन वीरों की तरह मातृभूमि की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहें।

सफेद रंग शान्ति का प्रतीक है। जो विश्व में शान्ति का संदेश देता है।

हरा रंग हमारी समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। खेतों में लहलहाती फसलों का रंग हरा होता है। अब फसलें अच्छी होंगी तो चारों ओर खुशहाली छा जाएगी।

समृद्धि फैल जाएगी।” नंदन ने सारी बात ध्यान से सूनी। उसे भी विद्यालय जाना था। समय हो चुका था तैयार होकर वह विद्यालय के लिए निकला।

पूरे रास्ते उसके दिमाग में यही सारी बातें घूमती रहीं। विद्यालय में प्रार्थना के बाद राष्ट्रगान गाया गया। आज इस गीत के प्रति उसके मन में असीम श्रद्धा थी। सभी बालक अपनी-अपनी कक्षाओं में पहुंचे । नंदन सभी बच्चों को राष्ट्रीय चिन्ह और ध्वज के बारे में बताने लगा। इतने में कक्षा में गुरुजी ने प्रवेश किया। सभी बच्चों ने खड़े होकर गुरुजी को प्रणाम किया।

गुरुजी ने उन्हें बैठ जाने का संकेत दिया। “क्या तुम बता सकते हो नंदन कि राष्ट्रगान के रचयिता कौन थे?”
इस प्रश्न पर पूरी कक्षा मौन हो गई। गुरुजी ने बताया-रवीन्द्रनाथ टैगोर। उन्होंने यह गीत 1912 में लिखा तथा इसे राष्ट्रगान के रूप में 24 जनवरी1950 में स्वीकार किया गया।

“इसी तरह बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित गीत वन्देमातरम्’ को राष्ट्रीय गीत के रूप में माना जाता है, यह गीत भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रेरणा स्रोत रहा है।

जब दीदी ने राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पशु और राष्ट्रीय फूल के बारे में पूछा तो वह नहीं बता पाया अभी इनके बारे में और जानना बाकी था। दीदी ने नंदन को बड़े प्यार से बताया कि अपना राष्ट्रीय पक्षी मोर, राष्ट्रीय पशु बाघ और राष्ट्रीय फूल कमल है।

अपने राष्ट्र के महत्व की इतनी सारी रोचक जानकारी पाकर नंदन फूला नहीं समाया।

Desh Bhakti Kahani No 3: मेरा रंग दे बसंती चोला

 

“मां, रंग दे बसंती चोला,
जिस रंग के रंग में भगतसिंह ने
मारा बम का गोला ।
मेरा रंग दे बसंती चोला।”

आज भी भारत के देशभक्त जब जोशीली भावनाओं को प्रकट करते हैं बसंती चोला पहनकर शहीद भगतसिंह से प्रेरणा ग्रहण करते हैं। आइए , आपको भगतसिंह ने कैसे “मारा बम का गोला”, इसी सच्ची कहानी सुनाएं। इस कहानी को साहित्यकारों ने भगवान राम की। की भांति भिन्नभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है। किंतु हम यह कहानी साहित्यकार की “आत्मकथा” के आधार पर प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसे साय लेकर भगतसिंह एसेम्बली में बम डालने गए थे।

 

वे महान साहित्यकार हैं-स्वनाम धन्य स्वर्गीय आचार्य चतुरसेन शास्त्री। सरदार भगतसिंह बलवंतसिंह नाम से “अर्जुन” (दैनिक) के संपादकीय विभाग में अनुवाद का कार्य करते थे। बलवंतसिंह ने अपना पता कभी अता किसी को बताया नहीं। “चांद” के फांसी अंक के प्रकाशन में सहयोग के ।

समय आचार्य चतुरसेन जी से परिचय हुआ, तो वह इनके घर उसका आनेजाने लगा। उसको लगा कि इस देशभक्त दम्पति में वह मातापिता के दर्शन कर सकता है। अतः वह शास्त्री जी को पिताजी” कहकर संबोधित करता था।

 

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8 अप्रैल1929 को बलवंतसिंह प्रातः 10 बजे टैक्सी लेकर आचाय चतुरसेन के यहां पहुंचा और एसेम्बली चलने का आग्रह करने लगा।

 

मना करने पर बलवंतसिंह ने उस दिन कार्रवाई का महत्व बताते हुए कहा स्पीकर पटेल इस्तीफा देंगे। स्वराज्य पार्टी वाक-आउट करेगी और भी न जाने क्या कुछ हो जाए। इस पर आचार्यजी एसेम्बली चलने को तैयार हो गए। आचार्य चतुरसेन शास्त्री उनके अनुज चंद्रसेन, उनकी पत्नी और बलवंतसिंहचारों टैक्सी में बैठकर 10 बजकर 15 मिनट पर एसेम्बली हॉल में पहुंच गए।

“बलवंतसिंह नई कमीज और निक्कर पहने हुए था। सिर पर फ्लैट हैट सुशोभित थी। कमीज के खुले गले में पुष्ट गर्दन चमक रही थी। लाल सुखें स्वस्थ चेहरे पर खूब लाल पतले होंठ रंग दिखा रहे थे ।” एसेम्बली भवन में आज अपार भीड़ थी।” पब्लिक सेफ्टी बिल” पर बहस चल रही थी। खूब गरमागरम वातावरण था। इधर बलवंतसिंह श्रीमती
शास्त्री को नारीदर्शक दीर्घा में बैठकर तीर हो गया। भीड़ अधिक थी। अतः बैठने का स्थान न था। शास्त्रीजी बैठने की परेशानी में उचक-उचककर कार्रवाई देख रहे थे।

इस बीच बलवंतसिंह अपने साथी बटुकेश्वरदत्त से मिलकर कार्यक्रम की सम्पन्नता में लग गया।

थोड़ी ही देर बाद स्पीकर श्री पटेल की घंटी बजी। सब लोग आगे बढ़कर कार्रवाई करन लगे। बहस खत्म हो चुकी थी और सदस्यगण थिएटर के पात्रों की भांति इधर-उधर वोट देने को उठ चले थे। मनोरंजक दृश्य था।

सब लोग ध्यान से देख रहे थे।” ‘स्पीकर पटेल ने स्थिर गंभीर स्वर में बिल पर अपना निर्णय दिया और एक क्षण रुके। इसी क्षण एकाएक भयानक धमाके से भवन हिल गया और कोई दो गज लम्बा विद्युतप्रकाश ठीक उसी स्थान पर चमका, जहां सरकारी सदस्य बैठे थे। साथ ही ऊपर से खिड़कियों के टुकड़े और धुएं की एक ओर बौछार दर्शक-दीर्घा पर बरस पड़ी ।”

“भवन धुएं से भर गया। चारों ओर भगदड़ मच गई। गोरे सार्जेंट सबसे पहले उड़नछू हो गए थे। लेडीज गैलेरी में अंग्रेज स्त्रियां चीख रही थीं। एक बुढ़िया मेम अपनी ही सीट में उलझकर छाता हाथ में लिए थे।

मुंह गिर गई थी। शेष स्त्रियां उसे कुचलती हुई बदहवास भाग रही थी। थोड़ी देर में बम का एक और धमका हुआ। धुएं और अंक सब लग रहा था। क्रांतिकारित अदृश्य-सा दूसरे बम प्रहार के बाद दनादन गोलियां चलानी शुरू कर दीं। मुख से उद्घोष किया। “लागज रिवोल्यूशन” और साथ ही बहुत से पर्चे एक साथ हवा में उछाल दिए
धुआं कम होने पर स्थिति स्पष्ट दिखाई देने लगी।

आचार्य चतर शास्त्री ने देखा कि एसेम्बली में बम फेंकनेपर्दा डालने और नारे लगाने युवक बलवंत और बटुकेश्वरदत्त ही हैं।

उन्होंने नीचे झांककर देखा तो सरकार के गृहमंत्री श्री क्रेटाट और पं. मोतीलाल नेहरू ही बैठे थे। शेष एसेम्बली हॉल खाली था। दर्शकदीर्घा में दोनों युवक अचल खड़े थे और “लांग लिव रिवोल्यूशन” का उद्घोष कर रहे थे। अंग्रेज सम्राट उनको पकड़ने आएकिंतु समीप पहुंचने का साहस न हुआ।

 

अंत में पुलिस की दुविधा समझकर दोनों ने अपनेअपने रिवॉल्वर फेंक दिए और पुलिसअफसरों को समीप आने का इशारा किया।

इस प्रकार इन दोनों महान क्रांतिकारियों ने अपने उद्देश्य को पूर्ण करके क्रांतिकारियों की सुप्त आत्मा को जागृत करते हुए पुलिस के सम्मुख वीरता के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। यह बलवंतसिंह और कोई नहीं, अमर शहीद सरदार भगतसिंह थे।

Desh Bhakti Kahani No 4: नमक का कर्ज

 

चारों ओर से धमाकों की आवाज ऐसे आ रही थी, मानो दीपावली हो। पर यह पटाखों की नहीं बल्कि हथगोलों और बंदूकों की आवाजें थीं । दस वर्षीय टीपू अपनी अंधी दीदी से चिपक कर सोने की कोशिश कर रहा था। जब कभी बमबारी नहीं हो रही होती, तो वह चैन से अपनी दीदी के साथ सोता।

एक दिन दादी ने कहा, टीपू, मुझे यह लकड़ियां कुछ सीली मालूम पड़ रही हैं, जरा पास में ही जाकर कुछ सूखी टहनियां ले आना।” टीपू यह सुनकर बहुत खुश हो गया। क्योंकि दादी उसे झोंपड़ी के बाहर जाने ही नहीं देती थी। उनकी झोंपड़ी सीमा के नजदीक थी, इसलिए कब बमबारी हो जाएकुछ कहा नहीं जा सकता था।

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टीपू झोंपड़ी के पीछे की ओर जाकर टहनियां ढूंढ़ने लगा तो उसे झाड़ियों में कुछ हलचलसी लगी।

वह उस ओर बढ़ा तो उसने देखा कि एक घायल सैनिक पड़ा हुआ था। उसकी वर्दी जगह-जगह से फटी हुई थी और उसके घावों से खून बह रहा था। एक पल का तो वह उस सैनिक का डरावना रूप देखकर डर गयापर दूसरे ही पल उसे अपने पिताजी की याद आ गई। जो उसे हमेशा हिम्मत और बहादुरी से काम करने के लिए कहते। तभी सैनिक ने धीरे से अपनी आंखें खोलीं और टीपू की ओर आशा भरी नजरों से देखकर बोला, “पानी. टीपू ने इधरउधर देखाफिर दौड़कर अपनी झोंपड़ी से एक बर्तन में पानी ले आया।

सैनिक एक ही सांस में सारा पानी गटागट पी गया। पानी पीकर उसी आंखों में चमक आ गई। टीपू ने कहा“वो देखो, सामने मेरी झोंपड़ी है। सैनिक ने यह सुनकर टीपू का नन्हा हाथ थाम लिया और बड़ी ही मुश्किल से लगभग घिसटते हुए किसी तरह झोंपड़ी तक पहुंच गया। अपनी दादी को सैनिक के बारे में बताता हुआ टीपू बोला, “दादी, इनके घावों से बहुत खून बह रहा है।” दादी ने तुरंत जड़ी-बूटियों का काढ़ा बनाकर उसे पिलाया और हल्दी का लेप उसके घावों पर लगा दिया।

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फिर उसने जल्दी से खाना बनाकर सैनिक को बड़े प्यार के साथ परोसा।

सैनिक खाने पर टूट पड़ा और उसने चावल का आखिरी दाना तक चट कर डाला। अगले ही पल वह शर्मिन्दा होते हुए बोला, “तीन दिन से मैंने अन्न का दाना भी नहीं खाया था इसलिए खाते समय होश ही नहीं रहा कि आप लोगों के लिए कुछ बचा ही नहीं है।

” यह सुनकर दादी प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, “तुमसे मिलकर मुझे मेरे बेटे की याद आ गई और अगर बेटा पेट भर के भोजन कर ले तो मां का पेट तो क्या आत्मा तक तृप्त हो जाती है।” कुछ ही दिनों में सैनिक चलने फिरने लायक हो गया। एक दिन टीपू ने पूछा, “अच्छा तो हमारे देश के सैनिक क्या इसी तरह की वर्दी पहनते यह सुनकर उसे प्यार से गले लगा लिया।

सैनिक ने थोड़ी देर बाद पूछा, “तुम्हारे मां पिताजी कहां हैं?” यह सुनकर टीपू बोला-दादी कहती हैं कि सीमा पार से किसी फौजी ने हमारी झोंपड़ी के पास ताबड़तोड़ फायरिंग की थी, जिससे मेरे मांपिताजी भगवान के पास चले गए। यह सुनकर सैनिक को वह मनहूस शाम याद आ गई जब उसने दुश्मनों का जिक्र आते ही गुस्से में फायरिंग शुरू कर दी थी और उसे बाद में पता चला था कि एक पति-पत्नी की उसी में मौत हो गई थी।

अब उसके समझ में आया कि वे दोनों टीपू के ही मा बाप थे। उसकी आंखों से लगातार आंसू बहने लगे। वह अपनी सेना में मेजर था और अब तक ना जाने कितने ही युद्ध देख चुका था, कितनी ही लाशें उसके सामने से गुजरी थीं पर उसकी आंखें कभी नम नहीं हुई थीं।

दादी उसे बड़े ही प्यार से चुप कराने लगी तो वह बोला, “तुमने मेरी इतनी सेवा की पर कभी मुझसे मेरा

नाम तक नहीं पूछा।” यह सुनकर दादी अपने आंसुओं को आंचल से पोंछते हुए बोली, “बेटामुझे तो केवल मेरे मेहमान की चिंता है।”

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मेजर ने तभी देखा कि उसके सैनिकों की एक टुकड़ी उस ओर बढ़ी आ रही है। उनमें से एक ने दादी की ओर निशाना साधकर बंदूक चला दी।

मेजर यह देखकर हवा की गति से उनके सामने आ गया। बौखलाए हुए सैनिक दौड़ते हुए उसके पास आ गए। टीपू मेजर के गले लगकर जोर-जोर से रोने लगा। मेजर ने प्यार से उसे चूमाएक लम्बी सिसकारी भरी और दादी के चरणों में अपना सर रखकर बोला, मैंने नमक का कर्ज अदा कर दिया. हो सके तो मुझे माफ कर देना। ”

और यह कहकर मेजर शान्ति से सो गया हमेशा हमेशा के लिए ।

This Story by डॉ. मंजरी शुक्ला

 

Desh Bhakti Kahani No 5: जन्मभूमि की महिमा

महेन्द्रगढ़ राज्य में राजा विजयप्रताप राज्य करते थे। जैसा नाम, वैसा काम। वह साहसी, उदार और पराक्रमी थे। आने वाले संकटों का डटकर मुकाबला करते थे।

एक बार राजा विजयप्रताप को एक अनोखा पक्षी भेंट में मिला। पक्षी इतना खुबसूरत था कि राजा व सभासद वाह! वाह! कह उठे। वह पक्षी जब गाता था तो सब काम भूलकर उसके गीत सुनने में लीन हो जाते थे। राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि पक्षी के लिए सोने का पिंजड़ा बनाया जाए ।

उसमें खरगोश की खाल के नरमनरम रोये बिछाए जाएं और राजा की रसोई से पक्षी के लिए भोजन की व्यवस्था की जाए। वह सुंदर पक्षी को यहां इतना सम्मान व आराम मिले, जितना और कहीं भी, कभी न मिला हो। यहां रहकर वह अपने मधुरगान से हमें रसपान कराए।

राजा विजयप्रताप पक्षी की स्वरलहरी का अमृतपान करते और उसके गुण की प्रशंसा करते नहीं थकते। कहते, “इसके गायन के आगे तो तीनों लोक फीके नजर आते हैं।” अचानक एक दिन पक्षी उदास हो गया। उसने गीत गाना बंद कर दिया।

यह तो खुली हवा में रहने का आर्ट है। यहां महल में इसे घुटन होती होगी। विचार करते हुए राजा ने पिंजड़े को बाग में टांगने का आदेश दिया। राजा का यह बाग संसार में सबसे सुंदर था। परंतु पक्षी यहां भी चुप रहा। राजा विजयप्रताप विचार में पड़ गया, अब किस बात की कमी है? उसने महल के विद्वानों को बुलाकर उनकी राय मांगी और सबकी राय सुनकर आदेश दिया कि पिंजड़े को खुले वन में ले जाकर टांग दो।

परंतु पक्षी वहां भी मौन रहा। मंत्री ने राजा विजयप्रताप को राय दी कि “पिंजड़े के पक्षी को देश-देशांतर में घुमाइए। शायद कहीं यह पंछी गाने लगे।”

राजा देशाटन पर निकल पड़ा। पिंजड़े के साथ देश के कोनेकोने में गया। आखिर एक रात वे एक पहाड़ी क्षेत्र में रुके। यहां दूरदूर तक फैली पर्वत मालाएं और उनकी तलहटी में फैले हरेभरे खेत थे। फलफूलों से लदे वृक्षों की भरमार थी।

निकट ही कलकल करती नदी बहती थी। पहाड़ी नदीनालों और झरनों की आवाज मधुर संगीत सुनाती-सी लगती थी। यही पिंजड़ा एक वृक्ष की डाल पर टांगा गया। प्रहरी तैनात करके सब सो गए। पौ फटने लगी तो पक्षी सहसा फड़का और अपने पंख फैलाकर उन्हें चोंच से साफ करने लगा। यह देखकर प्रहरी ने राजा विजयप्रताप को जगाया।

उसी क्षण दूर क्षितिज से लाल सूरज ऊपर उठता दिखाई दिया। पक्षी तेजी से उड़ा और पिंजड़े के तारों से टकरा कर गिर पड़ा। फिर उसने चारों ओर उदास दृष्टि से देखा और हौले से अपना गीत छेड़ा।

गीत सुनकर उसके जैसे ही सैकड़ों पक्षी चारों दिशाओं में उड़कर एकत्रित हो गए और वे भी पिंजड़े के पक्षी की तरह ही गीत गाने लगे। गीत के स्वर उदास थे। “तो यहां का है, हमारा यह सुंदर पक्षी। यहां इसकी जन्मभूमि है” राजा विजयप्रताप विचारमग्न होते हुए बोला।

उसके चेहरे पर भी उदासी छा गई। उसे भी अपनी राजधानी की याद हो आई जिसे छोड़े। हुए पूरे बारह माह हो गए थे। “पिंजड़ा खोल दो और पक्षी को आजाद कर दो।” राजा ने आदेश दिया।

पिंजड़े से आजाद होते ही सुंदर पक्षी ने फिर गाना प्रारंभ किया। अन्य सभी पक्षी भी गाने लगे। स्वतन्त्रता और जन्मभूमि प्राप्त करने की खुशी में पक्षी मस्ती से गा रहे थे। तब राजा विजयप्रताप के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा, यह है जन्मभूमि की महिमा, स्वतन्त्रता का आनंद!! जहां जन्म होता है, बस वहीं प्रसन्नता के गीत गाए जा सकते हैं।”

 

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Written by

Romi Sharma

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8 thoughts on “Desh Bhakti Kahani in Hindi Language – देश भक्ति की कहानियाँ [15 सबसे अच्छी कहानी ]

  1. aapki kahani bahut hi acchi hai ye padkhar bahut khushi hui aur ek baat aapka blog students log ke liye bahut hi badhiya education source hai.

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